Unique Geography Notes हिंदी में

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POPULATION GEOGRAPHY (जनसंख्या भूगोल)

9. Theory of Optimum Population (अनुकूलतम जनसंख्या का सिद्धांत)

9. Theory of Optimum Population

(अनुकूलतम जनसंख्या का सिद्धांत)



अनुकूलतम जनसंख्या का अर्थ एवं परिभाषा 

    “अनुकूलतम जनसंख्या, उस सर्वोत्तम जनसंख्या को कहते हैं, जो किसी देश में एक निश्चित समय पर उपलब्ध साधनों का अधिकतम उपयोग करने अथवा अधिकतम उत्पादन करने के लिए आवश्यक होती है।” 

     इस कथन से स्पष्ट है कि जनसंख्या का आकार तभी अनुकूलतम माना जायेगा, जब प्रति व्यक्ति आय अधिकतम हो। इसका कारण यह है कि साधनों का सर्वोत्तम उपयोग होने पर अथवा उत्पादन के अधिकतम होने की दशा में ही प्रति व्यक्ति आय अधिकतम होती है।

प्रमुख परिभाषा

1. प्रो. रॉबिन्स के अनुसार, “अनुकूलतम जनसंख्या वह जनसंख्या है, जो अधिकतम उत्पादन को सम्भव बनाती है। 

2. प्रो. डॉल्टन के अनुसार, “अनुकूलतम जनसंख्या वह है जो अधिकतम प्रति व्यक्ति आय प्रदान करती है।

3. प्रो. बोल्डिंग के अनुसार, “वह जनसंख्या जिस पर जीवन स्तर अधिकतम होता है, अनुकूलतम जनसंख्या कहलाती है।”  

4. प्रो. हिक्स के अनुसार, “अनुकूलतम जनसंख्या, जनसंख्या का वह रूप है जिस पर प्रति व्यक्ति उत्पादन अधिकतम होता है। 

5. प्रो. कार सौण्डर्स के अनुसार, “अनुकूलतम जनसंख्या, वह जनसंख्या है जो अधिकतम आर्थिक कल्याण उत्पन्न करती हो। अधिकतम आर्थिक कल्याण का अधिकतम प्रति व्यक्ति आप के समान होना आवश्यक नहीं है, लेकिन व्यवहार में उन्हें उसके बराबर समझा जा सकता है। 

अनुकूलतम जनसंख्या के सिद्धान्त का उद्देश्य:-

      अनुकूलतम जनसंख्या के सिद्धान्त का उद्देश्य यह बताता है कि एक देश के लिए आर्थिक दृष्टि से जनसंख्या का कौन-सा आकार, अनुकूलतम है अर्थात् जनसंख्या का कौन-सा आकार अनुकूलतम होगा, जिसमें प्रति व्यक्ति आय अधिकतम होगी।

अनुकूलतम जनसंख्या सिद्धान्त की व्याख्या

      अनुकूलतम जनसंख्या का अभिप्राय जनसंख्या की उस आदर्श मात्रा से है जो किसी देश-काल (Space & Time) में उपलब्ध संसाधनों के अधिकतम उपयोग और अधिकतम उत्पादन के लिये आवश्यक होती है।

     किसी निश्चित समय पर उपलब्ध संसाधनों तथा ज्ञात प्रौद्योगिकी की दशा में वह जनसंख्या अनुकूलतम मानी जाती है जिसमें प्रति व्यक्ति आय अथवा प्रति व्यक्ति उत्पादन या अधिकतम प्रतिफल अथवा अधिकतम कल्याण होता है।

      किसी देश की वास्तविक जनसंख्या अनुकूलतम जनसंख्या से अधिक होने पर अति जनसंख्या और इससे कम होने पर अल्प जनसंख्या कहलाती है। अनुकूलतम जनसंख्या से देश की वास्तविक जनसंख्या कम होने पर उसके संपूर्ण संसाधनों का समुचित प्रयोग तथा विकास नहीं हो पाने से प्रति व्यक्ति उत्पादन अधिकतम उत्पादन से कम प्राप्त होता है।

    इसके विपरीत जनसंख्या अनुकूलतम जनसंख्या से अधिक होने पर प्रति व्यक्ति संसाधनों की कमी पड़ने लगती है, जिसमें प्रति व्यक्ति उत्पादन कम होता है। इसका परिणाम यह होता है कि प्रति व्यक्ति आय में कमी आ जाती है।

