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BA Geography All PracticalBA SEMESTER-IOCENOGRAPHY (समुद्र विज्ञान)PG SEMESTER-1

11. Ocean current / समुद्री  जलधारा

 11. Ocean current / समुद्री  जलधारा 


Ocean current / समुद्री  जलधारा

Ocean current                                         

                    मोंकहाउस ने समुद्री जलधारा को परिभाषित करते हुए कहा है कि “समुद्री नितल के ऊपर स्थित विशाल जलराशि की एक निश्चित दिशा में प्रवाहित होने वाली सामान्य गति को महासागरीय जलधारा करते हैं।” जलधाराओं के अध्ययन से स्पष्ट हुआ है कि जलधाराएं नदी के समान होती है। इनके किनारों पर जल लगभग स्थिर होते हैं जबकि मध्यवर्ती भाग में गति अधिक होती है। जलधाराएं न केवल समुद्री सतह के ऊपर चलती है बल्कि गहराई में भी चलती है। जलधाराएं एक निश्चित दिशा में निरंतर प्रवाहित होती रहती है। जलधाराओं में जल की गति 2 से 10 किलोमीटर प्रति घंटा तक होती है। समुद्री जलधाराएं भौतिक विशेषता गति एवं स्थिति के आधार पर कई प्रकार की होती है। जैसे :- भौतिक विशेषता के आधार पर जलधाराएं दो प्रकार की होती है-

(i) ठंडी जलधारा 

(ii) गर्म जलधारा 

               विषुवतीय क्षेत्र से चलने वाले जलधाराएं गर्म प्रकार की होती है जबकि ध्रुवीय क्षेत्रों से उत्पन्न होने वाली जलधाराएं ठंडी होती है। जैसे – तीनों महासागरों में चलने वाले विषुवतीय जलधारा गर्म जलधारा का उदाहरण है। जबकि हम्बोल्ट (पेरू) जलधारा, अंटार्कटिका, पछुआ प्रवाह ठंडी जलधारा का उदाहरण है। 

            स्थिति के आधार पर जलधाराएं दो प्रकार की होती है। 

(i) सतही जलधारा

(ii) अधोवाहिनी जलधारा / उप सतही जलधारा

(i) सतही जलधारा (Surface Current)- ध्रुवों और भूमध्यरेखीय भागों के बीच तापक्रम में अधिक अंतर पाया जाता है। समुद्री जल गर्म होकर हल्की होती है और ठंडी होकर भारी होती है। इसलिए विषुवतीय क्षेत्र से ध्रुवों की ओर प्रवाहित होने वाली जलधाराएं समुद्र सतह के ऊपर से प्रवाहित होती है। ऐसी जलधारा को सतही जलधारा कहते हैं।

(ii) अधोवाहिनी जलधारा / उप सतही जलधारा- ध्रुवों से विषुवतीय क्षेत्र की ओर प्रवाहित होने वाली जलधाराएं ठंडी एवं भारी होती है। इसलिए वे समुद्री नितल के ऊपर से प्रवाहित होने लगती है और धीरे-धीरे गर्म होकर ऊपर उठने की प्रवृत्ति रखती है। ऐसी जलधाराओं को ही अधोवाहिनी जलधारा या उपसतही जलधारा कहते हैं। 

         गति के आधार पर समुद्री जल धाराएं तीन प्रकार की होती है –

(i) प्रवाह (Drift)- जब सागरीय जल मंद गति से प्रवाहित होने की प्रवृत्ति रखती है तो उसे प्रवाह कहते हैं। प्रवाह में समुद्री जल केवल ऊपरी सतह पर प्रगतिशील रहता है। प्रवाह की उत्पत्ति में प्रचलित हवाओं का विशिष्ट योगदान है। प्रवाह की कोई निश्चित गति सीमा निर्धारित नहीं है।

(ii) धारा (Current)- धारा की औसत गति 30 से 40 किलोमीटर प्रतिदिन होता है। इसमें समुद्री नितल के ऊपर स्थित संपूर्ण समुद्री जलराशि प्रवाहित होने की प्रवृत्ति रखती है। धारा की गति प्रवाह की तुलना में अधिक होती है।

(iii) स्ट्रीम (Stream)-  स्ट्रीम विशाल मात्रा में समुद्री जलराशि किसी एक निश्चित दिशा में तीव्र गति से प्रभावित होने की प्रवृत्ति रखती है। स्ट्रीम की गति धारा से भी अधिक होती है।

समुद्री जलधारा की उत्पत्ति के कारक

                समुद्री जलधाराओं में क्षैतिज गति पाई जाती है। इसकी उत्पत्ति के कारकों को मोटे तौर पर 4 वर्गों में बांटा जा सकता है – 

(1) पृथ्वी की विशेषता से जुड़े हुए कारक (पृथ्वी की आकृति एवं गुरुत्वाकर्षण बल, पृथ्वी की घूर्णन गति)

