MINOR CORE COURSE (Theory- Economic Geography) Solved Questions Paper 2024
(MINOR CORE COURSE : MIC-3)
UG (Sem.-III) Examination, 2024
(Session: 2023-27)
GEOGRAPHY
(Economic Geography)
Time: Three Hours] [Maximum Marks: 70
Note: Candidates are required to give their answers in their own words as far as practicable. The figures in the margin indicate full marks. Answer from all the parts as directed.
अभ्यर्थी यथासंभव उत्तर अपने शब्दों में ही दें। उपांत के अंक पूर्णांक के द्योतक हैं। निर्देशानुसार सभी भागों से प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
PART-A / भाग-अ
(Objective Type Questions)
(वस्तुनिष्ठ प्रश्न)
Note: Choose the correct options from the following questions. Each question carries 2 marks.[10×2=20]
निम्नलिखित प्रश्नों में से सही विकल्प का चयन कीजिए। प्रत्येक प्रश्न 2 अंकों का है।
1. (i) Which human activity is studied in Economic Geography?
(a) Social activities
(b) Economic activities
(c) Political activities
(d) Biological activities
आर्थिक भूगोल में मानव की किन क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है?
(a) सामाजिक क्रियाएँ
(b) आर्थिक क्रियाएँ
(c) राजनैतिक क्रियाएँ
(d) जैविक क्रियाएँ
उत्तर – (b) आर्थिक क्रियाएँ
(ii) Agricultural Occupation is of which group?
(a) Primary
(b) Secondary
(c) Tertiary
(d) Quarternary
कृषि व्यवसाय किस वर्ग का है?
(a) प्राथमिक
(b) द्वितीयक
(c) तृतीयक
(d) चतुर्थक
उत्तर – (a) प्राथमिक
(iii) Economic Geography is a part of which branch of Geography?
(a) Population Geography
(b) Agricultural Geography
(c) Human Geography
(d) Transport Geography
आर्थिक भूगोल, भूगोल विषय के किस शाखा से सम्बन्धित है?
(a) जनसंख्या भूगोल
(b) कृषि भूगोल
(c) मानव भूगोल
(d) परिवहन भूगोल
उत्तर – (c) मानव भूगोल
(iv) Hunting and gathering is an important occupation of which area?
(a) Hot desert
(b) Cold desert
(c) Tropical Rain forest
(d) Temperate grassland
शिकार एवं संग्रह किस क्षेत्र का प्रमुख व्यवसाय है?
(a) गर्म मरूस्थल
(b) शीत मरूस्थल
(c) ऊष्ण कटिबंधीय वर्षा वन
(d) शीतोष्ण घास प्रदेश
उत्तर – (c) ऊष्ण कटिबंधीय वर्षा वन
(v) Which of the following falls under the secondary occupation?
(a) Cottage industry
(b) Transport
(c) Mining
(d) Fishing
निम्नलिखित में से कौन द्वितीयक व्यवसाय की श्रेणी में आता है?
(a) कुटीर उद्योग
(b) परिवहन
(c) खनन
(d) मत्स्य पालन
उत्तर – (a) कुटीर उद्योग
(vi) Which of the following does not fall under Intensive subsistence rice cultivation?
(a) South-East Asia
(b) Southern China and Japan
(c) Nile Valley and Delta
(d) Coastal and Delta areas of India
निम्नलिखित में कौन-सा गहन निर्वाह धान कृषि के अन्तर्गत नहीं आता है?
(a) दक्षिण-पूर्व एशिया
(b) दक्षिणी चीन एवं जापान
(c) नील नदी घाटी एवं डेल्टा
(d) भारत का तटीय एवं डेल्टा क्षेत्र
उत्तर – (c) नील नदी घाटी एवं डेल्टा
(vii) Rubber plantation is a type of:
(a) Commercial farming
(b) Intensive farming
(c) Subsistence farming
(d) None of the above
रबर पेड़ का बागान एक प्रकार की….है।
(a) व्यावसायिक कृषि
(b) गहन कृषि
(c) जीवन निर्वाह कृषि
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर – (a) व्यावसायिक कृषि
(viii) Most important factor for cotton textile industry is:
(a) Raw material
(b) Power resources
(c) Cheap labour
(d) All of the above
सूती वस्त्र उद्योग के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण कारक है:
(a) कच्चा माल
(b) शक्ति के संसाधन
(c) सस्ता श्रम
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर – (d) उपरोक्त सभी
(ix) Trade between two countries is known as:
(a) Inter country trade
(b) External trade
(c) Bilateral trade
(d) International trade
दो देशों के मध्य व्यापार कहलाता है:
(a) अन्तर्देशीय व्यापार
(b) बाह्य व्यापार
(c) द्विपक्षीय व्यापार
(d) अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार
उत्तर – (c) द्विपक्षीय व्यापार
(x) When was World Trade Organisation established?
(a) 1948
(b) 1995
(c) 1998
(d) 2000
विश्व व्यापार संगठन की स्थापना कब हुई?
(a) 1948
(b) 1995
(c) 1998
(d) 2000
उत्तर – (b) 1995
PART-B / भाग-ब
(Short Answer Type Questions)
(लघु उत्तरीय प्रश्न)
Note: Answer any four questions from the following. [4×5=20]
निम्नलिखित में से किन्हीं चार प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
2. Define Economic Geography.
आर्थिक भूगोल को परिभाषित कीजिए।
3. Write a short note on tertiary occupation.
तृतीयक व्यवसाय पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
4. What is Subsistence Agriculture?
जीवन निर्वाह कृषि क्या है?
5. Discuss the important factors for the establishment of Iron and Steel Industry.
लौह-इस्पात उद्योग की स्थापना के लिए महत्त्वपूर्ण कारकों की चर्चा कीजिए।
6. What is meant by International Trade?
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से क्या आशय है?
7. Write the types of special economic zone.
विशेष आर्थिक क्षेत्र के प्रकार लिखिए।
PART-C / भाग-स
(Long Answer Type Questions)
(दीर्घ उत्तरीय प्रश्न)
Note: Answer any three questions from the following. [3×10=30]
निम्नलिखित में से किन्हीं तीन प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
8. Explain meaning and scope of Economic Geography.
आर्थिक भूगोल के अर्थ एवं उद्देश्य का वर्णन कीजिये।
9. Discuss different types of Economic activities.
विभिन्न प्रकार के आर्थिक क्रियाकलापों की चर्चा कीजिए।
10. Analyse the distributional pattern of Cotton textile industry in China or India.
चीन या भारत में सूती वस्त्र उद्योग के वितरण प्रतिरूप की विवेचना कीजिए।
11. Briefly discuss the role of WTO in terms of International trade.
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के संदर्भ में विश्व व्यापार संगठन की भूमिका का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
12. What do you mean by Special Economic Zone?
Describe in brief the special economic zones in the important countries of world.
