34. The Theory of Morphogenic Evolution Propunded By L. C. King (एल. सी. किंग द्वारा प्रतिपादित भ्वाकृतिक उद्भव के सिद्धान्त)
34. The Theory of Morphogenic Evolution Propunded By L.C. King
(एल.सी. किंग द्वारा प्रतिपादित भ्वाकृतिक उद्भव के सिद्धान्त)
या
भौगोलिक अपरदन चक्र के एल.सी. किंग मॉडल
एल.सी. किंग का स्थलरूपों के विकास से सम्बन्धित सिद्धान्त उनके द्वारा दक्षिणी अफ्रीका की शुष्क और अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों के स्थलाकृतियों के अध्ययन से सम्बन्धित तथ्यों के अवलोकन पर आधारित है।
यद्यपि किंग ने डेविस के भ्वाकृतिक सिद्धान्त (भौगोलिक चक्र) का जोरदार खण्डन किया है, परन्तु इनके सिद्धान्त का भी मुख्य आधार चक्रीय संकल्पना की ही मान्यता है। इस प्रकार किंग का भ्वाकृतिक सिस्टम भी मूलरूप में विकासीय एवं चक्रीय ही है जैसा कि इनके ‘स्थलाकृति चक्र’ (The Landscape Cycle), ‘अपरदन का भूतलज चक्र’ (the epigene cycle of erosion), ‘पेडीप्लनेशन चक्र’ (the pediplantion cycle), एवं ‘पहाड़ी ढाल चक्र’ (Hillslope cycle) से प्रकट होता है।
यद्यपि किंग ने डेविस से अलग तथा फेंक की कुछ मान्यताओं पर अपने भ्वाकृतिक सिस्टम को विकसित करने का प्रयास किया है, परन्तु इनका मॉडल पेंक की तुलना में डेविस के अधिक करीब है।
किंग के सिद्धान्त की प्रमुख मान्यता यह है कि स्थलरूपों का विकास विभिन्न पर्यावरण अवस्थाओं में समान होता है, जल अपरदित स्थलरूपों के विकास में जलवायु परिवर्तनों का महत्त्व नगण्य होता है। सभी महाद्वीपों में प्रमुख स्थलाकृतियों का विकास लयात्मक व्यापक विवर्तनिक (rhythemic global tectonies) घटनाओं से नियंत्रित हुआ है।
ढालों में सतत खिसकाव (migration) होता है तथा इस तरह का निवर्तन (retreat) समानान्तर होता है तथा इस तरह का निवर्तन (retreat) समानान्तर होता है। यह निवर्तन ढाल पर क्रियाशील प्रक्रमों द्वारा नियंत्रित होता है तथा उसी के अनुरूप (निवर्तन की प्रक्रिया) ढालों का रूप बनता है।
किंग की मान्यता है कि पहाड़ी ढाल में चार तत्त्व होते हैं- शिखर, कगार, मलवा ढाल तथा पेडोमेण्ट। किंग ने अपने सिद्धान्त का प्रतिपादन दक्षिणी अफ्रीका के अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों में स्थलाकृतिक विशेषताओं के आधार पर किया है तथा बाद में अपने सिद्धान्त को अन्य प्रदेशों में भी प्रयोज्य (practicable) बताया है। इनकी मान्यता है कि चार तत्वों (उपर्युक्त) से युक्त पहाड़ी ढाल आधारभूत स्थलरूप होता है जो उन सभी प्रदेशों में तथा सभी प्रकार के जलवायु में विकसित होता है जहाँ पर पर्याप्त उच्चावच्च होते हैं तथा जल-प्रवाह अनाच्छादन का प्रमुख प्रक्रम होता है।
