4. Major Agriculture Systems in The World (विश्व में प्रचलित प्रमुख कृषि पद्धतियाँ)
4. Major Agriculture Systems in The World
(विश्व में प्रचलित प्रमुख कृषि पद्धतियाँ)
मिट्टी को जोतने-गोड़ने तथा फसल उगाने एवं पशुपालन की कार्यप्रणाली, कला एवं विज्ञान को कृषि कहते हैं। कृषि मनुष्य का सबसे महत्वपूर्ण व्यवसाय है, क्योंकि इससे समस्त संसार के भोजन, वस्त्र तथा आवास की आवश्यकताएँ पूरी होती हैं। विद्वानों का विचार है कि कृषि का आरम्भ दक्षिण-पश्चिमी एशिया में लगभग 4000 ईसा पूर्व हुआ।
कुछ विद्वानों का मत है कि मनुष्य कृषि कार्य पाषाण युग से ही करता आया है।
कृषि ने मनुष्य को स्थायी आवास की सुविधा दी। कृषि का मशीनीकरण हो जाने से उत्पादन में वृद्धि हुई और कृषि उत्पादों का अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार शुरू हो गया। आज संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, आस्ट्रेलिया तथा रूस बड़ी मात्रा में कृषि उत्पादों का निर्यात करते हैं जबकि ग्रेट ब्रिटेन, नीदरलैण्ड, डेनमार्क तथा जापान इन वस्तुओं का आयात करते हैं।
कृषि पद्धतियाँ (Agricultural Systems):-
भूतल पर विभिन्न प्रदेशों में विभिन्न प्रकार की भौतिक, आर्थिक तथा सामाजिक परिस्थितियाँ पाई जाती हैं जिस कारण अलग-अलग भागों में अलग-अलग कृषि पद्धतियाँ अपनाई जाती हैं। इनका संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है:
जीविकोपार्जी अथवा जीविका कृषि (Subsistence Agriculture):-
इस कृषि में कृषक अपनी तथा अपने परिवार के सदस्यों की उदरपूर्ति के लिए फसलें उगाता है। कृषक अपने उपभोग के लिए वे सभी फसलें पैदा करता है जिनकी उसे आवश्यकता होती है। अतः इस कृषि में फसलों का विशिष्टीकरण नहीं होता। इनमें धान, गेहूँ, दलहन तथा तिलहन सभी का समावेश होता है। विश्व में जीविकोपार्जी कृषि के दो रूप पाए जाते हैं:
(क) आदिम जीविकोपार्जी कृषि जो स्थानान्तरी कृषि के समरूप है।
(ख) गहन जीविकोपार्जी कृषि जो पूर्वी तथा मानसून एशिया में प्रचलित है।
चावल सबसे महत्वपूर्ण फसल है। कम वर्षा वाले क्षेत्रों में गेहूँ, जौ, मक्का, ज्वार, बाजरा, सोयाबीन, दालें तथा तिलहन बोये जाते हैं। यह कृषि भारत, चीन, उत्तरी कोरिया तथा म्यांमार में की जाती है। इस कृषि के महत्वपूर्ण लक्षण निम्नलिखित हैं :
(i) जोत बहुत छोटे आकार की होती हैं।
(ii) कृषि भूमि पर जनसंख्या के अधिक दबाव के कारण भूमि का गहनतम उपयोग होता है।
(iii) कृषि की गहनता इतनी है कि वर्ष में दो, तीन तथा कहीं-कहीं चार फसलें भी ली जाती हैं।
(iv) मशीनीकरण के अभाव तथा अधिक जनसंख्या के कारण मानवीय श्रम का बड़े पैमाने पर उपयोग होता है।
(v) कृषि के उपकरण बड़े साधारण तथा परम्परागत होते हैं, परन्तु पिछले कुछ वर्षों से जापान, चीन तथा उत्तरी कोरिया में मशीनों का प्रयोग भी होने लगा है।
(vi) अधिक जनसंख्या के कारण मुख्यतः खाद्य फसलें ही उगाई जाती हैं और चारे की फसलों तथा पशुओं को विशेष स्थान नहीं मिलता।
(vii) गहन कृषि के कारण मिट्टी की उर्वरता का ह्रास हो जाता है। मिट्टी की उपजाऊ शक्ति बनाए रखने के लिए हरी खाद, गोबर, कम्पोस्ट तथा रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग किया जाता है। जापान में प्रति हेक्टेअर रासायनिक उर्वरकों की खपत सर्वाधिक है।