विशेष आर्थिक क्षेत्र से आप क्या समझते हैं? विश्व के प्रमुख देशों के विशेष आर्थिक क्षेत्रों का संक्षेप में वर्णन कीजिये।
सभी लघु एवं दीर्घ उत्तरीय प्रश्नों का उत्तर सरल एवं आसान शब्दों में देना यहाँ सीखें
PART-B / भाग-ब
(Short Answer Type Questions)
(लघु उत्तरीय प्रश्न)
Note: Answer any four questions from the following. [4×5=20]
निम्नलिखित में से किन्हीं चार प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
2. Define Economic Geography.
आर्थिक भूगोल को परिभाषित कीजिए।
उत्तर- पृथ्वी मानव का घर है और मानव व पृथ्वी तल दोनों ही तथ्य अस्थिर एवं परिवर्तनशील हैं। पृथ्वी की भौतिक परिस्थितियों और मानव के कार्य-कलापों के पारस्परिक सम्बन्धों का अध्ययन मानव भूगोल के अन्तर्गत किया जाता है। आर्थिक भूगोल, मानव भूगोल की एक महत्वपूर्ण शाखा है। इस शाखा के जन्मदाता गोट्ज (1882) थे। इसके अध्ययन में हम मानव की आर्थिक क्रियाओं का ही अध्ययन करते हैं। मानव की आकांक्षाएं एवं आवश्यकताएं अत्यधिक असीमित और विविध हैं। इन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मानव अनेक वस्तुओं का उत्पादन करता है तथा जिन वस्तुओं का उत्पादन नहीं कर सकता उनका क्रय करता है तथा अपने द्वारा उत्पादित वस्तुओं से उनका विनिमय करता है।
प्रो. मेकफरलेन के अनुसार आर्थिक भूगोल के अध्ययन में हम मानव के आर्थिक प्रयत्नों पर भौगोलिक तथा भौतिक पर्यावरण के प्रभाव का अध्ययन करते हैं।
प्रो. जी. चिशौल्म के अनुसार आर्थिक भूगोल में हम उन भौगोलिक परिस्थितियों का अध्ययन करते हैं जो वस्तुओं के उत्पादन, परिवहन तथा विनिमय को प्रभावित करती हैं।
इस अध्ययन के माध्यम से किसी प्रदेश अथवा क्षेत्र के भावी आर्थिक और व्यापारिक क्रियाओं पर पड़ने वाले भौगोलिक प्रभावों के अध्ययन का सम्मिलित प्रभाव भी जाना जाता है।
सुप्रसिद्ध भूगोलवेत्ता हंटिंगटन जीविकोपार्जन प्रदान करने वाले सभी प्रकार के पदार्थों, साधनों, क्रियाओं, रीति-रिवाजों तथा मानव शक्तियों का अध्ययन आर्थिक भूगोल के क्षेत्र में मानते हैं।
प्रो. शॉ के अनुसार मानव की आर्थिक क्रियाएं विश्व के उद्योगो, संसाधनों तथा औद्योगिक उत्पादन के अनुरूप होती हैं।
इसी प्रकार डॉ. एन. जी. जे. पाउण्ड्स के अनुसार आर्थिक भूगोल भू-पृष्ठ पर मानव की उत्पादन क्रियाओं के वितरण का अध्ययन है।
प्रो. रैयन तथा बैगस्टन के शब्दों में आर्थिक भूगोल के अध्ययन में विश्व के भिन्न-भिन्न भागों में मिलने वाले आधारभूत संसाधन एवं स्रोतों का अध्ययन किया जाता है। इन स्रोतों के शोषण पर पड़ने वाली भौतिक परिस्थितियों के प्रभाव की विवेचना की जाती है। विभिन्न प्रदेशों के आर्थिक विकास के अन्तर की व्याख्या की जाती है।
भूगोल की अन्य शाखाओं की भांति आर्थिक भूगोल की विषय-वस्तु एवं विषय-क्षेत्र पर भूगोलवेत्ताओं के विचारों में पर्याप्त मतभेद रहा है। कुछ विद्वान मानव के भौतिक तथा सांस्कृतिक पर्यावरण के अध्ययन को अधिक महत्व देते हैं, तो कुछ मानव की आर्थिक क्रियाओं तथा जीविकोपार्जन के अनेकानेक साधनों के अध्ययन को मुख्य मानते हैं। संक्षेप में विश्व के विभिन्न भागों में मिलने वाले खनिज, कृषि, औद्योगिक साधनों का उत्पादन, उपभोग, वितरण, परिवहन तथा व्यापारिक अध्ययन आर्थिक भूगोल के अन्तर्गत किया जाता है।
वर्तमान में मानव ने विज्ञान और तकनीक की सहायता से आशानुरूप विकास कर लिया है। मानव ने अपने आर्थिक क्षेत्र का विस्तार, समुद्र, भू-गर्भ और अन्तरिक्ष तक कर लिया है। व्यावहारिक जगत में आर्थिक भूगोल के अध्ययन का अत्यधिक महत्व है; इसके अध्ययन के माध्यम से कृषक, श्रमिक, व्यापारी, उद्योगपति तथा राजनीतिज्ञ सव ही लाभान्वित होते हैं।
विभिन्न देशों को अपनी आर्थिक क्षमता बढ़ाने तथा विकास की भावी योजनाओं के निर्माण में आर्थिक भूगोल के अध्ययन को आधार बनाना पड़ता है। किसी प्रदेश के आर्थिक साधनों का उच्चतम सीमा तक विकास कर वहां की बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए जीविकोपार्जन के साधन सुलभ किए जा सकते हैं। किसी देश की अर्थव्यवस्था को सन्तुलित तथा मानव शक्ति को उत्पादन क्रिया से सम्बद्ध करने में आर्थिक भूगोल का योगदान बड़ा महत्वपूर्ण होता है।
