8. OCEAN SALINITY / सागरीय लवणता
8. OCEAN SALINITY / सागरीय लवणता
OCEAN SALINITY / सागरीय लवणता
समुद्री जल में लवण की घुली हुई मात्रा को समुद्री लवणता कहते है। प्रारंभ में जब पृथ्वी का निर्माण हुआ तो उसका उपरी भाग ठंडा होकर भूपटल का निर्माण किया। भूपटल का वह भाग जिसका घनत्व कम था उससे महाद्वीपीय भूपटल का निर्माण हुआ और भूपटल का वह भाग जिसका घनत्व अधिक था उससे महासागरीय भूपटल का निर्माण हुआ।
कालान्तर में स्थ्लमंडल से अपरदन के दूतों के द्वारा लवणों को सागर तक पहुँचाने का कार्य अनवरत जारी है। समुद्री जल में मुख्यतः 47 प्रकार के लवण पाए जाते है जिसमें NaCl की मात्रा सर्वाधिक (77.08%) है। इसके अतिरिक्त MgCl (10.09%), MgSo4 (4.9%) कैल्सियम सल्फेट (3.6%) भी प्रमुख लवण पाए जाते है। शेष अन्य प्रकार के लवण पाए जाते है।
लवणता का मापन
लवणता का मापन प्रति हजार ग्राम जल में उपस्थित लवण की मात्रा के अनुपात से ज्ञात करते है। इसे प्रति हजार (gm ‰) के द्वारा निरुपित करते है। डिटमर महोदय के अनुसार सागरीय जल में औसत लवणता 35 ‰ पायी जाती है। समुद्री जल में लवणता सर्वत्र एक सामान नहीं पाई जाती है। लवणता को प्रभावित करने वाले कई कारक है-
लवणता को प्रभावित करने वाले कारक
1.वर्षा एवं वाष्पीकरण-
वर्षा एवं लवणता के बीच व्यत्क्रमानुपाती संबंध होता है। अर्थात जिन स्थानों पर वर्षा ज्यादा होती है वहाँ लवणता कम होती है जहाँ पर वर्षा कम होती है वहाँ पर लवणता अधिक होती है।इसी तरह लवणता एवं वाष्पीकरण के बीच समानुपाती का संबंध होता है। जिन क्षेत्रों में वाष्पीकरण अधिक होता है उन क्षेत्रों में लवणता अधिक पाई जाती है और जहाँ वाष्पीकरण कम होता है वहाँ लवणता भी कम पायी जाती है। इन संबंधों को नीचे के ग्राफ में देखा जा सकता है-
विषुवतीय क्षेत्र को छोड़कर अन्य उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में वाष्पीकरण का प्रभाव कम होता है और वर्षा कम होती है। यही कारण है की विश्व के अधिक लवणता वाले क्षेत्र विषुवतीय क्षेत्र में स्थित नहीं है बल्कि 30° से 35° अक्षांश के बीच उपोष्ण उच्च वायुदाब वाले क्षेत्र में स्थित है। जैसे- तुर्की का वानगोलु झील (330 ‰), मृत सागर (240 ‰), ग्रेट बेसिन (220 ‰)।
विषुवतीय क्षेत्रों में वाष्पीकरण की तुलना में वर्षा अधिक होती है। इसीलिए वहाँ लवणता कम पाए जाते है।
2. समुद्री जलधाराएँ-
विश्व के सभी महासागरों में समुद्री जलधाराएँ चला करती है। उत्तरी गोलार्द्ध में जलधाराएँ Clock Wise और दक्षिणी गोलार्द्ध में Anticlock Wise चला करती है। इसका तात्पर्य हुआ कि निम्न अक्षांश से जलधाराएँ उच्च अक्षांश की ओर जाती है और कुछ जलधाराएँ उच्च अक्षांश से निम्न अक्षांश की ओर आती है। तृतीय विशेषता के आधार पर जलधाराएं दो प्रकार के होती है-
(i) ठंडी जलधारा
(ii) गर्म जलधारा।
