4. The problem of regional imbalances into India (भारत के विकास में क्षेत्रीय असन्तुलन की समस्या)
4. The problem of regional imbalances into India
(भारत के विकास में क्षेत्रीय असन्तुलन की समस्या)
भारत में क्षेत्रीय असन्तुलन बड़े पैमाने पर पाया जाता है, हमारे देश में गरीबी एक अभिशाप है किन्तु इससे भी बुरी बात है-आय का असमान वितरण, आर्थिक विकास प्रयत्नों ने जहाँ आय की विषमता को बढ़ाया है, वहीं नियोजित विकास के द्वारा असंतुलन को कम करने के प्रयास भी किये हैं।
योजनाओं का अन्तिम लक्ष्य समाजवाद की स्थापना करना, किन्तु योजनाओं के कार्यक्रमों का आधार क्रियान्वयन की विधि व संगठन तंत्र इस प्रकार के रहे कि सामाजिक लक्ष्यों की उपलब्धि सम्भव न हो सकी, प्रमुख असफलता आय के वितरण के रूप में सामने आयी, रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया द्वारा किये गये सर्वेक्षण अनुसार ग्रामीण क्षेत्र में निम्नतम 20 प्रतिशत जनसंख्या की कुल आय का 9 प्रतिशत प्राप्त होता है, जबकि 5 प्रतिशत की कुल आय का 17 प्रतिशत, जनसंख्या के उच्चतम अर्द्धभाग को कुल आय का 60 प्रतिशत, जबकि निम्नतम अर्द्धभाग को कुल आय का केवल 31 प्रतिशत प्राप्त होता है।
हमारे देश में जनसंख्या का वितरण बहुत असमान है, यहाँ जनसंख्या घनत्व में भी बहुत असमानता है। देश का जनघनत्व 325 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है। जनघनत्व की दृष्टि से पश्चिम बंगाल प्रथम स्थान पर है, जहाँ जनघनत्व 903 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है, जबकि अरुणाचल प्रदेश में जनघनत्व 13 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है। इसी भाँति यहाँ जनसंख्या का लिंगानुपात तथा साक्षरता में भी बहुत असमानता पायी जाती है।
लिंगानुपात की दृष्टि से प्रथम स्थान पर केरल है, जहाँ लिंगानुपात 1058 है, जबकि राजस्थान में लिंगानुपात सबसे कम है, जो 922 है, साक्षरता की दृष्टि से केरल प्रथम स्थान पर है, जहाँ साक्षरता 90.92 प्रतिशत है, इसके विपरीत सबसे कम साक्षरता वाला राज्य बिहार है, जहाँ साक्षरता 47.0 प्रतिशत है।
यहाँ कृषि, उद्योग, परिवहन, व्यापार आदि में भी पर्याप्त असन्तुलन पाया जाता है। देश में व्याप्त असन्तुलनों से अनेकानेक सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक समस्याएँ उत्पन्न होती है, जिसे निम्नलिखित रूप में देख सकते हैं-
सामाजिक समस्याएँ:
क्षेत्रीय असन्तुलन के कारण विभिन्न प्रकार की सामाजिक समस्याएँ उत्पन्न होती हैं जो अग्रलिखित हैं-
(1) आय एवं सम्पत्ति की असमानता:-
क्षेत्रीय असन्तुलन से ग्राम एवं नगरों के मध्य आय तथा सम्पत्ति वितरण में असमानता बहुत है। यह असमानता राज्यों में भी बहुत है। अखिल भारत की प्रति व्यक्ति आय 29,642 (वर्तमान कीमतों पर) रुपये है, जबकि गोवा 70,112 रुपये, दिल्ली में 61,676 रुपये, महाराष्ट्र में 37,081 रुपये है।
राष्ट्रीय औसत से अधिक आय वाले राज्य केन्द्रशासित गोआ, अरुणाचल प्रदेश, दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, हाराष्ट्र मिजोरम एवं पंजाब, चण्डीगढ़, केरल आदि राज्य है, जबकि शेष राज्यों के प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत से कम है।
(2) असामाजिक कृत्यों को बढ़ावा:-