3. Write a short note on tertiary occupation.
तृतीयक व्यवसाय पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर- तृतीयक व्यवसायों में समाज को दी जाने वाली व्यक्तिगत तथा व्यावसायिक सेवाएं सम्मिलित हैं। इस व्यवसाय को सेवा श्रेणी भी कहा जाता है। सामान्यतः विकास की प्रक्रिया का एक निश्चित क्रम होता है। प्रारम्भ में प्राथमिक व्यवसायों की प्रधानता होती है। इसके बाद गौण व्यवसायों का महत्व बढ़ता है तथा अन्त में तृतीयक और चतुर्थक व्यवसाय महत्वपूर्ण बन जाते हैं।
तृतीयक व्यवसायों के अन्तर्गत समाज को प्रदान की जाने वाली सेवाओं में रेल, सडक, जहाज, वायुयान, सेवाएं, डाक-तार सेवाएं, दूरदर्शन, रेडियो, फिल्म, साहित्य, कानूनी सेवाएं, जनसम्पर्क और परामर्श, विज्ञापन, वित्त, बीमा, थोक और फुटकर व्यापार, मरम्मत के कार्य जैसी सेवाएं, स्थानीय, राज्यीय, राष्ट्रीय प्रशासन, पुलिस, सेना और अन्य जन सेवाएं तथा गैर सरकारी संगठनों द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाएं उल्लेखनीय हैं।
उद्योगों के विकास के साथ-साथ नगरीय जनसंख्या में तेजी से वृद्धि हुई है। परिणामस्वरूप विभिन्न प्रकार की सेवाओं की मांग में भी वृद्धि हुई है। ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में नगरीय क्षेत्रों में अपेक्षाकृत अधिक संख्या में लोग तृतीयक व्यवसायों में संलग्न हैं।
विकासशील देशों की तुलना में विकसित देशों में कार्यरत जनसंख्या का अधिकांश भाग सेवाओं में लगा हुआ है। उदाहरण के लिए जापान में 70 प्रतिशत, आस्ट्रेलिया में 73 प्रतिशत, कनाडा में 74 प्रतिशत, जर्मनी में 64 प्रतिशत कार्यशील लोग तृतीयक व्यवसायों में संलग्न हैं जबकि भारत में 23 प्रतिशत और चीन में 28 प्रतिशत कार्यशील जनसंख्या ही तृतीयक व्यवसायों में लगी हुई है।
विकसित देशों में प्रति व्यक्ति आय के बढ़ने से विभिन्न प्रकार की सेवाओं विशेषकर मनोरंजन, परिवहन और स्वास्थ्य सेवाओं की मांग में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। प्राथमिक एवं गौण व्यवसायों में काम करने वाले लोगों की भांति तृतीयक व्यवसायों में सेवारत लोगों के कार्य भी महत्वपूर्ण हैं। प्राथमिक और गौण व्यवसायों में लगे लोग, समाज के लिए आवश्यक वस्तुओं का उत्पादन करते हैं और तृतीयक व्यवसायी समाज को विभिन्न सेवाएं प्रदान करते हैं।
4. What is Subsistence Agriculture?
जीवन निर्वाह कृषि क्या है?
उत्तर- इस कृषि में कृषक अपनी तथा अपने परिवार के सदस्यों की उदरपूर्ति के लिए फसलें उगाता है। कृषक अपने उपभोग के लिए वे सभी फसलें पैदा करता है जिनकी उसे आवश्यकता होती है। अतः इस कृषि में फसलों का विशिष्टीकरण नहीं होता। इनमें धान, गेहूँ, दलहन तथा तिलहन सभी का समावेश होता है। विश्व में जीवन निर्वाह कृषि के दो रूप पाए जाते हैं:
(क) आदिम जीवन निर्वाह कृषि जो स्थानान्तरी कृषि के समरूप है।
(ख) गहन जीवन निर्वाह कृषि जो पूर्वी तथा मानसून एशिया में प्रचलित है।
चावल सबसे महत्वपूर्ण फसल है। कम वर्षा वाले क्षेत्रों में गेहूँ, जौ, मक्का, ज्वार, बाजरा, सोयाबीन, दालें तथा तिलहन बोये जाते हैं। यह कृषि भारत, चीन, उत्तरी कोरिया तथा म्यांमार में की जाती है। इस कृषि के महत्वपूर्ण लक्षण निम्नलिखित हैं :
(i) जोत बहुत छोटे आकार की होती हैं।
(ii) कृषि भूमि पर जनसंख्या के अधिक दबाव के कारण भूमि का गहनतम उपयोग होता है।
(iii) कृषि की गहनता इतनी है कि वर्ष में दो, तीन तथा कहीं-कहीं चार फसलें भी ली जाती हैं।
(iv) मशीनीकरण के अभाव तथा अधिक जनसंख्या के कारण मानवीय श्रम का बड़े पैमाने पर उपयोग होता है।
(v) कृषि के उपकरण बड़े साधारण तथा परम्परागत होते हैं, परन्तु पिछले कुछ वर्षों से जापान, चीन तथा उत्तरी कोरिया में मशीनों का प्रयोग भी होने लगा है।
(vi) अधिक जनसंख्या के कारण मुख्यतः खाद्य फसलें ही उगाई जाती हैं और चारे की फसलों तथा पशुओं को विशेष स्थान नहीं मिलता।
(vii) गहन कृषि के कारण मिट्टी की उर्वरता का ह्रास हो जाता है। मिट्टी की उपजाऊ शक्ति बनाए रखने के लिए हरी खाद, गोबर, कम्पोस्ट तथा रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग किया जाता है। जापान में प्रति हेक्टेअर रासायनिक उर्वरकों की खपत सर्वाधिक है।
5. Discuss the important factors for the establishment of Iron and Steel Industry.
लौह-इस्पात उद्योग की स्थापना के लिए महत्त्वपूर्ण कारकों की चर्चा कीजिए।
उत्तर-
6. What is meant by International Trade?
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से क्या आशय है?
उत्तर-
7. Write the types of special economic zone.
विशेष आर्थिक क्षेत्र के प्रकार लिखिए।
उत्तर-
PART-C / भाग-स
(Long Answer Type Questions)
(दीर्घ उत्तरीय प्रश्न)
Note: Answer any three questions from the following. [3×10=30]
निम्नलिखित में से किन्हीं तीन प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