आधुनिक कृषि (Modern Agriculture):-
इस कृषि में आधुनिक ढंग से फसलें उगाई जाती हैं। कृषि के विभिन्न कार्यों के लिए भिन्न-भिन्न मशीनों का प्रयोग किया जाता है। अधिक उपज लेने के लिए उन्नत बीज, उर्वरक, कीटनाशक दवाइयाँ तथा सिंचाई की उत्तम सुविधा का प्रयोग किया जाता है। विस्तृत कृषि, वाणिज्य कृषि, मिश्रित कृषि, डेयरी फार्मिंग उद्यान कृषि,आदि आधुनिक ढंग से की जाती है।
विस्तृत कृषि (Extensive Agriculture):-
विस्तृत कृषि एक मशीनीकृत कृषि है जिसमें खेतों का आकार बड़ा, मानवीय श्रम कम, प्रति हेक्टेअर उपज कम और प्रति व्यक्ति तथा कुल उपज अधिक होती है। यह कृषि मुख्यतः शीतोष्ण कटिबन्धीय कम जनसंख्या वाले प्रदेशों में की जाती है। इन प्रदेशों में पहले चलवासी चरवाहे पशुचारण का कार्य करते थे और बाद में यहाँ स्थायी कृषि होने लगी। इन प्रदेशों में वार्षिक वर्षा 30 से 60 सेमी होती है। जिस वर्ष वर्षा कम होती है उस वर्ष फसल को हानि पहुँचती है। यह कृषि उन्नीसवीं शताब्दी के आरम्भ में शुरू हुई।
इस कृषि का विकास कृषि-यन्त्रों तथा महाद्वीपीय रेलमार्गों के विकसित हो जाने से हुआ है। विस्तृत कृषि मुख्यतः रूस तथा यूक्रेन के स्टेपीज (Steppes), कनाडा तथा संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रेयरीज (Prairies), अर्जेण्टीना के पम्पास (Pampas of Argentina) तथा आस्ट्रेलिया के डाउन्स (Downs of Australia) में की जाती है।
विस्तृत कृषि के मुख्य लक्षण निम्नलिखित है:
(i) खेत बहुत ही बड़े आकार के होते हैं। इनका क्षेत्रफल प्रायः 240 से 1600 हेक्टेअर तक होता है।
(ii) बस्तियाँ बहुत छोटी तथा एक-दूसरे से दूर स्थित होती हैं।
(iii) खेत तैयार करने से फसल काटने तक का सारा काम मशीनों द्वारा किया जाता है। ट्रैक्टर, ड्रिल, कम्बाइन, हार्वेस्टर, थ्रेशर और विनोअर मुख्य कृषि यंत्र हैं।
(iv) मुख्य फसल गेहूँ हैं। अन्य फसलें हैं- जौ, जई, राई, फ्लैक्स तथा तिलहन।
(v) खाद्यान्नों को सुरक्षित रखने के लिए बड़े-बड़े गोदाम बनाए जाते हैं जिन्हें साइलो या एलीवेटर्स कहते हैं।
(vi) यान्त्रिक कृषि होने के कारण श्रमिकों की संख्या कम होती है।
(vii) प्रति हेक्टेअर उपज कम तथा प्रति-व्यक्ति उपज अधिक होती है।
जनसंख्या में निरन्तर वृद्धि के कारण विस्तृत कृषि का क्षेत्र घटता जा रहा है। पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्यूनस आयर्स, आस्ट्रेलिया के तटीय भागों तथा यूक्रेन जैसे घनी जनसंख्या वाले क्षेत्रों से लोग विस्तृत कृषि के क्षेत्रों में आकर बसने लगे हैं जिससे कृषि का क्षेत्र कम होता जा रहा है। इस प्रकार 19वीं शताब्दी में शुरू हुई यह कृषि अब बहुत ही सीमित क्षेत्रों में की जाती है।
वाणिज्य कृषि (Commercial Farming):-
इस कृषि में फसलों को बेचने के लिए पैदा किया जाता है। अतः उत्पादन में फसल विशिष्टीकरण इसकी मुख्य विशेषता है। विश्व में यह दो रूपों में पाई जाती है-
(i) मध्य अक्षांशों में वाणिज्य अन्न कृषि तथा
(ii) उष्ण कटिबन्ध में रोपण कृषि।
