15. जेट स्ट्रीम / Jet Sream
15. जेट स्ट्रीम / Jet Sream
जेट स्ट्रीम
ऊपरी वायुमण्डल में अर्थात क्षोभमंडल के ऊपर तथा समताप मंडल के नीचे क्षैतिज एवं तीव्र गति से चलने वाले वायु को जेट स्ट्रीम कहते हैं। यह हवा प्रायः 9-18 km की ऊँचाई के बीच चलती है। इस जेटस्ट्रीम की खोज द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अमेरिकी सैनिकों ने किया था। कालान्तर में स्वीडिश वैज्ञानिक रॉक्सबी (स्वेडेन) ने इसका व्यापक अध्ययन किया। इसलिए उनके नाम पर इसे रॉक्सबी तरंग भी कहते हैं।
जेट स्ट्रीम हमारे वायुमण्डल का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। इसे मौसम वैज्ञानिकों ने “मौसम का नियंत्रणकर्ता” बताया है। यह मानसून की उत्पत्ति तथा भारत में आने वाला बाढ़ एवं सुखाड़ का भी वैज्ञानिक विश्लेषण करता है।
प्रारंभ में जेट स्ट्रीम की उत्पत्ति के विषय में मतभेद थे। कुछ वैज्ञानिकों ने इसकी उत्पत्ति की व्याख्या हेडली शेल के माध्यम से किया है।
वर्तमान समय में सेटेलाइट के अध्ययन से भी स्पष्ट हो चुका है कि इसकी उत्पत्ति की व्याख्या हेडली सेल के माध्यम से किया जा सकता है। अर्थात यह कहा जाता है कि जेट स्ट्रीम की उत्पत्ति का मूल कारण निम्न वायुमण्डल की तापीय विशेषता है। वस्तुतः जब निम्न वायुमण्डल के वायु जब ऊपरी वायुमण्डल में पहुँचते हैं तो ठण्डी एवं भारी होकर क्षैतिज अवस्था में चलने लगते हैं। इसी क्षैतिज वायु को जेट स्ट्रीम कहते हैं। जेट स्ट्रीम कहने का मुख्य कारण इसमें जेट जैसी आवाज उत्पन्न होती है। वस्तुतः मौसम वैज्ञानिकों ने चार प्रकार के जेटस्ट्रीय बताया है:-
(1) ध्रुवीय रात्री जेट वायु
(2) ध्रुवीय सीमाग्र जेट वायु
(3) उपोष्ण जेट वायु
(4) उष्ण पूर्वी जेट वायु
(1) ध्रुवीय जेट वायु-
ध्रुवीय रात्री जेट वायु 60° अक्षांश के आगे दोनों गोलार्द्धों में चला करती है। उत्तरी गोलार्द्ध में इसे आर्कटिक जेट हवा एवं दक्षिणी गोलार्द्ध में अण्टार्कटिक जेट हवा कहते हैं। यह पश्चिम से पूरब दिशा की ओर चलती है। यह जेट हवा पूरे विश्व में ध्रुवीय क्षेत्र में चलती है। इसकी उत्पत्ति का आधार उपध्रुवीय निम्न वायुदाब से कोरिऑलिस प्रभाव के कारण ऊपर उठती हुई हवा है।
कुछ ऊँचाई के बाद तापीय ह्रास के कारण पुनः यह वायु ऊपर नहीं जा पाती और क्षैतिज रूप ग्रहण कर लेती है। इसकी क्षैतिज दिशा मुख्यतः ध्रुवीय ऊपरी भाग में होती है। क्योंकि ध्रुवों के ठीक ऊपर निम्न वायुदाब बना होता है। जाड़े के दिनों में ध्रुवीय प्रदेश में रात की अवधि काफी लम्बी (छ: महीने) होती है। रात में यह वायु अति तीव्र गति से प्रवाहित होती है। इसलिए इसे ध्रुवीय रात्रि जेट हवा कहते हैं।