(2) वायुमंडलीय कारक / बाह्य सागरीय कारक (वायुदाब, वायु की दिशा, वाष्पीकरण, वर्षण)

(3) समुद्री जल की विशेषता से जुड़े हुए कारक (लवणता, घनत्व, तापमान)

(4) धाराओं की दिशा को प्रभावित करने वाला कारक (समुद्री नितल की उच्चावच, तटीय आकृति, मौसम परिवर्तन, पृथ्वी का भ्रमण/कोरियोलिस बल)

(1) पृथ्वी की विशेषता से जुड़े हुए कारक- पृथ्वी की आकृति, गुरुत्वाकर्षण बल एवं घूर्णन गति का प्रभाव जलधाराओं की उत्पत्ति पर पड़ता है। विषुवत रेखा पर गुरुत्वाकर्षण बल न्यूनतम एवं अपकेंद्रीय बल अधिकतम होता है। जबकि ध्रूवों पर गुरुत्वाकर्षण बल अधिकतम तथा अपकेंद्रीय बल न्यूनतम होता है। इसके कारण विषुवतीय प्रदेश का सागरीय जल ध्रूवों की ओर प्रवाहित होने की प्रवृत्ति रखता है।

                      अर्थात पृथ्वी अपने दोनों ध्रुवों पर नारंगी की तरह धँसी हुई है। जबकि विषुवतीय भाग में ऊपर उठी हुई है। पुनः ध्रुवीय भागों में गुरुत्वकर्षण शक्ति अधिक होने के कारण जल का ऊपरी स्तर नीचे की ओर दवा हुआ रहता है। जबकि विषुवतीय क्षेत्र में गुरुत्वाकर्षण क्षमता कम होने के कारण जल का स्तर ऊपर उठा रहता है। फलतः उच्च  जल स्तर से निम्न जल स्तर की ओर जल में प्रवाह की प्रवृति होती है।

                    इसी तरह पृथ्वी की घूर्णन गति के कारण ही जलधाराएँ उत्पन्न होती है। पृथ्वी पश्चिम से पूरब की ओर घूम रही है। चूंकि समुद्र की सतह ठोस है। जबकि समुद्री पानी द्रव है। इसीलिए जब पृथ्वी पश्चिम से पूरब घूमती है तो समुद्री जल में पूरब से पश्चिम की ओर क्षैतिज गति उत्पन्न होती है। इसका सर्वोत्तम उदाहरण सभी विषुवतीय गर्म जलधाराएँ हैं। पृथ्वी की घूर्णन गति का पर प्रभाव समुद्री सतह पर जलधारा सर्वाधिक विषुवतीय क्षेत्र में ही पड़ता है।

(2) वायुमंडलीय कारक / बाह्य सागरीय कारक- वायुमंडलीय कारकों के अंतर्गत को शामिल किया जाता है-

(i) वायुदाब

(ii) वायु की दिशा 

(iii) वाष्पीकरण

(iv) वर्षण 

वायुदाब- सामान्यत: निम्न वायुदाब प्रदेश के जल उच्च वायुदाब प्रदेश की तरफ गतिशील हो जाते हैं क्योंकि दोनों के जलसतह में अंतर होता है। जैसे – केनारी जलधारा, कैलिफ़ोर्निया जलधारा ये सभी उपध्रुवीय निम्न वायुदाब क्षेत्र से उपोष्ण उच्च वायुदाब क्षेत्र की ओर चलती है।

वायुदिशा/प्रचलित पवनें एवं घर्षण बल- समुद्री जलधाराओं के निर्धारण में वायुदिशा का अभूतपूर्व प्रभाव पड़ता है। वस्तुतः इतना प्रभाव किसी भी अन्य कारक का नहीं है। वायुदिशा के अनुरूप समुद्री जलधाराएं हजारों किलोमीटर तक प्रवाहित होती है। विश्व के प्रमुख प्रचलित वायु के समानांतर ही कई जलधाराएं चला करती है।

जैसे – 

◆ उत्तरी-पूर्वी वाणिज्य हवा- उत्तरी विषुवतीय गर्म जलधारा 

◆ दक्षिणी-पूर्वी वाणिज्य हवा- दक्षिणी विषुवतीय गर्म जलधारा 

◆ उत्तरी गोलार्ध की पछुआ वायु- उत्तरी अटलांटिक पछुआ प्रवाह और उत्तरी प्रशांत प्रवाह 

◆ दक्षिणी गोलार्ध की पछुआ वायु- पश्चिमी वायु प्रवाह

वाष्पीकरण- अधिक वाष्पीकरण के कारण जल की मात्रा कम हो जाती है। साथी जल की लवणता एवं घनत्व में वृद्धि होती है। इन सबका सम्मिलित प्रभाव यह होता है कि अधिक वाष्पीकरण वाले क्षेत्रों में जल का तल नीचा हो जाता है।  फलस्वरुप कम वाष्पीकरण वाले क्षेत्रों से अधिक वाष्पीकरण वाले क्षेत्रों की ओर समुद्री जल जलधाराओं के रूप में प्रवाहित होती है। 

