28. Representation of Relief
28. Representation of Relief
किसी भी धरातल या स्थान का उच्चावच (Terrain या relief) उस धरातल की ऊँचाई-निचाई से बनने वाले प्रतिरूप या आकार को कहते हैं। क्षेत्रीय स्तर पर उच्चावच भू-आकृतिक प्रदेशों के रूप में व्यक्त होता है और छोटे स्तर पर यह एक स्थलरूप या स्थलरूपों के एक संयुक्त समूह का प्रतिनिधित्व करता है।
विभिन्न ढालों की समोच्च रेखाएँ एवं अनुप्रस्थ काट या पार्शिवका बनाने की विधियों के बाद यहाँ कुछ स्थल रूपों की सरलीकृत आकृतियों की समोच्च रेखाएँ बनायी जाती है।
ढाल के प्रकार:
ढालों को मुख्यतः धीमा/मंद, तीव्र/खड़ा, अवतल, उत्तल, सम एवं विषम भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है। विभिन्न प्रकार के ढालों की समोच्च रेखा एक विशिष्ट अंतराल की पद्धति को दर्शाता है। ढाल को डिग्री या कोण में भी व्यक्त किया जाता है।
(i) धीमा/मंद ढाल :
जब किसी स्थलाकृति के ढाल की डिग्री या कोण बहुत कम होता है, तब ढाल मंद होता है। इस प्रकार की ढालों की समोच्च रेखाओं के बीच की दूरी बहुत अधिक होती हैं।
(ii) तीव्र/खड़ी ढाल :
जब किसी स्थलाकृति के ढाल का कोण अधिक होता है, तो इनकी समोच्च रेखाओं के बीच की आपसी दूरी बहुत कम होती है. तथा ये खड़ी ढाल को इंगित करते हैं।
(iii) अवतल/नतोदर ढाल:-
जब उच्चावच स्थलाकृति का निचला भाग मंद ढाल वाला एवं ऊपरी भाग खड़े ढाल वाला हो, तो उसे अवतल ढाल कहा जाता है। इस प्रकार के ढाल में समोच्च रेखाएँ निचले भाग में दूर-दूर तथा ऊपरी भाग में पास-पास होती हैं।
(iv) उत्तल/उन्नतोदर ढाल:-
अवतल ढाल के विपरीत, उत्तल ढाल का ऊपरी भाग मंद एवं निचला भाग खड़ा होता है। इसके परिणामस्वरूप ऊपरी भाग में समोच्च रेखाएँ दूर-दूर तथा निचले भाग में पास-पास होती हैं।
(v) सम ढाल और (vi) विषम ढाल:-
दोनों ही ढालों में से प्रत्येक धीमा या तेज कोई भी हो सकते हैं। दोनों की समोच्च रेखाओं में केवल इतना ही अन्तर है कि प्रथम में समोच्च रेखाएँ समान दूरी पर होती है, जबकि द्वितीय में इनकी दूरी का क्रम सर्वत्र असमान रहता है। विषम ढाल में एक साथ तेज एवं धीमा दोनों ही ढाल बिना किसी क्रम के दर्शाये जा सकते हैं, जबकि सम ढाल में ढाल का क्रम सर्वत्र प्राय: एक-सा रहता है।
(vii) सीढ़ीनुमा ढाल:-
ऐसे ढाल में थोड़ी-थोड़ी दूरी पर सीढ़ियों की तरह प्रवणता बढ़ने से समोच्च रेखाएँ बीच-बीच में समीप आ जाती है। नदी व हिमानी की घाटी में ऐसा ढाल पाया जाता है।
स्थ्लाकृतियों के प्रकार
1. शंक्वाकार पहाड़ी (Conical Hill):-
समुद्र से 600 मी० ऊँचे खण्ड को पहाड़ी कहते हैं। इनकी समोच्च रेखा बन्द होती है। सभी दशाओं में शंक्वाकार पहाड़ी का ढाल समान होता है, इन रेखाओं की दूरी समान होती है। एक शंक्वाकार पहाड़ी, उसकी समोच्च रेखाएँ एवं विभिन्न ऊँचाई पर घिरे धरातल को दर्शाया गया है। सभी ओर ढाल समान होने से समोच्च रेखाएँ प्रायः वृत्ताकार बनी है। पहाड़ी के शिखर की ऊँचाई मध्य में बिन्दु या त्रिकोण बनाकर भी अंकित की जा सकती है।
