16. Rural Settlement Pattern in Bihar (बिहार में ग्रामीण बस्ती प्रतिरूप)
16. Rural Settlement Pattern in Bihar
(बिहार में ग्रामीण बस्ती प्रतिरूप)
प्रश्न प्रारूप
Q. बिहार में ग्रामीण बस्तियों के प्रतिरूप की व्याख्या कीजिए।
वह अधिवासीय क्षेत्र जहाँ की 2/3 जनसंख्या प्राथमिक उत्पादन गतिविधि में संलग्न हो, वैसे बस्ती को ग्रामीण बस्ती कहते हैं। ग्रामीण बस्ती प्रतिरूप के अन्तर्गत ग्रामीण बस्तियों के आकृतियों का अध्ययन किया जाता है।
प्रतिरूप का निर्धारण मकानों एवं मार्गों की स्थिति और उनका क्रमिक व्यवस्था के आधार पर सुनिश्चित किया जाता है।
ग्रामीण बस्ती प्रतिरूप के भौगोलिक कारक
ग्रामीण बस्ती प्रतिरूप पर दो भौगोलिक कारकों का प्रभाव पड़ता है।:-
(1) भौतिक कारक और
(ii) सांस्कृतिक कारक।
भौतिक कारक के अन्तर्गत कुंआ, तालाब, पोखर, (कच्चा मिट्टी) टीले, भूमि का ढाल, सीढ़ीनुमा, ढाल की आकृति, भूमिगत जलस्तर, दलदली भूमि इत्यादि प्रमुख हैं। जबकि सांस्कृतिक कारक के अन्तर्गत ऐतिहासिक घटना क्रम, सड़क एवं गलियों के नियोजित एवं अनियोजित प्रारूप, खेतों का प्रतिरूप, ग्रामीण धार्मिक संस्थाएँ, जातिय संरचना इत्यादि को शामिल करते है।
ग्रामीण क्षेत्रों में गाँव से गुजरने वाली सड़के एवं गलियाँ ग्रामीण बस्तियों के आतंरिक विन्यास के ढाँचे को सुनिश्चित करते है। भौतिक एवं सांस्कृतिक कारकों के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में बिहार में ग्रामीण बस्तियों के निम्नलिखित प्रतिरूप पाये जाते हैं-
(1) रेखीय प्रतिरूप या रीबन प्रतिरुप:-
किसी सड़क या नदी या नहर के किनारे-2 बसे हुए मकानों की बस्तियाँ रेखीय ग्रामीण बस्ती प्रतिरूप का निर्माण करती है। अगर गाँव से सड़क गुजर रहा हो तो ग्रामीण बस्ती के लोग अपने घर का द्वार सड़क या गली की ओर बनाते हैं। जबकि कोई नहर या नदी के किनारे रेखीय प्रतिरूप का विकास हुआ तो लोग अपने घर के दरवाजे जलाशय के विपरीत दिशा में बनाते हैं। अरबल जिला के अवगिल्ला गाँव नहर के किनारे विकसित हुआ है जो रेखीय प्रतिरूप का एक अच्छा उदाहरण है।
⇒ गहमर UP और बिहार के सीमा पर भारत का सबसे बड़ा गाँव है।
(2) अरीय त्रिज्या प्रतिरूप:-
अरीय त्रिज्या प्रतिरूप के गाँवों में कई ओर से सड़क मार्ग गाँवों में आकर मिलते हैं।
मुख्य सड़कें आपस में पतली-2 गलियों से जुड़े रहते है। मकान और घर गलियों एवं सड़कों के किनारे बने होते हैं। बिहार के मैदानी क्षेत्रों में ऐसा ग्रामीण बस्ती प्रतिरूप के अनेक उदा० मिलते है।
(3) तारा प्रतिरूप:-
यह अरील त्रिज्या प्रतिरूप का विकसित स्वरूप है। जैसे:- अरीय प्रतिरूप वाले ग्रामीण बस्ती के लोग जब मुख्य सड़कों के किनारे घर बना लेते हैं तो तारा प्रतिरूप वाले ग्रामीण बस्ती का विकास होता है।
तारा प्रतिरूप का उदाहरण कोशी नदी घाटी में अधिक देखने को मिलती है।
(4) वृताकार प्रतिरूप:-
जब किसी ग्रामीण बस्ती का विकास किसी तालाब या पुरानी हवेली या खण्डहर या धार्मिक स्थल या जमींनदार के घर के चारों ओर घर बन जाते हैं तो वृताकार प्रतिरूप का विकास होता है।
उदा० – लखिसराय के बेला गाँव
(5) त्रिभुजाकार प्रतिरूप:-
सड़कों के त्रिमुहानी पर या नदियों के संगम पर त्रिभुजाकार प्रतिरूप वाले ग्रामीण बस्ती विकसित होते हैं। इसका उदाहरण गया, औरंगाबाद, नवादा, बांका जैसे ग्रामीण क्षेत्रों में देखा जा सकता है।
(6) L प्रतिरूप:-
जब सड़के एक-दूसरे से समकोण पर मिलती है और वहाँ ग्रामीण क्षेत्र के लोग अपना अधिवासीय घर केवल दो सड़क के किनारे बना लेते हैं तो L-आकार के प्रतिरूप का विकास होता है।
उदा०- बख्तियारपुर
(7) अनाकार प्रतिरूप
ऐसे बस्तियों का निर्माण साधारणत: मार्गों के निर्माण के पूर्व होता है। ऐसे बस्तियों का कोई आकार नहीं होता है। बिहार में ऐसे अधिवासीप प्रतिरूप का उदा० सबसे ज्यादा मिलता है।
उपरोक्त प्रतिरूप के अलावे बिहार में कई अन्य प्रतिरूप के बस्ती मिलते हैं। जैसे- तीर प्रतिरुप, T-आकार के प्रतिरूप, अर्द्धवृताकार प्रतिरूप इत्यादि महत्वपूर्ण है। ग्रामीण बस्तियों के प्रतिरूप के अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि ग्रामीण प्रतिरूप के विकास में भौगोलिक कारकों का योगदान सबसे अधिक होता है।
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