Unique Geography Notes हिंदी में

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PG SEMESTER-2SETTLEMENT GEOGRAPHY (बस्ती भूगोल)

2. Metropolitan Regions (मेट्रोपोलिटन क्षेत्र)

    2. Metropolitan Regions

(मेट्रोपोलिटन क्षेत्र)



     मेट्रोपोलिटन शब्द की उत्पत्ति ग्रीक भाषा से हुई है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है ‘महानगर’ अर्थात बड़े नगरों को ही महानगर कहा जाता है।

     भारतीय संविधान के 74वें संशोधन में महानगरीय क्षेत्र को “दस लाख या उससे अधिक की आबादी वाला क्षेत्र, जो एक या एक से अधिक नगर पालिकाओं के अंतर्गत आता हो और दो या अधिक नगर पालिकाओं और ग्राम पंचायत या अन्य समीपवर्ती क्षेत्रों से मिलाकर बना हो, जिसे राज्य प्रमुख द्वारा लिखित अधिसूचना द्वारा महानगरीय क्षेत्र घोषित किया गया हो” के रूप में परिभाषित किया गया है।

      इस प्रकार भारत में दस लाख से अधिक आबादी वाले नगर महानगर कहलाता हैं। वर्तमान समय में राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय दृष्टिकोण से महानगरीय प्रदेश का महत्त्वपूर्ण स्थान है। विश्व के प्रायः सभी देशों में देश के आर्थिक विकास में महानगरीय प्रदेश की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इस प्रदेश में नगर के आस-पास का क्षेत्र भी सम्मिलित रहता हैं। महानगरीय प्रदेश के विकास में सबसे महत्त्वपूर्ण कारक यातायात के साधनों का विकास है। महानगरीय प्रदेश अर्थात् मेट्रोपोलिटन प्रदेशों में नगरों और उसके आस-पास के क्षेत्रों के बीच पारस्पारिक एवं अन्योनाश्रित संबंध रहता है।

     कोई भी वृहत् नगर अपने आस-पास के ग्रामीण क्षेत्रों में फैलता जाता है। नगरों के आकार में वृद्धि होने के साथ ही नगरों के क्रिया-कलापों में भी वृद्धि होने लगती हैं। इसके बाद नगरों के बाहर 20-30 कि.मी. की परिधि में स्थित सभी गांवों और छोटे-छोटे नगरों को मिला लिया जाता हैं। इस प्रकार नगर तथा नगर के संपूर्ण सम्मिलित नगरीय तथा ग्रामीण भाग को महानगरीय (Metropolitan) प्रदेश के नाम से जाना जाता हैं। उदाहरण के लिए दिल्ली मेट्रोपोलिटन प्रदेश, मुम्बई मेट्रोपोटन प्रदेश, कोलकाता, चिन्नई, अहमदाबाद नगर के मेट्रापोलिटन प्रदेशों का नाम लिया जा सकता हैं।

     इस प्रदेश को नियोजन कहना अधिक उचित होगा क्योंकि संपूर्ण मेट्रोपोलिटन प्रदेश का वातावरण एक सा रहता है। अतः उसके विकास कार्य के लिए समस्त क्षेत्रों का समान रूप से विकास करने की आवश्यकता है। डिकिन्सन के शब्दों में यह महानगर प्रदेश आर्थिक दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण स्थान रखता हैं क्योंकि बड़े नगर आस-पास के छोटे नगरों पर अपना प्रभाव डालता है। पटना महानगर प्रदेश में स्थित दानापुर, फुलवारी, फतुहा आदि छोटे नगर प्रभावित होते हैं। इसी प्रकार दिल्ली मेट्रोपोलिटन प्रदेश में स्थित रोहतक, पानीपत सोनीपत, मेरठ, गजियाबाद, बुलंदशहर, फरीदाबाद, गुड़गांव, अलबर, रिवाड़ी आदि नगर दिल्ली से प्रभावित होते हैं।

