Unique Geography Notes हिंदी में

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Environmental Geography (पर्यावरण भूगोल)

16. What is acid rain? Its causes and effects (अम्लीय वर्षा क्या है? इसके कारण एवं प्रभाव)

16. What is acid rain? Its causes and effects

(अम्लीय वर्षा क्या है? इसके कारण एवं प्रभाव)



        अम्लीय वर्षा’ शब्द का उपयोग सर्वप्रथम रॉबर्ट एंग्स ने सन् 1972 में किया। वर्षा का जल वायुमण्डल में उपस्थित गैसों से रासायनिक क्रिया कर जब अम्लीय होकर बरसता है तो इसे अम्लीय वर्षा कहते हैं। दूसरे शब्दों में किसी भी प्रकार की वर्षा जिसमें अम्ल की असामान्य उपस्थिति होती है, अम्लीय वर्षा होती है। यह कम पीएच देने वाली बारिश में हाइड्रोजन आयनों की उच्च संख्या को इंगित करता है। अम्लीय वर्षा का जलीय जीवन, पौधों और बुनियादी सुविधाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। अम्लीय वर्षा के मुख्य घटक हवा में जल वाष्प अणुओं के साथ उत्सर्जित सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड की प्रतिक्रिया से बनते हैं। 

       सघन औद्योगिक प्रदेशों में वर्षा के पानी की अम्लीयता हानिकारक स्थिति तक पहुँच जाती है। तेजाबी वर्षा का विशेष तथ्य यह है कि कुछ एक राष्ट्रों की चिमनियाँ धुआँ उगलती हैं और दूसरे राष्ट्रों के लोग भी इसके कारण अम्लीय वर्षा झेलते हैं। नार्वे, स्वीडन, डेनमार्क आदि यूरोपीय राष्ट्र, ब्रिटेन और फ्रांस पर यह आरोप लगा रहे हैं कि उनके कल-कारखानों से निकलने वाले धुएँ से पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है तथा उनके देशों में अम्लीय वर्षा हो रही है। पूरे यूरोप, कनाडा, अमेरिका और स्कैण्डिनेवियायी देशों में अम्ल वृष्टि का प्रकोप खतरनाक ढंग से बढ़ता जा रहा है। अब तक स्वीडन की 10 हजार और कनाडा की 40 हजार झीलें अम्लीय हो चुकी हैं।

       अप्रैल 1979 में स्कॉटलैण्ड में अम्लीय वर्षा के कारण नींबू के रस जितनी अम्लीयता (pH-2.2) या सिरके से ज्यादा अम्लीय वर्षा रिकार्ड की गयी। विश्व में उत्तरी-पूर्वी अमेरीका, उत्तरी यूरोप और पश्चिमी तटीय भारत भविष्य के आशंकाग्रस्त क्षेत्र हैं। यू. एस. ए. के लॉस एन्जिल्स और झीलों के देश स्वीडन की झीलों में अम्लीय वर्षा के प्रभाव परिलक्षित हुए।

अम्लीय वर्षा की प्रक्रिया

       वह जल वाष्प जो SO2 (सल्फर डाइ ऑक्साइड) और नाइट्रोजन ऑक्साइड के भूरे भूरे बादलों के रूप में आकाश में मँडराते हैं। ये दोनों ऑक्साइड कारखानों में जलते ईंधन से निकलकर सूक्ष्म कणों के रूप में वायु और मेघों में जमा हो जाते हैं और बाद हैं। में सल्फ्यूरिक एसिड और नाइट्रिक एसिड का रूप ले लेते हैं हवा का बहाव कभी-कभी उन्हें अपने मूल स्थान से हजारों किलोमीटर दूर भेज देता है। इस तरह अम्लीय वर्षा के ये बादल विकसित देशों से चलकर देशों में जा पहुँचते हैं।

अम्लीय वर्षा के कारण-

       जीवाश्म ईंधन जैसे कोयला और पेट्रोल जो उद्योगों एवं आधुनिक परिवहन के साधनों में दहन किया जाता है या बड़ी मात्रा में सल्फर डाइऑक्साइड छोड़ते हैं। इसके साथ ही कुछ अयस्क जिनमें सल्फर होता है वे भी गरम होने पर सल्फर डाइ-ऑक्साइड बनाते हैं। उच्च तापमान पर सल्फर एवं नाइट्रोजन के ऑक्साइड जल वाष्प की उपस्थिति में सल्फ्यूरिक एसिड। गन्धक का अम्ल तथा नाइट्रिक एसिड (शोरे का अम्ल) बनाते हैं।

