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BA Geography All PracticalBA SEMESTER-IOCENOGRAPHY (समुद्र विज्ञान)PG SEMESTER-1

9. Oceanic Deposits / महासागरीय निक्षेप

9. Oceanic Deposits (महासागरीय निक्षेप)  

Oceanic Deposits


Oceanic Deposits (महासागरीय निक्षेप)  

         समुद्र के तली पर मिलने वाले अनेक असंगठित पदार्थों के निक्षेप को समुद्री निक्षेप कहते है। इन निक्षेपों में अकार्बनिक एवं कार्बनिक दोनों प्रकार के पदार्थ शामिल होते है। समुद्री निक्षेप के विषय में अनेक अध्ययन समुद्रीवेताओं के द्वारा प्रस्तुत किया गया है। समुद्री निक्षेप के सम्बन्ध में सर्वप्रथम जानकारी यूनानी भूगोलवेत्ता हेरोडोटस ने दिया था। उसके बाद 1773 ई० में कैप्टन किप्स, 1872 ई० में मर्रे और रेनार्ड ने समुद्री निक्षेप का मानचित्र प्रस्तुत किया। उसके बाद गरहार्ड स्कॉट महोदय ने विस्तृत अध्ययन प्रस्तुत किया।

        इन विद्वानों के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि समुद्री निक्षेप के कई स्रोत है। जैसे स्थलीय भाग, ज्वालामुखी उदगार से प्राप्त मलबा, वायुमंडल, ब्रह्मांड एवं समुद्र से मिलने वाले अनेक जीव जंतु। इन स्रोतों से प्राप्त होने वाले पदार्थों का निक्षेपण लाखों वर्षों से हो रहा है। इसकी मोटाई एक समान नहीं है। लेकिन कहीं-कहीं पर मोटाई 500 मीटर से अधिक पाई गई है। समुद्री निक्षेपों का वितरण कणों के आकार-प्रकार, समुद्री लवणता एवं समुद्री जल की गतियों पर निर्भर करता है। समुद्री निक्षेप के जमाव का दर बहुत ही मन्द है। इन निक्षेपों में स्थलीय निक्षेप की भाँति स्तर नहीं पाए जाते हैं। लेकिन यह स्पष्ट है कि समुद्र तल से ज्यों-ज्यों गहराई में जाते हैं, त्यों-त्यों समुद्री निक्षेप की गहनता में वृद्धि होती जाती है। इसी तरह तटीय क्षेत्र से गहन सागर क्षेत्रों की ओर जाने पर इनके वितरण प्रारूप में परिवर्तन होता जाता है।

समुद्री निक्षेप का वर्गीकरण

      समुद्री निक्षेपों का कई आधार पर एवं कई विद्वानों के द्वारा वर्गीकरण प्रस्तुत किया गया है। जैसे:-

(1) मरे के अनुसार-  मरे महोदय ने स्थिति के आधार पर समुद्री निक्षेप को दो भागों में बांटा है- 

(i) भूमिज निक्षेप

(ii) पेलाजिक निक्षेप

      मरे के अनुसार 100 फैदम या 200 मी० की गहराई तक भूमिज निक्षेप और उसके आगे पेलाजिक निक्षेप पाई जाती है।

(2) जेनकिंस के अनुसार- जेनकिंस ने समुद्र की गहराई को आधार मानते हुए समुद्री निक्षेप को तीन भागों में बांटा है:-

(i) तटीय निक्षेप- तटीय निक्षेप उच्च ज्वार और निम्न ज्वार के बीच में तटीय भागों में पाई जाती है। यह सामान्यतः 100 फैदम की गहराई तक पाए जाते हैं। इसमें मूलतः कंकड़, बालू, बजरी जैसे पदार्थों का निक्षेपण पाया जाता है।

(ii) छिछला सागर निक्षेप- यह 100 से 200 फैदम में समुद्री गहराई के बीच मिलते हैं।

(iii) गहन सागरीय निक्षेप- इसे जेनकिंस महोदय ने पेलाजिक निक्षेप से भी संबोधित किया है।

(3) जॉनसन के अनुसार- जॉनसन ने समुद्री निक्षेपों के प्रकृति को आधार मानते हुए समुद्री निक्षेप को तीन भागों में बांटा है :-

(i) छिछला सागरीय समुद्री निक्षेप- कुल समुद्री भूपटल के क्षेत्र का 9.1% भाग पर फैला है। 