नगरीकरण की प्रवृति

      भारत में नगरीकरण की प्रवृति में तीव्रता आयी हैं। वर्ष 1981 ई. में भारत में 12 महानगर थे जो बढ़कर 1991 ई. में 23 और 2001 में 35 और 2011 में 57 हो गये। इन महानगरों में भारत की कुल नगरीय जनसंख्या का 1991 ई. में 32.54% तथा 2001 ई. में 37. 8% 2011 में 64.4% निवास करती है। 1981-91 के बीच इसकी जनसंख्या में 67.76% जबकि 1991-2001 में 52.69% की वृद्धि हुई है। 1941-51 में यह वृद्धि 121.56% हुई थी, 1981 ई. में इन 12 महानगरों की कुल जनसंख्या 42121700 थी जबकि 1991 ई. में यह बढ़कर 23 महानगरों में 70661259 तथा 2001 ई. में 35 महानगरों में 107881836 हो गयी और अब  2011 में 57 महानगरों में — हो गये।

     जनसंख्या का इतनी अधिक वृद्धि के कारण नगरों में अनेक समस्याओं का जन्म हुआ साथ ही नगर नियोजन भी असफल हो गया। नगर नियोजन का मुख्य उद्देश्य नगर के पुराने क्षेत्रों की दशा सुधारना होता है, जबकि मेट्रोपोलिटन प्रदेश में नये क्षेत्रों का समावेश होता है। अतः अब महानगरों की दशा सुधारने के साथ-साथ उसके आस-पास के क्षेत्रों की, जिसे मेट्रोपोलिटन प्रदेश (Metropolitan Region) कहते हैं, दशा में सुधार लाने की आवश्यकता समझी जाने लगी है।

     महानगर के पुराने क्षेत्र तथा नगरीय प्रदेश के नये क्षेत्रों की सेवाओं और सुविधाओं में काफी अंतर दिखने लगा है क्योंकि नये विकसित क्षेत्र में सुधार की संभावनायें अधिक पायी जाती है जबकि पुराने नगर के क्षेत्रों में सुधार लाने के लिए परिवर्तन की आवश्यकता हो जाती है जो बहुत ही कठिन हो जाता है। इसके विकास के लिये कुछ बातों पर ध्यान देना आवश्यक हैं।

1. महानगरों तथा महानगरीय प्रदेशों का योजनाबद्ध एवं सीमाबद्ध विकास कार्य किये जाय जिससे नये तथा पुराने दोनों क्षेत्रों का समुचित विकास हो सके।

2. कार्य एवं उपयोगिता के आधार पर इन प्रदेशों की भूमि का उपयोग होना चाहिए।

3. विकास के लिए पूर्व निश्चित योजना बनायी जाय।

4. गंदी बस्तियों को नहीं पनपने दिया जाय।

5. नगर तथा उस प्रदेश की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर नियोजन कार्य किये जाय।

      किसी मेट्रापोलिटन प्रदेश में तीन संरचनात्मक कटिबंध (पेटी) होते हैं –

1. नगरीय क्षेत्र (Urban area)

2. ग्रामीण-नगर उपांत् (Rural-urbanfringe) तथा

3. समीपवर्ती ग्रामीण क्षेत्र (Peripheral rural area),

      मेट्रोपोलिटन प्रदेश में नगर का विस्तार सड़क तथा रेल के किनारे तीव्र गति से होता हैं फिर भी महानगरीय सीमा का निर्धारण एक कठिन समस्या है। अनेक विद्वानों ने इस प्रदेश का सीमांकन को अलग-अलग ढंग से किया है। भारत में इस प्रदेश की जनसंख्या दस लाख से अधिक मानी गयी हैं। इसमें नगर के आस-पास जितने भी छोट-छोटे नगर हैं तथा उससे सटे गांव है, उन सभी को मिलाकर महानगर (मेट्रापोलिटन प्रदेश) कहा गया है। भारत में वर्त्तमान (2015 ई.) समय में 57 महानगर है। इन महानगरों का प्रभाव क्षेत्र की आर्थिक एवं सामाजिक विशेषताऐं भी अलग-अलग रहती हैं। जैसे-

(i) महानगरों में मकानों की भीड़ तथा ऊँचे-ऊँचे मकान रहती है।

(ii) नगरीय जीवन में भी भारी गिरावट आ जाती हैं। इतना ही नहीं, नगरों के अधिकांश भाग जल, वायु एवं ध्वनि प्रदूषण से ग्रसित हो जाते हैं।

