12. Suez Canal Trade Route (स्वेज नहर व्यापारिक मार्ग)
12. Suez Canal Trade Route
(स्वेज नहर व्यापारिक मार्ग)
परिचय
स्वेज नहर एक मानव निर्मित अर्थात् कृत्रिम नहर है जो कि भूमध्य सागर और लाल सागर को आपस में जोड़ती है। यह नहर सम्पूर्ण विश्व के लिए एक छोटा व्यापारिक मार्ग उपलब्ध कराता है। इस नहर के बनने से यूरोप, एशियाई देशों, ऑस्ट्रेलिया और पूर्वी अफ्रीकी देशों के बीच व्यापार में आशातीत प्रगति हुआ है।
स्वेज नहर का निर्माण
स्वेज नहर का निर्माण सन 1859 ई० में एक फ्रांसीसी इंजीनियर फर्डिनेंड ने शुरू किया था। इस नहर के बनने और शुरु होने में लगभग 10 वर्ष का समय लग गए थे। यातायात के लिए यह 1869 ई० में खोला गया। इस नहर के बनने में लगभग 1,20,000 मजदूर हैजा तथा अन्य बीमारियों से काल कवलित हो गए थे अर्थात यह नहर काफी अधिक त्याग और तपस्या से बनी थी।
स्वेज नहर की संरचना
यह नहर की लम्बाई 168 किमी०, चौडाई 60 मीटर और गहराई 10 से 15 मीटर है। इस नहर के भूमध्य सागर वाले उत्तरी छोर पर पोर्ट सईद तथा लाल सागर वाले दक्षिणी छोर पर पोर्ट तौफीक, स्वेज और पोर्ट इब्राहीम स्थित है।
जहाजों का परिचालन
नहर को 1869 ई० में यातायात के लिए खोल दिया गया। शुरूआत में केवल दिन में ही जहाज नहर को पार करते थे परंतु बाद में 1888 ई० से रात में भी पार होने लगे। 1866 ई० में इस नहर के पार होने में 36 घंटे समय लगते थे परंतु आज सिर्फ 10 से 12 घंटे का समय लगता है। इस नहर में प्रतिदिन 24 जलयान ही आवागमन कर सकते हैं। जलयानों की चाल 11 से 15 किलोमीटर प्रति घंटा के बीच होती है। इससे ज्यादा गति होने पर इस नहर के दोनों किनारों को नुकसान पहुँचने का डर रहता है।
स्वेज नहर से लाभ
स्वेज नहर के पहले यूरोप से आने वाले जहाजों को उत्तमाशा अंतरीप का चक्कर लगाना पड़ता था जो कि काफी लंबी दूरी वाला जलमार्ग है। अब उन्हें सीधे भूमध्य सागर से होकर स्वेज नहर होते हुए लाल सागर में प्रवेश करना पड़ता है जो अपेक्षाकृत एक बेहद छोटा मार्ग है। स्वेज नहर मार्ग के कारण यूरोप से एशिया और पूर्वी अफ्रीका का सीधा मार्ग खुल गया है और इससे लगभग 6000 मील की दूरी की बचत होती है। इसके कारण अनेक देशों, पूर्वी अफ्रीका, ईरान, अरब, भारत, पाकिस्तान, सुदूर पूर्व एशिया के देशों ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड आदि देशों के साथ व्यापार में बड़ी सुविधा हुई है और व्यापार काफी अधिक बढ़ गया है।
इस नहर के बन जाने से यूरोप एवं सुदूर पूर्व के देशों के मध्य दूरी काफी कम हो गई है जैसे कि ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड आदि देशों के साथ व्यापार में बड़ी सुविधा हुई है और व्यापार बहुत बढ़ गया है। इस नहर के बन जाने से यूरोप एवं सुदूर पूर्व के देशों के मध्य दूरी काफी कम हो जाती है जैसे कि लिवरपूल से मुंबई- 7250 किमी०, लिवरपूल से हांगकांग- 4500 किमी० तथा न्यूयार्क से मुंबई- 4500 किमी० की दूरी कम होने से एशियाई तथा यूरोपीय देशों के व्यापारिक संबंध प्रगाढ़ हुए हैं।
स्वेज नहर से होने वाले व्यापार
इस नहर के द्वारा फारस की खाड़ी के देशों से खनिज तेल भारत तथा अन्य एशियाई देशों से अभ्रक, लौह अयस्क, मैगनीज, चाय, कॉफी, जुट, रबड, कपास, ऊन, मसाले, चीनी, चमड़ा, खाल, सागवान की लकड़ी, सूती वस्त्र, हैंडीक्राफ्ट आदि पश्चिम यूरोपीय देशों तथा उत्तर अमेरिका को भेजी जाती हैं।
यूरोपीय देशों तथा उत्तर अमेरिका आदि देशों से रासायनिक पदार्थ, इस्पात, मशीन, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, औषधियाँ, मोटर गाड़ियाँ, वैज्ञानिक उपकरणों आदि का आयात किया जाता है।
स्वेज नहर का स्वामित्व
इस नहर के निर्माण के बाद इसका प्रबंधन ‘स्वेज कैनाल कंपनी’ करती थी जिसमें आधे का शेयर फ्रांस का था और आधे में तुर्की, मिस्र और अन्य अरब देशों के थे। बाद में तुर्की, मिस्र और अन्य अरब देशों का शेयर अंग्रेजों ने खरीद लिया। 1888 ई० के अंतर्राष्ट्रीय संधि के अनुसार यह नहर सभी देशों के लिए समान रूप से खोल दिया गया परंतु अंग्रेजों ने 1904 ई० में यह संधि तोड़ दी और बाद में 1956 ई० में मिस्र के राष्ट्रपति कर्नल नासिर ने इस नहर का राष्ट्रीयकरण कर दिया और इस प्रकार यह पूर्ण रूप से अब मिस्र के नियंत्रण में आ गया।
निष्कर्ष
इस प्रकार कहा जा सकता है कि स्वेज नहर का विश्व के व्यापार और अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इस नहर के निर्माण से न सिर्फ दूरियाँ कम हुई है बल्कि व्यापार भी काफी अधिक बढ़ गए हैं।