35. Metrological Instruments Functions of Wind Vane, Anemometer, Barometer, Rain Gauge and Dry and Wet Bulb Thermometer
35. Metrological Instruments Functions of
Wind Vane, Anemometer,
Barometer, Rain Gauge
and Dry and Wet Bulb Thermometer
1. WIND VANE (वात् दिग्दर्शी)
WIND VANE (वात् दिग्दर्शी):-
इस यंत्र से वायु की दिशा ज्ञात की जाती है। इसे भारतीय मौसम विज्ञान संस्थान द्वारा निर्धारित 10 मीटर की ऊँचाई पर लगाया जाता है, ताकि पवन में कोई रुकावट न हो। इस यंत्र में तीन भाग होते हैं-
(1) एक भाग तीर,
(2) दूसरा भाग पूँछ तथा
(3) तीसरा भाग लम्बवत् धुरी।
वात् दिग्दर्शी दो प्रकार के होते हैं:-
(1) तीर वाला वात् दिग्दर्शी एवं
(2) कुक्कुट वाला वात् दिग्दर्शी।
धुरी एवं ऊपर के तीर या कुक्कुट की व्यवस्था इस प्रकार रहती है कि तनिक भी हवा चलने पर यह घूमने लगे। हवा चलने से यह तीर हवा की ओर इशारा करता है अर्थात् जिधर से हवा आती है, उधर उसका तीर होता है। इस यंत्र के निचले भाग में लगी छड़ में चार छड़े लगी रहती है जिन पर दिशाओं के नाम लिखे रहते है, यथा-उत्तर, पूरब, दक्षिण तथा पश्चिम।
यहाँ एक बात अधिक ध्यान देने की है कि हवा का नामकरण उसी ओर होता है जिधर से हवा आती है, जैसे- यदि हवा पश्चिम की ओर से चल रही है तो उसे पछुआ पवन कहा जायेगा। जिधर से हवा आती है, उधर तीर का नुकीला भाग होता है। जिस यंत्र में तीर के स्थान पर मुर्गा लगा रहता है, उसे वेदर कॉक (Weather Cock) या मौसम कुक्कुट कहा जाता है।
2. Anemometer (पवन वेगमापी)
Anemometer (पवन वेगमापी):-
इस यंत्र द्वारा हवा की गति ज्ञात की जाती है। इसमें चार कटोरियाँ भुजाओं द्वारा एक लम्बी छड़ी में इस तरह लगी रहती है कि वे आसानी से घूम सके। जब हवा चलती है तो ये कटोरियाँ भी घूमने लगती है। इस छड़ी के निचले भाग में एक छड़ी लगी रहती है जिसमें डायल पर चक्करों की संख्या अंकित रहती है। इसकी सहायता से वायु की गति प्रति घण्टा किलोमीटर ज्ञात कर लेते है। वात् दिग्दर्शी की तरह इस यंत्र को भी धरातल से लगभग 10 मीटर की ऊँचाई पर लगाते हैं।
3. BAROMETER (वायुदाबमापी यंत्र)
BAROMETER (वायुदाबमापी यंत्र):-
इस यंत्र द्वारा वायुदाब ज्ञात किया जाता है। ये बैरोमीटर प्रमुखतः दो प्रकार के होते हैं-
(1) पारायुक्त बैरोमीटर एवं
(2) निर्द्रव बैरोमीटर।
इसके अतिरिक्त, अब स्वतः वायुदाब लेखी (Barograph) का प्रयोग किया जाने लगा है जिनका विवरण नीचे दिया जा रहा है।
फॉर्टिन वायुदाब मापी (Fortin’s Barometer)-
फॉर्टिन बैरोमीटर की रचना फॉर्टिन महोदय ने की थी। उसी के नाम पर इसे फॉर्टिन बैरोमीटर कहा जाता है। यह पारायुक्त वायुदाब मापी है। यह साधारण वायुदाब मापी का परिष्कृत रूप है। इसमें 90 सेण्टीमीटर लम्बी एक काँच की नली होती है जिसमें पारा भरा होता है। इस नली का ऊपरी सिरा बन्द तथा निचला खुला रहता है। निचले सिरे पर नोंक बनी रहती है जो पारे में भरे पात्र में डूबी रहती है। इस बर्तन के नीचे एक चमड़े की थैली के नीचे पेंच लगा रहता है जिसको ढीला करने या कसने पर बर्तन में पारे की ऊँचाई को घटाया या बढ़ाया जा सकता है।
