14. भू-सन्दर्भ / The Geo-Referencing System
14. भू-सन्दर्भ
(The Geo-Referencing System)
भू-सन्दर्भ⇒
धरातलीय सूचनाओं को नियंत्रित रूप से संचालित करने की नितान्त आवश्यकत होती है जिससे धरातलीय दूरियाँ, बसाव स्थिति एवं दिशा एक-दूसरे से सम्बन्धित रह सके। इसके लिए धरातलीय सन्दर्भ प्रणाली (Geo-Reference System) को स्थापित करने की आवश्यकता होती है। जैसा कि ज्ञात है कि सभी धरातलीय सूचनायें मानचित्रों में दर्शाई जाती हैं। मानचित्र का मुख्य कार्य वास्तविक संसार की आकृतियों को उनकी बसाव स्थिति के अनुरूप दर्शाना होता है। भौगोलिक बसाव स्थिति को ही भू-सन्दर्भित (Geo-Referencing System) प्रणाली कहते हैं। मानचित्र ज्यामितीय विशेषतायें लिए हुये होते हैं।
सुदूर संवेदन से प्राप्त घरातलीय सूचनाओं के प्रतिविम्ब बिना प्रक्षेपों के होते हैं। इसलिए, यह नहीं कहा जा सकता है कि सुदूर संवेदन से प्राप्त प्रतिविम्बों में मानचित्र जैसी ज्यामितीय विशेषतायें होती हैं। सभी सुदूर संवेदन उत्पादों को धरातलीय बसाव स्थितियों के अनुरूप व्यवस्थित करना अति आवश्यक होता है। भौगोलिक बसाव स्थिति को निर्देशांकों Coordinated) की सहायता से प्रदर्शित किया जाता है।
“किसी निश्चित निर्देशांक प्रणाली की रूपरेखा के अनुरूप वास्तविक संसार की आकृतियों को दर्शाना भू-सन्दर्भ प्रणाली कहलाती है।”
दूसरे शब्दों में इस प्रकार समझा जा सकता है कि- “अव्यवस्थित सुदूर संवेदन आँकड़ों को भू-धरातलीय (Geo-Spatial) आँकड़ों में परिवर्तन करना ही भू-सन्दर्भ प्रणाली कहलाती है।”
यहाँ पर यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि धरातलीय सन्दर्भ प्रणाली (Spatial Reference System) एवं भौगोलिक सन्दर्भ प्रणाली (Geo-graphical Reference System) दोनों एक ही हैं जिन्हें साधारण रूप से Geo-Referencing कहा जाता है। ये दोनों ही धरातलीय मापन से सम्बन्धित हैं।
भू-सन्दर्भ प्रणाली के उद्देश्य
सुदूर संवेदन द्वारा ली गई इमेज में किसी पिक्सल की स्थिति तथा उसी पिक्सल तत्व की धरातल पर वास्तविक स्थिति के अनुपातिक सम्बन्ध को स्थापित करना ही भू-सन्दर्भ प्रणाली का प्रमुख उद्देश्य है।
दूसरे शब्दों में भू-सन्दर्भ का उद्देश्य धरातलीय आकृतियों को उनकी बसाव स्थिति के अनुरूप दर्शाने के लिए एक ऐसी रूप रेखा तैयार की जाती है जिस प्रारूप के अन्तर्गत वास्तविक संसार की आकृतियों का उचित मापन (Measurement), संग्रहण (Recording), परिकलन (Computition), तथा विश्लेषण (Analysis) किया जा सके।
भू-सन्दर्भ की संकल्पना (Concept of Geo-Referencing)
वास्तव में यदि व्यवहारिक रूप से देखा जाय तो भू-सन्दर्भ एक ऐसी संकल्पना एवं तकनीकि है जो पृथ्वी के गोलाकार असमतल धरातल को समतल मानचित्र पर सफलतापूर्वक मापन कर परिवर्तित करता है। यह निर्देशांक प्रणाली के द्वारा ही सम्भव है। इसके द्वारा आकृतियों का उचित मापन एवं दृश्याँकन अति सुगम हो जाता है।
यद्यपि मानचित्र भी धरातलीय सूचनाओं का आधार है परन्तु मानचित्र आँकड़ों की अपेक्षा भिन्न सूचनायें रखते है। भू-सन्दर्भ की विशेषताओं के कारण ही यह अन्य सूचना एकत्र करने वाली प्रणालियों से भिन्न है। पृथ्वी की भौतिक आकृति को गणितीय विधियों के द्वारा समतल सतह पर प्रदर्शित करने की संकल्पना का अनुमान ज्योड़ (Geiod) एवं गोलाभ (Ellipsoid) परिभाषा से लगाया जा सकता है जो कि भू-सन्दर्भ प्रणाली की संकल्पना का मूलाधार है।