8. Explain meaning and scope of Economic Geography.
आर्थिक भूगोल के अर्थ एवं उद्देश्य का वर्णन कीजिये।
उत्तर- पृथ्वी मानव का घर है और मानव व पृथ्वी तल दोनों ही तथ्य अस्थिर एवं परिवर्तनशील हैं। पृथ्वी की भौतिक परिस्थितियों और मानव के कार्य-कलापों के पारस्परिक सम्बन्धों का अध्ययन मानव भूगोल के अन्तर्गत किया जाता है। आर्थिक भूगोल, मानव भूगोल की एक महत्वपूर्ण शाखा है। इस शाखा के जन्मदाता गोट्ज (1882) थे। इसके अध्ययन में हम मानव की आर्थिक क्रियाओं का ही अध्ययन करते हैं। मानव की आकांक्षाएं एवं आवश्यकताएं अत्यधिक असीमित और विविध हैं। इन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मानव अनेक वस्तुओं का उत्पादन करता है तथा जिन वस्तुओं का उत्पादन नहीं कर सकता उनका क्रय करता है तथा अपने द्वारा उत्पादित वस्तुओं से उनका विनिमय करता है।
प्रो. मेकफरलेन के अनुसार आर्थिक भूगोल के अध्ययन में हम मानव के आर्थिक प्रयत्नों पर भौगोलिक तथा भौतिक पर्यावरण के प्रभाव का अध्ययन करते हैं।
प्रो. जी. चिशौल्म के अनुसार आर्थिक भूगोल में हम उन भौगोलिक परिस्थितियों का अध्ययन करते हैं जो वस्तुओं के उत्पादन, परिवहन तथा विनिमय को प्रभावित करती हैं।
इस अध्ययन के माध्यम से किसी प्रदेश अथवा क्षेत्र के भावी आर्थिक और व्यापारिक क्रियाओं पर पड़ने वाले भौगोलिक प्रभावों के अध्ययन का सम्मिलित प्रभाव भी जाना जाता है।
सुप्रसिद्ध भूगोलवेत्ता हंटिंगटन जीविकोपार्जन प्रदान करने वाले सभी प्रकार के पदार्थों, साधनों, क्रियाओं, रीति-रिवाजों तथा मानव शक्तियों का अध्ययन आर्थिक भूगोल के क्षेत्र में मानते हैं।
प्रो. शॉ के अनुसार मानव की आर्थिक क्रियाएं विश्व के उद्योगो, संसाधनों तथा औद्योगिक उत्पादन के अनुरूप होती हैं।
इसी प्रकार डॉ. एन. जी. जे. पाउण्ड्स के अनुसार आर्थिक भूगोल भू-पृष्ठ पर मानव की उत्पादन क्रियाओं के वितरण का अध्ययन है।
प्रो. रैयन तथा बैगस्टन के शब्दों में आर्थिक भूगोल के अध्ययन में विश्व के भिन्न-भिन्न भागों में मिलने वाले आधारभूत संसाधन एवं स्रोतों का अध्ययन किया जाता है। इन स्रोतों के शोषण पर पड़ने वाली भौतिक परिस्थितियों के प्रभाव की विवेचना की जाती है। विभिन्न प्रदेशों के आर्थिक विकास के अन्तर की व्याख्या की जाती है।
भूगोल की अन्य शाखाओं की भांति आर्थिक भूगोल की विषय-वस्तु एवं विषय-क्षेत्र पर भूगोलवेत्ताओं के विचारों में पर्याप्त मतभेद रहा है। कुछ विद्वान मानव के भौतिक तथा सांस्कृतिक पर्यावरण के अध्ययन को अधिक महत्व देते हैं, तो कुछ मानव की आर्थिक क्रियाओं तथा जीविकोपार्जन के अनेकानेक साधनों के अध्ययन को मुख्य मानते हैं। संक्षेप में विश्व के विभिन्न भागों में मिलने वाले खनिज, कृषि, औद्योगिक साधनों का उत्पादन, उपभोग, वितरण, परिवहन तथा व्यापारिक अध्ययन आर्थिक भूगोल के अन्तर्गत किया जाता है।
वर्तमान में मानव ने विज्ञान और तकनीक की सहायता से आशानुरूप विकास कर लिया है। मानव ने अपने आर्थिक क्षेत्र का विस्तार, समुद्र, भू-गर्भ और अन्तरिक्ष तक कर लिया है। व्यावहारिक जगत में आर्थिक भूगोल के अध्ययन का अत्यधिक महत्व है; इसके अध्ययन के माध्यम से कृषक, श्रमिक, व्यापारी, उद्योगपति तथा राजनीतिज्ञ सव ही लाभान्वित होते हैं।
विभिन्न देशों को अपनी आर्थिक क्षमता बढ़ाने तथा विकास की भावी योजनाओं के निर्माण में आर्थिक भूगोल के अध्ययन को आधार बनाना पड़ता है। किसी प्रदेश के आर्थिक साधनों का उच्चतम सीमा तक विकास कर वहां की बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए जीविकोपार्जन के साधन सुलभ किए जा सकते हैं। किसी देश की अर्थव्यवस्था को सन्तुलित तथा मानव शक्ति को उत्पादन क्रिया से सम्बद्ध करने में आर्थिक भूगोल का योगदान बड़ा महत्वपूर्ण होता है।
मानव की आधुनिक अनुसन्धान एवं अन्वेषण की प्रवृत्ति ने मानव के आर्थिक क्रिया-कलापों को और अधिक विस्तृत बना दिया है।
इस विषय की मुख्य संकल्पनाएँ निम्नलिखित हैं-
(1) आर्थिक भू-दृश्य:-
इसमें किसी प्रदेश के आर्थिक व्यक्तित्व को अभिव्यक्त किया जाता है। मानव द्वारा प्राकृतिक साधनों के अधिकाधिक उपयोग पर बल दिया जाता है।
(2) गत्यात्मक आर्थिक भू-दृश्य:-
इस संकल्पना में सदैव परिवर्तन एवं विकास के तत्व को महत्व दिया गया है। जहां आर्थिक भू-दृश्य भूतकाल के आर्थिक कार्यों का परिणाम है, वहां गत्यात्मक आर्थिक भू-दृश्य पुरोगामी और भावी विकास की सम्भावनाओं को व्यक्त करता है।
(3) वर्तमान आर्थिक भू-दृश्य:-
ये संसाधन, संरचना, आर्थिक विकास एवं आर्थिक प्रक्रिया द्वारा उपलब्धि के परिचायक हैं। वहां की आर्थिक स्थिति को विकासावस्था स्तर भी प्रकट करते हैं। युवावस्था में संसाधनों के शोषण के अवसर उपलब्ध रहते हैं; चरमोत्कर्ष की परिपक्व अवस्था में संसाधनो के उच्चतम उपभोग एवं वृद्धावस्था में विकास की अवरुद्ध एवं धीमी प्रगति के आसार दृष्टिगोचर होते रहते हैं।
(4) आर्थिक क्रिया-कलापों की स्थिति में सिद्धान्तों और नियमों के आधार पर स्थिति-स्थापना तथा वितरण की व्याख्या की जाती है। इसमे विषय-वस्तु उपागम तथा प्रादेशिक उपागम को आधार बना कर अध्ययन किया जाता है।
(5) क्षेत्रीय आर्थिक भिन्नता के साथ-साथ सांस्कृतिक एवं जैविक भिन्नता के अन्तर के परिणामस्वरूप उपलब्धि के स्तर में भी भिन्नता मिलती है।
(6) क्षेत्रीय क्रियात्मक अन्योन्यक्रिया में विभिन्न प्रदेशो में विचित्र-सा पारस्परिक क्रियात्मक अन्तर सम्बन्ध दृष्टिगोचर होता है। यह सम्बन्ध लम्बवत् और क्षैतिज दोनों प्रकार का होता है।
(7) भू-दृश्यों का क्षेत्रीय कार्यात्मक सगठन संकेन्द्रीय और समान दोनों प्रकार का होता है। इसमें पारस्परिक सम्बन्ध कहीं स्पष्ट तो कहीं अस्पष्ट होता है। अस्पष्ट सम्बन्धों को परिवहन और संचारवाहन से सम्बद्ध किया जाता है।
(8) क्षेत्रीय आर्थिक विकास संकल्पना में विकास की तुलना, अन्य प्रदेशों से सांस्कृतिक तथा तकनीकी प्रगति और प्राकृतिक संसाधनों के आधार पर की जाती है। प्रगति के लिए क्षेत्र विशेष के आर्थिक संसाधनों के विकास पर अधिकाधिक बल दिया जाता है।