प्याले तथा नली में पारे की तली को बढ़ने के लिए खुली जगह होती है। मापक का शून्य बताने के लिए हाथीदाँत का नोकदार संकेतक होता है जो दाब नापते समय प्याले से भरे हुए पारे के तल को स्पर्श करता है। नली में पारे का तल पढ़ने के लिए वर्नियर कैलिपर्स मापक होता है। यह सारा यत्र धातु के एक पाइप में बन्द रहता है तथा हुकों द्वारा लकड़ी के तख्ते पर कसा रहता है। इस पूरे यंत्र को काँच के एक शोकेस में रखकर दीवाल पर टाँग दिया जाता है।
सर्वप्रथम संकेतांक की नोंक को पारे के तल पर स्पर्श कराना चाहिए। यह क्रिया नीचे लगे पेंच द्वारा होती है। यह क्रिया शून्य समायोजन (Zero Adjustment) कहलाती है। अब पारे की सतह पढ़ने के लिए वर्नियर अल्पतमांक ज्ञात करते हैं तथा वर्नियर को पारे की ऊपरी सतह से उठाकर तब तक धीरे-धीरे नीचे लाते हैं जब तक कि वह पारे के सर्वोच्च तल को न छूने लगे। मापक तथा वर्नियर दोनों की नाप जोड़ देने पर वायुदाब आ जाता है। कई बार नाप लेकर उसका मध्यमान ज्ञात कर लिया जाता है।
फॉर्टिन बैरोमीटर से वायुदाब लेते समय निम्नांकित सावधानियाँ बरतनी चाहिए-
(1) बैरोमीटर को ऊर्ध्वाधर कर लेना चाहिए।
(2) प्याले में पारे के तल को संकेतक से ठीक-ठीक स्पर्श करना चाहिए।
(3) वर्नियर मापक के निचले सिरे भी नली में पारे के उत्तल तल के उच्चतम बिन्दु से आँख को उसी ऊँचाई पर रखकर स्पर्श करना चाहिए।
बैरोमीटर (वायुदाबमापी) से निम्न बातों का ज्ञान होता है-
(1) बैरोमीटर से ऊँचाई का ज्ञान होता है-
जैसे-जैसे ऊँचाई बढ़ती जाती है, वायु का दाब कम होता जाता है फलतः बैरोमीटर को ऊँचाई पर ले जाने से उसका पारा धीरे-धीरे गिरने लगता है। समुद्र तल से 900′ ऊँचाई पर बैरोमीटर से पारे की ऊँचाई लगभग 1″ कम हो जाती है। इस प्रकार प्रत्येक 900′ चढ़ने पर ऊँचाई 1″ कम हो जाती है।
(2) बैरोमीटर से आँधी या तूफान आने का ज्ञान प्राप्त होता है-
यदि बैरोमीटर का पारा शीघ्रता से गिर रहा है तो यह आँधी या तूफान आने का संकेत करता है क्योंकि उस स्थान का दबाव कम होने के कारण बैरोमीटर का पारा एकदम नीचे गिर जाता है। चारों ओर से ऊँचे दबाव वाले स्थानों से पवनें उस स्थान की ओर बड़े वेग से चलने लगती हैं। यही पवनें तूफान व आँधी का स्वरूप धारण कर लेती है।
(3) बैरोमीटर से मौसम की स्वच्छता का ज्ञान होना-
यदि बैरोमीटर में पारा धीरे-धीरे ऊपर की ओर बढ़ने लगे तो समझ लीजिए कि मौसम साफ एवं स्वच्छ होने जा रहा है क्योंकि पारे का चढ़ना अधिक दबाव का द्योतक है। दाब बढ़ने पर वायु अन्य स्थानों को बहने लगती है।
(4) वायुमण्डल के नम होने या वर्षा होने का अनुमान किया जाता है-
जब बैरोमीटर का पारा धीरे-धीरे नीचे गिरता है तो मौसम के नम होने या वर्षा की सम्भावना की जाती है।
(5) तापमान का ज्ञान होता है-
जैसे-जैसे तापमान बढ़ता जाता है, वायु गरम होकर हल्की हो जाती है और उसका दबाव घटता जाता है जिससे बैरोमीटर में पारा नीचे गिरने लगता है।
निर्द्रव वायुदाब मापी (Aneroid Barometer)-