किंग के अनुसार प्रत्येक चक्र त्वरित उत्थान के साथ प्रारम्भ होता है तथा उत्थान के बाद दीर्घकाल तक विवर्तनिक स्थिरता होती है (स्थलखण्ड स्थिर रहते हैं)। किंग की यह मान्यता डेविस की मान्यता के अनुरूप है। इस त्वरित उत्थान के कारण नदियों द्वारा निम्नवर्ती अपरदन तेज हो जाता है तथा नदी के मार्ग में निकप्वाइण्ट बन जाते हैं जो नदी के ऊपरी मार्ग की ओर खिसकते जाते हैं। स्थलाकृतिक चक्र की तरुणावस्था में नदी द्वारा तीव्र निम्नवर्ती अपरदन के कारण गॉर्ज का निर्माण होता है।
जब निम्नवर्ती अपरदन शिथिल हो जाता है तो घाटी-पार्श्वढाल (valley side slopes) स्थिर कोण वाले हो जाते हैं तथा ढाल का यह रूप उस पर (ढाल पर) क्रियाशील भौतिक कारकों एवं शैलिकी (lithology) द्वारा निर्धारित होता है। प्रौढ़ावस्था के समय निम्नवर्ती अपरदन समाप्त हो जाता है। घाटी-पार्श्व ढाल का नदी से खिसकाव निवर्तन (अर्थात् घाटी चौड़ी होती जाती है एवं घाटी पार्श्वढाल नदी के जलमार्ग channel से दूर हटता जाता है) होता है, परन्तु इस प्रक्रिया के दौरान घाटी पार्श्व ढाल के कोण में कोई महत्त्वपूर्ण अन्तर नहीं होता है।
इन घाटी पार्श्व ढाल के आधार (base, पदस्थली) पर अपेक्षाकृत समतल एवं सपाट स्थलरूप का निर्माण होता है जिसका ढाल अधिकतम रूप में 10° होता है, परन्तु सामान्य रूप में यह 5° से अधिक नहीं हो पाता है। इस स्थलरूप को किंग ने पेडीमेण्ट नामावली दी है। इनकी परिच्छेदिका अवतल होती है। इस पेडीमेण्ट का धीरे-धीरे विस्तार होता है (घाटी पार्श्व के कगार के समानान्तर निवर्तन द्वारा) तथा अन्त में कई पेडीमेण्ट मिल जाते हैं और विस्तृत पेडोप्लेन का निर्माण होता है। इस तरह निर्मित पेडीप्लेन की सामान्य सतह निम्न उच्चावच्च वाली होती है तथा इसकी रचना कई निम्न प्रतिच्छेदी अवतल सतहों (subdued intersecting concavities) द्वारा होती है।
इस सतह के ऊपर कुछ छिटपुट तीव्र ढाल वाले अवशिष्ट टीले मौजूद रहते हैं। चक्र की अन्तिम अवस्था में दीर्घकाल तक अपक्षय के कारण जलविभाजकों का विस्तृत उत्तलता में परिवर्तन हो जाता है।
किंग की मान्यता है कि निवर्तमान ढाल (migrating or retreating slope) का रूप उस पर क्रियाशील प्रक्रमों द्वारा निर्धारित होता है। पहाड़ी ढाल का शीर्ष (सबसे ऊपर का भाग) उत्तल होता है जो मृदा-सर्पण (soil creep) द्वारा निर्मित होता है कगार शैल दृश्यांग (rock outcrops) का बना होता है तथा उसमें निवर्तन होता है। यह निवर्तन चट्टान के टूट कर अध: पतन (नीचे की ओर गिरना), भूस्खलन (Inandslide) तथा अबनलिका अपर (gullying) द्वारा होता है। मलवा ढाल का सबसे सक्रिय तत्त्व कगार ही होता है।
मलवा ढाल (debris slope) का निर्माण ऊपर से आने वाले मलवा के द्वारा होता है तथा इसकी प्रवणता (gradient) मलवा / पदार्थों के ठहराव (repose) के कोण द्वारा नियंत्रित होती है। पेडीमेण्ट पहाड़ी ढाल की परिच्छेदिका की सबसे निचली इकाई होती है तथा इसका निर्माण ठोस चट्टान के तीव्र चादरी बाढ़ (turbulent sheet flood) द्वारा अपरदन के कारण होता है।
