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BA Geography All PracticalBA SEMESTER-IGEOMORPHOLOGY (भू-आकृति विज्ञान)PG SEMESTER-1

13. NORMAL CYCLE OF EROSION / सामान्य अपरदन चक्र का सिद्धान्त – By W.M. DEVIS

13. NORMAL CYCLE OF EROSION

(सामान्य अपरदन चक्र का सिद्धान्त – By W.M. DEVIS)


NORMAL CYCLE OF EROSION 

सामान्य अपरदन चक्र का सिद्धान्त – By W.M. DEVISNORMAL CYCLE OF EROSION
            जब समुद्रतल से ऊपर उठा हुआ कोई भी भूभाग बाह्य शक्ति या अपरदन के दूतों  के द्वारा काँट- छाँट कर एक अकृतिविहीन समतल मैदान का निर्माण किया जाता है तो इस समयावधि को अपरदन चक्र कहते है।
         पृथ्वी का भूपटल दृढ़ भूखण्डों से निर्मित है जिसे प्लेट कहते है। पृथ्वी के भूपटल पर आंतरिक एवं बाह्य दो प्रकार की शक्तियाँ सतत कार्यरत रहती है। आंतरिक शक्तियों में ज्वालामुखी, भूकम्प एवं भूपटल को विरूपित करने वाले अन्य शक्ति (जैसे- संवहन तरंग) को शामिल करते है। जबकि बाह्य शक्तियों में जलवायु, बहता हुआ जल, भूमिगत जल, हिमानी, शुष्क वायु, समुद्री तरंग, इत्यादि को शामिल करते है। 
         आंतरिक शक्तियाँ भूपटल में विषमता (उत्थान, धंसान, वलन) उत्पन्न करती है । जबकि बाह्य शक्तियां भूपटल में उतपन्न विषमता को समाप्त कर समतल मैदान के रूप में बदलने का प्रयास करती है अर्थात बाह्य शक्तियां  प्राकृतिक कैंची के समान है जो अपरदन के माध्यम से धरातल को अपरदित कर समतल करते रहती है
          अपरदन चक्र की संकल्पना सर्प्रथम स्कॉटलैंड के भूगोलवेत्ता जेम्स हटन ने प्रस्तुत किया था। इन्होनें भूपटल का भूवैज्ञानिक अध्ययन कर अपना मत प्रस्तुत किया कि “भूपटल पर न तो आदि का लक्षण है और न ही अंत की कोई आशा” जेम्स हटन के इसी विचार ने अपरदन चक्र की संकल्पना को जन्म दिया। जेम्स हटन के बाद अमेरिकी भूगोलवेत्ता W. M. डेविस और जर्मन भूगोलवेत्ता पैंक ने अपरदन चक्र पर अलग-अलग मत प्रस्तुत किया। प्रारम्भ में डेविस महोदय ने “सामान्य अपरदन चक्र सिद्धान्त” प्रस्तुत किया । बाद में जब उनकी आलोचना होने लगी तो उन्होनें कहा कि जब पहले से एक अपरदन चक्र चल रहा हो तो बीच में आंतरिक एवं बाह्य शक्तियां आधार तल में परिवर्तन ला सकती है। जिसके कारण पूर्व का अपरदन चक्र बाधित हो जाता है और नवीन अपरदन चक्र प्रारम्भ हो जाता है। इस तरह किसी भी भौगोलिक क्षेत्र में एक से अधिक अपरदन चक्र के स्थलाकृति का प्रमाण मिलने वाले क्षेत्र को “बहुचक्रिय स्थलाकृति क्षेत्र” से सम्बोधित किया। इस तरह डेविस को बहुचक्रीय  स्थलाकृति की संकल्पना प्रस्तुत करने का श्रेय जाता है। कालान्तर में जर्मन भूगोलवेत्ता वाल्थर पैंक और एल्बर्ट पैंक (फादर) ने डेविस के सामान्य अपरदन चक्र सिद्धान्त का आलोचना करते हुए संशोधित एवं आधुनिक अपरदन चक्र का सिद्धान्त प्रस्तुत किया। इस तरह आधुनिक स्थलाकृति विज्ञान का जन्मदाता पैंक (फादर- बेटा) को माना जाता है।
डेविस का सामान्य अपरदन चक्र  
                       डेविस का सामान्य अपरदन चक्र सिद्धान्त भौगोलिक चक्र का सिद्धान्त के नाम से जाना जाता है। अमेरिकी भूगोलवेत्ता W. M. डेविस ने 1889 ई० में “Geographical Essay” नामक पुस्तक में अपरदन चक्र सिद्धान्त प्रस्तुत किया।
                  डेविस ने अपरदन चक्र सिद्धान्त को परिभाषित करते हुए कहा कि “अपरदन चक्र समय की वह अवधि है जिसके अंतर्गत एक उत्थित भूखण्ड अपरदन क्रिया द्वारा प्रभावित होकर एक आकृतिविहीन समतल मैदान का निर्माण करती है।”  