(iii) रेलवे स्टेशन, बस स्टैण्ड, हवाई अड्‌डे तथा मुख्य बाजारों में भारी भीड़ रहती हैं।

(iv) नगरों में दिनों-दिन पानी तथा बिजली आपूर्ति की समस्या जटिल होती जाती हैं।

(v) महानगरों में मनोरंजन स्थल का अभाव होने लगता है।

(vi) भूमि तथा मकानों के दामों में तेजी से बढ़ोतरी होने लगती है।

(vii) यातायात मार्गों पर नगर उपांत की बढ़ोतरी में तीव्रता आ जाती है।

(viii) नगरों में छोड़े गये उद्योग के लिए भूमि का अतिक्रमण होना प्रारंभ हो जाता है।

(ix) सामाजिक ढांचे के बदलाव की प्रवृति होने लगती हैं। लोग अपने काम में इतना व्यस्त हो जाते हैं कि उनके लिए अपने पड़ोसियों से बात करना कठिन हो जाता है। बहुत आवश्यक हुआ तो उनसे टेलिफोन पर बातें कर लेते हैं।

(x) टेलिफोन यहां की आवश्यक वस्तु हो जाती हैं तथा सभी मध्यमवर्ग के लोगों के लिए टेलिफोन सुविधा अनिवार्य हो जाती है। वर्तमान समय में टेलिफोन का स्थान मोबाइल ने ले लिया है।

(xi) नगर के मध्य भाग में आबादी का घनत्त्व बहुत रहता है। काम करने वालों में लगभग 50% लोग नगर के बाहर से अर्थात ग्रामीण नगरीय उपांत एवं ग्रामीण-नगरीय क्रमबद्धता (Rural Urban Fringe or Rural Urban Continuum) और सीमावर्ती क्षेत्र (Peripheral zone) से आते हैं, और रात में वे पुनः अपने-अपने घर लौट जाते है।

(xii) महानगरों में सीमावर्ती ग्रामीण क्षेत्रों से जनसंख्या का प्रवास तीव्र गति से होता है क्योंकि लोगों की यह धारणा रहती हैं कि नगरीय क्षेत्र में रोजगार की कमी नहीं रहती हैं।

(xiii) नगरीय सीमा के आस-पास अधिक किराया देने से बचने के लिए शयनागार (Dormitory) नगर का विकास होता है।

(xiv) महानगरों में महिलाओं की संख्या पुरुषों की तुलना में दिनों-दिन घटती जाती है। जबकि महानगरों से सटे छोटे नगरों में बड़े नगरों की तुलना में महिलाओं की संख्या अपेक्षाकृत अधिक रहती है। ऐसा इसलिए होता है कि सीमावर्ती क्षेत्रों से पुरुष श्रमिकों का पलायन तीव्र गति से होता है। महिलायें घर में रहती हैं और पुरुष रोजगार की तलाश में बाहर चला जाता हैं।

(xv) अन्य नगरों की भांति महानगर भी उस प्रदेश की सांस्कृतिक एवं सामाजिक स्थितियों का सही प्रतिनिधित्त्व करता है क्योंकि किसी भी महानगर का अस्तित्व महानगरीय प्रदेश के प्रभाव क्षेत्र पर निर्भर करता है जो नगर से 20-30 कि. मी. की दूरी तक चारों ओर फैला रहता हैं। महानगर ही इस प्रदेश को आर्थिक एवं सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति करता है।