एनीरॉइड ग्रीक भाषा के शब्द Aneros से बना है जिसमें ‘A’ का अर्थ नहीं तथा ‘Neros’ का अर्थ द्रव से लगाया जाता है अर्थात् इसमें कोई द्रव नहीं होता है। यह धातु की एक चादर का बना घड़ी के आकार का एक डिब्बा होता है जिसकी सतह लहरदार होती है। यंत्र की हवा यंत्रों द्वारा निकाल दी जाती है। इस डिब्बे का ऊपरी भाग बहुत हल्की चादर का बना होता है जो थोड़े-से दबाव से प्रभावित होता है।
वायुदाबमापी के डिब्बे के मध्य का सम्बन्ध एक लीवर तथा कमानी द्वारा ऊपरी भाग में लगी सुई से होता है। हवा के दबाव के कारण डिब्बे का ऊपरी भाग ऊपर-नीचे होता है जो ऊपरी भाग में लगी सुई के द्वारा वायुदाब बताता है। ऊपरी भाग पर आँधी, वर्षा, परिवर्तन, बहुत शुष्क आदि चिह्न बने रहते हैं। इस प्रकार इनकी सहायता से मौसम की जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
वायुदाब लेखी (Barograph)-
यह आधुनिकतम उपकरण है जिसमें वायुदाब स्वतः अंकित होता है क्योंकि वायुदाब किसी व्यक्ति द्वारा नहीं पढ़ा जाता है अपितु ग्राफ पेपर पर स्वतः अंकित होता रहता है। इसमें एक बेलन के ऊपर ग्राफ पेपर लगा रहता है तथा इसके भीतर एक घड़ी लगी रहती है जो बेलन को घुमाती है। एक सप्ताह में बेलन एक चक्र पूरा कर लेता है।
इस प्रकार इस यंत्र द्वारा दैनिक वायुदाब सरलता से ज्ञात कर लिया जाता है। इससे आगामी मौसम के बारे में जानकारी प्राप्त करने में अधिक सहायता मिलती है।
वायुदाब का स्वरूप (Nature of Airpressure):-
वायुदाब का स्वरूप या इसकी मात्रा का रूप दो प्रकार का होता है-
(1) निम्न बायुदाब:-
निम्न वायुदाब क्षेत्र में समदाब रेखाएँ अण्डाकार या वृत्ताकार होती है। इसमें केन्द्रीय भाग में वायु का दबाव कम (Low Pressure) तथा बाहर वायुदाब अधिक होता है। इसे चक्रवात भी कहते है। ये वर्षा सूचक है क्योंकि हवाएँ बाहर से केन्द्र की ओर चलती हैं।
(2) उच्च वायुदाब:-
यह अधिक वायुदाब वाले होते हैं जिनके केन्द्रीय भाग में वायु का दबाव अधिक (High Pressure) तथा बाहर वायुदाब कम होता है। यह साफ एवं शुष्क मौसम का सूचक है। इसमें हवाएँ केन्द्र से बाहर की ओर चलती हैं। इन्हें प्रतिचक्रवात कहते हैं।
4. Rain Gauge (वर्षामापी यंत्र)
Rain Gauge (वर्षामापी यंत्र):-
साधारणतः वर्षामापी कई प्रकार के होते हैं। इस यंत्र द्वारा किसी निश्चित समय में होने वाली वर्षा की मात्रा ज्ञात की जाती है। साधारणतः यह धातु का बेलन के आकार का एक खोल होता है। इसके ऊपरी भाग में एक कीप (Funnel) लगी रहती है। इस कीप का व्यास बेलन के व्यास के बराबर होता है। वर्षा के समय इसे खुले मैदान में रख दिया जाता है जिससे धीरे-धीरे वर्षा का जल इसमें एकत्रित होता रहता है।
वर्षा समाप्त होने पर इस जल को अलग से काँच के एक बड़े बर्तन में डालते हैं जिसकी आकृति गिलास जैसी होती है, इसे नपना गिलास कहते हैं। इसमें सेण्टीमीटर या इंच के चिह्न लगे रहते हैं जिनसे वर्षा की मात्रा ज्ञात कर लेते हैं।
