8. Sea Floor Spreading Theory / सागर नितल प्रसार का सिद्धांत
8. Sea Floor Spreading Theory
(सागर नितल प्रसार का सिद्धांत)
Sea Floor Spreading Theory
सागर नितल प्रसार सिद्धान्त 1960 ई० में हैरीहेस महोदय के द्वारा प्रस्तुत किया गया था यह सिद्धान्त उन्होंने समुद्री नितल का 5 वर्षों तक अनुसंधान करने के बाद प्रस्तुत किया था। हैरिहेस से पहले ऑर्थर होम्स महोदय ने सागरीय नितल के प्रसार के संबंध में संभावना व्यक्त किया था इसके संबंध में कोई विशेष मत प्रकट नहीं किया। कालांतर में जब प्लेट टेक्टोनिक सिद्धान्त का आगमन हुआ तो उससे भी सागर नितल सिद्धान्त पर प्रकाश पड़ा।
हैरिहेस महोदय ने अपना समुद्री नितल प्रसार सिद्धान्त निम्नलिखित मान्यताओं पर प्रस्तुत किया:-
1. हैरिहेस ने अपना सिद्धान्त तभी प्रस्तुत किया जब यह पूर्णत: स्पष्ट हो गया कि महासागरीय भूपटल की सामान्य मोटाई 6-7 KM और महाद्विपीय भूपटल की मोटाई 30-40 KM है । उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि महासागरीय भूपटल का तात्पर्य बेसाल्टिक चट्टानों से है और महाद्विपीय भूपटल का तात्पर्य ग्रेनाइट चट्टानों से है।
2. सभी महासागरों में महासागरीय कटक पाये जाते है जो बेसाल्टिक चट्टानों से निर्मित हैं और महासागरीय नितल मैदान से इसकी सामान्य ऊंचाई 2-3 KM है।
3. हैरिहेस ने अपना मत तभी प्रस्तुत किया जब यह ज्ञात हो गया कि महासागरीय भूपटल की चट्टानें महाद्विपीय भूपटल की तुलना में कम आयु के है । महाद्विपीय चट्टानों के अधिकतम आयु 4600 मिलियन वर्ष और महासागरीय भूपटल की आयु 160 मिलियन वर्ष अनुमानित की गयी।
इन्हीं तीन मान्यताओं के आधार पर हैरिहेस महोदय ने अपना सिद्धान्त प्रस्तुत किया। हैरिहेस ने अपना सिद्धान्त प्रस्तुत करते हुए कहा कि “समुद्र का नितल सतत प्रसार की अवस्था मे है”।
सिद्धांत की व्याख्या
हैरिहेस ने महासागरीय नितल प्रसार का केंद्र महासागरीय कटक को माना है उन्होंने ऑर्थर होम्स की संवहन तरंग सिद्धान्त को आधार मानते हुए यह विचार प्रस्तुत किया कि मध्य महासागरीय कटक के पास संवहन तरंग लम्बवत रूप से ऊपर उठती है और अपनी ऊर्जा का उत्सर्जन करती है। लम्बवत ऊर्जा उत्सर्जन के कारण ही ज्वालामुखी की क्रिया होती है और उसी ज्वालामुखी क्रिया से महासागरीय कटक का निर्माण होता है। पुनः उन्होंने यह भी बताया की लम्बवत रूप से निकलने वाली संवहन तरंग का कुछ भाग भू-पटल के नीचे ही क्षैतिज रूप से प्रवाहित होने लगती है। इन्ही क्षैतिज तरंगों के कारण भू-पटल दो दिशाओं में खिसकने लगती है। ज्यों-ज्यों भूपटल का खिसकाव बढ़ता जाता है त्यों-त्यों लावा उत्सर्जन की मात्रा बढ़ने लगती है। यह क्रिया सतत सक्रिय रहती है। अतः उन्होंने बताया कि प्रत्येक महासागरीय कटक के पास नवीन भू-पटल का निर्माण होता है और उसी के साथ समुद्री नितल का प्रसार भी होता है।