      यहां कई छोटे-बड़े सेवा केन्द्र विकसित होते हैं। जैसे- दिल्ली महानगर के आस-पास गाजियाबाद, गुड़गांव, सोनीपत, फरीदाबाद, आदि नगरों में अनेक प्रकार के उद्योग विकसित हुए हैं। यहां के उद्योग के विकास में दिल्ली महानगर का महत्त्वपूर्ण स्थान है क्योंकि दिल्ली में बाजार की सुविधा उपलब्ध हैं इसलिए आस-पास के नगरों में उद्योगों का विकास हुआ है। यही स्थिति प्रायः सभी महानगरों में तथा उसके सीमावर्ती प्रदेशों के साथ लागू होता है। यहां आवागमन की सुविधा का विकास होता है जिससे लोग कम खर्च एवं कम समय में एक स्थान से दूसरे स्थान तक आ जा सकते हैं। यहां झुग्गी-झोपड़ी की सख्या में भी तीव्रता से बढ़ोतरी होती है। दिल्ली से दूर-दूर तक व्यापारी लोग सामान ले जाते हैं। इसलिए दिल्ली के आस-पास के नगरों में उद्योग का विकास हुआ है।

    इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि महानगर से 20-30 कि.मी. की दूरी तक चारों तरफ महानगरीय प्रदेश (Metropolitan Region) का विस्तार रहता है, जहां से लोगों का रोजाना संपर्क बना रहता है। लोग रेल अथवा सड़क मार्ग से संपर्क बनाये रखते हैं।

    इस प्रकार महानगर तथा महानगरीय प्रदेश के बीच पारस्पारिक संबंध बना रहता है। महानगर के आस-पास से दूध, जलावन, हरी सब्जी, फल, अनाज आदि नगरों में आता है और सीमावर्ती क्षेत्र के लोग चिकित्सा, शिक्षा, मनोरंजन, बाजार आदि की सुविधा महानगरों से प्राप्त करते हैं। कुछ वर्षों में सीमावर्ती भाग महानगर में विलीन हो जाता है और पुनः महानगरीय प्रदेश का विस्तार होता है। जो महानगर जितना अधिक बड़ा होता हैं उसका महानगरीय प्रदेश भी उतना ही विकसित एवं विस्तृत होता है। महानगर के केन्द्र से जैसे-जैसे दूर जाते हैं लिंग अनुपात तथा जनसंख्या के घनत्त्व में कमी आ जाती है। महानगरीय प्रदेश में अनेक गहन कटिबंध (Zones) का विकास होता है जिसकी आर्थिक विशेषतायें अलग-अलग होती है।

    मुम्बई महानगर के आस-पास अनेक उपनगर पाये जाते हैं जहां विभिन्न प्रकार के उद्योगों का विकास हुआ है। इन उपनगरों से नगर में दूध, अंडा, मुर्गा, फल, सब्जी आदि भी आता है। 1991, 2001 तथा 2011 ई. में मुम्बई भारत का सबसे बड़ा नगर हो गया है। यहां 1991 ई. 35 लाख तथा 2001 ई. 56 लाख से भी अधिक जनसंख्या गंदी बस्तियों में रहती है। 20% जनसंख्या के रहने के लिए आवास नहीं है। एक लाख से अधिक लोग फुटपाथ पर रहते हैं।

      इस प्रकार महानगरीय प्रदेशों का आर्थिक महत्त्व बहुत ही अधिक है। यहां की 75% कार्यरत जनसंख्या अकृषित कार्य में लगी रहती हैं। महानगरीय प्रदेश किसी देश अथवा प्रदेश की नगरीकरण का द्योतक होता है। यह देश के आर्थिक विकास का सूचक है क्योंकि महानगरों के विकास पर औद्योगिकरण का प्रभाव पड़ता है। उद्योग वाले क्षेत्र में नगरीकरण की प्रवृति बहुत ही तीव्र रहती है। उसके साथ महानगरीय प्रदेश (Metropolitan Region) भी विकसित होता है। लोग गांवों से नगरों की ओर प्रवास करते हैं क्योंकि वहां यातायात, सुरक्षा, चिकित्सा, रोजगार, शिक्षा आदि की सुविधा रहती है। कुछ विद्वान महानगरीय प्रदेश को प्रभाव क्षेत्र (Umland) कहते हैं पर प्रभाव क्षेत्र का विस्तार बहुत अधिक दूर तक रहता है पर मेट्रोपोलिटन प्रदेश का विस्तार अपेक्षाकृत कम रहता है।