     इसी प्रकार ताप विद्युत गृहों में कोयले के जलने से निसृत क्लोरीन गैस जल से क्रिया करके हाइड्रोक्लोरिक एसिड बनाती है। कार्बन डाइ ऑक्साइड भी कार्बोलिक अम्ल तनु (दुर्लभ) रूप में बनाती है। संक्षेप में तेज धूप में नाइट्रस ऑक्साइड, ओजोन, हाइड्रो कार्बन तथा ऑक्सीजन परस्पर क्रिया करते हैं जिससे रासायनिक कोहरा बनता है। इसी कोहरे के परिणामस्वरूप कालांतर में अम्लीय वर्षा होती है। इस प्रकार विभिन्न स्रोतों से विभिन्न अम्ल बनने की क्रिया रासायनिक सूत्रों द्वारा चित्र में अभिव्यक्त की गयी है।

What is acid rain

     वर्तमान युग में आटोमोबाइल्स एवं औद्योगिक इकाइयों की स्थापना की प्रतिस्पर्धा होने से इनकी संख्या में दिनोंदिन वृद्धि हो रही है। ताप विद्युत गृहों की संख्या और उनमें कोयला उपयोग की मात्रा में निरंतर वृद्धि होने से बड़ी मात्रा में कार्बन डाइ ऑक्साइड गैस पैदा हो रही है। कार्बन डाइ-ऑक्साइड गैस अम्लीय प्रकृति की गैस है। अतः जल में घुलकर (तनु) कार्बोलिक अम्ल बनाती है जिससे वर्षा जल की प्रवृत्ति अम्लीय हो जाती है। शुद्ध जल का पी. एच. मूल्य 7 है। जहाँ न पानी अम्लीय होता है और न ही क्षारीय अर्थात् उदासीन होता है। इससे कम होने या पी. एच. मूल्यांक घटाने पर अम्लीयता बढ़ती है तथा पी. एच. मूल्यांक बढ़ने पर क्षारीयता बढ़ती है।

      अम्ल वृष्टि से प्राप्त जल में 1.9 से 5.7 तक पी. एच. मूल्य पाया जाता है। यह मात्रा कोयले के अयस्क में उपस्थित गन्धक की मात्रा के ऊपर निर्भर करती है। कोयले के उपयोग की मात्रा भी इसको प्रभावित करती है। जैसे सिंगरौली के सुपर पावर थर्मल प्लाण्ट में प्रतिदिन 909 मीट्रिक टन कोयला उपयोग कर 45 से 182 मीट्रिक टन सल्फर डाइ-ऑक्साइड पैदा होती है। यदि ऐसी स्थिति में चिमनियाँ ऊँची न हों तो अम्ल वृष्टि क्षेत्रीय समस्या के रूप में भविष्य में उभर सकती है। इसी प्रकार पेट्रोलियम शोधक कारखानें भी सल्फर डाइऑक्साइड को बड़ी मात्रा में उत्पादित कर अम्ल वृष्टि की आशंका को जन्म देती है।

     विगत दशक में यह समस्या यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरीका के सघन औद्योगिक क्षेत्रों में जन्मी तथा वर्तमान में बहुत से औद्योगिक केन्द्र एवं औद्योगिक प्रदेश भी इसकी आशंका से ग्रसित हैं। जैसे कानपुर, कोटा, सिंगरौली, छोटानागपुर का पठार आदि।

अम्ल वृष्टि का प्रभाव:-

     अम्ल वृष्टि का कुप्रभाव जलाशय, वन संसाधनों, मिट्टियों की उत्पादकता के साथ-साथ सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक महत्त्व में भू-दृश्यों पर स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। पेयजल स्रोत अम्लीय होकर स्वतः ही प्रदूषण की ओर अग्रसर हो रहा है। अतः मत्स्य संसाधन को भारी क्षति होना स्वाभाविक ही है। मिट्टियाँ अम्लीय हो जाने से अनुत्पादक हो जाती हैं।

     अम्ल वर्षा से सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक महत्त्व के पर्यटन स्थल एवं जलाशय कुप्रभावित हो जाते हैं। इमारतों को भारी क्षति पहुँचती है। जैसे आगरा के उद्योग एवं मथुरा रिफाइनरी की स्थापना के समय यह एक प्रश्नचिह्न उभर कर सामने आया था कि शोधन प्रक्रिया से निकली सल्फर डाइऑक्साइड शीघ्र ही सल्फ्यूरिक अम्ल वृष्टि से ताजमहल जैसी विश्व प्रसिद्ध इमारत, जो संगमरमर की बनी है, क्षतिग्रस्त होगी।

      ऐसा अनुमान है कि सभी उपाय और सावधानी के बावजूद मन्थरगति से क्षरण का प्रभाव भविष्य में देखा जायेगा। वैसे ताजमहल के सफेद रंग में परिवर्तन अभी से दिखाई पड़ रहा है। यही कारण है कि एक कानून पास कर शासन ने आगरा तथा उसके आसपास के कारखानों को 1992 में बंद करने के आदेश दिये थे।