(ii) भूमिज निक्षेप- इसका विस्तार 15.4% समुद्री भूपटल पर हुआ है।

(iii) पेलाजिक निक्षेप- इसका विस्तार 75.5% समुद्री भूपटल पर हुआ है।

(4) स्रोत के आधार पर समुद्री निक्षेप का वर्गीकरण

         यह किसी एक समुद्रीवेता के द्वारा  प्रस्तुत नहीं किया गया है। समुद्री निक्षेप का सबसे उपयुक्त एवं वैज्ञानिक विश्लेषण स्रोत के आधार पर ही किया जा सकता है। स्रोत के आधार पर किए गए वर्गीकरण से उसकी उत्पत्ति एवं प्रत्येक की विशेषता का भी विश्लेषण स्पष्ट हो जाता है। अतः स्रोत के आधार पर समुद्री निक्षेप को 6 भागों में बांटते हैं:-

(i) भूमिज निक्षेप (Terrigenous Deposits)

(ii) ज्वालामुखी निक्षेप (Volcanic Deposits)

(iii) अजैविक निक्षेप (Inorganic Deposits)

(iv) ब्रह्माण्डीय निक्षेप 

(v) जैविक निक्षेप (Organic Deposits)

(vi) लाल चिका 

(1) भूमिज निक्षेप (Terrigenous Deposits)- 

       समुद्र के तली पर निक्षेपित अधिकतर पदार्थ स्थलीय भागों से ही प्राप्त होते हैं। स्थलीय भागों के चट्टानें सतत ऋतुक्षरित होते रहती है। ऋतुक्षरण से प्राप्त मलबा को अपरदन के दूत समुद्र के नितल तक पहुंचाते रहते हैं। इनमें सबसे प्रमुख योगदान नदियों का है। भूमिज निक्षेप को उत्पत्ति, कणों की आकृति और रासायनिक संगठन के आधार पर कई भागों में बांटते हैं :-

(A) गोलाश्म और बजरी (Bolder and Gravel)

(B) रेत या बालू (Sand)

(C) गाद (Silt)

(D) मृतिका (Clay)

(E) पंक (Mud)

           गोलाश्म के टुकड़ों का व्यास न्यूनतम 256 mm होता है जबकि बजरी का व्यास 2 से 256 mm तक होता है। ये दोनों समुद्री तरंगों के द्वारा तटीय क्षेत्रों में सतत किए जा रहे अपरदन से प्राप्त होते हैं। इनका निक्षेपण प्राय: तटीय क्षेत्रों में देखने को मिलता है। 

          रेत या बालू के कणों का व्यास 1/8 से 2mm तक होता है। बालू की प्राप्ति स्थानीय चट्टानों के ऋतुक्षण एवं अपरदन से होता है। रेत के कण भी कई प्रकार के होते हैं। जैसे :- बहुत मोटी रेत, मोटी रेत, मध्यम बालू/ रेत, बारिक रेत और बहुत बारीक रेत।

           गाद, मृतिका और पंक के कणों के व्यास 1/8192mm से 1/8mm तक होता है। गाद पंक के चट्टानी कणों को जोड़ने का कार्य करता है। छिछली एवं शांत सागरों में मृतिका एवं पंक बारीक कण के रूप में पानी पर लटके रहते हैं।

        सबसे सूक्ष्म भूमिज निक्षेप में पंक या कीचड़ को शामिल किया जाता है। कीचड़ प्रायः 1000 फैदम गहराई के बाद ही पाये जाते हैं। मर्रे महोदय ने बताया कि ये कई रंग के होते है। रंग के आधार पर उन्होनें पंक या कीचड़ को तीन भागों में बांटा है- 

(i) नीला पंक (Blue Mud)

(ii) लाल पंक (Red Mud)

(iii) हरा पंक (Green Mud)

        नीला पंक उन चट्टानों के अवशेषों से बनती है जिसमें आयरन सल्फाइड एवं अन्य जैविक तत्व मौजूद रहते है। नीली पंक सभी महासागरों में मिलती है। इसका विस्तार लगभग 232 लाख वर्ग किमी में है।

         लाल पंक का निर्माण लौह ऑक्साइड वाले चट्टानों के ऋतुक्षरण से हुआ है। इसका सर्वाधिक विस्तार पीला सागर और अटलांटिक महासागर के ब्राजील के तट पर देखा जा सकता है।