हैरिहेस महोदय ने बताया कि जब समुद्र नितल के प्रसार हो रहा है तो इसका अर्थ यह नहीं लगाया जाना चाहिए कि पृथ्वी के परिधि में भी वृद्धि हो रही है। वास्तव में महासागरीय कटक के सहारे जब नवीन भूपटल का निर्माण होता है तो महासागरीय भूपटल का दूसरा किनारा महाद्वीपीय भूपटल से अभिसरण करता है। महासागरीय भूपटल का घनत्व अधिक होने के कारण महाद्वीपीय भू-पटल में प्रविष्ट कर जाता और गहराई में जाकर पिघलने की प्रवृत्ति रखता है। अतः यह सम्भव है कि महाद्वीपीय भूपटल की तुलना में महासागरीय भूपटल नवीन चट्टानों से निर्मित है।
सिद्धान्त के पक्ष में प्रमाण
समुद्री नितल प्रसार के संबंध में प्रस्तुत किये गए प्रमाणों को दो वर्गों में बांटते है।
(A) हैरीहेस के द्वारा एकत्रित किये गए प्रमाण
(B) 1960 ई०के बाद नवीन अनुसंधानों के द्वारा एकत्रित प्रमाण
(A) हैरीहेस के द्वारा एकत्रित किये गए प्रमाण
हैरिहेस महोदय ने अपने परिकल्पना के समर्थन में कुल 9 प्रमाण एकत्रित किये है-
1.चाट्टानो की आयु से संबंधित प्रमाण:–
हैरिहेस के अनुसार महासागरीय भू-पटल में महासागरीय कटक के पास सबसे कम आयु के चट्टान और जहाँ पर महासागरीय भूपटल महाद्वीपीय भूपटल में प्रविष्ट कर रहा है वहां पर अधिक उम्र के चट्टानें मिलती है। पुनः उन्होंने यह भी कहा कि ज्यों-ज्यों गर्त से कटक की ओर जाते है त्यों -त्यों चट्टानों की आयु में कमी होती जाती है। ऐसा तभी सम्भव है जब समुद्री नितल का प्रसार हो रहा हो।
2. महासागरीय नितल पर Sea mount और गयॉट जैसी अवशिष्ट पहाड़ियां मिलती है। ये दोनों स्थलकृतियाँ बेसाल्टिक चट्टानों से निर्मित है। हैरिहेस के अनुसार ये अवशिष्ट पहाड़ियां कभी महासागरीय कटक के शिखर थे । लेकिन प्रसार प्रक्रिया के कारण ये महासागरीय कटक से दूर हट गए है । यह तभी संभव है जब महासगरीय नितल का प्रसार हो रहा हो।
3. हैरिहेस महोदय ने अपने अनुसंधान में पाया कि महासागरीय नितल पर अनेक अंत: नितल दरार पाये जाते है। अमेरिका के कैलिफोर्निया तट से रूस के कमचटका प्रायद्वीप तक ऐसे लगभग 2 दर्जन दरारें है। इन्ही दरारों से मैग्मा पदार्थ बाहर निकलकर ज्वालामुखी द्वीपों का निम्न करती है। इन दरारों का निर्माण होना सागरीय नितल प्रसार के संबंध में सशक्त प्रमाण प्रस्तुत करता है।
4. महासागरीय नितल के किनारे महासागरीय गर्त का पाया जाना नितल प्रसार के पक्ष में एक महत्वपूर्ण साक्ष्य प्रस्तुत करता है। हैरिहेस के अनुसार समुद्री गर्तों का निर्माण प्लेटों के प्रत्यावर्तन से संभव है और प्रत्यावर्तन तभी संभव है जब समुद्री नितल का प्रसार हो रहा हो।
5. तटीय वलित पर्वतों के निर्माण भी महासागरीय नितल प्रसार का महत्वपूर्ण प्रमाण है। वस्तुतः प्रसारित हो रहे समुद्री नितल के दबाव से ही महाद्वीपीय चट्टाने मुड़कर किनारों पर वलित पर्वत का निर्माण करते है।
6. पुरा-चुम्बकीय प्रमाण:-
यह साबित हो चुका है कि प्रति तीन लाख वर्ष के बाद चुम्बकीय दिशा में परिवर्तन हो जाता है। ऐसा तभी सम्भव है जब भूपटल के गर्भ से मैग्मा पदार्थ बाहर निकल रहे हो । नवीन चट्टानों के निर्माण कर रहे हो और भूपटल एक दूसरे के सापेक्ष में प्रसारित हो रहे हो।
7. महासागरीय नितल और तटवर्ती क्षेत्रों में होने वाली विवर्तनिकी क्रियाएं भी महासागरिय नितल प्रसार की पुष्टि करते है। अभिसरण और अपसरण के क्षेत्र में ही अधिकांश भूकंप एवं ज्वालामुखी की क्रियाएँ होती है जो समुद्री नितल प्रसार की पुष्टि करते है।
