2. एशिया का उच्चावच
(Relief or Physiography of Asia)
एशिया का उच्चावच⇒
विश्व का सबसे विशाल महाद्वीप एशिया पूर्वी गोलार्ध में स्थित है। भूमध्य रेखा से 10° दक्षिणी की ओर से लेकर 80° उत्तर की ओर स्थित होने के कारण यह दक्षिणी तथा उत्तरी दोनों गोलार्ध में अपनी भौगोलिक स्थिति लिए हुए है। एशिया महाद्वीप का अधिकांश भाग उत्तरी गोलार्ध में ही है। इस महाद्वीप की पूर्व से पश्चिम तक की स्थिति 25° पूर्वी देशांतर से लेकर 170° पश्चिमी देशांतर के बीच है। इस प्रकार एशिया महाद्वीप की स्थिति 90° अक्षांशों तथा 195° देशांतरों में है।
इस महाद्वीप की उत्तर से दक्षिण की अधिकतम लंबाई 8580 किलोमीटर तथा पूरब से पश्चिम अधिकतम चौड़ाई 7720 किलोमीटर है। एशिया महाद्वीप का विस्तार 44030200 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर है। यह विशाल महाद्वीप तीन ओर से समुद्र से तथा एक ओर से स्थलखंड (यूरोप महाद्वीप) से घिरा हुआ है।
एशिया महाद्वीप के उच्चावच को निम्नलिखित पाँच भागों में बाँट सकते हैं-
1. मध्यवर्ती पर्वत-पठार-क्रम
2. नदियों के मैदान
3. दक्षिणी प्रायद्वीपीय पठार
4. उत्तर की निचली भूमि
5. द्वीप समूह मालाएँ
1. मध्यवर्ती पर्वत-पठार-क्रम
विश्व का सबसे विशाल एशिया महाद्वीप अपनी धरातलीय विशेषताओं के कारण संसार के सभी महाद्वीपों से अलग है। एशिया के मध्य भाग में स्थित ये पर्वत श्रेणियाँ एशिया महाद्वीप के लगभग 20% भागों पर फैली हुई है। इसका विस्तार पश्चिम में टर्की से प्रारंभ होकर पूरब में चीन तथा उत्तर-पूर्व में बेरिंग सागर तक है। इसमें अनेक उच्च पर्वत एवं पठार सम्मिलित है। इस क्रम में पर्वत शिखरों की सामान्य ऊँचाई 1000 मीटर से लेकर 8848 मीटर तक है। एशिया के इस मध्यवर्ती पर्वत-पठार-क्रम का केंद्र पामीर की गाँठ है जो विश्व की छत कहलाती है।
- पामीर की गाँठ से निकलने वाली पर्वत श्रेणियों का प्रथम क्रम पश्चिम की ओर फैली हुई है। इस क्रम के अंतर्गत निम्नलिखित पर्वत एवं पठार सम्मिलित है – हिंदुकुश, एल्बुर्ज, गिलगिट, सुलेमान, किरथर, जैग्रोस पर्वत श्रेणियाँ, ईरान का पठार, पौंटिक श्रेणी, टॉरस श्रेणी, एशिया माइनर का पठार।
- पामीर की गाँठ से निकलने वाली पर्वत श्रेणियों का दूसरा क्रम दक्षिण-पूरब की ओर फैला हुआ है। इस क्रम के अंतर्गत निम्न पर्वत एवं पठार सम्मिलित है :
हिमालय पर्वत श्रेणी – हिमालय पर्वत श्रेणी पर संसार की सर्वोच्च पर्वत श्रेणी स्थित है। इसका सर्वोच्च पर्वत शिखर एवरेस्ट संसार का सबसे ऊँचा शिखर है जिसकी ऊँचाई 8848 मीटर है। हिमालय पर्वत श्रेणी की एक शाखा असम तथा म्यांमार होती हुई पूर्वी द्वीप समूह को चली गई है। असम में इसकी मुख्य पर्वत श्रेणियाँ नागा, गारो, खासी, जयंतिया तथा पटकोई है। म्यांमार में इसके मुख्य पर्वत श्रेणियाँ अराकानयोमा, पीगूयोमा और तनासरिमयोमा है।
- पामीर की गाँठ से निकलने वाले पर्वत श्रेणियों का तीसरा क्रम पूरब की ओर फैला हुआ है। इस क्रम के अंतर्गत निम्न पर्वत एवं पठार सम्मिलित है – क्यूनलुन, बयानकारा, सिनलिंग, अलताइनतांग, नानशान, खिंगन, तिब्बत का पठार, काराकोरम।