प्रायः सुदूर संवेदन आँकड़ों से तैयार की गई इमेज की DN मानों में लिया जाता है। DN मान बिना किसी सूचना या नाम चिप्पी के होते हैं जो धरातल के विभेदन (Resolution) का एक लघु रूप होता है। प्रत्येक DN मान की एक ज्यामितीय स्थिति होती है। ज्यामिमितय सम्बन्ध से अभिप्राय है कि घरातल के बिन्दुओं तथा इमेज बिन्दुओं के मध्य समानुपातिक सम्बन्ध होना। किसी पिक्सल की स्थिति को धरातल की स्थिति में परिवर्तित किया जा सकता है। धरातल की स्थिति को 3D निर्देशांक प्रणाली (3D Co-ordinate system) में या मानचित्र प्रक्षेप में 2D निर्देशांक प्रणाली (2D Co-ordinate System) के द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।
इस प्रकार किसी भी बिम्ब (Image) को भू-सन्दर्भित करने से दो समस्याओं का हल एक साथ निकाला जा सकता है-
(i) जिस आकृति की विम्ब (Image) में पहचान की जानी है उसके मानचित्र के निर्देशांक प्राप्त किये जा सकते हैं।
(ii) सुदूर संवेदन बिम्बों के ज्यामितीय विकारों (Distortions) को तभी शुद्ध किया जा सकता है जब उसके किसी पिक्सल को मानचित्र के निर्देशांकों के अनुरूप ढाल दें। इस प्रकार के निर्देशांक रुपान्तरण को भू-सन्दर्भित (Geo-Referencing) कहा जाता है। सुदूर संवेदन एवं जी.आई.एस. में किसी भी रास्टर आधारित भौगोलिक डाटा प्रक्रिया का यह सबसे पहला कदम होता है, तभी डाटा शुद्ध सन्दर्भित माना जाता है।
भू-सन्दर्भ के उपागम (Approaches of Geo-Referencing)
रास्टर आधारित आँकड़ों के प्रक्रियन (Process) में निम्न दो प्रमुख उपागमों के द्वारा किसी बिम्ब को भू-सन्दर्भित किया जाता है-
(i) बिम्ब का मानचित्र में शुद्धीकरण (Image to Map Rectification)
(ii) बिम्ब से बिम्ब में पंजीकरण (Image to Image Rectification)
(i) बिम्ब का मानचित्र में शुद्धीकरण-
किसी बिम्ब को, मानचित्र निर्देशांक प्रणाली में परिवर्तित करने या शुद्ध करने की प्रक्रिया को बिम्ब का मानचित्र में शुद्धीकरण कहलाता है। कहने का अभिप्राय यह है कि रास्टर बिम्ब में पंक्ति व कॉलम निर्देशांकों को मानचित्र के X व Y निर्देशांकों में रूपान्तरण किया जाता है। बिम्ब को निम्न दो अन्तर सम्बन्धित परिचालन प्रक्रिया के अन्तर्गत शुद्ध किया जाता है-
(a) Spatial Interpolation by Co-ordinate Transformation
(b) Attribute Interpolation by Resampling
(ii) बिम्ब का विम्ब से पंजीकरण-
इसका अभिप्राय यह है कि शुद्ध किये गये बिम्ब से किसी नये विम्ब को शुद्ध करना है। पूर्व में जो बिम्ब मानचित्र निर्देशांक की सहायता से शुद्ध किया गया है उसकी सहायता से अशुद्ध बिम्ब को शुद्ध की जाने वाली प्रक्रिया बिम्ब में पंजीकरण कहलाता है। जी.आई.एस. में सामान्यतः एक रास्टर बिम्ब से दूसरे रास्टर बिम्ब में पंजीकरण किया जाता है।
भू-सन्दर्भ की प्रक्रिया (Process of Geo-Referencing)
सुदूर संवेदन एवं जी.आई.एस. में रास्टर डाटा को किसी निश्चित मानचित्र निर्देशांक प्रणाली में भू- सन्दर्भित करना अति आवश्यक होता है। मूलरुप से रास्टर डाटा का भू-सन्दर्भित करना रास्टर सतह (layer) की संकल्पना है। रास्टर बिम्ब को X (Horizental) एवं Y (Vertical) लघु ग्रीड सेलों के द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। किसी भी डाटा सेल की स्थिति पंक्ति एवं कॉलम के द्वारा सन्दर्भित होती है। सेल का न्यूनतम आकार मापन की सूक्ष्म इकाई होती है। किसी भी सेल की स्थिति उसकी पंक्ति संख्या एवं कॉलम संख्या से पहचानी जा सकती है। पंक्ति का प्रारम्भ धनात्मक दिशा नीचे की ओर एवं कॉलम दाहिने ओर को इशारा करते हैं।
प्रश्न प्रारूप
Q. भू-सन्दर्भ प्रणाली पर प्रकाश डालें।
(Throw light on the Geo-referencing System.)
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