8. विभिन्न महाद्वीपों के विस्थापन तथा अनेक प्रवाली द्वीपों का विस्थापन भी नितल प्रसार को पुष्टि करता है।
9. महासागरीय मैदान के सतह पर परतदार चट्टान का न पाया जाना भी महासागरीय नितल का प्रमाण प्रस्तुत करता है।
(B) 1960 ई०के बाद नवीन अनुसंधानों के द्वारा एकत्रित प्रमाण
हैरिहेस महोदय सागर नितल प्रसार के संबंध में विशेष अनुसंधान कार्य किया था जिस पर प्रकाश डालने के लिए 1960 ई० के बाद कई और वैज्ञानिकों ने साक्ष्य इक्कठे किये। जैसे-
1. 1962 ई० में Mason(मासोन) महोदय ने प्रशांत महासागर के नितल का पुराचुम्बकीय अध्धयन किया जिसके आधार पर उन्होंने बताया कि प्रशांत महासागर कर नितल का प्रसार जारी है।
2. 1963 ई० में F.J. Vine और D.H. Mathus के द्वारा हिन्द महासागर का पुरचम्बकीय अध्ययन किया गया जिसके आधार पर उन्होंने बताया कि हिन्द महासागर में अवस्थित महासागरीय कटक के सहारे समुद्री नितल का प्रसार हो रहा है।
3. प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त के द्वारा यह प्रमाणित हो चुका है कि अपसरण सीमा के सहारे समुद्री नितल का प्रसारहो रहा है और अभिसरण सीमा के सहारे पुराने नितल का विनाश हो रहा है।
4. 1981 ई० में C.D. Ollier महोदय ने विवर्तनिकी एवं भूआकृति नामक पुस्तक लिखा जिसमें महासागरीय नितल प्रसार के संबंध में कई प्रमाण प्रस्तुत किये। जैसे- उन्होंने बताया कि अंटार्कटिका और न्यूजीलैंड के बीच एक महासागरीय कटक है जहाँ महासागरीय नितल का फैलाव 6 मीटर प्रतिवर्ष के दर से हो रहा है। उन्होंने यह भी बताया कि जुरासिक काल के पहले दो ही महासागर थे– प्रथम अटलांटिक महासागर दूसरा प्रशांत। हिन्द महासागर का निर्माण जुरासिक काल के बाद सागरीय नितल प्रसार के परिणामस्वरूप ही हुआ है।
5. 1968 ई० में Joides Report प्रस्तुत किया गया जिसका पूरा नाम Joint Oceanography Institution of Deep Earth Shivling इस अंनुसन्धान Report ने समुद्र नितल के 84 स्थानों पर अनुसंधान का कार्य किया। अपने अनुसंधान कर्यों में इसने भी समर्थन किया कि समुद्र नितल का प्रसार हो रहा है।
6. 2003 में NASA उत्तरी अमेरिका अनुसंधान के एक रिपोर्ट के द्वारा लाल सागर के मध्य बैसाल्टिक संरचना का अध्ययन किया गया जिससे यह साबित हुआ कि लाल सागर का प्रसार हो रहा है।
अतः स्पष्ट है कि अधिकतम नवीन प्रमाण हैरिहेस के परिकल्पना की पुष्टि करते है लेकिन अभी इससे जुड़ी हुई कई समस्याएं है जैसे– पहला सबसे बड़ी समस्या यह है कि महासागरीय नितल के ऊपर विशाल जल राशि मौजूद होने के वाबजूद कैसे संतुलित बना हुआ है। दूसरी आलोचना प्लेट विवर्तनिकी से संबंधित है जो कहता है समुद्री नितल का प्रसार नहीं हो रहा है बल्कि प्लेटो का विस्तार/प्रसार हो रहा है।
निष्कर्ष
इन आलोचना के वाबजूद सागर नितल प्रसार सिद्धान्त को व्यापक मान्यता प्राप्त है। इस पर किया गया अनुसंधान कार्य भूगर्भशास्त्र में अनुसंधान हेतु सन्दर्भ बिन्दु का कार्य करता है।
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