अम्ल वर्षा का मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव:-

     निम्न गैसों की निम्नांकित प्रतिशत से अधिक मात्रा मानव स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है-

       सल्फर डाइ-ऑक्साइड (SO2)- 3 पी.पी.एम., कार्बन मोनो ऑक्साइड (CO)-100 पी. पी. एम., नाइट्रोजन ऑक्साइड 1.4 पी. पी. एम.।

     इनमें सबसे ज्यादा खतरनाक सल्फर डाइऑक्साइड गैस है। इससे धूम्र कोहरा बढ़ता है, और यदि आर्द्रता अधिक हो तो अस्थमा, ब्रोन्काइटस एवं फेफड़ों के कैंसर की आशंका बढ़ जाती है। इसके सूक्ष्मकण फेफड़ों में जाते हैं जिससे कोशिकाओं को हानि होती है और कालांतर में घाव बन जाते हैं। इससे फेफड़े के कैंसर की आशंका बढ़ जाती है।

     ‘कार्बन मोनो ऑक्साइड में कोई गन्ध नहीं होती, परंतु यह जहर का काम करती है। एक अध्ययन के अनुसार सन् 1952 में लंदन में मृत्यु दर 250 प्रतिदिन थी जो धूम्र, कुहरे में बढ़कर 750 हो गयी थी। इससे आँखों की तकलीफें बढ़ जाती हैं और ट्रिकोमा, इन्जेक्टीवाईटिस प्राय: ज्यादा धुएँ वाले इलाकों में देखने को मिलते हैं। इससे मानव को न केवल शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य और कार्यक्षमता प्रभावित होती है अपितु परोक्ष रूप से दूसरी बीमारियों का भी जन्म होता है; जैसे- आमाशय कैंसर और तंत्रिका तंत्र की शिथिलता; अम्लीय जल के प्रभाव से चर्मरोग जैसे- खाज-खुजली, एक्जिमा और एलर्जी का प्रकोप बढ़ सकता है।

       दूसरी तरफ गुर्दों से सम्बन्धित बीमारियाँ जन्म लेती हैं जैसे- पथरी पड़ना। अल्सर और पीलिया दूषित पानी से होता है। वैसे अम्लीय वर्षा से स्वास्थ्य पर प्रभाव का कोई प्रामाणिक अध्ययन अभी तक प्रस्तुत नहीं हो सका है न ही अम्ल वर्षा बड़े पैमाने पर वर्तमान में किसी बड़े क्षेत्र में निश्चित रूप से हो रही है किन्तु भविष्य में होने की आशंका से भी इंकार नहीं किया जा सकता है।

अम्ल वर्षा का पेड़-पौधों पर प्रभाव:-

       अम्लीय वर्षा जिसमें सल्फर डाइ-ऑक्साइड की मात्रा होने से प्रकाश संश्लेषण कुप्रभावित होता है और वनस्पति पर कुठाराघात होता है। परिणामस्वरूप वातावरण और दूषित हो जाता है। सल्फर डाइ-ऑक्साइड की अधिकता से पेड़-पौधों के ऊतक जल जाते हैं, पत्तियों के नुकीले हिस्से जलकर टेढ़े हो जाते हैं। इसको महानगरीय सघन परिवहन के क्षेत्र में पेड़-पौधों में देखा जा सकता है, ओजोन गैसे पत्तियों के ऊतकों को नुकसान पहुँचता है। “पराक्लीएसाइल नाइट्रेट” नई कोपलों को नष्ट कर देता है।

     सिनसिनाटी एवं न्यूयार्क नगर में वायु प्रदूषण के एक अध्ययन में पाया गया है कि कार्बन मोनोऑक्साइड का प्रतिशत पार्क और खुले इलाकों की तुलना में औद्योगिक क्षेत्रों में 60 से 70 प्रतिशत अधिक था। यह प्रतिशत पेड़-पौधों के लिए भी बहुत हानिकारक है और पेड़ों के विकास और वृद्धि पर बुरा असर डालता है।

अम्ल वर्षा की आशंका से बचने के उपाय

1. औद्योगीकरण से होने वाले प्रदूषणों पर रोक लगाना।

2. जन चेतना द्वारा जागरूकता पैदा करना।

3. सामूहिक प्रयास।

4. ऊर्जा के ऐसे स्रोतों की खोज जो प्रदूषण न फैलाते हों।

5. निरंतर वायुमण्डल की दशा का अध्ययन।

6. पर्यावण संक्षण कानूनों का कड़ाई से पालन।


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I ‘Dr. Amar Kumar’ am working as an Assistant Professor in The Department Of Geography in PPU, Patna (Bihar) India. I want to help the students and study lovers across the world who face difficulties to gather the information and knowledge about Geography. I think my latest UNIQUE GEOGRAPHY NOTES are more useful for them and I publish all types of notes regularly.

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