(i) मध्य अक्षांशों में वाणिज्य अन्न कृषि:-
मध्य अक्षांशों में गेहूँ के उत्पादन में विशिष्टीकरण इस कृषि का मुख्य उदाहरण है। उत्तरी अमेरिका के प्रेयरी क्षेत्र, यूक्रेन क्षेत्र, पश्चिमी यूरोप, अर्जेण्टीना, आस्ट्रेलिया के दक्षिणी भागों तथा भारत के पंजाब, हरियाणा व पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इस प्रकार की कृषि की जाती है।
इस कृषि में अधिकांश कार्य मशीनों से किया जाता है। संयुक्त राज्य अमेरिका में गेहूँ के कृषि क्षेत्रों में कृषक बाहर से आते जाते हैं। इनके लिए साइडवाक कृषक तथा सूटकेस कृषक शब्दों का प्रयोग किया जाता है। भारत में वाणिज्य कृषि बड़े पैमाने पर तो नहीं, परन्तु किसी हद तक की जाती है। यहाँ पर मशीनीकरण भी सीमित ही हुआ है।
(ii) उष्ण कटिबन्ध में रोपण कृषि:-
रोपण कृषि का विकास उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में उपनिवेश काल में यूरोपीय देशों द्वारा किया गया। इसका मुख्य उद्देश्य यूरोपीय देशों को वे कृषि उपजें उपलब्ध कराना था जो केवल उष्ण कटिबन्धीय जलवायु में ही होती हैं। अतः यह एक व्यापारिक कृषि बन गई जिसमें फसलों का विक्रय किया जाता है। भारत में असम व दार्जिलिंग तथा श्रीलंका के चाय बागान, मलेशिया के रवर बागान, ब्राजील के कॉफी बागान इस कृषि के मुख्य उदाहरण हैं।
प्रारम्भ में पूँजी निवेश उपनिवेशी देशों द्वारा किया गया था। बागानों का प्रबन्ध भी उपनिवेशी देशों के हाथों में ही था, परन्तु बड़े पैमाने पर श्रम स्थानीय मजदूरों या बाहर से लाए गए भाड़े या बन्धुआ मजदूरों द्वारा उपलब्ध कराया गया। इस कृषि में उत्पाद को भी बागान पर ही संसाधित किया जाता है। क्योंकि रोपण कृषि की उपजें मुख्यतः निर्यात के लिए ही होती हैं इसलिए इस कृषि के विकास के लिए सस्ते परिवहन का होना अति आवश्यक है। यही कारण है कि विश्व की अधिकांश रोपण कृषि तटीय भागों में विकसित हुई है या वह सस्ते परिवहन द्वारा तट से जुड़ी हुई है।
रोपण कृषि के बागान प्रायः बड़े आकार के होते हैं और कम जनसंख्या वाले क्षेत्रों में पनपते हैं। सामान्यतः इनका आकार 4 से 40 हेक्टेअर तक होता है, परन्तु कहीं-कहीं ये बागान बहुत बड़े होते हैं। उदाहरणतः लाइबेरिया में हरबल नामक स्थान पर फायस्टोन कम्पनी का रबर का बागान 54.4 हजार हेक्टेअर भूमि पर फैला हुआ है।
उपनिवेशवाद की समाप्ति पर उपनिवेश स्वतन्त्र हो गए और रोपण कृषि की विशेषताओं में परिवर्तन आ गया। उदाहरणतः बागानों का स्वामित्व तथा प्रबन्ध उपनिवेशी देशों से हटकर स्थानीय अधिकारियों के हाथों में आ गया। अब ये बागान अपनी उपजों को निर्यात करने के साथ-साथ स्थानीय बाजारों में भी बेचते हैं।
मिश्रित कृषि अथवा व्यापारिक फसल एवं पशुपालन (Mixed Farming or Commercial Crops and Livestock):-
इस कृषि में फसलें उगाने तथा पशुओं को पालने का कार्य एक साथ किया जाता है। यह मिश्रित बुआई से भिन्न है। मिश्रित बुआई में एक ही खेत में एक ही समय पर कई फसलें बोई जाती हैं जबकि मिश्रित कृषि में फसलें उगाने के साथ-साथ पशुपालन का कार्य भी किया जाता है। मिश्रित कृषि यूरोप में आयरलैण्ड से रूस तक, उत्तरी अमेरिका के पूर्वी भाग, अर्जेण्टीना के पम्पास, दक्षिण-पूर्वी आस्ट्रेलिया, दक्षिणी अफ्रीका और न्यूजीलैण्ड में की जाती है।