       हरा पंक का निर्माण नीला पंक के रासायनिक परिवर्तन से होता है। इसमें हरा रंग Gluconites नामक खनिज के कारण होता है। हरा पंक उतरी अमेरिका के प्रशांत एवं अटलांटिक तट पर, ऑस्ट्रेलिया और जापान के तट पर तथा दक्षिण अफ्रीका के केप ऑफ गुड होप के तट पर पाये जाते हैं।

(2) ज्वालामुखी निक्षेप 

           ज्वालामुखी उदगार के कारण बड़े पैमाने पर मलबा का जमाव स्थलीय एवं सागरीय भूपटल पर होता रहता है। स्थलीय भाग पर होने वाला ज्वालामुखी उदगार से निकले मलबा, लावा धीरे-धीरे ठंडा होने की प्रवृति रखते है। जबकि सागरीय भूपटल पर होने वाला ज्वालामुखी उदगार से निकले लावा तेजी से ठंडा होता है। अतः इसके आधार पर ज्वालामुखी निक्षेप को दो भागों में बांटते हैं –

(i) समुद्री ज्वालामुखी निक्षेप

(ii) स्थलीय ज्वालामुखी निक्षेप

         स्थलीय ज्वालामुखी पदार्थ अपरदन के दूतों के द्वारा समुद्री भूपटल पर लाये जाते हैं जो भूमिज के निक्षेप के साथ मिश्रित हो जाते है जिसके कारण इन्हें अलग से पहचान करना संभव नहीं हो पाता है। जबकि समुद्री ज्वालामुखी से प्राप्त पदार्थ अपने मौलिक अवस्था में लंबे समय तक बने रहते हैं। अपरदन एवं ऋतुक्षरण के अभाव में इनका मौलिक गुण यथावत रहता है। 10 लाख वर्ग किमी० समुद्री भूपटल पर इनका निक्षेपण हुआ है। इसका प्रमाण महासागरीय कटक और ज्वालामुखी द्वीपों के सहारे मिलता है।

(3) अजैविक निक्षेप (Inorganic Deposits) 

      अजैविक समुद्री निक्षेप का मुख्य स्रोत वायुमण्डल है। जब जलवायु परिवर्तन होता है तो वैसी स्थिति में वायुमण्डल के ठोस कण सतह पर गिरने लगते है और रासायनिक प्रतिक्रिया कर ग्लूकोनाइट जैसे खनिज का निर्माण करते हैं। इसी तरह यदि वायुमण्डल से CO2 हटा दिया जाय तो डोलोमाइट, सिलिका और लौहे के कण सतह पर गिरकर विशिष्ट अजैविक समुद्री निक्षेप का निर्माण करते हैं। इनका निक्षेपण लगभग सभी सागरों में हुआ है। 

(4)  ब्रह्माण्डीय निक्षेप

          ब्रह्माण्डीय पिंडों से हमारी समुद्री सतह पर निक्षेपित होने वाली पदार्थों को ब्रह्माण्डीय निक्षेप कहते है। स्पष्ट है कि इसका स्रोत हमारी पृथ्वी या वायुमण्डल नहीं है बल्कि हमारे सौरमण्डल या अन्य खगोलीय पिंड इसके स्रोत है। इस प्रकार के निक्षेप सबसे अधिक प्रशांत महासागर, अटलांटिक महासागर और हिन्द महासागर में हुआ है। प्रशांत महासागर के 0.25% क्षेत्रफल पर इसका विस्तार हुआ है। ब्रह्माण्डीय निक्षेप का रंग काला होता है तथा इसमें लोहे का अंश अधिक होता है।

(5) जैविक निक्षेप 

            समुद्री जल में अनेक प्रकार के जीव जंतु पाए जाते हैं। जब ये सागरीय जीव मरते हैं तो उन जीवों के हड्डियां, मांस एवं उनके शरीर में पाए जाने वाले खनिज पदार्थों इत्यादि का जमाव समुद्री नीतल पर होता रहता है। जैविक समुद्री निक्षेप गर्म सागरीय क्षेत्रों में अधिक पाए जाते हैं। गुणों के आधार पर जैविक निक्षेप को दो भागों में बांटते हैं –

(i) नेरेटिक जमाव/ तट तलवासी निक्षेप

(ii) पेलाजिक जमाव/अगाध सागरस्थ निक्षेप

           समुद्र में पाए जाने वाले जीव-जंतुओं की हड्डियों, मछलियों, प्रवाल, शीप, स्पंज इत्यादि के स्थिर पंजर वाले अवशेषों को नेरेटिक जमाव कहते हैं। नेरिटिक जमाव समुद्री तली में किसी विशिष्ट स्थान पर नहीं पाए जाते। लेकिन इन पर लगातार समुद्री लहरों एवं जल धाराओं के प्रहार के कारण महीन कण के रूप में टूटते रहते हैं। 