- पामीर की गाँठ से निकलने वाले पर्वत श्रेणियों का चौथा क्रम उत्तर-पूरब दिशा में फैला हुआ है। इस क्रम के अंतर्गत निम्न पर्वत एवं पठार सम्मिलित है – तियानशान, अल्टाई, यावलोनोय, स्टेनोवोय, बर्खोयानस्क, कोलिमा, अनादिर, कमचटका।
2. नदियों के मैदान
विभिन्न नदियों के छोटे-बड़े मैदान मिलकर एशिया महाद्वीप के विशाल धरातल का निर्माण करते हैं। यह मैदान अत्यंत उपजाऊ मृदा द्वारा निर्मित है। अनेक महत्वपूर्ण सभ्यताओं का विकास इन मैदानों में हुआ है। सिंधु घाटी एवं दजला-फरात बेसिन की सभ्यता एशिया की प्राचीन सभ्यताओं में से है जहाँ से इसका प्रचार संसार के अनेक देशों में हुआ है। ये एशिया महाद्वीप के सांस्कृतिक विकास केंद्र है। आज भी एशिया महाद्वीप की जनसंख्या का सबसे अधिक घनत्व इन्हीं मैदानों में मिलता है। पश्चिम से पूरब की ओर ये मैदान क्रमशः निम्न प्रकार है-
(i) दजला-फरात का मैदान – इस मैदान का विस्तार इराक में है। दजला-फरात के मैदान को मेसोपोटामिया का मैदान भी कहा जाता है।
(ii) सिंधु-गंगा का मैदान – इसका विस्तार भारत तथा पाकिस्तान में है। सिंधु तथा गंगा और इन नदियों की अनेक सहायक नदियों की उपजाऊ कॉंप मिट्टी से यह मैदान निर्मित हुआ है। सिंधु घाटी की सभ्यता का विकास एशिया के सिंधु तथा गंगा के मैदान में ही हुआ।
(iii) इरावदी का मैदान – इस मैदान का विस्तार में म्यांमार में है। इरावती का उपजाऊ मैदान कॉंप मिट्टी की सैकड़ों मीटर गहरी परतों द्वारा निर्मित है जो चावल की कृषि के लिए विश्वविख्यात है।
(iv) मीनाम का मैदान – इस मैदान का विस्तार थाईलैंड में है। यह कॉंप उपजाऊ मिट्टी का मैदान है जिसका विस्तार दक्षिण की ओर अधिक है।
(v) मीकांग का मैदान – मीकांग नदी ने हिंदचीन प्रायद्वीप पर उपजाऊ मैदान का निर्माण किया है। इस मैदान में कॉंप मिट्टी की अनेक परतें बिछी हुई है।
(vi) सिक्यांग का मैदान – यह मैदान दक्षिणी चीन में विस्तृत है। इस मैदान का विस्तार अधिक नहीं है।
(vii) यांगटिसीक्यांग का मैदान – यह मैदान मध्य चीन में है जिसका निर्माण यांगटिसीक्यांग तथा उसकी सहायक नदियों द्वारा हुआ है। यह उपजाऊ कॉंप मिट्टी का बना है। इसका रेड बेसिन प्रसिद्ध मैदानी भाग है।
(viii) ह्वांगहो का मैदान – इसका निर्माण ह्वांगहो अथवा पीली नदी द्वारा लोयस के पठार से बहाकर लाई गई पीली मिट्टी से हुआ है। इसलिए इसे उत्तरी चीन का विशाल पीला मैदान भी कहते हैं।
3. दक्षिणी प्रायद्वीपीय पठार
एशिया के दक्षिण-पश्चिमी, दक्षिणी एवं दक्षिणी-पूर्वी भाग में प्राचीन चट्टानों का विस्तार पाया जाता है। इन प्राचीन चट्टानों का उद्भव पृथ्वी की उत्पत्ति के साथ हुआ। इन प्राचीन पठारों को तीन भागों में बांटा गया है-
(i) अरब का प्रायद्वीपीय पठार – यह पठार एशिया के दक्षिणी-पश्चिमी भाग अरब प्रायद्वीप में स्थित है। अरब का प्रायद्वीपीय पठार कठोर प्राचीन चट्टानों द्वारा निर्मित गोंडवाना भूमि का एक भाग है। इस पठार की सामान्य ऊँचाई 2000 मीटर है। यह एक शुष्क मरुस्थलीय भाग है। शुष्कता के कारण ही यह अत्यंत रेतीला हो गया है।