संयुक्त राज्य अमेरिका का मिश्रित कृषि क्षेत्र मक्के की पेटी है। मक्का खिलाकर पशुओं को मोटा किया जाता है। इसके अतिरिक्त जई, गेहूँ तथा घास भी पैदा की जाती है। अब यहाँ पर सोयाबीन की फसल भी पैदा की जाने लगी है। यह एक प्रोटीनयुक्त फसल है जिसका विस्तार दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। यह कृषि अधिकतर बड़े-बड़े नगरों के आस-पास की जाती है जिससे इसकी उपजों की बिक्री में कोई कठिनाई नहीं होती। उत्तम कृषि विधियाँ, उत्तम परिवहन, शहरी बाजार की निकटता तथा विश्वसनीय वर्षा से इस कृषि को बड़ी सहायता मिलती है।
डेरी फार्मिंग (Dairy Farming):-
डेरी फार्मिंग कृषि का वह विशिष्ट ढंग है जिसमें दूध देने वाले पशुओं के प्रजनन, पशुचारण और नस्ल सुधारने की ओर विशेष ध्यान दिया जाता है। दुधारू पशुओं, विशेषतया गायों को पाला जाता है। दूध तथा दुग्ध पदार्थ, जैसे- मक्खन, पनीर, क्रीम, संघनित दूध और पाउडर दूध इस कृषि के मुख्य उत्पाद हैं।
डेरी फार्मिंग के क्षेत्र:-
डेरी फार्मिंग यूरोप (ब्रिटेन, आयरलैण्ड, डेनमार्क, नीदरलैण्ड्स, बेल्जियम, नार्वे, स्वीडन, स्विटजरलैण्ड, फ्रांस, यूक्रेन, लाटविया, लिथुआनिया तथा एस्टोनिया), उत्तरी अमेरिका की विशाल झीलों का क्षेत्र, दक्षिण-पूर्वी आस्ट्रेलिया तथा न्यूजीलैण्ड में विकसित है।
भारत में डेरी कृषि का विकास सहकारी समितियों द्वारा किया जाता है। | गुजरात की अमूल डेयरी इसका सबसे अच्छा उदाहरण है। अधिकांश राज्यों में डेयरी विकास बोर्ड बनाए गए हैं। झांसी में चारा शोध संस्थान तथा करनाल में डेरी शोध संस्थान का भी गठन किया गया है। भारत में अधिकांश दूध गायों से नहीं बल्कि भैंसों से प्राप्त किया जाता है।
डेरी फार्मिंग की विशेषताएँ
(i) दुधारू पशुओं को पालना डेरी फार्मिंग की सबसे बड़ी विशेषता है। पशुओं के स्वास्थ्य और उनकी नस्ल पर विशेष ध्यान दिया जाता है। होलिस्टीन, रेनडेन, जर्सी, गोर्नसे तथा आयर शायर जैसी उच्चकोटि की नस्लों वाली गायें पाली जाती हैं।
(ii) पशुओं की देखभाल वैज्ञानिक तरीकों से की जाती है।
(iii) दूध दोहने और उसे संसाधित करने की क्रियाओं को मशीनों द्वारा किया जाता है।
(iv) डेरी फार्मिंग घने औद्योगिक नगरों की मांग पर आश्रित है इसलिए अधिकांश डेरी फार्मिंग शहरी क्षेत्रों के निकट ही पनपा है।
(v) दूध और दुग्ध पदार्थों को मांग के क्षेत्रों तक पहुंचाने के लिए तीव्र यातायात का प्रयोग किया जाता है।
(vi) नियोजित आवास, मशीन, चारे की मिलों, प्रशीतन तथा संचयन के लिए अधिक पूँजी की आवश्यकता होती है।
ट्रक कृषि (Truck Farming):-
यह एक विशेष प्रकार की कृषि है जिसमें साग-सब्जियों की कृषि की जाती है। इन वस्तुओं को प्रतिदिन ट्रकों में भरकर निकटवर्ती नगरीय बाजारों में ले जाकर बेचा जाता है। बाजार से कृषि क्षेत्र की दूरी इस बात पर निर्भर करती है कि ट्रक द्वारा रात-भर चलने में कितनी दूरी तय होती है। इसीलिए इस कृषि का नाम ट्रक कृषि रखा गया है।