शंक्वाकार पहाड़ियों की भाँति ही अन्य पहाड़ियों की समोच्च आकृति खींची जाती है। पहाड़ी के जिस भाग में ढाल तेज होगा, वहाँ समोच्च रेखाएँ पास-पास एवं ढाल धीमा होने पर दूर-दूर खींची जाती है। चित्र में एक विषम ढाल वाली पहाड़ी का समोच्च रेखाचित्र बनाया गया है। यहाँ चित्र में पहाड़ियों के साथ-साथ उनका अनुप्रस्थ काट (Cross Section) भी स्पष्टता के लिये खींच दिया गया है-
2. पठार:-
एक विस्तृत चपटा उठा हुआ भूभाग, जिसकी ढाल अपेक्षाकृत पार्श्वो पर खड़ी होती है तथा जो आसपास के मैदान या समुद्र से ऊँची उठी होती है, पठार कहलाती है। पठारों को दर्शाने वाली समोच्च रेखाएँ सामान्यतः किनारों पर पास-पास तथा भीतर की ओर दूर होती हैं। मध्यवर्ती भाग समोच्च रेखाओं रहित होता है।
3. जलप्रपात:-
किसी नदी तल पर काफी ऊंचाई से पानी का अचानक उर्ध्वाधर गिरना जलप्रपात कहलाता है। कभी-कभी जलप्रपात सोपानी धारा के रूप में गिरता है, जिसे रैपिड कहा जाता है। मानचित्र पर नदी को पार करती हुई समोच्च रेखाओं के परस्पर मिल जाने से जलप्रपात को पहचाना जा सकता है तथा रैपिड को अपेक्षाकृत दूर स्थित समोच्च रेखाओं के द्वारा।
4. भृगु:-
यह अत्यधिक तीव्र या खड़े पार्श्वो वाली भू-आकृति है। मानचित्र पर भृगु की पहचान पास-पास बनी समोच्च रेखाओं से की जाती है, जो आपस में जुड़ी हुई प्रतीत होती हैं।
5. V-आकार की घाटी:-
यह ‘V’ अक्षर की तरह दिखाई देती है। V-आकार की घाटी पर्वतीय क्षेत्रों में पायी जाती है। V-आकार की घाटी का निचला भाग भीतरी समोच्च रेखाओं के द्वारा दिखाया जाता है, जो पास-पास स्थित होते हैं तथा जिनके समोच्च का मान कम होता है। बाहर की ओर स्थित समोच्च रेखाओं का मान एकसमान रूप से बढ़ता है।
6. U-आकार की घाटी:-
ऊँचाई पर स्थित हिमानियों के पार्श्व अपरदन के कारण इस प्रकार की घाटी का निर्माण होता है। इसका निचला तल चौड़ा एवं चपटा तथा किनारे खड़े होते हैं, जिसके कारण इसका आकार ‘U’ अक्षर के समान प्रतीत होता है। U-आकार की घाटी के सबसे निचले हिस्से को सबसे भीतर स्थित समोच्च रेखाओं के द्वारा दर्शाया जाता है तथा इसके दोनों किनारों के बीच का अंतर अधिक होता है। बाहर की ओर स्थित दूसरी समोच्च रेखाओं के लिए एकसमान अंतराल के साथ समोच्च रेखाओं का मान बढ़ता जाता है।
7. महाखड्ड (गार्ज):-
उच्च भागों में, जहाँ नदियों के द्वारा पार्श्व अपरदन की अपेक्षा ऊर्ध्वाधर अपरदन की क्रिया तीव्र होती है, वहाँ तंग घाटी का निर्माण होता है। ये गहरी तथा संकरी नदी घाटियाँ होती हैं, जिनके दोनों किनारों का हाल बहुत तीव्र होता है। तंग घाटी को पास पास स्थित समोच्च रेखाओं के द्वारा दर्शाया जाता है, जिसमें भीतरी समोच्च रेखाओं के बीच का अंतर बहुत कम होता है, जो इसके दोनों किनारे को दिखाता है।
8. पर्वतस्कंध:-
पर्वत श्रृंखलाओं से घाटी की ओर की झुकी हुई उत्तल ढाल वाली आकृति को स्पर या पर्वतस्कंध कहा जाता है। इसे V आकार की समोच्च रेखा के द्वारा दर्शाया जाता है लेकिन विपरीत तरीके से V के दोनों किनारे ऊँचाई वाले भाग को दिखाते हैं तथा इसकी चोटी निचले हिस्से को।
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