क्षेत्रीय असन्तुलन से असामाजिक कृत्यों को बढ़ावा मिलता है, क्योंकि जब लोग समाजिक नहीं होते हैं अर्थात् उनमें ऊँच-नीच दिखाई देती है, तो स्वाभाविक है कि असामाजिक कृत्यों को बढ़ावा मिलता है।
क्षेत्रीय असन्तुलनों से किसी क्षेत्र विशेष की ओर श्रमिकों का प्रवास बढ़ने लगता है, जिससे भीड़-भाड़ की समस्या, आवास व्यवस्था की समस्या, जलापूर्ति समस्या, बिजली की समस्या तथा गन्दी बस्ती समस्या उत्पन्न होती है। सभी लोगों को रोजगार न मिलने से उनमें रोष व्याप्त होता है, जिससे असामाजिक कृत्यों को बढ़ावा मिलता है।
(3) सामाजिक लागतों में वृद्धि:-
क्षेत्रीय असन्तुलन होने से किसी क्षेत्र विशेष में औद्योगीकरण अधिक होता है, जबकि किसी में बहुत कम। ऐसी स्थिति में जहाँ औद्योगीकरण अधिक होता है, वहाँ प्रदूषण की समस्या भी उत्पन्न हो जाती है। प्रदूषण वाले क्षेत्रों में निवास करने वाले श्रमिकों में विभिन्न प्रकार की बीमारियाँ होने लग जाती हैं, जिसके उपचार हेतु अतिरिक्त लागत वहन करनी पड़ती है।
आर्थिक समस्याएँ:
क्षेत्रीय असन्तुलन से निम्न प्रकार की आर्थिक समस्याएँ उत्पन्न होती हैं-
(1) साधनों का अपूर्ण उपयोग:-
क्षेत्रीय असन्तुलन की सबसे बड़ी समस्या यह रहती है कि इससे देश के संसाधनों का पूर्ण उपयोग नहीं हो पाता है। इसका कारण यह है कि जहाँ विकास होता है, वहाँ के संसाधनों का उपयोग हो जाता है किन्तु अनेकानेक दुर्गम क्षेत्र के संसाधनों का उपयोग नहीं हो पाता है।
(2) बेरोजगारी में वृद्धि:-
सभी क्षेत्रों में सन्तुलित विकास न होने से कुछ क्षेत्रों में तो रोजगार के अवसर अच्छे होते हैं, जबकि अन्य क्षेत्रों में रोजगार का अभाव पाया जाता है। यदि सभी क्षेत्रों में समान रूप से विकास हो तो रोजगार के अवसर भी समान रूप से मिलेंगे, फलतः बेरोजगारी कम होगी।
(3) साधनों का अनुचित उपयोग:-
प्राकृतिक संसाधन सीमित मात्रा में होते हैं। अतः उनका उपयोग विवेकपूर्ण ढंग से करना चाहिए तथा उनके संरक्षण पर भी ध्यान देना चाहिए। औद्योगिक विकास होने से संसाधनों का अधिकाधिक उपयोग हो जाता है, जिससे संसाधनों के समाप्त होने की समस्या उत्पन्न हो रही है।
(4) जीवन स्तर में भिन्नता:-
क्षेत्रीय असन्तुलन से कुछ क्षेत्रों के लोगों की आय अधिक होती है, जबकि अन्य बहुत कम आय वाले होते हैं। ऐसी स्थिति में उनके जीवन-स्तर में पर्याप्त भिन्नता देखने को मिलती है। क्षेत्रीय असन्तुलन होने से यह बहुत गम्भीर समस्या उत्पन्न होती है।
राजनैतिक समस्याएँ:
क्षेत्रीय असन्तुलन से निम्नांकित राजनैतिक समस्याएँ उत्पन होती हैं-
(1) राजनीतिक अस्थिरता:-
क्षेत्रीय असन्तुलन से राजनीति में भी स्थिरता नहीं है। जहाँ राजनीतिक अस्थिरता है, वहाँ असन्तुलन है, इस प्रकार दोनों का बड़ा घनिष्ठ सम्बन्ध है।
(2) क्षेत्रवाद की समस्या:-
जब किसी क्षेत्र का विकास अधिक तथा किसी का कम होता है तो विभिन्न प्रकार की समस्याएँ उत्पन्न होती हैं, जिनमें क्षेत्रवाद की समस्या भी बहुत बड़ी है। ऐसे में क्षेत्रीय भावना जागृत होती है, जो किसी-न-किसी रूप में हानिकारक है।
(3) सुरक्षात्मक समस्या:-
क्षेत्रीय असन्तुलन से सुरक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है जो क्षेत्र अधिक विकसित हो जाते हैं, उन पर अन्य पिछड़े क्षेत्रों के गरीब व बेरोजगार हमला बोल देते हैं, वहाँ से धन प्राप्त करते हैं। इससे वहाँ का जन-जीवन असुरक्षित हो जाता है।