यदि डेविस एवं किंग के प्रतिरूपों की तुलनात्मक व्याख्या की जाए तो स्पष्ट होता है कि दोनों प्रतिरूपों में कुछ हद तक अनुरूपता अवश्य है। दोनों स्थलाकृति के चक्रीय विकास में विश्वास करते हैं जिसके अन्तर्गत अपरदन-चक्र स्थलखण्ड में तीव्र उत्थान के साथ प्रारम्भ होता है तथा उत्थान के बाद दीर्घकालिक विवर्तनिक निष्क्रियता (विवर्तनिक स्थिरता) होती है। इस अवधि के दौरान पेनीप्लेन (डेविस) या पेडीप्लेन (किंग) का निर्माण होता है। दोनों स्थलरूपों में सामान्य अनुरूपता होता है क्योंकि ये प्राचीन होते हैं। उच्चावच्च निम्न होते हैं एवं विस्तृत क्षेत्र को प्रदर्शित करते हैं। दोनों प्रतिरूप अपरदन चक्र के पूर्णकाल की तरुण, प्रौढ़ तथा जीर्ण अवस्थाओं की मान्यता पर आधारित हैं। इन दोनों प्रतिरूपों में अन्तर भी है।
डेविस के पेनीप्लेन का निर्माण अधःक्षय (down wasting) द्वारा होता है जबकि किंग का पेडीप्लेन कई पेडीमेण्ट के समेकन एवं सम्बर्द्धन से निर्मित होता है। इन पेडीमेण्ट में शीर्षवर्ती निवर्तन द्वारा विस्तार होता है। डेविस का पेनीप्लेन जब निर्मित हो जाता है तो उसमें पुनः विकास नहीं होता है तथा जब नवीन उत्थान होने से नया चक्र प्रारम्भ होता है तो उसमें नवोन्मेष हो जाता है। इसके विपरीत किंग का पेडीप्लेन अपने निर्माण के बाद भी शीर्ष की ओर बढ़ता जाता है।
यद्यपि इस पेडीप्लेन के दूरस्थ छोर पर नए कगार का निर्माण हो जाता है। इस नए कगार के निवर्तन द्वारा दूसरे पेडीमेण्ट (पूर्व निर्मित पेडीप्लेन के दूरस्थ भाग पर) का निर्माण होता है, जिसमें निवर्तन के कारण प्रारम्भिक पेडीप्लेन के विस्तार में ह्रास होता है। स्पष्ट है कि उत्पन्न स्थलाकृति ऐसी होती है कि उस पर कई पेडीप्लेन होते हैं जो शीर्ष की ओर बढ़ते जाते हैं। किंग का इस तरह का पेडीप्लेन फेंक के गिरिपद ट्रेपन (piedmont treppen) के अनुरूप होता है।
आलोचनाएँ
किंग के भ्वाकृतिक मॉडल की निम्नलिखित मान्यताएँ विवादास्पद हैं।
(i) किंग के भ्वाकृतिक मॉडल की रचना दक्षिणी अफ्रीका के अर्द्ध-शुष्क प्रदेशों की स्थलाकृतिक विशेषताओं के आधार पर की गई है, परन्तु किंग ने अपने विचारों को अन्य क्षेत्रों के स्थलरूपों की व्याख्या के लिए भी प्रयुक्त किया है। यह मान्यता सन्तोषजनक नहीं है।
(ii) किंग की मान्यता है कि स्थलरूपों का विकास विभिन्न पर्यावरण दशाओं समान रूप से होता है, सन्देहास्पद है। ज्ञातव्य है कि किंग के भ्वाकृतिक सिस्टम को उतनी मान्यता एवं समर्थन नहीं मिला जितना मिलना चाहिए था। इसका प्रमुख कारण यह है कि किंग का सिद्धांत उस समय (1953, Canons of landscape evolution) आया जब लोगों की दिलचस्पी भ्वाकृतिक सिद्धान्तों की आवश्यकता, वांछनीयता एवं उपादेयता से उठ चुकी थी।
प्रश्न प्रारूप
1. प्रो. एल. सी. किंग द्वारा प्रतिपादित भ्वाकृतिक उद्भव के सिद्धान्त की विवेचना करें।
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- 34. The Theory of Morphogenic Evolution Propunded By L. C. King (एल. सी. किंग द्वारा प्रतिपादित भ्वाकृतिक उद्भव के सिद्धान्त)