Unique Geography Notes हिंदी में

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GEOGRAPHY OF INDIA(भारत का भूगोल)

7. Nano Technology (नैनो टेक्नोलॉजी क्या है? परिभाषा, उदहारण तथा जोखिम)

Nano Technology

(नैनो टेक्नोलॉजी क्या है? परिभाषा, उदहारण तथा जोखिम)



प्रश्न प्रारूप

Q. नैनो टेक्नोलॉजी से आप क्या समझते है? उसके संभावित उद्योग पर विस्तार से चर्चा करें या प्रकाश डालें।

उत्तर- नैनो टेक्नोलॉजी शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग 1974 ई० में जापानी विद्वान नोरियो तनीगुची ने किया था। लेकिन यह शब्द 1980 के आस-पास काफी लोकप्रिय हुआ। इस शब्दों को लोकप्रिय बनाने का श्रेय एरिक ड्रेक्सलर को जाता है। क्योंकि डेक्सलर महोदय ने “इंजन ऑफ क्रिएशन नामक पुस्तक में ‘नैनो टेक’ शब्द का प्रयोग किया और कई संभावित एवं काल्पनिक उपयोग पर प्रकाश डाला।

        ‘नैनो टेक्नोलॉजी’ शब्द दो शब्दों के मिलने से बना है। प्रथम- नैनो और द्वितीय- टेक्नोलॉजी। नैनो एक ग्रीक शब्द है जिसका तात्पर्य बौना होता है। यहाँ पर नैनो शब्द नैनो मीटर (10-9 मी०) का संक्षिप्त भाग है। किसी भी एक इकाई (जैसे- 1m या 1 sec या 1g) का अरबवाँ हिस्सा ‘नैनो मीटर’ या नैनो सकेण्ड या ‘नैनो ग्राम’ कहलाता है। दूसरी ओर टेक्नोलोजी का तात्पर्य उस तकनीक या प्रौद्योगिकी से है, जिसके माध्यम से नवीन भौतिक उत्पादों को जन्म दिया जाता है।

       अतः नैनो टेननोलॉजी का तात्पर्य उस तकनीक से है जिसके माध्यम से हम नैनो स्तर के भौतिक उत्पादों का निर्माण कर सकते हैं। विश्व की सबसे प्रसिद्ध विज्ञान पत्रिका (Science) ने नैनो टेक्नोलोजी को वर्ष 2001 का तथा 21वीं शताब्दी की सबसे बड़ा उपलब्धि माना है।

      वैज्ञानिकों के द्वारा नैनो स्तर पर ही सूक्ष्म निर्माण की दिशा में प्रयोग करने का कारण यह है कि जब स्कूल स्तर से सूक्ष्म स्तर की ओर जाते हैं तो पदार्थों के विशेषताओं में एक खास स्तर तक कोई परिवर्तन नहीं होता है लेकिन एक नियत स्तर के बाद गुणों में परिवर्तन होने लगता है। यह स्तर है- नैनो इकाई (10-9 इकाई)।

        दूसरे शब्दों में परमाणु का औसत का स्तर 10-9 मी० होता है। अतः कोई भी स्थूल पदार्थ जब परमाण्विक स्तर पर (10-9 मी०) अते हैं तो उनके गुण धर्म में परिवर्तन होने लगता है। इसी स्तर को मानकर किया जा रहा शोध एवं अनुसंधान कार्यों से संबंधित प्रक्रिया, निर्मित उत्पाद इत्यादि को नैनो टेक्नोलॉजी कहा जाता है।

        नैनो टेक्नोलॉजी के विकास होने से कई प्रकार के संभावित उपयोग किये जाने की संभावना है। जैसे-

(1) नैनो टेक्नोलोजी के प्रयोग के द्वारा विभिन्न यौगिक के बंधन संरचना को बदलकर और उन्हें आपस में मिलाकर एक नये पदार्थ का निर्माण किया जा सकता है। जैसे- प्रयोगशाला में कोयला को हीरे में परिवर्तन किया जा सकता है। इसी तरह हवा, धूल, और पानी के अणुओं को दुबारा समायोजन करके फुल, फल इत्यादि बनाया जा सकता है।

        नैनो टेक्नोलॉजी के माध्यम से दुनिया भर के लोगों को स्वस्थ्य, शिक्षित और प्रदूषण रहित वातावरण प्रदान किया जा सकता है। इसका समुचित विकास हो जाने पर टिकाऊ विकास, सुरक्षित तथा कुशल उत्पादों का निर्माण, दूर संचार, परिवहन, दवा, कृषि तथा उद्योगों हेतु किया जा सकता है। यह तकनीक उन सारे चीजों को संभव बना सकता है जो अभी कल्पना के स्तर पर है।

        जैसे- नैनो टेक्नोलोजी और बायोटेक्नोलोजी के संयोग से मानव को विलुप्त किया जा सकता है। गंतव्य स्थान पर कुछ सेकेण्ड में भेजा जा सकता है तथा उन्हें पुनः प्रकट किया जा सकता है। इच्छा के अनुसार किसी भी वस्तु के आकार को बदला जा सकता है तथा कम लागत में अच्छे गुणो वाले उत्पादों के निर्माण किया जा सकता है।

     वर्तमान समय में विश्व के अलग-2 देशों में नैनो टेक्नोलॉजी पर अनुसंधान का कार्य चल रहा है। यह टेक्नोलॉजी जहाँ एक ओर विकास की नवीन द्वार को खोल सकेगा वहीं दूसरी ओर संभावित खतरे उत्पन्न करेंगे। जैसे- अगर किसी भी पदार्थ के कण को नैनो स्तर (109 मी०) पर विभाजित किया जाता है तो उसे पुनः विभक्त कर और नष्ट नहीं कि जा सकता है।