वृहत् मुम्बई (Greater Mumbai) प्रदेश (Metropolitan Region of Mumbai):-

     वृहत् मुम्बई की जनसंख्या 1991 में 12571720 थी जो बढ़कर 1995 में 151 लाख हो गयी। वर्त्तमान समय में मुम्बई का स्थान विश्व में सबसे बड़े नगरों में पांचवां है। इससे बड़ा दिल्ली महानगर है। यह भारत का एक महत्त्वपूर्ण बन्दरगाह है। अभी देश का लगभग 42% विदेशी व्यापार इसी बंदरगाह से होता है। यह देश के सबसे अधिक विकसित वृहत् नगरीय प्रदेश है। यहाँ अधिकांश वित्तीय संस्थायें तथा बैंकों का प्रधान दफ्तर (Head Office) केन्द्रित है। इस प्रदेश में राज्य का लगभग 69.2% नगरीय जनसंख्या निवास करती है। कुल औद्योगिक श्रमिकों का 2/5वां हिस्सा इसी प्रदेश में कार्यरत है। इसकी पृष्ठभूमि भी काफी विकसित है।

    मुम्बई सात द्वीपों में फैला हुआ हैं जहां पहले किसान तथा मछुआरे रहा करते थे। प्रारंभ में इसके सातों द्वीपों को परस्पर जोड़ दिया गया था तथा दो द्वीपों के बीच समुद्र के छिछले तथा संकरे गढ्ढे को भर दिया गया था। 1853 ई. में मुम्बई तथा थाने को रेल मार्ग द्वारा जोड़ दिया गया था। भारत के पश्चिमी तट पर मुम्बई एक महत्त्वपूर्ण बन्दरगाह है। यहां की जलवायु भी मातदिल है। दिसम्बर से फरवरी तक यहां का तापमान लगभग 20 से. रहता है तथा मार्च में मुम्बई का मौसम शुष्क हो जाता है। मई के बाद लगभग चार महीने तक वर्षा ऋतु का मौसम रहता है।

    बसीन, विरार, कल्याण, उड़ान, अरनाल, सतपती आदि मुम्बई के उपनगर है जो नगर को मछली, साग-सब्जी, दूध, अण्डे तथा अन्य आवश्यक वस्तुओं की पूर्ति करता हैं। मुम्बई नगरीय प्रदेश में प्रायः सभी उपनगर शयनागार नगरों के रूप में हैं। थाने, जो पहले उपनगर था, अब वह मुम्बई महानगर का मुख्य औद्योगिक क्षेत्र बन गया है। अतः वर्तमान समय में, महानगरीय प्रदेश में अनेक प्रकार के उद्योगों का विकास हुआ है। यहां से आस-पास के क्षेत्रों से कच्चा माल प्राप्त कर उद्योगों से तैयार माल देश तथा विदेशों के बाजार में भेजा जाता है। यहां रोजगार की भी सुविधा है और बाजार की भी है। इस प्रदेश में धन का भी अभाव नहीं है। इसलिए यह देश के महत्त्वपूर्ण औद्योगिक क्षेत्र के रूप में विकसित हुआ है।

     मुम्बई महानगर में जनसंख्या में भी तीव्र गति से वृद्धि हुई है। कहा जाता है पुर्तगाल के समय यहां लगभग दस हजार जनसंख्या थी बाद में अंग्रेजों के समय यह संख्या बढ़कर 60 हजार हो गयी। 1901 ई. यहां की आबादी 7.7 लाख थी जो बढ़कर 1951 ई. 23.2 लाख हो गयी। जनसंख्या की वृद्धि निम्न तालिका से स्पष्ट किया जा सकता है।

तालिका

वृहत् मुम्बई प्रदेश की जनसंख्या

वर्ष  जनसँख्या हजार में वृद्धि % प्रति दशक
1901 928
1911 1139 +23.8
1921 1380 +20.2
1931 1398 +1.3
1941 1801 +28.4
1951 2994 +66.2
1961 4152 +38.7
1971 5971 +43.8
1981 8243 +42.2
1991 12572 +52.5
2001 16368 +30.1
2011 18414 +30.1