           पेलाजिक जमाव कीचड़ के समान होता है जिसे ऊज (Ooze) भी कहा जाता है। सूखने पर यह पाउडर के समान हो जाता है। इसका निर्माण विशिष्ट प्रकार के शैवाल, प्रोटोजोआ, डायटम जैसे जीवों के द्वारा होता है। ये प्रायः सागरीय क्षेत्रों में मिलते हैं। रसायनिक विशेषता के आधार पर इसे दो भागों में बांटते हैं –

(A) चुना प्रधान पेलाजिक- दो प्रकार के

(i) टेरोपॉड

(ii) ग्लोबीजेरिना

(B) सिलिका प्रधान पेलाजिक- दो प्रकार के

(i) रेडियोलेरियन पेलाजिक

(ii) डायटम पेलाजिक

       टेरोपॉड का विस्तार 0.4%, ग्लोबीजेरिना का विस्तार 29.2%, रेडियोलेरीयन का विस्तार 3.4% और डायटम का विस्तार 6.4% समुद्री भूपटल पर हुआ है।

      टेरोपॉड चूनायुक्त पदार्थ है। इसका स्रोत चूना प्रधान वाले जीवों का शरीर होता है। इस निक्षेप का नाम भी टेरोपॉड नामक जीव के आधार पर किया गया है। यह प्रायः उष्ण एवं छिछले सागरों में पाया जाता है। यह 1600-3000 मीटर की गहराई में मिलते हैं। इसका सर्वाधिक विस्तार अटलांटिक महासागर में हुआ है।

        ग्लोबीजेरिना का रंग सफेद होता है। इसका प्रमुख स्रोत फेरामिनीफेरा नामक समुद्री जीव है। 3000 से 4000 मीटर की गहराई पर मिलते हैं। ठंडे सागरीय जल में कम और गर्म सागरीय जल में अधिक मिलते हैं।

          डायटम सिलिका प्रधान जैविक निक्षेप है। इसका रंग स्लेटी होता है। 1200 से 4000 मीटर की गहराई पर अधिक मिलते हैं। इसका प्रमुख स्रोत डायटम नामक जीव है। उच्च अक्षांशीय भागों के ठंडे सागरीय क्षेत्रों में अधिक पाई जाती है। अंटार्कटिका के इर्द-गिर्द इसका निक्षेप सर्वाधिक हुआ है। 

        रेडियोलेरियन नामक समुद्री निक्षेप का मुख्य स्रोत रेडियोलेरियन नामक जीव है। जो उष्ण जल में मिलने वाला जीव है। 4000-10000 मीटर की गहराई तक इसका निक्षेपण हुआ है। प्रशांत महासागर में इसका विस्तार सबसे अधिक है।

(6) लाल चीका 

        यह मुख्यतः एलुमिनियम और ऑक्सीकृत लोहा के हाइड्रेट सिलिकेट से निर्मित होता है। प्राथमिक मान्यता यह रही है कि इसका निर्माण विभिन्न प्रकार के समुद्री निक्षेपों से प्राप्त होने वाले खनिजों के टूटने से बनता है। लेकिन नवीन मान्यता वाईविल थॉमसन ने विकसित करते हुए कहा है कि यह भी एक प्रकार का जैविक निक्षेप ही है जिसका निर्माण चूना प्रधान वाले जीवों के विघटन से होता है। लाल चिका चूना प्रधान वाले जीवों में मिलने वाला ऐसा खनिज है जिसका विलियन संभव नहीं हो सका है। लाल चिका का निक्षेपण तीनों महासागरों में हुआ है। 

          इस तरह ऊपर के तथ्यों से स्पष्ट है कि स्रोत के आधार पर किया गया वर्गीकरण को सबसे अधिक मान्यता प्राप्त है। समुद्री निक्षेपों के वितरण को नीचे के मानचित्र में देखा जा सकता है।


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I ‘Dr. Amar Kumar’ am working as an Assistant Professor in The Department Of Geography in PPU, Patna (Bihar) India. I want to help the students and study lovers across the world who face difficulties to gather the information and knowledge about Geography. I think my latest UNIQUE GEOGRAPHY NOTES are more useful for them and I publish all types of notes regularly.

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