  डेविस ने बताया कि किसी समतल भूखण्ड के उत्थान के बाद उस पर तीन कारकों का प्रभाव पड़ता है –(i) संरचना (ii) प्रक्रम और (iii) समय।

               इसी आधार पर डेविस ने यह परिकल्पना प्रस्तुत किया कि किसी भौगोलिक क्षेत्र का भूदृश्य संरचना, प्रक्रम और समय का फलन होता है। इस परिकल्पना को डेविस का त्रिकट (Trio of Devis) के नाम से जानते है। 

            अपरदन  चक्र आर्द्र प्रदेश में, शुष्क प्रदेश में, चुना पत्थर प्रधान क्षेत्रो में, समुद्र तलीय क्षेत्र में,एवं ध्रुवीय क्षेत्रों में सतत चलता रहता है। डेविस ने अपना सिद्धान्त आर्द्र प्रदेश के संदर्भ में प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि आर्द्र प्रदेश में बहता हुआ जल/नदी अपरदन का दूत होता है। बहता हुआ जल सम्पूर्ण प्रदेश को अपरदन क्रिया से प्रभावित करता है और प्रदेश में अपरदन चक्र को संचालित करता है। आर्द्र प्रदेश में अपरदन की क्रिया चक्रीय रूप से सक्रिय रहती है। डेविस ने अपरदन चक्र की तुलना मानव के जीवन चक्र से किया है। जैसे एक मानव जन्म के बाद युवावस्था, प्रौढ़ावस्था और वृद्धावस्था से होकर गुजरते हुए अपने जीवन लीला को समाप्त करता है और पुनः जन्म लेता है ठीक उसी प्रकार से सामान्य अपरदन चक्र उपरोक्त तीनों अवस्थाओं से होकर गुजरती है। उन्होंने पुनर्जन्म को पुनरुत्थान से तुलना किया है। 

मान्यताएँ :-

डेविस का अपरदन  चक्र सिद्धांत निम्नलिखित तीन मान्यताओं पर आधारित है-

1. अपरदन चक्र के लिए उत्थान अति आवश्यक है तथा उत्थान में समय बहुत कम लगता है।

2. जब उत्थान के कार्य पूरा हो जाता है तब अपरदन का कार्य प्रारंभ होता है।

3. उत्थित भूखण्ड में तीव्र ढ़ाल होती है जिसके कारण उसमें अनियमितताएँ आती है तथा बहता हुआ जल अनेक स्थलाकृति को जन्म देती है।

              डेविस के अनुसार जो भी स्थलखंड तीन मान्यताओं को पूरा करती है वहाँ पर अपरदन चक्र सक्रिय रहता है। किसी भी प्रदेश का अपरदन चक्र निम्नलिखित अवस्थाओं से पूरा होती है:-

(1) युवावस्था/तरुणावस्था

(2) प्रौढावस्था

(3) वृद्धावस्था

              ऊपरोक्त तीनों अवस्थाओं का निम्नलिखित विशिष्टाएँ है:-NORMAL CYCLE OF EROSION

 (1) युवावस्था 

         युवावस्था में भूपटल के उत्थान के बाद अपरदन की क्रिया प्रारंभ हो जाती है। इसीलिए इस अवस्था को अपरदन की अवस्था कहते है। युवावस्था में निम्नलिखित विशिष्ट स्थलाकृतिक का विकास होता है। 

• सरिताएँ I- आकर की घाटी का निर्माण करती है।

• छोटे-छोटे सरिताओं का विकास होता है।

• युवावस्था में तलीय कटान अधिक और क्षैतिज कटान बहुत कम होता है जिससे सँकरी एवं गहरी घाटी (गॉर्ज) का विकास होता है।

• क्षैतिज कटान कम होने के कारण जलविभाजक रेखा चौड़ी होती है।

• इस अवस्था में सरिता अपहरण की घटना होती है। जिसके कारण जगह-जगह पर मृत नदी घाटी या सुस्त नदी घाटी दिखाई देता है।NORMAL CYCLE OF EROSION• तलीय अपरदन के कारण उच्छल्लिका (Rapids) का निर्माण होता है। उच्छल्लिका का निर्माण उस वक्त होता है जब नदी मार्ग के नीचे कोई लम्बवत कठोर चट्टान मिलती है। जब नदी के नीचे मिलने वाला कठोर चट्टान पूर्णतः लम्बवत होता है तो जलप्रपात का निर्माण होता है।

• अगर नदी मार्ग में मिलने वाला कठोर चट्टान छोटा एवं हल्का हो तो उसे नदी उखाड़कर फेंक देती है और जलगर्तिका का निर्माण करती है।NORMAL CYCLE OF EROSION

                  इस अवस्था के प्रारम्भ में उच्चावच कम होती है। लेकिन अवस्था के अंत में तलीय कटान के कारण उच्चावच अधिकतम हो जाती है।