      विदित हो कि अनुकूलतम जनसंख्या कभी स्थिर नहीं होती बल्कि गतिशील होती है। इसका आशय यह हुआ कि किसी देश के उत्पादन संसाधनों में परिवर्तन होने से अनुकूलतम जनसंख्या भी परिवर्तित हो जाएगी। यह एक आदर्श की स्थिति है। इसका व्यवहार में प्रयोग संभव नहीं हो सकता क्योंकि इस बात का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता कि अनुकूलतम जनसंख्या कितनी उचित रहेगी और आने वाले समय में वही जनसंख्या भी चाहिये होगी।

   अर्थात अनुकूलतम जनसंख्या सिद्धांत, जनसंख्या के उस स्तर को बताता है, जिस पर प्रति व्यक्ति आय अधिकतम होती है। यह सिद्धांत ब्रिटिश अर्थशास्त्री हेनरी सिजेविक ने दिया था। 

    दूसरे शब्दों में, प्रारम्भ में उत्पत्ति वृद्धि नियम लागू होता है, लेकिन कुछ समय में एक ऐसा बिन्दु आ जायेगा, जिस पर जनसंख्या का अनुकूलतम अनुपात स्थापित हो जायेगा। इस पर प्रति व्यक्ति आय अधिकतम एवं जनसंख्या अनुकूलतम होगी, लेकिन यदि जनसंख्या इस बिन्दु अनुकूलतम अनुपात समाप्त हो जायेगा और उत्पत्ति ह्रास नियम लागू होने लगेगा।

अनुकूलतम जनसंख्या सिद्धांत की मुख्य विशेषताएँ:

(i) अनुकूलतम जनसंख्या, अंडरपॉपुलेशन और ओवरपॉपुलेशन के बीच संतुलन/बैलेंस वाली स्थिति होती है।

(ii) अनुकूलतम जनसंख्या में, जनसंख्या और संसाधनों के बीच संतुलन/बैलेंस वाली स्थिति होती है।

(iii) अनुकूलतम जनसंख्या में, प्रति व्यक्ति आय अधिकतम होती है।

(iv) अनुकूलतम जनसंख्या में, पर्यावरण और समाज को नुकसान नहीं पहुंचता।

(v) अनुकूलतम जनसंख्या में, व्यक्ति के स्वास्थ्य को नुकसान नहीं पहुंचता।

अनुकूलतम जनसंख्या सिद्धांत के कुछ मापदंड निम्नलिखित है: 

(i) किसी देश के प्राकृतिक संसाधनों का एक समय पर इस्तेमाल होता है।

(ii) उत्पादन की तकनीक में कोई बदलाव नहीं होता है।

(iii) पूंजी का भंडार स्थिर रहता है।

(iv) लोगों की पसंद और स्वाद अपरिवर्तित रहते हैं।

(v) कार्यशील जनसंख्या का कुल जनसंख्या से अनुपात स्थिर रहता है।

अनुकूलतम जनसंख्या सिद्धांत की आलोचनाएँ (Criticism of the Optimum Theory of Population):-

      यद्यपि यह सिद्धांत माल्थस के जनसंख्या सिद्धांत की अपेक्षा अधिक महत्वपूर्ण एवं तार्किक है। परन्तु कुछ बिन्दुओं पर इसकी भी आलोचना हुई है जो निम्नलिखित है-

1. यह सिद्धान्त वास्तविक मान्यताओं पर आधारित नहीं है:-

     अनुकूलतम जनसंख्या सिद्धान्त की यह मान्यता है कि जनसंख्या में होने वाली वृद्धि के साथ-साथ कार्यशील जनसंख्या अर्थात् श्रम शक्ति में वृद्धि भी उसी अनुपात में होती है, जबकि वास्तव में यह अनुपात बदलता रहता है। 

    दूसरा, इस सिद्धान्त की यह मान्यता है कि किसी देश में एक समयावधि में प्राकृतिक साधन, तकनीकी स्तर इत्यादि में कोई परिवर्तन नहीं होता, यह पूर्णतया गलत है। किसी देश के लिए अनुकूलतम जनसंख्या का अनुमान लगाना पूर्ण रूप से काल्पनिक जान पड़ता है। 

2. अनुकूलतम बिन्दु ज्ञात करना कठिन है:-

      अनुकूलतम जनसंख्या सिद्धान्त के प्रतिपादकों ने जनसंख्या के अनुकूलतम बिन्दु का निर्धारण जितना सरल माना है, वास्तव में वह उतना ही कठिन है। अर्थव्यवस्था में होने वाले निरन्तर परिवर्तनों के कारण जनसंख्या के आकार में भी परिवर्तन होता रहता है, जिससे अनुकूलतम आकार का निर्धारण करना सम्भव नहीं हो पाता।