9. Discuss different types of Economic activities.
विभिन्न प्रकार के आर्थिक क्रियाकलापों की चर्चा कीजिए।
उत्तर- मानव अपनी मूलभूत और उच्चतर आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु विभिन्न प्रकार की आर्थिक क्रियाएँ करता है। इन क्रियाओं द्वारा मानव की आर्थिक प्रगति होती है। मनुष्य की आर्थिक क्रियाओं पर भौतिक एवं सामाजिक पर्यावरण का प्रभाव पड़ता है। चूंकि पृथ्वी सतह पर भौतिक एवं सामाजिक पर्यावरण में क्षेत्रीय विभिन्नता विद्यमान है, अतः मानव की आर्थिक क्रियाओं में भी क्षेत्रीय विभिन्नता पाई जाती है।
उदाहरण के लिए वनों में मानव एकत्रीकरण या संग्रहण, आखेट एवं लकड़ी काटने जैसे आर्थिक क्रियाएँ सम्पन्न करता है तो घास के मैदानों में पशुचारण, उपजाऊ समतल मैदानी भागों में कृषि, खनिजों की उपलब्धि वाले क्षेत्रों में खनन, जल की उपलब्धि वाले क्षेत्रों में मत्स्याखेट जैसी आर्थिक क्रियाएँ करता है। साथ ही अनुकूल अवस्थिति वाले क्षेत्रों में विनिर्माण उद्योगों, परिवहन, व्यापार एवं सेवाओं से सम्बन्धित आर्थिक गतिविधियों में भी संलग्न रहता है।
मनुष्य की आर्थिक क्रियाओं या गतिविधियों को निम्नलिखित चार वर्गों में विभाजित किया जा सकता है, यद्यपि ये चारों वर्ग एक-दूसरे से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित हैं:
1. प्राथमिक व्यवसाय (Primary Occupation):-
प्राथमिक व्यवसाय पूर्णतः प्रकृति पर आश्रित होते हैं। प्राथमिक व्यवसायों के संचालन हेतु अपेक्षाकृत विस्तृत क्षेत्र की आवश्यकता होती है। वनों से संग्रहण, आखेट, लकड़ी काटना घास के मैदानों में पशु चराना, पशुओं से दूध, मांस, खालें, आदि प्राप्त करना, समुद्रों, नदियों एवं झीलों से मछली पकड़ना, कृषि तथा खानों से खनिज निकालना, आदि प्रमुख प्राथमिक व्यवसाय हैं।
विश्व के विकासशील देशों में कार्यशील जनसंख्या का अधिकांश भाग प्राथमिक व्यवसायों में लगा हुआ है और विकसित देशों में कार्यरत जनसंख्या का अधिकांश भाग तृतीयक एवं चतुर्थक व्यवसायों में कार्यरत है।
भारत में 60 प्रतिशत, चीन में 50 प्रतिशत, इथोपिया में 80 प्रतिशत, नाइजीरिया में 70 प्रतिशत जनसंख्या प्राथमिक व्यवसायों में लगी हुई है जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका में 8 प्रतिशत, ग्रेट ब्रिटेन में 1 प्रतिशत, जापान में 5 प्रतिशत जनसंख्या ही प्राथमिक व्यवसायों में संलग्न है।
2. द्वितीयक व्यवसाय (Secondary Occupation):-
द्वितीयक या गौण व्यवसाय में वे सभी प्रकार के विनिर्माण उद्योग सम्मिलित किए जाते हैं जो प्राथमिक व्यवसायों जैसे- कृषि, खनन, पशुपालन, मत्स्य संग्रहण, लकड़ी काटना, आदि से प्राप्त उत्पादों को कच्चे माल के रूप में प्रयुक्त कर मशीनी प्रक्रिया द्वारा उसे तैयार माल में बदलते हैं। इस प्रक्रिया द्वारा गौण व्यवसाय कच्चे माल के स्वरूप में परिवर्तन करते हैं, उसके मूल्य में वृद्धि करते हैं और उसकी उपयोगिता को बढ़ा देते हैं।
उदाहरण के लिए कृषि से प्राप्त गन्ना गौण व्यवसाय के लिए कच्चा माल है, मशीनी प्रक्रिया द्वारा गन्ने से चीनी बनाई जाती है। इस प्रकार गन्ने का स्वरूप भी परिवर्तित हो जाता है, गन्ने से शक्कर बनने पर उसके मूल्य और उपयोगिता में वृद्धि हो जाती है।
इसी प्रकार लौह अयस्क का खनन प्राथमिक व्यवसाय है, लेकिन लोहा-इस्पात का निर्माण गौण व्यवसाय है। विभिन्न प्रकार के उद्योग एक-दूसरे के निकट स्थापित हो जाते हैं, क्योंकि एक उद्योग का तैयार माल दूसरे उद्योग के लिए कच्चा माल हो सकता है। उदाहरण के लिए लौह इस्पात उद्योग अनेक प्रकार के इंजीनियरिंग उद्योगों को विकसित कर सकता है।
उद्योगों का विकास कच्चे माल, शक्ति, श्रमिक, पूंजी और तैयार माल के लिए बाजार की उपलब्धि पर निर्भर है। इन कारकों के अलावा परिवहन और संचार की सुविधाएं, कच्चे माल और शक्ति का लागत मूल्य, श्रमिकों का वेतन तथा तैयार माल का लागत मूल्य भी उद्योगों की स्थापना और विकास में महत्वपूर्ण आर्थिक कारक है।
किसी देश में गौण व्यवसायों में कितनी विविधता है तथा उन व्यवसायों में कितने लोग काम करते हैं, यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि उस देश में औद्योगिक विकास कितना हुआ है। संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, जर्मनी, फ्रांस, इटली, ग्रेट ब्रिटेन, जापान, कनाडा, आस्ट्रेलिया, आदि देशों में प्राथमिक व्यवसायों की तुलना में गौण व्यवसायों में अधिक लोग काम करते हैं।
उद्योगों में कार्यरत लोगों की संख्या, उपयोग में आने वाली यान्त्रिक शक्ति तथा निर्मित उत्पादों के मूल्य के आधार पर उद्योग तीन प्रकार के होते हैं यथा- वृहत् उद्योग, लघु उद्योग और कुटीर उद्योग।