वर्षण- जिन क्षेत्रों में वर्षण क्रिया से अतिरिक्त जल की आपूर्ति होती है। उन क्षेत्रों से जल कम वर्षण वाले क्षेत्रों की ओर प्रवाहित होती है। जैसे – विषुवतीय क्षेत्र में वर्षण की क्रिया से अधिक जलापूर्ति होने के कारण जलधाराएँ उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्र के कम वर्षा वाले क्षेत्र की ओर प्रवाहित होती है।

(3) समुद्री जल की विशेषता से जुड़े कारक / अंतः समुद्री कारक- सागरीय जल के तापमान, लवणता, घनत्व आदि में स्थानीय परिवर्तन होते हैं जिसके कारण जल धाराओं की उत्पत्ति होती है। तापमान के कारण लवणता प्रभावित होती है और लवणता के कारण जल का घनत्व प्रभावित होता है। अतः ये तीनों कारक आपस में जुड़े हुए हैं। सामान्यतः निम्न घनत्व के जल अधिक घनत्व जल की तरफ गतिशील होते हैं। जैसे- निम्न घनत्व वाले अटलांटिक महासागर का जल अधिक घनत्व वाले भूमध्यसागर की ओर प्रवाहित होने की प्रवृत्ति रखती है। सामान्यत: समुद्री जलधारा की उत्पत्ति में घनत्व का सबसे कम प्रभाव है।

समुद्र जल का तापमान- समुद्र की सतह के तापीय विषमता ही जल धाराओं को उत्पन्न करती है। जैसे निम्न अक्षांश क्षेत्र के जल उच्च अक्षांश क्षेत्र की तुलना में गर्म होती है। इसका परिणाम यह है कि सभी समुद्रों में जलधारा की सामान्य प्रवाह निम्न अक्षांश से उच्च अक्षांश की तरफ होती है। गर्म जल सापेक्षिक रूप से उठे हुए होते हैं। इसी तरह ध्रुवोय क्षेत्रों में हिमानी के कारण और सूर्य के तापीय प्रभाव कम होने के कारण जल का तापमान कम हो जाता है। ऐसे जल उच्च अक्षांश से निम्न अक्षांश की ओर प्रवाहित होती है।

(4) समुद्री जल धाराओं के दिशाओं को प्रभावित करने वाले कारक

उच्चावच एवं तट की आकृति- समुद्री नितल का उच्चावच और तटीय आकृति समुद्री जलधाराओं की दिशा निर्धारण में मदद करते हैं। इसलिए इसे संशोधनात्मक कारक कहा जाता है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण उत्तरी अटलांटिक महासागर में विषुवतीय गर्म जलधारा का मध्य अटलांटिक कटक के पास उत्पन्न प्रतिरोध के कारण उत्तर की तरफ मुड़ जाना है। इसी तरह सभी विषुवतीय जलधाराएं महाद्वीपों के पूर्वी तट से टकरा कर निम्न अक्षांश से उच्च अक्षांश की तरफ चलने की प्रवृत्ति रखते हैं। इसी तरह छोटे द्वीपों के कारण जलधाराएं कई भागों में विभक्त होकर प्रवाहित होती है।

                                          पृथ्वी की घूर्णन गति से उत्पन्न कोरियोलिस बल या विक्षेप बल (Deflective Force) के कारण जलधाराएं उत्तरी गोलार्ध में दायीं ओर एवं दक्षिणी गोलार्ध में बाईं ओर मुड़ जाती है। पृथ्वी के पश्चिम से पूरब दिशा में घूर्णन के कारण धाराओं का मार्ग गोलाकार हो जाता है।  

मौसम परिवर्तन का प्रभाव:- जब सूर्य उत्तरायण होता है तो समुद्री धाराओं  का प्रवाह क्षेत्र थोड़ा सा उत्तर की ओर खिसक जाता है एवं दक्षिणायन होता है तो धारा क्षेत्र थोड़ा दक्षिण की ओर खिसक जाता है। मानसूनी पवनों की दिशा में परिवर्तन के कारण उत्तरी हिंद महासागर में धाराओं की दिशा में भी परिवर्तन हो जाता है।

                 इस प्रकार स्पष्ट है कि समुद्री जल धाराओं की उत्पत्ति में कई कारकों का प्रभाव होता है।


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I ‘Dr. Amar Kumar’ am working as an Assistant Professor in The Department Of Geography in PPU, Patna (Bihar) India. I want to help the students and study lovers across the world who face difficulties to gather the information and knowledge about Geography. I think my latest UNIQUE GEOGRAPHY NOTES are more useful for them and I publish all types of notes regularly.

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