8. Social Forestry (सामाजिक वानिकी)
8. Social Forestry
(सामाजिक वानिकी)
प्रश्न प्रारूप
Q.1 सामाजिक वानिकी क्या है? क्यों इसे सक्रिय रूप में बढ़ायी जा रही है?
Q.2 भारत में वन प्रबंधन में जन भागीदारी पर प्रकाश डालिए।
सामाज के द्वारा समाज के लिए वन लगाने की प्रक्रिया और कार्यक्रम को सामाजिक वानिकी कहते है। सामाजिक वानिकी शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग 1967 में वेस्टानी महोदय ने किया था। भारतीय संदर्भ में इस शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग 1976 में राष्ट्रीय कृषि आयोग ने किया था। कृषि आयोग की अनुसंशा पर ही इसकी प्रायोगिक शुरुआत 1980 ई० में किया गया और 1981 ई० में 101 जिला में शुभारम्भ किया गया। 1983 में इसे सम्पूर्ण भारत में लागू कर दिया गया। 1983 ई० में वानिकी कार्यक्रम हेतु एक “A Tree for every child” का नारा दिया गया तथा हिमाचल प्रदेश में चल रहे मृदा संरक्षण कार्यक्रम की सामाजिक वानिकी का अंग बना दिया गया।
सामाजिक वानिकी के प्रकार
सामाजिक वानिकी चार प्रकार के होते हैं:-
(1) कृषि वानिकी
(2) ग्रामीण वानिकी
(2) नगरीय वानिकी
(4) क्षति पूर्ति वानिकी
कृषि वानिकी के अंतर्गत किसानों के द्वारा अपने निजी भूमि पर और खेतों के मेढ़ पर वन लगाया जाता है।
ग्रामीण वानिकी के तहत गाँव में परती पड़े सरकारी भूमि के ऊपर ग्रामीणों के द्वारा वन लगाया जाता है। यह कार्य सहकारिता संस्था, सामुदायिक संस्था तथा पंचायतों के द्वारा होता है।
जबकि नगरीय वानिकी के तहत नगरीय लोगों को घरों में एवं नगर में खाली पड़े जमीन पर वन लगाने के लिए प्रेरित किया जाता है।
जबकि क्षतिपूर्ति वानिकी के तहत वैसे औद्योगिक घरानों को जो उद्योग लगाना चाहते हैं उन्हें औद्योगिक संस्थानों के इर्द-गिर्द वन लगाने के लिए प्रेरित किया जाता है। पुनः जिस क्षेत्र में जितना वन काटा जाता है उसके एवज में उससे भी अधिक वन लगाने के लिए लोगों प्रेरित किया जाता है।
सामाजिक वानिकी के उद्देश्य
सामाजिक वानिकी के निम्नलिखित उद्देश्य स्थापित की गई है:-
(i) जलावन या ईंधन की लकड़ी सुनिश्चित करना,
(ii) ग्रामीण क्षेत्रों में फल-फूल एवं अन्य खाद्य पदार्थों की आपूर्ति बढ़ाना,
(iii) खेतों को छाया प्रदान करना और वाष्पोत्सर्जन को कम करना,
(iv) पशुओं के लिए चारा उपलब्ध कराना,
(v) कृषि उपकरणों तथा अन्य उपयोग के लिए लकड़ी की उपलब्धता बढ़ाना,
(vi) भूमिगत जल स्तर में सुधार लाना इत्यादि।
प्रसिद्ध सामाजिक वानिकीविद डा० डी० पी० सिंहा ने सामाजिक वानिकी के उद्देश्यों को एक मॉडल के माध्यम से समझाने का प्रयास किया है। जैसे-
ऊपर के मॉडल के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि सामाजिक वानिकी के काफी व्यापक उद्देश्य निर्धारित किये गये हैं। इन्हीं उद्देश्यों की आपूर्ति हेतु सामाजिक वानिकी कार्यक्रम को सक्रिय रूप से आगे बढ़ाया जा रहा है।
सामाजिक वानिकी की असफलता के कारण
(1) आमलोगों की सहभागिता का अभाव- आम जनता की सहभागिता दो कारणों से नहीं बढ़ पा रही है।
(i) आम जनता इसे सरकारी कार्यक्रम समझती है। इसलिए उनका मानना है कि पेड़ लगाने का कर्तव्य सरकार को है।
(ii) लोग लगाये गये वन क्षेत्र को अपना समझ नहीं पाते हैं।
(2) जलवायु के अनुकूल वृक्ष के किस्मों का चुनाव न होना।
(3) क्षेत्र का सर्वेक्षण या मूल्यांकन किए बगैर ही वृक्षारोपण की कार्यक्रम किया गया।
(4) तकनीकी ज्ञान का अभाव:- आम धारणा यह है कि वृक्षों को रोपने के लिए तथा उसके संवर्धन के लिए कोई विशेष तकनीकी ज्ञान की आवश्यकता नहीं है। जबकि पौधों की पांच साल की सुरक्षा अनिवार्य है तथा वन लगाने के लिए तकनीकी ज्ञान की आवश्यकता होती है। सरकार के द्वारा इस दिशा में कोई सकारात्मक पहल नहीं किया गया।
(5) अंधाधुन वृक्षों की कटाई तथा पौधो की पशुचराई आम समस्या है।
(6) उत्पादन योग्य वन होने के पूर्व ही उनका शोषण प्रारंभ हो जाता है।
(7) कानूनी सुरक्षा का अभाव।
(8) वृक्षारोपण के दौरान छोटे-2 पौधों का रोपा जाना।
(9) वृक्ष काटने तथा उनके परिवहन एवं विपणन के नीति का दोषपूर्ण होना।
(10) सरकारी कर्मचारियों द्वारा उत्पीड़न एवं गैर कानूनी शुल्क की वसूली।
उपरोक्त कारणों के चलते सामाजिक वानिकी अपेक्षित सफलता नहीं दे पायी।
सामाजिक वानिकी में NGO की भूमिका
सामाजिक वानिकी के क्षेत्र में गैर सरकारी संगठन (NGO) कई प्रकार से भूमिकाएँ निर्वहन कर सकती है।
(1) ये आम जनता को वन लगाने के लिए उत्प्रेरित कर सकती है।
(2) NGO प्रारंभ में वानिकी के लिए नेतृत्व प्रदान कर सकते है और धीरे-2 लोगों को नेतृत्त्व का काम सीखाकर वहाँ से हट सकते हैं।
(3) NGO आम जनता और सरकारी तंत्र के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभा सकते हैं।
(4) NGO सामाजिक वानिकी के प्रत्येक पहलू से आम लोगों को अवगत करवा सकते हैं।
(5) NGO सही गुणवत्ता वाले बीज, पौधे, औजार, पॉलीथीन और सुरक्षा सामाग्री लोगों को उचित मूल्य पर उपलब्ध करवा सकते हैं और इसके प्रयोग हेतु लोगों को प्रशिक्षित कर सकते हैं।
(6) NGO लोगों के समुदाय के रूप मैं संगठित कर सकते हैं।
इस तरह सामाजिक वानिकी के क्षेत्र में NGO की महत्त्वपूर्ण भूमिका हो सकती हैं। महाराष्ट्र के गरद गाँव में डॉ. अरविन्द रेड्डी और उनके सहयोगियों का NGO ने सामाजिक वानिकी कार्यक्रम को सफलतापूर्वक लागू कर सामाजिक वानिकी में निर्धारित प्रत्येक उद्देश्य को सफलतापूर्वक हासिल किया है। इस कार्य के लिए राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं से उन्हें पुरस्कृत भी किया जा चुका है।