(2) प्रौढ़ावस्था

            प्रौढ़ावस्था को दो भागों में बाँटा जाता है।

(i) प्रारम्भिक प्रौढ़ावस्था

(ii) अंतिम प्रौढ़ावस्था

     प्रारम्भिक प्रौढ़ावस्था में  क्षैतिज अपरदन का कार्य तेजी से होने लगता है और तलीय अपरदन कम होने लगता है। क्षैतिज अपरदन से V– आकार का घाटी का निर्माण होता है। जल विभाजक रेखा को चौड़ाई घटने लगता है। 

      अंतिम प्रौढ़ावस्था में V-आकर की घाटी और खुलने लगती है। जल विभाजक की  चौड़ाई में और कमी आने लगती है। अंतिम प्रौढ़ावस्था में अपरदन और निक्षेपण दोनों साथ-साथ होती है। इसीलिए उच्चावच और ढ़ाल में कमी आने लगती है। तलीय अपरदन न्यून हो जाता है । कम ढ़ाल के कारण नदियाँ गाद लेकर प्रवाहित होने लगती है। अंतिम प्रौढ़ावस्था में नदियाँ बाढ़ का मैदान गोखुर झील और प्राकृतिक बांध का निर्माण करती है। इन स्थलाकृतियों को नीचे के मानचित्र में देखा जा सकता है। NORMAL CYCLE OF EROSION(3) वृद्धावस्था

       डेविस ने बताया कि वृद्धावस्था में केवल विक्षेपण का कार्य होता है। नदियाँ वितरिका में बँटने लगती है। जल विभाजक की चौड़ाई न्यूनतम हो जाती है। “खुली हुई V-आकार की घाटी” का निर्माण करती है। मुहाना पर डेल्टा का निर्माण होता है। वृद्धावस्था के अंत में लगभग समतल मैदान का निर्माण होता है जिसे समप्राय मैदान कहते है। समप्राय मैदान में कहीं कहीं कठोर चट्टाने दिखाई देती है। जिसे मोनाडनौक कहते है।

            डेविस ने अपरदन चक्र के विभिन्न अवस्थाओं में बनने वाले घाटी, समप्राय मैदान, मोनाडनौक और अवस्था का नीचे के मॉडल से समझाया है।NORMAL CYCLE OF EROSION

               डेविस के अनुसार जब कोई उत्थित भौगोलिक भूखण्ड वृद्धावस्था से गुजर रहा होता है तो तभी उसमें पुनरुत्थान की क्रिया होती है तो उसके बाद पुनः नवीन अपरदन चक्र प्रारम्भ होता है। डेविस ने पुनरुत्थान की क्रिया को मानव के पुनर्जन्म से तुलना किया था। 

आलोचना

 डेविस के अपरदन चक्र सिद्धांत की कई आधारों पर आलोचना की गई है:-

1. डेविस ने माना कि उत्थान के बाद अपरदन होता है तो इस पर प्रश्न उठाया जाता है कि क्या भूखण्ड के उत्थान होने तक अपरदन के दूत निष्क्रिय रहते है।

2. डेविस ने बताया कि उत्थान में समय बहुत कम लगता है लेकिन वास्तव में उत्थान बहुत लंबी अवधि तक चलने वाली क्रिया है। 

3. डेविस ने यह भी कहा था कि जलखण्ड के उत्थान हो जाने के बाद लंबे समय तक स्थिर है लेकिन यह मान्य नहीं है।

4. डेविस ने यह नहीं बताया कि भूखंडों का उत्थान क्यों होता है?

5. जर्मन विद्वान वाल्थर पेंक ने कहा है कि कोई भी अपरदन चक्र अवस्था का फलन नहीं होता है बल्कि दशाओं (Phase) का फलन होता है। 

6. डेविस ने एक भी समप्राय मैदान का उदाहरण प्रस्तुत नहीं किया है और न ही वैसे क्षेत्रों का उदाहरण दिया है जहां पर अपरदन चक्र चल रही हो। ऐसे में यह सिद्धान्त काल्पनिक जान पड़ता है।

7. जर्मन विद्वानों ने इसके नामाकरण पर प्रश्नचिन्ह लगाता है।

8. जर्मन विद्वान ओमाल ने कहा है कि यह एक अत्यंत सरलीकृत परिकल्पना है।

निष्कर्ष

         इन आलोचनाओं के बावजूद डेविस के सिद्धांत को व्यापक मान्यता प्राप्त है क्योंकि इस दिशा में उसके द्वारा किया गया प्रथम प्रयास था। बाद में डेविस के ही अपरदन चक्र सिद्धान्त को आधार मानकर पेंक ने अपना विचार प्रकट किया।


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I ‘Dr. Amar Kumar’ am working as an Assistant Professor in The Department Of Geography in PPU, Patna (Bihar) India. I want to help the students and study lovers across the world who face difficulties to gather the information and knowledge about Geography. I think my latest UNIQUE GEOGRAPHY NOTES are more useful for them and I publish all types of notes regularly.

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