गर्म जलधारा में वाष्पीकरण अधिक होता है जिससे लवणता बढ़ने की प्रवृति रखती है। इसके विपरीत ठंडी जलधाराओं में वाष्पीकरण कम होता है। इसीलिए लवणता भी कम होती है। उत्तरी अटलांटिक पछुआ प्रवाह के कारण ही उत्तरी सागर में लवणता बढ़ जाती जाती है। इसी तरह उत्तरी प्रशांत गर्म जल जलधारा के कारण अलास्का की खाड़ी में लवणता बढ़ जाती है।
3. बर्फ का पिघलना-
यह ज्ञात है कि ध्रुवीय क्षेत्र बर्फ से ढके हुए हैं। सूर्याताप प्राप्त करके जब बर्फ पिघलती हैं तो समुद्र में जलापूर्ति बढ़ जाती है। जिसके परिणामस्वरूप लवणता में भी कमी आ जाती है। यही कारण है कि आर्कटिक सागर और अंटार्कटिका के तटीय क्षेत्रों में लवणता कम पाई जाती है।
4. नदियों के द्वारा स्वच्छ जल की आपूर्ति-
नदी जल स्वच्छ जल के उदाहरण है। विश्व के कई बड़ी बड़ी नदियां अपना जल सतत समुद्र में उधेड़ रही है। काला सागर और कैस्पियन सागर दोनों एक ही अक्षांश पर है लेकिन काला सागर में डेन्यूब नदी और वोल्गा नदी के गिरने के कारण काला सागर की लवणता कम और कैस्पियन सागर की लवणता अधिक है।
5. तटीय आकृति-
जिन क्षेत्रों में समुद्र का किनारा सीधा और सपाट है वहाँ पर जल का मिश्रण आसानी से हो जाता है। जबकि अधिक कटे-फटे तटीय क्षेत्रों में जल का मिश्रण आसानी से नहीं हो पाता है जिसके कारण ऐसे क्षेत्रों में लवणता अधिक पाई जाती है।
6. ज्वालामुखी उदगार की क्रिया-
प्रशांत महासागर, अटलांटिक महासागर और भूमध्य में कई जीवित ज्वालामुखी पाये जाते हैं। इन ज्वालामुखी उदगारों के कारण जल वाष्पीकृत होते है और लवणता को बढ़ा देते हैं। ज्वालामुखी उदगार के ही कारण अटलांटिक कटक के सहारे लवणता अधिक पायी जाती है।
7. वायुदाब-
अधिक वायुदाब के कारण जल के सतह नीचे की ओर धँस जाता है जबकि निम्न वायुदाब क्षेत्रों में जल का सतह सामान्य जल स्तर से ऊपर उठा होता है। इस परिघटना के कारण समुद्री जलधाराएँ उच्च जल स्तर वाले क्षेत्र से निम्न जलस्तर वाले क्षेत्र की ओर चलने लगते है जिसके कारण समुद्री लवणताएँ प्रभावित होती है।
इस तरह उपर्युक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि समुद्री लवणता को कई कारक प्रभावित करते हैं।
लवणता का वितरण
विश्व के सभी महासागर आपस में जुड़े हुए हैं। इसीलिए बड़े महासागर और छोटे महासागरों के लवणता में कोई विशेष अंतर नहीं पायी जाती है। लेकिन धरातल पर कुछ ही जलाशय हैं जो समुद्र से जुड़े हुए नहीं हैं। ऐसे ही बंद सागरों की लवणता खुली खुली सागरों की तुलना में अधिक है। सामान्य तौर पर समुद्री लवणता का अध्ययन दो शीर्षकों में बाँटकर किया जा सकता है-
(A) क्षैतिज लवणता
(B) लम्बवत लवणता
(A) क्षैतिज लवणता
इसके अंतर्गत महासागरीय लवणता का वितरण का अध्ययन अक्षांशीय आधार पर किया जाता है। सामान्यतः पृथ्वी को दो भागों में बाँटा जाता है- उत्तरी गोलार्द्ध एवं दक्षिणी गोलार्द्ध।