       मुम्बई के आस-पास के उपनगरों की जनसंख्या में काफी वृद्धि हुई है। 1991 ई. में वृहत् मुम्बई की जनसंख्या 9910 हजार तथा 2001 ई. में 11914 हजार थी। शेष जनसंख्या इसके उपनगरों में थी। 1971 में 52% जनसंख्या नगरीय द्वीप में 28% भीतरी उपनगर में और 20% बाहरी उपनगर में थी। 1991 ई. में कुल जनसंख्या का 49% मुख्य द्वीपीय नगर में 29% भीतरी उपनगर में और 22% बाहरी उपनगर में थी। 1971 ई. में यहाँ जनसंख्या का घनत्व 13.6 हजार प्रतिवर्ग कि. मी. थी जो 1991 ई. में बढ़कर 16.4 एवं 2001 ई. 20. 3 हजार हो गयी थी। 2011 में 21000 प्रति वर्ग कि. मी. हो गयी।

     इस महाप्रदेश में लगभग 70% जनसंख्या शिक्षित है। 1981 ई. यहां प्रति 1000 पुरुष में 773 महिलायें थी जो बढ़कर 1991 ई. में 829 और 2001 में 823 हो गयी। जनसंख्या के वृद्धि के कारण यहां अनेक समस्यायें उत्पन्न हो गयी हैं। इन समस्याओं का निदान नहीं करने पर इस प्रदेश में जनसंख्या की वृद्धि अविवेक पूर्ण हो जायगी।

मुम्बई मेट्रोपोलिटन प्रदेश 3361 वर्ग कि. मी. में फैला हुआ हैं इसके उत्तर में शंसा नदी घाटी, दक्षिण में पाटल गंगा नदी, पूर्व में माठेरन पहाड़ी तथा पश्चिम में समुद्र है। यहां की जनसंख्या का 89% नगरीय है जिसमें 28 नगर और 847 गांव है। कुल मिलाकर यहां दस तहसील (तालुका) है।

      वृहत् मुम्बई में 1991 ई. में 1981 ई. की तुलना में 52.5 तथा 2001 ई. 1991 की तुलना में 30.1% जनसंख्या की वृद्धि हुई। यही वृद्धि यदि पूरे मुम्बई मेट्रोपोलिटन प्रदेश में मान ली जाय तो इस प्रदेश में जनसंख्या बहुत अधिक हो जायेगी जिसके कारण कई समस्यायें उत्पन्न होती है। जैसे-

1. मकानों की कमी तथा प्रति कमरा घनत्त्व में वृद्धि

2. औद्योगिक केन्द्रों का असमान वितरण

3. वायु एवं ध्वनि प्रदुषण में वृद्धि

4. विद्युत एवं पेयजल की आपूर्ति में कमी

5. भूमि की कीमतों में वृद्धि

6. मनोरंजन तथा खुले स्थानों की कमी

7. अभिगमनकर्त्ताओं में वृद्धि

8. हरी-पेटी के क्षेत्र में ह्रास तथा उस पर सड़क एवं मकानों का अतिक्रमण

9. नगरीय जीवन में भारी गिरावट

10. रेलवे स्टेशन, हवाई, अड्‌डा, बन्दरगाह जैसे सार्वजनिक स्थानों पर जनसंख्या का भारी जमाव

11. नगर के बाहरी क्षेत्रों में औद्योगिक केन्द्रों द्वारा भूमि का अविवेकपूर्ण अतिक्रमण

12. सामाजिक ढांचे में आपसी मेल का अभाव

13. द्रुतगामी आवागमन के साधनों में कमी

14. अपराधों में वृद्धि

15. रेल तथा सड़क दुर्घटना में वृद्धि

16. गंदी बस्तियों का विस्तार

17. पर्यावरण के संतुलन में ह्रास

     इस प्रकार मुम्बई महानगरीय प्रदेश में इन सभी समस्याओं को ध्यान में रखते हुए इस प्रदेश का नियोजन करना चाहिए अन्यथा प्रदेश का अनियंत्रित विकास होने पर समस्यायें विकराल रूप धारण कर सकती है जिसका समाधान संभव नहीं होगा। नगरीय जीवन स्तर बिगड़ता चला जायेगा। गंदी बस्तियां बढ़ती चली जायगी और आर्थिक एवं सामाजिक स्तर गिरता चला जाएगा। नगरीय सुविधाओं का असमान वितरण होगा।