प्रदेश- ट्रक कृषि एवं उद्यान कृषि मुख्यतः उत्तर-पश्चिमी यूरोप (ब्रिटेन, डेनमार्क, बेल्जियम, नीदरलैण्ड्स, जर्मनी और फ्रांस), संयुक्त राज्य अमेरिका (उत्तर-पूर्वी भाग, केलीफोर्निया, फ्लोरिडा प्रायद्वीप तथा पूर्वी तटीय भाग) एवं कनाडा के पूर्वी भाग में की जाती है। इन प्रदेशों के शहरी तथा औद्योगिक क्षेत्रों में ताजी सब्जियों की भारी मांग रहती है और ये वस्तुएँ इन प्रदेशों को ट्रक कृषि से ट्रकों द्वारा प्राप्त होती हैं। अतः इस कृषि का नगरीकरण से गहरा सम्बन्ध है।
भारत में वातावरण अनुकूल तथा वर्धनकाल लम्बा होने के कारण लगभग सभी भागों में सब्जियाँ उगाई जाती हैं। यहां पर अधिकांश जनसंख्या शाकाहारी है और मांस का मूल्य अधिक होने के कारण सब्जियों की मांग अधिक रहती है। इसलिए इस कृषि पर अधिक बल दिया जाता है।
विशेषताएँ- ट्रक कृषि एवं उद्यान कृषि की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
(i) ट्रक एवं उद्यान कृषि के खेत छोटे होते हैं।
(ii) परिवहन की सुविधा अच्छी रहती है।
(iii) गहन कृषि की जाती है।
(iv) सिंचाई की अच्छी व्यवस्था होती है।
(v) खादों का प्रयोग बड़ी मात्रा में किया जाता है।
(vi) अधिकांश कार्य हाथों से किया जाता है।
(vii) पेड़ों तथा पौधों को बीमारियों से बचाने के लिए दवाइयों का प्रयोग बड़ी मात्रा में किया जाता है।
उद्यान कृषि (Horticulture):-
यह लगभग ट्रक कृषि जैसी ही है, अन्तर केवल इतना है कि इसमें साग-सब्जी के स्थान पर फलों तथा फूलों की कृषि की जाती है। फलों और फूलों की मांग नगरों में बहुत होती है।
फल-
नगरीय क्षेत्रों में फलों की मांग बहुत होती है जिससे कृषक को पर्याप्त आय हो जाती है। विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार के फल उगाए जाते हैं। उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में केला, आम, जामुन, नारियल, काजू, आदि। शीतोष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में सेब, आडू, अखरोट, नाशपाती एवं रसबेरी, आदि तथा भूमध्यसागरीय देशों में खट्टे फल, जैसे- सन्तरा, मौसमी, नीबू, आदि मुख्य फल हैं।
फूल-
फलों की भांति फूलों की भी नगरीय क्षेत्रों में काफी मांग रहती है और फूलों की बिक्री से कृषक को काफी धन प्राप्त होता है। फूलों का अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार भी होता है। जार्जिया तथा आर्मीनिया में पैदा किए गए गुलाब के फूल मास्को तथा रूस के अन्य नगरों में भेजे जाते हैं।
शीत ऋतु में इथोपिया प्याज के फूलों का निर्यात यूरोपीय देशों को करता है। नीदरलैण्ड्स में ट्यूलिप की कृषि विशेष रूप से की जाती है। यहाँ से इनका निर्यात वायुयानों द्वारा यूरोप तथा अमेरिका के बड़े-बड़े नगरों को किया जाता है। भारत में गुलाब तथा गेंदे के फूल अधिक पैदा किए जाते हैं।
अजमेर के निकट पुष्कर घाटी गुलाब की कृषि के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है। दिल्ली के आस-पास के क्षेत्रों में भी फूलों की खेती की जाती है। कश्मीर घाटी में विभिन्न प्रकार के फूल उगाए जाते हैं। यहाँ कटेवा भूमि पर केसर की खेती होती है। कन्नौज, जौनपुर तथा लखनऊ में फूलों पर आधारित सुगन्धित तेल बनाए जाते हैं।
प्रश्न प्रारूप
विश्व में प्रचलित प्रमुख कृषि पद्धतियों (Agriculture Systems) का वर्णन करें।