दस्तकार स्थानीय पदार्थों का उपयोग करके दस्तकारी की वस्तुएं बनाते हैं। हथकरघा, बुनकर, टोकरी बनाने वाले, कालीन बनाने वाले, आदि गौण व्यवसायों में लगे हैं। इन गौण व्यवसायों को कुटीर उद्योग कहते हैं। कुटीर उद्योग की प्रत्येक इकाई में लोग कम संख्या में काम करते हैं और इनमें यांत्रिक शक्ति का प्रयोग नहीं होता है।
लघु उद्योग यांत्रिक शक्ति का उपयोग करते हैं। ये उद्योग बड़े उद्योगों के लिए पुर्जे भी बनाने हैं। इलेक्ट्रोनिक वस्तुएं बनाने वाली औद्योगिक इकाइयां जैसे- रेडियो, टी. वी. सेट, प्लास्टिक की वस्तुएं, सामान्यतः लघु उद्योगों की श्रेणी में आते हैं।
वृहत् उद्योगों में सैकड़ों लोग काम करते हैं और इनमें करोड़ों रुपए की पूंजी लगी हुई होती है। इनमें से कुछ उद्योग जैसे मोटर कार उद्योग या दुपहिया वाहन उद्योग अधिक उत्पादन के लिए एसेम्बली लाइन तकनीक का उपयोग करते हैं। एसेम्बली लाइन में अलग-अलग स्थानों पर कच्चे पदार्थ तथा विविध पुर्जों को जोड़ने का कार्य होता है।
एसेम्बली लाइन पर जैसे-जैसे निर्माणाधीन वस्तु आगे सरकती है, प्रत्येक श्रमिक कोई निश्चित काम करता है, फिर दूसरी निर्माणाधीन वस्तु में वह वही काम करता है। इस तरह अन्त तक पहुंचते-पहुंचते वस्तु का निर्माण पूरा हो जाता है और इस प्रकार एसेम्बली लाइन में से निर्मित वस्तु बाहर निकलती है। इस विधि में प्रत्येक श्रमिक किसी एक काम में विशेष दक्ष होता है, जिसे वह बार-बार दोहराता है। निर्माण उद्योगों के परिणामस्वरूप प्राथमिक व्यवसायों जैसे- कृषि, खनन, मत्स्य ग्रहण, आदि में भी मशीनों का खूब प्रयोग होने लगा है।
3. तृतीयक व्यवसाय (Tertiary Occupation):-
तृतीयक व्यवसायों में समाज को दी जाने वाली व्यक्तिगत तथा व्यावसायिक सेवाएं सम्मिलित हैं। इस व्यवसाय को सेवा श्रेणी भी कहा जाता है। सामान्यतः विकास की प्रक्रिया का एक निश्चित क्रम होता है। प्रारम्भ में प्राथमिक व्यवसायों की प्रधानता होती है। इसके बाद गौण व्यवसायों का महत्व बढ़ता है तथा अन्त में तृतीयक और चतुर्थक व्यवसाय महत्वपूर्ण बन जाते हैं।
तृतीयक व्यवसायों के अन्तर्गत समाज को प्रदान की जाने वाली सेवाओं में रेल, सडक, जहाज, वायुयान, सेवाएं, डाक-तार सेवाएं, दूरदर्शन, रेडियो, फिल्म, साहित्य, कानूनी सेवाएं, जनसम्पर्क और परामर्श, विज्ञापन, वित्त, बीमा, थोक और फुटकर व्यापार, मरम्मत के कार्य जैसी सेवाएं, स्थानीय, राज्यीय, राष्ट्रीय प्रशासन, पुलिस, सेना और अन्य जन सेवाएं तथा गैर सरकारी संगठनों द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाएं उल्लेखनीय हैं।
उद्योगों के विकास के साथ-साथ नगरीय जनसंख्या में तेजी से वृद्धि हुई है। परिणामस्वरूप विभिन्न प्रकार की सेवाओं की मांग में भी वृद्धि हुई है। ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में नगरीय क्षेत्रों में अपेक्षाकृत अधिक संख्या में लोग तृतीयक व्यवसायों में संलग्न हैं।
विकासशील देशों की तुलना में विकसित देशों में कार्यरत जनसंख्या का अधिकांश भाग सेवाओं में लगा हुआ है। उदाहरण के लिए जापान में 70 प्रतिशत, आस्ट्रेलिया में 73 प्रतिशत, कनाडा में 74 प्रतिशत, जर्मनी में 64 प्रतिशत कार्यशील लोग तृतीयक व्यवसायों में संलग्न हैं जबकि भारत में 23 प्रतिशत और चीन में 28 प्रतिशत कार्यशील जनसंख्या ही तृतीयक व्यवसायों में लगी हुई है।
विकसित देशों में प्रति व्यक्ति आय के बढ़ने से विभिन्न प्रकार की सेवाओं विशेषकर मनोरंजन, परिवहन और स्वास्थ्य सेवाओं की मांग में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। प्राथमिक एवं गौण व्यवसायों में काम करने वाले लोगों की भांति तृतीयक व्यवसायों में सेवारत लोगों के कार्य भी महत्वपूर्ण हैं। प्राथमिक और गौण व्यवसायों में लगे लोग, समाज के लिए आवश्यक वस्तुओं का उत्पादन करते हैं और तृतीयक व्यवसायी समाज को विभिन्न सेवाएं प्रदान करते हैं।
4. चतुर्थक व्यवसाय (Quaternary Occupation):-
वर्तमान समय में मानव के आर्थिक क्रियाकलाप दिनोंदिन बहुत ही विशिष्ट और जटिल होते जा रहे हैं। फलतः मानव की कानून, वित्त, शिक्षा, शोध और संचार से जुड़ी उन आर्थिक गतिविधियों को जो सूचना (information), सूचना के संग्रहण, (Acquisition), सूचना के संसाधन, (Manipulation) और सूचना के प्रसारण (Transmission) से सम्बन्धित है, को चतुर्थक व्यवसाय के अन्तर्गत सम्मिलित किया गया है।
वर्तमान में विश्व के लगभग सभी देशों में और विशेषकर विकसित देशों में चतुर्थक व्यवसाय में संलग्न लोगों की संख्या में निरन्तर वृद्धि हो रही है। इस व्यवसाय के लोगों में उच्च वेतनमान और पदोन्नति की चाह में गतिशीलता अधिक पाई जाती है।
कम्प्यूटर के बढ़ते प्रयोग और सूचना प्रौद्योगिकी ने इस व्यवसाय के महत्व को बहुत बढ़ा दिया है। परिणामस्वरूप औद्योगिक समाज के तकनीकी तत्वों में क्रान्तिकारी परिवर्तन आ गया है और वर्तमान आर्थिक क्रियाकलाप मुख्य रूप से उन अप्रत्यक्ष उत्पादों से प्रभावित हो गए हैं जिनके उत्पादन में ज्ञान, सूचना और संचार अधिक महत्वपूर्ण है।