उत्तरी गोलार्द्ध में महासागर का विस्तार कम और महाद्वीपों का विस्तार अधिक हुआ है। जबकि दक्षिणी गोलार्द्ध में सागर का विस्तार अधिक और स्थल का विस्तार कम हुआ है। यही कारण है कि उत्तरी गोलार्द्ध की तुलना में दक्षिणी गोलार्द्ध के पानी में लवणता कम पायी जाती है। दोनों गोलार्द्धों में समुद्री लवणता के अक्षांशीय वितरण को नीचे के तालिका में देखा जा सकता है-
उपरोक्त तालिका के विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि उत्तरी गोलार्द्ध की तुलना में दक्षिणी गोलार्द्ध की लवणता कम होती है। लेकिन समुद्री लवणता के वितरण को आधार बनाकर विश्व के महासागरीय क्षेत्र को सामान्य रूप से चार भागों में वर्गीकृत कर अध्ययन करते है।
(1) अत्यधिक लवणता वाले क्षेत्र
(2) अधिक लवणता वाले क्षेत्र
(3) निम्न लवणता वाले क्षेत्र
(4) अति निम्न लवणता वाले क्षेत्र
(1) अत्यधिक लवणता वाले क्षेत्र-
इसके अंतर्गत वैसे सागरों एवं झीलों को शामिल किया जाता है जिनकी औसत लवणता 40 ०/०० से अधिक है। इसके अंतर्गत उष्ण एवं उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्र के बन्द सागर एवं झील आते है। ये वे क्षेत्र है जहाँ वाष्पीकरण अधिक एवं जलापूर्ति या वर्षा कम होती है। यह सामान्यतः 30° से 35° अक्षांश के बीच के क्षेत्र है। इन्ही क्षेत्रों में मरुस्थलीय एवं अर्द्धमरुस्थलीय जलवायु पायी जाती है। विश्व में सर्वाधिक लवणता रखने वाला वानगोलू झील (330 ‰), मृत सागर (240 ‰), ग्रेट बेसिन (220 ‰) ऑस्ट्रेलिया के आयर झील आते है। इसके अलावे लाल सागर, पार्सियन की खाड़ी, कैस्पियन सागर, भूमध्य सागर के अफ्रीकी तट और जिब्राल्टर के मुहाना पर भी समुद्री लवणता 40 ‰ से अधिक पायी जाती है।
(2) अधिक लवणता वाले क्षेत्र-
इसके अंतर्गत 30 से 40 ‰ लवणता रखने वाले जलाशयों को शामिल करते है। भौगोलिक वितरण की दृष्टि से विषुवतीय क्षेत्र 5º से 5º को छोड़कर 5º से 30º अक्षांश वाले क्षेत्र को और 45° से 50° अक्षांश के मध्य दोनों गोलार्द्धों में लवणता अधिक पायी जाती है। 40° से 50° अक्षांश के बीच गर्म समुद्री जलधारा के कारण लवणता अधिक पायी जाती है। जबकि 5° से 30° अक्षांश के बीच वर्षा एवं वाष्पीकरण में विभिन्नता के कारण लवणता अधिक पायी जाती है।
(3) निम्न लवणता वाले क्षेत्र-
इसके अंतर्गत 20 से 30 ‰ लवणता वाले क्षेत्र को शामिल करते है। इसके अंतर्गत मुख्यतः तीन क्षेत्र आते है-
(क) विषुवतीय क्षेत्र के महासागरों में 5°N से 5°S के बीच। यहाँ पर लवणता कम होने का प्रमुख कारण वर्षा अधिक और वाष्पीकरण का कम होना है।
(ख) 35° से 45°अक्षांश के बीच
(ग) 55° अक्षांश से ध्रुव (90° अक्षांश) तक
विषुवतीय क्षेत्रों में निम्न लवणता का एक प्रमुख कारण बड़ी-बड़ी नदियों का समुद्र में गिरना भी है। जैसे- जायरे एवं अमेजन नदी अपना मुहाना विषुवतीय क्षेत्रों में ही बनाती है। यही कारण है कि इनके मुहाने पर औसत लवणता 10 ‰ तक पहुँच जाती है।