3. यह जनसंख्या का सिद्धान्त न होकर मात्र एक दृष्टिकोण है:-

    आलोचकों के अनुसार, अनुकूलतम जनसंख्या सिद्धान्त को जनसंख्या का सिद्धान्त कहना ही गलत है, क्योंकि यह इस प्रश्न का उत्तर नहीं देता कि जनसंख्या किस प्रकार और क्यों बढ़ती है या उसके बढ़ने का क्या नियम है? यह सिद्धान्त तो जनसंख्या के अनुकूलतम बिन्दु की मात्र कल्पना करता है।

4. यह सिद्धान्त राष्ट्रीय आय के वितरण पक्ष पर कोई ध्यान नहीं देता है:-

     अनुकूलतम जनसंख्या सिद्धान्त राष्ट्रीय आय के केवल उत्पादन पक्ष पर ध्यान देता है, वितरण पक्ष पर कोई ध्यान नहीं देता। आर्थिक कल्याण का प्रश्न वितरण से सम्बन्ध माना जाता है, जिसकी इस सिद्धान्त ने पूरी तरह से उपेक्षा की है, जो कि आपत्तिजनक है।

5. यह सिद्धान्त जनसंख्या की समस्या का अध्ययन केवल आर्थिक दृष्टिकोण से करता है:-

     आलोचकों का विचार है कि अनुकूलतम जनसंख्या का सिद्धान्त एक भौतिकवादी सिद्धान्त हैं और इसका दृष्टिकोण अत्यन्त संकुचित है। अनुकूलतम जनसंख्या का आकार केवल आर्थिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि सामाजिक, राजनीतिक एवं सैनिक परिस्थितियों को दृष्टि में रखकर ही निश्चित किया जाना चाहिए।

6. यह सिद्धान्त सामाजिक मूल्यों के प्रति संकुचित दृष्टिकोण अपनाता है:- 

      अनुकूलतम जनसंख्या का सिद्धान्त आर्थिक विकास के लिए प्रति व्यक्ति आय को अधिकतम करने की बात तो करता है, लेकिन जनसंख्या के स्वास्थ्य, शिक्षा, कौशल निर्माण, उच्च बौद्धिक स्तर तथा चरित्र निर्माण पर कोई ध्यान नहीं देता। 

7. इस सिद्धान्त का कोई व्यावहारिक महत्व नहीं है:- 

      अनुकूलतम जनसंख्या का सिद्धान्त, अनुकूलतम जनसंख्या का एक निरपेक्ष कथन मात्र है, जो हमारे लिए जनसंख्या सम्बन्धी नीति के निर्धारण में सहायक सिद्ध नहीं होता, यह सिद्धान्त हमारे सामने जिस ‘आदर्श’ को प्रस्तुत करता है, उस आदर्श को प्राप्त करने में हमारी सहायता नहीं कर पाता। इसलिए अनुकूलतम जनसंख्या सिद्धान्त का व्यावहारिक महत्व नहीं के बराबर है।

निष्कर्ष:-

     यह अनुकूलतम जनसंख्या सिद्धांत की आलोचना की गयी है क्योंकि इसके मापन में अनेक कठिनाईयाँ हैं, जिसके कारण इसका व्यवहारिक महत्व कम है। तथापि जनसंख्या और संसाधनों के अंतर्सम्बन्ध की व्याख्या हेतु यह एक महत्वपूर्ण संकल्पना है जिसके संदर्भ में ही अन्य कई संकल्पनाओं की व्याख्या की जा सकती है।

     अनुकूलत जनसंख्या का विचार सरकार द्वारा अपनायी जाने वाली जनसंख्या-नीति के लिए ठोस वस्तुगत आधार प्रदान करता है। यदि देश में जनाधिक्य की स्थिति मौजूद है, तब सरकार को जनसंख्या नियंत्रण के उपाय लागू करना चाहिए एवं उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों के अधिकतम विदोहन की योजनाएँ क्रियान्वित करनी चाहिए।

I ‘Dr. Amar Kumar’ am working as an Assistant Professor in The Department Of Geography in PPU, Patna (Bihar) India. I want to help the students and study lovers across the world who face difficulties to gather the information and knowledge about Geography. I think my latest UNIQUE GEOGRAPHY NOTES are more useful for them and I publish all types of notes regularly.

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