10. Analyse the distributional pattern of Cotton textile industry in China or India.
चीन या भारत में सूती वस्त्र उद्योग के वितरण प्रतिरूप की विवेचना कीजिए।
उत्तर-
11. Briefly discuss the role of WTO in terms of International trade.
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के संदर्भ में विश्व व्यापार संगठन की भूमिका का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर- ओपेक जैसे संगठनों के अस्तित्व और वस्तुओं के आयात पर भारी प्रशुल्कों से विश्व में वस्तुओं एवं सेवाओं के मुक्त व्यापार में कृत्रिम बाधा उपस्थित होती है। इन कृत्रिम बाधाओं को दूर करने के लिए तथा अपनी राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के विकास हेतु तथा मुक्त व्यापार को प्रोत्साहित करने हेतु अनेक देशों ने प्रादेशिक स्तर पर साझा बाजार की स्थापना की है।
इस प्रकार के साझा बाजार का मुख्य उद्देश्य सदस्य देशों के बीच कृत्रिम बाधाओं को दूर करते हुए वस्तुओं एवं सेवाओं के मुक्त व्यापार को बढ़ावा देना है। साझा बाजार के सदस्य देश अपनी वस्तुओं का आयात-निर्यात बिना किसी प्रतिस्पर्द्धा, भेदभाव और प्रशुल्क दरों के बीच स्वतंत्रतापूर्वक कर सकते हैं।
इस प्रकार के साझा बाजारों में यूरोपियन आर्थिक समुदाय (EEC) या यूरोपियन संघ (EC) या यूरोपियन साझा बाजार (ECM) उल्लेखनीय हैं जिसकी स्थापना 1951 में 6 यूरोपियन देशों द्वारा अपने कोयला और इस्पात उद्योग के समन्वय विकास हेतु हुई।
वर्तमान में 15 सदस्य देशों के साथ यह एक शक्तिशाली साझा बाजार व्यवस्था है। अन्य साझा बाजार व्यवस्था वाले संगठनों में 1994 में कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका और मेक्सिको द्वारा स्थापित उत्तरी अमेरिका मुक्त व्यापार समझौता (नाफ्टा), 1973 में 13 केरीबियन देशों द्वारा स्थापित केरीबियन समुदाय और साझा बाजार (केरीकोम), 1969 में स्थापित लैटिन अमेरिकी स्वतंत्र व्यापार संघ (लाफ्टा) उल्लेखनीय हैं।
देशों के बीच मुक्त व्यापार को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से अन्तर्राष्ट्रीय प्रयासों के अन्तर्गत हवाना में 1947-48 में एक सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसमें 53 देशों ने अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार संगठन का गठन करने सम्बन्धी एक चार्टर पर हस्ताक्षर किए, किन्तु अमेरिका का समर्थन न मिल पाने के कारण विश्व व्यापार संगठन स्थापित नहीं किया जा सका।
अन्ततः विश्व व्यापार संगठन की स्थापना 1.1.1995 को प्रशुल्क और व्यापार सम्बन्धी सामान्य करार (General Agreement on Trade and Tarrif) (GATT) के उरुग्वे दौर में हुए समझौते के परिणामस्वरूप हुई।
प्रशुल्क और व्यापार सम्बन्धी करार (गैट):-
गेट एक बहुपक्षीय व्यापार सन्धि है जो जेनेवा में 23 देशों के मध्य हुए समझौते के आधार पर 1 जनवरी, 1948 से लागू हुई। इसका उद्देश्य परस्पर सहमति द्वारा व्यापारिक प्रतिबन्धों को समाप्त करना था। गैट वार्ताओं के अब तक कुल बारह चक्र आयोजित किए गए हैं। उरुग्वे के पश्चात् दोहा और कानकुन में इन वार्ताओं के दौर आयोजित किए जा चुके हैं।
सात वर्षीय उरुग्वे दौर में चार नए समझौते हुए जो अब डब्ल्यू. टी. ओ. के मूलभूत समझौते के भाग हैं। ये समझौते निम्न हैं-
1. व्यापार सम्बन्धी बौद्धिक सम्पदा अधिकार (ट्रिप्स),
2. व्यापार सम्बन्धी निवेश उपाय (ट्रिम्स),
3. सेवाओं में व्यापार का सामान्य समझौता (गैट्स)
4. कृषि।
विश्व व्यापार संगठन के उद्देश्य
डंकल समझौते के अन्तर्गत ही गैट के स्थान पर 1 जनवरी, 1995 को विश्व व्यापार संगठन अस्तित्व में आया। इस संगठन के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं:-
(i) जीवन-स्तर में वृद्धि करना।
(ii) पूर्ण रोजगार एवं प्रभावपूर्ण मांग में वृहत्स्तरीय एवं ठोस वृद्धि करना।
(iii) वस्तुओं के उत्पादन एवं व्यापार का विस्तार करना।
(iv) सेवाओं के उत्पादन एवं व्यापार का विस्तार करना।
(v) विश्व के संसाधनों का अनुकूलतम उपयोग करना।
(vi) सुस्थिर या टिकाऊ विकास की आवधारणा को स्वीकार करना।
(vii) पर्यावरण की सुरक्षा एवं संरक्षण करना।
(viii) विकास के वैयक्तिक स्तरों की आवश्यकता के साथ निरन्तर चलते रहने के साधनों में वृद्धि करना।
इन उद्देश्यों में प्रथम तीन गैट के भी उद्देश्य थे। गैट के उद्देश्यों में विश्व संसाधनों के पूर्ण उपयोग की बात कही गई थी जबकि विश्व व्यापार संगठन के उद्देश्यों में विश्व संसाधनों के अनुकूलतम उपयोग पर अधिक बल दिया गया तथा सुस्थिर विकास एवं पर्यावरण की सुरक्षा एवं संरक्षण के उद्देश्यों को भी जोड़ा गया है।
अतः विश्व व्यापार संगठन के उद्देश्य अधिक व्यापक एवं प्रभावी हैं। विश्व व्यापार संगठन की प्रस्तावना में विकासशील देशों और विशेष रूप से कम विकसित देशों के लिए ऐसे सकारात्मक प्रयासों की आवश्यकता बताई गई जो उनकी विकासात्मक आवश्यकताओं के अनुरूप अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में उनकी हिस्सेदारी को बढ़ा सकें।
विश्व व्यापार संगठन के प्रमुख कार्य
विश्व व्यापार संगठन के उद्देश्यों को मूर्तरूप देने के लिए विश्व व्यापार संगठन के प्रमुख कार्य इस प्रकार हैं:-
(i) अन्तर्राष्ट्रीय समझौते से सम्बन्धित विचार विमर्श के लिए एक सामूहिक संस्थागत मंच के रूप में काम करना।
(ii) विश्व व्यापार समझौता, बहुपक्षीय तथा बहुवचनीय समझौते के क्रियान्वयन, प्रशासन तथा परिचालन हेतु सुविधाएं प्रदान करना।
(iii) व्यापार एवं प्रशुल्क सम्बन्धी किसी भी मसले पर सदस्यों को विचार-विमर्श हेतु मंच प्रदान करना।
(iv) व्यापार नीति समीक्षा प्रक्रिया (Trade Policy Revise mechanism) से सम्बन्धित नियमों एवं प्रावधानों को लागू करना।
(v) सदस्य राष्ट्रों के बीच विवादों के निपटारे से सम्बन्धित नियमों एवं प्रक्रियाओं को प्रशासित करना।
(vi) वैश्विक आर्थिक नीति निर्माण में अधिक सामजस्य भाव लाने हेतु विश्व बैंक तथा अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से पूरा-पूरा सहयोग करना।
(vii) विश्व में संसाधनों के अनुकूलतम उपयोग को बढ़ावा देना।
इस प्रकार विश्व व्यापार संगठन के कार्यों में उन सभी बातों का समावेश है जिससे उसके सदस्य देशों को समझौते से सम्बन्धित मामलों पर विचार विमर्श का एक सामूहिक संस्थागत मंच प्राप्त होने के साथ-साथ एक एकीकृत स्थायी एवं मजबूत बहुपक्षीय प्रणाली द्वारा व्यापार सम्बन्धों को बढ़ाने, वैधानिक ढंग से विवादों के निपटाने और व्यापार नीति समीक्षा प्रक्रिया के प्रावधानों को लागू करने में सहायता मिलेगी।
गैट और उसके पश्चात् विश्व व्यापार संगठन के गठन होने से प्रायः सभी देश इसकी नीतियां एवं प्रावधानों से प्रभावित हुए हैं। 90 के दशक से विश्व स्तर पर उदारीकरण और वैश्वीकरण द्रुतगति से प्रसारित हो रहे हैं। प्रत्येक देश इनका लाभ उठाने के लिए अपनी नीतियों में संशोधन कर रहा है।
12. What do you mean by Special Economic Zone? Describe in brief the special economic zones in the important countries of world.