(ii) भारत का प्रायद्वीपीय पठार – यह पठार भारतीय उपमहाद्वीप के दक्षिणी भाग में स्थित है। अरब के प्रायद्वीपीय पठार की भांति यह भी प्राचीन चट्टानों से निर्मित गोंडवाना भूमि का अंश है जो कठोर रवेदार चट्टानों से बना है। इस पठार की सामान्य ऊँचाई 1400 मीटर है। पठार के उत्तरी भाग में विंध्याचल पर्वत, सतपुड़ा पर्वत तथा मालवा का पठार प्रमुख श्रेणियां है जबकि पठार के दक्षिणी भाग में नीलगिरी तथा इलायची की पहाड़ियां प्रमुख श्रेणियां है।
(iii) हिन्दचीन का पठार – यह दक्षिणी-पूर्वी एशिया में फैला हुआ प्रायद्वीपीय पठार है जिसका अधिकांश भाग हिन्दचीन में स्थित है। यह कठोर चट्टानों से निर्मित है। इस पठार की सामान्य ऊँचाई 1200 मीटर है। इस पठार पर नदियों द्वारा क्षरण कार्य बहुत कम हुआ है इसलिए यह कम कटा-फटा पठार है।
4. उत्तर की निचली भूमि
साइबेरिया के उत्तर की निचली भूमि त्रिभुजाकार मैदान के रूप में विस्तृत है। इस मैदान के उत्तर में आर्कटिक महासागर, पश्चिम में यूराल पर्वत तथा दक्षिण एवं पूरब में मध्यवर्ती पर्वत-पठार क्रम फैला हुआ है। यह निचला मैदान ओबी तथा लीना नदियों के बेसिनों से बना है। इस विस्तृत मैदान को एशिया के धरातल में पड़ने वाले अनेक मोड़ों का सामना करना पड़ा है। इस मैदान का ढाल उत्तर में आर्कटिक सागर की ओर है। इसका ढाल अत्यंत मंद होने के कारण इसकी उत्तरी भाग में जल भर जाता है और अनेक दलदल बन जाते हैं। इस मैदान की नदियों के मुहाने तथा निचले भागों में बर्फ जम जाने के कारण इन नदियों का जल अपवाह रुक जाता है। इससे अनेक दलदली क्षेत्र बन जाते हैं। यही कारण है कि इन क्षेत्रों की नदियों का कोई व्यापारिक महत्व नहीं है।
5. द्वीप समूह मालाएँ
एशिया महाद्वीप के पूरब एवं दक्षिण-पूरब की ओर अनेक द्वीपसमूह एक विस्तृत पंक्ति में चाप की भांति फैले हुए हैं। ये द्वीप प्रशांत महासागर तथा हिंद महासागर में स्थित है जिसमें से प्रशांत महासागर में द्वीपों की बहुलता है। ये सभी पहाड़ी भाग के रूप में है जिनका निर्माण तृतीय कल्प की नवीन मोड़दर पर्वत श्रेणियों के साथ हुआ था। इन द्वीपों की चट्टानों में नवीन मोड़दार चट्टानें मिलती है।
भूगर्भवेत्ताओं के अनुसार यह नवीन मोड़दार पर्वत श्रेणियों के उठे हुए भाग है जो समुद्र में डूबी हुई है। इन तीनों में पूर्वी एवं पश्चिमी समुद्र तटों पर संकरी मैदानी पट्टी मिलती है। इन द्वीपों की सबसे बड़ी विशेषता यहाँ पर मिलने वाली ज्वालामुखी पर्वतों की अधिकता है। अनेक ज्वालामुखी पर्वत आज भी जागृत अवस्था में है। इस द्वीप समूह माला के प्रमुख द्वीप क्यूराइल, होकैडो, हांशू, क्यूशू, शिकोकू, ताइवान, लुजोन, मिडनाओ, समार, नेग्रोस, पलाबन, सैलीबीज, बोर्नियो, जावा, मदुरा, ईरियन, सिंगापुर इत्यादि है।
प्रश्न प्रारूप
Q1. एशिया को उच्चावच इकाईयों में विभक्त कीजिए और उनमें से किसी एक का विशद विवरण दीजिए।
अथवा
Q2. एशिया को भौतिक इकाईयों में विभाजित कीजिए तथा उनमें से किन्हीं दो की विवेचना किजिए।