     इन्हीं सभी दुष्परिणामों से बचने के लिये मुम्बई महानगरीय प्रदेश के नियोजन की आवश्यकता है जिससे इस प्रदेश का संतुलित विकास हो सके। इस कार्य के लिए कुछ नये कदम उठाने की आवश्यकता है। जिसमें निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण है।

1. बढ़ती हुई जनसंख्या के लिये नये आवास कॉलनी बनाने की आवश्यकता पर बल देना होगा।

2. औद्योगिक ईकाईयों की स्थापना प्रदेश के प्रायः सभी क्षेत्रों में करनी होगी जिससे औद्योगिक ईकाईयों के वितरण में संतुलन बना रहे। ऐसा करने से उस प्रदेश में जनसंख्या का वितरण संतुलित हो सकेगा।

3. नगर में आर्थिक क्रियाओं के विकेन्द्रीकरण की आवश्यकता है जिससे जनसंख्या का खिंचाव एक जगह केन्द्रित नहीं हो बल्कि अनेक केन्द्रों की ओर आकर्षित हो।

4. अभिगमनकर्त्ताओं (Daily Commuters) की संख्या में कमी करने के लिए आर्थिक क्रियाओं का विकेन्द्रीकरण आवश्यक है तथा अभिगमनकर्त्ताओं की संख्या में कमी लाने का भी प्रयास करना आवश्यक हो जाएगा। यह भी उद्योग एवं आर्थिक क्रियाओं के विकेन्द्रीकरण से ही संभव है।

5. नये बन्दरगाह का निर्माण किया जाना चाहिए जिससे जनसंख्या का संतुलित वितरण हो सके।

6. पूरे प्रदेश में नगर तथा नगरीय प्रदेश के बीच यातायात की सुविधा में विकास करने की आवश्यकता है।

7. प्रदेश में अनेक नये नगरों का विकास करना होगा जिससे जनसंख्या का संतुलित वितरण हो सके।

8. प्रदेश में मुम्बई की तरह अन्य नगरों का भी विकास करने की आवश्यकता है।

9. सामाजिक विषमता को दूर करने का भी प्रयास आवश्यक है।

10. कल्याण, कोलशेट, बालखून, खौपौली मीरा-ममडार आदि नगरों को औद्योगिक नगर के रूप में विकसित करना भी इस प्रदेश के नियोजन में शामिल किया जाना चाहिये।

11. नये बन्दरगाह बनाकर उसके पास नया मुम्बई नगर की स्थापना भी इस नियोजन में शामिल है क्योंकि इससे मुम्बई नगर पर बढ़ते दबाव को रोका जा सकता है।

    मुम्बई महानगरीय प्रदेश नियोजन के अंतर्गत नये मुम्बई नगर की (New, Mumbai) स्थापना की गयी है। यह नगर थाने की संकरी घाटी के पूर्वी किनारे पर बसायी गयी हैं। इसके एक ओर कोल्बा बेलपुर सड़क मार्ग है तथा दूसरी ओर आवासीय क्षेत्र विकसित किया गया है। मुम्बई से पूना जाने वाली सड़क मार्ग इस नगर के मध्य से जाता है जो थाने के संकरी खाड़ी पर बने पुल से होता हुआ गुजरता है। इस नये नगर के आवासीय क्षेत्र को कई सेक्टर में बांटा गया है। प्रत्येक सेक्टर में हर प्रकार की नगरीय सुविधायें उपलब्ध है।

      यहां तीन बड़े व्यापारिक क्षेत्र हैं- उत्तरी भाग, दक्षिणी भाग तथा मध्य भाग। हरी-पेटी के निकट पार्क बनाये गये हैं तथा खुला मैदान भी छोड़ दिया गया है जहां लोग शाम अथवा सुबह में खुली हवा का आनन्द ले सकते हैं। यहां न्हेवा-शेवा नाम का एक नया बंदरगाह विकसित किया गया है जिससे इस नये नगर को विकसित होने में मदद मिल सकेगी।