विशेष आर्थिक क्षेत्र से आप क्या समझते हैं? विश्व के प्रमुख देशों के विशेष आर्थिक क्षेत्रों का संक्षेप में वर्णन कीजिये।
उत्तर- विशेष आर्थिक क्षेत्र (Special Economic Zone) एक ऐसे भौगोलिक प्रदेश है जहाँ देश का सामान्य आर्थिक कानून पूरी तरह से लागू नहीं होती। दूसरे शब्दों में ‘SEZ’ शुल्क मुक्त आर्थिक क्षेत्र है जहाँ पर विदेशी निवेशकों को आकर्षित कर आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा दिया जाता है और उत्पादकों को निर्यात के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
ऐतिहासिक पक्ष
रॉबर्ट सी हेवर्ड के अनुसार SEZ की अवधारणा काफी प्राचीन है। प्राचीनतम SEZ का प्रमाण यूनान के टायर नगर से मिलता है। 1960 ई० में चीन ने SEZ का निर्माण कर अपनी अर्थव्यवस्था को विकसित करने के प्रयास किया। जबकि भारत ने अप्रैल 2000 ई० में पहले SEZ नीति की घोषणा की।
प्रकार/वर्गीकरण
SEZ कई प्रकार के हो सकते हैं। जैसे- मुक्त व्यापार क्षेत्र (Free Trade Zone) निर्यात संवर्धन क्षेत्र (Export Prossising Zone), मुक्त क्षेत्र (Free Zone), औद्योगिक क्षेत्र (Industrial Estate), मुक्त बंदरगाह, नगरीय उद्यम क्षेत्र इत्यादि।
उद्देश्य
SEZ की स्थापना के पीछे कई उद्देश्य है।
(1) उद्योगों के विकास हेतु विदेशी एवं घरेलू निवेशकों को उपयुक्त वातावरण उपलब्ध कराना।
(2) निर्यात को बढ़ावा देना।
(3) अधिक से अधिक रोजगार उत्पन्न करना।
(4) पिछड़े हुए क्षेत्रों को विकसित करना।
(5) सामाजिक-आर्थिक विषमता को कम करना।
(6) औद्योगीकरण तथा नगरीकरण को बढ़ावा देना।
स्वरूप एवं विशेषता
किसी भी एक आदर्श SEZ के अंतर्गत एक हजार हेक्टेयर भूमि पर स्थापित किया जा सकता है और उसमें कम से कम 10 हजार करोड़ रूपये का निवेश होना चाहिए। पुनः उसकी निम्नलिखित विशेषताएँ होनी चाहिए:-
(1) SEZ के अंतर्गत कार्य करने वाले इकाइयों के द्वारा वस्तु तथा सेवाओं का मुक्त संचलन होना चाहिए।
(2) विश्व स्तर की आधारभूत संरचना का विकास किया जाना चाहिए।
(3) निर्माण या उत्पादन का कार्य गहन तरीके से होना चाहिए।
(4) निर्यात अभिमुख होना चाहिए।
(5) उन्नत तकनीक होना चाहिए।
(6) उचित प्रबंधन तथा उच्च तकनीक का उपयोग होना चाहिए।
वर्तमान स्थिति एवं महत्त्व
वर्तमान में 379 SEZs अधिसूचित हैं, जिनमें से 265 चालू हैं। लगभग 64% SEZ पाँच राज्यों- तमिलनाडु, तेलंगाना, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र में स्थित हैं। इससे एक लाख से अधिक लोगों को रोजगार मिल रहा है। SEZ पर बाबा कल्याणी समिति की सिफारिशों के अनुसार, SEZ में MSME योजनाओं को जोड़कर तथा वैकल्पिक क्षेत्रों को क्षेत्र-विशिष्ट SEZ में निवेश करने की अनुमति देकर MSME निवेश को बढ़ावा देना है।
इसके अतिरिक्त सक्षम और प्रक्रियात्मक छूट के साथ-साथ SEZ को अवसंरचनात्मक स्थिति प्रदान करने हेतु वित्त तक उनकी पहुँच में सुधार करके तथा दीर्घकालिक ऋण को सक्षम करने के लिये भी अग्रगामी कदम उठाए गए। कुछ SEZ के उदाहरण निम्नलिखित है:-
(1) काण्डला तथा सूरत- गुजरात
(2) कोचीन- केरल
(3) सांताक्रुज- मुम्बई
(4) फाल्टा- पश्चिम बंगाल
(5) चेन्नई- तमिलनाडु
(6) विशाखापतनम- आन्ध्र प्रदेश
(7) नोएडा- उत्तर प्रदेश
(8) इंदौर- मध्य प्रदेश
(9) राजीव गाँधी इंटेफोर्ट पार्क- हिंजेवादी, पूना।
(10) जयपुर- राजस्थान
(11) सिंगुर (टाटा मोटर्स कंपनी)- पश्चिम बंगाल
नोट: टाटा मोटर्स कंपनी 2008 में सिंगूर परियोजना को छोड़ने के बाद कंपनी ने अपनी विनिर्माण इकाई को साणंद, गुजरात में स्थानांतरित कर दिया।
(12) नन्दीग्राम (सलीम अली ग्रुप केमिकल फैक्ट्री)- पश्चिम बंगाल
आलोचना
भारत की SEZ नीति का काफी विरोध किया जा रहा है क्योंकि किसानों का आरोप है कि सरकार किसानों से जबरन कृषि योग्य भूमि छीन रही है और भूमि का सही मुआवजा नहीं दे रही है। नंदीग्राम तथा सिंगुर विवाद इसके उदाहरण है। पुनः विद्वानों का कहना है कि SEZ देश के अन्दर एक औपनिवेशिक क्षेत्र के रूप में सक्रिय होगा जो धीरे-2 देश की आर्थिक संप्रभुता पर प्रहार करेगी।
निष्कर्ष
किसानों के द्वारा लगाया गया आरोप काफी गंभीर है। अतः सरकार को चाहिए कि किसानों की शिकायत सुनकर न केवल उनके समस्याओं का समाधान करे बल्कि SEZ की स्थापना वैसे बंजर भूमि एवं पत्थरीली भूमि पर किया जाय जिसका प्रयोग आज नहीं किया जा रहा है।
पुनः SEZ के अन्तर्गत निवेश करने वाली कंपनियों को पर्यावरण को क्षति नहीं पहुंचाने वाले तकनीकी प्रयोग को प्रोत्साहित किया जाय। पुनः स्थानीय लोगों को तरजीह दी जाय।
उपरोक्त सुझावों पर अमल करने के बाद ही SEZ आर्थिक विकास के दूत बन सकेंगे।