      नैनो कण मानव के शरीर में सांस के जरिये, गले के जरिये, त्वचा एवं इंजेक्शन के जरिये शरीर के कोशिका में पहुंचकर अनेक प्रकार के बीमारियाँ उत्पन्न कर सकती है। ये कण किसी जीव के अन्दर पहुंचकर किस तरह का व्यवहार करेंगें? यह अभी अज्ञात है।

        ये कण शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र को कमजोर कर सकते हैं। शरीर में इन्जाइम, प्रोटीन और DNA के निर्माण प्रक्रिया को प्रभावित कर सकता है। उदाहरण स्वरूप वैज्ञानिकों ने कार्बन पर आधारित एक कार्बन नैनो ट्यूब का निर्माण किया है। इसमें कार्बन-60 नामक समस्थानिक का प्रयोग किया गया है। यह समस्थानिक काफी रेडियो सक्रिय होता है। अगर कहीं पर कार्बन ट्यूब का प्रयोग किया जाता है तो वह उत्पाद रेडियो सक्रियता से कैसे बच सकता है।

     नैनो टेक्नोलॉजी से कई प्रकार के पर्यावरणीय संबंधी खतरे उत्पन्न हो सकते है। जैसे- पर्यावरण में नैनो पार्टिकिल के माध्यम/मौजूदगी से वायु, जल, अंतरीक्ष, मृदा इत्यादि प्रदूषित हो सकते हैं।

उपलब्धि

(1) कार्बन नैनो ट्यूबश (CNTs):-

     नैनो तकनीक से विकसित किया गया यह एक ऐसा निर्वात नली है जो शीशे के बजाए कार्बन अणुओं से बनी है। वैज्ञानिकों का मानना है कि कार्बन के अणु काफी अभिक्रियाशील होते हैं। वे दूसरे पदार्थों के सम्पर्क में आकर उनके साथ किसी तरह के प्रतिक्रिया नहीं करते हैं। अतः कार्बन ट्यूब का प्रयोग आदर्श कन्टेनर के रूप में किया जा सकता है। इनमें कोई पदार्थ भरकर इन्हें शीलबन्द कि जा सकता और उन्हें सुरक्षित रखा जा सकता है।

      CNTs को जोड़‌कर तार जैसी संरचना बनायी जा सकती है और कई पदार्थों का आसानी से परिवहन किया जा सकता है। शरीर के अन्दर किसी विशेष जगह पर केन्सर की दवा नैनो ट्यूबश के माध्यम से आसानी से पहुंचाया जा सकता है। इसके बाद अल्ट्रा वॉयलेट तरंग के जरिये उन नलिकाओं को तोड़‌कर दवा को सही स्थान पर फैलाया जा सकता है।

(2) प्रकाश अथवा कण माधारित पैनी टेक्नोलोजी:-

     यह ज्ञात है कि प्रकाश कण और तरंग दोनों की तरह व्यवहार करते हैं। अगर इस टेक्नोलॉजी की विकास हो जाता है तो इसके जरिये बिना तार के इलेक्ट्रॉन का आदान-प्रदान संभव हो जायेगा। परमाणु के प्रत्येक इलेक्ट्रॉन को अपनी इच्छानुसार तोड़ा-मड़ोड़ा जा सकता है।

(3) नैनों क्रिस्टल:-

     ध्वनि तरंगों के साथ नैनो कण प्रतिक्रिया करना प्रारंभ कर देगी। नैनो- क्रिस्टल किसी दृश्यमान स्रोत को रंग बदलकर विलुप्त कर देगी। नैनो क्रिस्टल का प्रयोग गाड़ियों के विभिन्न पार्ट्स बनाने में किया जा सकेगा। इससे ऑटोमोबाइल क्षेत्र में नवीन क्रान्ति का युग प्रारंभ होने वाला है।

(4) DNA कम्प्यूटिंग:-

     DNA नैनो टेक्नोलॉजी के माध्यम से किसी भी जीव के DNA में मनचाहा परिवर्तन करके नये-2 जीवों में विकास किया जा सकता है।

(5) क्वांटम नैनो टेक्नोलॉजी:-

      नैनो टेक्नोलॉजी वस्तुततः क्वांटम टेक्नोलॉजी ही है। इसके माध्यम से परमाणु के इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन और न्यूट्रॉन का नियंत्रण संभव हो जायेगा। इसी तरह से रेडिकल नैनो टेक्नोलॉजी, आण्विक नैनो टेक्नोलॉजी इत्यादि का भी विकास किया जा रहा है।

     विश्व के अलग-2 देशों में नैनो- टेक्नोलॉजी पर इसके संभावना को देखते हुए कई तरह के कार्यक्रम चल रहें है। भारत में इस पर अनुसंधान हैदराबाद तथा बंगलोर में किया जा रहा है।

निष्कर्ष

     इस तरह ऊप के तथ्यों से स्पष्ट है कि नैनो टेक्नोलॉजी भविष्य में जहाँ कई संभावित द्वार को खोल सकेगा वहीं दूसरी और कई विसंगतियों को जन्म देगा। अतः इस तकनीक को सावधानी पूर्वक विकसित करने की आवश्यकता है।

I ‘Dr. Amar Kumar’ am working as an Assistant Professor in The Department Of Geography in PPU, Patna (Bihar) India. I want to help the students and study lovers across the world who face difficulties to gather the information and knowledge about Geography. I think my latest UNIQUE GEOGRAPHY NOTES are more useful for them and I publish all types of notes regularly.

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