    प्रशासन से संबंधित कुछ कार्यालय को जो मुम्बई में स्थित था, उसे नये नगर में स्थानान्तरित किया गया है जिससे पुराने मुम्बई नगर पर जनसंख्या के दबाव को कम किया जा सके। यह नया नगर 5000 हेक्टयर भूमि में विकसित किया गया हैं जिसकी लम्बाई 20 कि. मी. है। इस नये नगर को मुम्बई नगर की तरह हर प्रकार की सुविधायें प्रदान की जाती हैं और भविष्य में भी ऐसी सुविधायें मिलती रहेगी जिससे अंर्त्तराष्ट्रीय स्तर पर भी यह नया मुम्बई नगर पुराने मुम्बई महानगर की तरह महत्त्वपूर्ण रह सकेगा।



नोट:

1. नगरीय क्षेत्र (Urban area):-

            नगरीय क्षेत्र का तात्पर्य उस सामूहिक अधिवासीय स्थल से है जहाँ की दो-तिहाई जनसंख्या द्वितीयक एवं तृतीयक कार्यों  में संलग्न रहती है। यहाँ पर द्वितीय एवं तृतीय कार्यों का तात्पर्य उद्योग, निर्माण, विनिर्माण, परिवहन, वाणिज्य व व्यापार एवं सेवा क्षेत्र से है।

2. ग्रामीण-नगर उपांत् (Rural-Urban Fringe):-

        “ग्रामीण-नगरीय उपान्त क्षेत्र” का शाब्दिक अर्थ है- नगरों की सीमाओं पर स्थित वह क्षेत्र जहाँ ग्रामीण एवं नगरीय भूदृश्य की विशेषताएँ देखने को मिलती है। दूसरे शब्दों में उपान्त क्षेत्र वह क्षेत्र है जो नगर और ग्रामीण बस्ती के बीच में विकसित होते हैं तथा वहाँ पर नगरीय और ग्रामीण आर्थिक-क्रियाकलाप साथ-2 चलते रहती है। इस शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग 1942 ई० में बेहरबिन महोदय ने किया था।

           ग्रामीण-नगरीय उपान्त क्षेत्र को ग्रामीण नगरीय सांतत्य शब्द से संबोधित किया जाता है। इस संकल्पना में बताया गया है कि नगर के केन्द्र में विशुद्ध रूप से नगरीय संस्कृति होती है लेकिन ज्यों-2 नगर के केन्द्र से दूर जाते हैं त्यों-2 नगरीय संस्कृति या नगरीय विशेषता में कमी आते जाती है और ग्रामीण विशेषताएँ बढ़ने लगती हैं।

              दूसरे शब्दों में ग्रामीण-नगरीय उपान्त क्षेत्र मुख्यतः दो शब्दों का संग्रह है- उसमें से एक ग्रामीण उपान्त क्षेत्र एवं दूसरा नगरीय उपान्त क्षेत्र है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि ग्रामीण- नगरीय उपान्त अतिक्रमण क्षेत्र का प्रतीक है। यह नगर के चारों ओर एक ऐसी संक्रमण पेटी का प्रतिनिधित्व करता है जो न तो पूर्णतया ग्रामीण है और न ही पूर्णतया नगरीय। इस प्रकार के संक्रमण पेटी में ग्रामीण एवं नगरीय दोनों प्रकार का वातावरण देखने को मिलता है।

3. समीपवर्ती ग्रामीण क्षेत्र (Peripheral rural area):-

         पेरिफेरल रूरल एरिया का मतलब है, “शहर के बाहर में स्थित ग्रामीण क्षेत्र” अर्थात शहरों के बाहरी इलाके में स्थित ग्रामीण इलाकों को ही समीपवर्ती ग्रामीण क्षेत्र कहते हैं।

I ‘Dr. Amar Kumar’ am working as an Assistant Professor in The Department Of Geography in PPU, Patna (Bihar) India. I want to help the students and study lovers across the world who face difficulties to gather the information and knowledge about Geography. I think my latest UNIQUE GEOGRAPHY NOTES are more useful for them and I publish all types of notes regularly.

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