ज्ञातव्य है कि जब बेलन तथा कीप के व्यास बराबर होते हैं तो वर्षा की मात्रा आसानी से ज्ञात हो जाती है किन्तु यह आवश्यक नहीं है कि वे दोनों सदैव बराबर हों। नपना गिलास भी विभिन्न प्रकार के वर्षामापियों के लिए भिन्न-भिन्न होते है। यदि फनल तथा नपना गिलास का व्यास पता हो तो निम्न सूत्र द्वारा नपना गिलास में पानी की ऊँचाई ज्ञात की जा सकती है-
नपना गिलास में पानी की ऊँचाई= कीप का व्यास/नपना गिलास का व्यास
वर्षालेखी (Rainograph)-
यह स्वतः वर्षालेखी यंत्र होता है जिसमें वर्षा की मात्रा तथा अवधि दोनों का एक ग्राफ पेपर पर स्वतः आलेखन होता है। इसमें एक घूमता हुआ बेलन होता है जो 24 घण्टे में एक पूरा चक्कर कर लेता है। बेलन के चारों ओर एक ग्राफ लगा रहता है।
इस ग्राफ का सम्बन्ध लीवर द्वारा एक तैरने वाली वस्तु से होता है। लीवर में एक कलम लगी रहती है जो ग्राफ पेपर को स्पर्श करती है। जब वर्षा होती है तो जल कीप द्वारा नीचे बेलन में गिरता है जिससे लीवर में कम्पन होता है जिसका प्रभाव कलम पर पड़ता है। यह कलम ग्राफ पेपर पर आलेखन करती है।
5. Dry and Wet Bulb Thermometer (शुष्क एवं आर्द्र बल्ब तापमापी)
Dry and Wet Bulb Thermometer (शुष्क एवं आर्द्र बल्ब तापमापी):-
इस तापमापी के द्वारा तापमान तथा आर्द्रता ज्ञात की जाती है। इसमें एक बोर्ड पर दो तापमापी लगे रहते है। इनमें से एक तापमापी का बल्ब शुष्क तथा दूसरे का गीला रखा जाता है। इसे गीला रखने के लिए बल्ब पर मलमल की पतली पट्टी लिपटी रहती है जिसका एक सिरा नीचे पानी से भरे बर्तन में डूबा रहता है, शुष्क तापमापी का तापमान आर्द्र बल्ब के तापमान से सदैव अधिक रहता है। जितनी अधिक वायु शुष्क होगी, उतना ही अधिक दोनों तापमापियों के पाठ्यांकों में अन्तर होगा। किसी समय दोनों तापमापियों के अन्तर की सहायता से वायु की सापेक्षिक आर्द्रता (Relative Humidity) ज्ञात कर लेते हैं।
किसी वायु पुंज में किसी तापमान पर जितनी अधिकतम जलवाष्प समा सकती है और जितने प्रतिशत वायु में उपस्थित है, उसे सापेक्षिक आर्द्रता कहते हैं अर्थात् किसी निश्चित तापमान पर निश्चित आयतन वाली वायु की आर्द्रता शक्ति तथा उसमें उपस्थित आर्द्रता की वास्तविक मात्रा के अनुपात को सापेक्ष या सापेक्षिक आर्द्रता कहा जाता है।
उदाहरणार्थ, 70° फारेनहाइट पर आर्द्रता सामर्थ्य 8 ग्रेन है, यदि इसकी वास्तविक आर्द्रता 4.1 ग्रेन है तो सापेक्ष आर्द्रता होगी-
सापेक्ष आर्द्रता = निरपेक्ष आर्द्रता / आर्द्रता सामर्थ्य x 100
= 4.1/8×100
= 51.25%
तापमान की मापनियों का परिवर्तन-
तापमान प्रायः फारनेहाइट, सेण्टीग्रेड तथा रियूमर में ज्ञात किया जाता है। फारनेहाइट पैमाने का आविष्कार जर्मन विद्वान डेनियल फारनेहाइट ने 1714 ई. में किया था। सेण्टीग्रेड मापनी का आविष्कार स्वीडन के प्रसिद्ध खगोलज्ञ एण्डर्स सेल्सियस ने 1742 ई. में किया था। रियूमर मापनी का आविष्कार फ्रांसीसी वैज्ञानिक रियूमर ने किया था। इन इकाइयों में नापे गये तापमान को निम्नलिखित सूत्र द्वारा परिवर्तित किया जा सकता है-
F-32/180 = C/100 = R/80
या
F-32/9 = C/5 = R/4
Bahut acche se sab kuch batadiye hai thanks