उच्च अक्षांशीय क्षेत्रों में न्यून लवणता का प्रमुख कारण सूर्य के तापीय प्रभाव का कम होना है। सूर्य के कम तापीय प्रभाव के कारण वाष्पीकरण की क्रिया भी कम होती है। इसके अलावे उच्च अक्षांशीय क्षेत्रों में ध्रुवीय हिम शीलाखण्ड और सेंटलॉरेन्स, राईन, एनेसी, ओब, लीना, जैसे नदियों के द्वारा बड़े पैमाने पर जलापूर्ति की जाती है।
(4) अति निम्न लवणता वाले क्षेत्र-
इसके अंतर्गत 20% से कम लवणता वाले क्षेत्रों को शामिल करते है। इसके अंतर्गत उच्च अक्षांशीय क्षेत्रों के बन्द सागर और झील को शामिल करते है। उच्च अक्षांशीय क्षेत्र में शामिल होने के कारण यहाँ वाष्पीकरण कम होता है और हिमानियों के द्वारा स्वच्छ जल की आपूर्ति अधिक होती है।
विश्व में सबसे कम लवणता बाल्टिक सागर के गल्फ ऑफ बोथनियाँ में गोटलैंड द्वीप (6 से 8 ‰) के पास पायी जाती है। इसके अलावे हड्सन की खाड़ी, कारा सागर, उजला सागर और बाल्टिक सागर की भी औसत लवणता बहुत कम पायी जाती है।
(B) लम्बवत लवणता का वितरण
महासागरों में लम्बवत दृष्टिकोण से भी लवणीय विषमता दिखाई पड़ती है। जैसे-
(i) विषुवतीय क्षेत्रों में सतह के ऊपर वर्षा अधिक होने के कारण लवणता कम पायी जाती है। जबकि लवण का घनत्व अधिक होने के कारण नीचे की ओर बैठने की प्रवृति होती है। इसी कारण से ऊपर से नीचे की ओर जाने पर विषुवतीय क्षेत्रों में लवणता अधिक मिलती है।
(ii) मध्य अक्षांशीय क्षेत्रों में 200 फैदम की गहराई तक लवणता में वृद्धि होती है। लेकिन उसके बाद लवणता में कमी आती है क्योंकि उपसतही जलधारा के कारण मध्य अक्षांशीय क्षेत्रों के नीचले भागों में जलापूर्ति बढ़ जाती है।
(iii) ध्रुवीय क्षेत्रों के ऊपरी भागों में हिमशीलाखण्डों के पिघलने के कारण लवणता कम पायी जाती है। जबकि लवण के बैठने के कारण निचले भागों में लवणता अधिक पायी जाती है। सम्पूर्ण लम्बवत सागरीय लवणता के वितरण को नीचे के Flow Chart में देखा जा सकता है-
इस प्रकार उपर्युक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि सागरीय लवणता में क्षैतिज एवं लम्बवत रूप से काफी विषमताएँ पायी जाती है। सागरीय लवणता में विषमता उतपन्न करने वाले कई कारक है। लेकिन इसके अध्ययन से स्पष्ट होता है कि वर्षा और वाष्पीकरण लवणता को प्रभावित करने वाले दो सबसे प्रमुख कारक हैं।
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- 8. सागरीय लवणता / OCEAN SALINITY
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- 18. महासागरीय जल धारा और ज्वार में अंतर/Difference Between Ocean Current and Tides
- 19. महासागरीय जल धाराओं का प्रभाव/Effect of Ocean Currents
- 20. समुद्रतल में स्थैतिक (स्थायी) परिवर्तन / Static Change in Sea Level