(2) ध्रुवीय सीमाग्र जेट हवा-
45°-65° अक्षांश के बीच केवल उत्तरी गोलार्द्ध में चलने वाली जेट हवा है। इसकी दिशा भी पश्चिम-पूरब की ओर होती है। यह भी उपरोक्त अक्षांश के बीच पूरे भूमण्डल पर चलती है। ध्रुवीय सीमाग्र जेट वायु की उत्पत्ति निम्न वायुमण्डल के उस क्षेत्र में होती है जहाँ ध्रुवीय एवं पछुआ हवा मिलकर सीमाग्र का निर्माण करते हैं।
सीमाग्र निर्माण में ध्रुवीय वायु में बैठने की प्रवृत्ति होती है जबकि पछुवा वायु तुलनात्मक दृष्टि से गर्म होने के कारण ऊपर की ओर उठने की प्रवृति रखती है। ऐसी स्थिति में 9-18 Km. की ऊँचाई के बीच वायुप्रवणता का विकास होता है और इस प्रवणता के अनुसार जब गर्म प्रदेश की वायु ठण्डे प्रदेश की ओर चलने लगती है तो उसे “ध्रुवीय सीमाग्र जेट हवा” कहा जाता है।
(3) उपोष्ण जेट हवा-
उपोष्ण जेट हवा 20°-35° अक्षांश के बीच मुख्यतः उतरी गोलार्द्ध में चलती है। यह पश्चिम से पूरब की ओर प्रवाहित होती है। यह भी एक विश्वस्तरीय हवा है। इसकी उत्पत्ति का कारण विषुवतीय प्रदेश की वह गर्म वायु है जो सूर्य के तापीय प्रभाव कारण वायु गर्म होकर ऊपरी वायुमण्डल तक पहुँचता है, ऊपरी वायुमण्डल में जब तापीय कमी आती है तो यह क्षैतिज रूप से उत्तरी एवं दक्षिणी गोलार्द्ध में चलने लगती है।
लेकिन, धीरे-2 कोरिआलिस प्रभाव में वृद्धि होने के कारण पश्चिम से पूरब दिशा की ओर चलने लगती है। ऊपरी वायुमण्डल की यही हवा 30°-35° अक्षांश में बैठकर धरातल पर HP का निर्माण करती है।
(4) उष्ण पूर्वी जेट वायु-
यह एक स्थानीय जेट हवा है जो 8°- 35° अक्षांश के बीच सिर्फ उतरी गोलार्द्ध में चलती है। यह जेट हवा दक्षिण एशिया, द०-पूर्वी एशिया, अरब सागर, बंगाल की खाड़ी, उ०पूर्वी अफ्रीका के ऊपर ग्रीष्म ऋतु में चलती है। यह जेट हवा स्थलाकृतिक विषमताओं के कारण उत्पन्न होती है। जैसे:- मार्च महीने से ही तिब्बत का पठार तीव्र गति से गर्म होने लगता है और उसके सम्पर्क में आने वाला वालु गर्म होकर ऊपर उठने लगती है।
ऊपरी वायुमंडल में यही हवा तापीय ह्रास के कारण ठण्डी एवं भारी होने लगती है और पुन: क्षैतिज रूप से उत्तर एवं दक्षिण दिशा में चलने लगती है। लेकिन दक्षिण की ओर आने वाली क्षैतिज हवा फेरल के नियमानुसार प्रारंभ में उ०-पू० से द०-प० की ओर चलने लगती है और बाद में धीरे-धीरे पूर्णत: पूरब से प० दिशा में प्रवाहित होने लगती है, इसीलिए इसे ही उष्ण पूर्वी जेट हवा कहते हैं।
निष्कर्ष:-
इस तरह ऊपर के तथ्यों से स्पष्ट है कि प्रथम तीन जेट, वायु विश्वस्तरीय जेट हवा है जबकि अंतिम स्थानीय जेट हवा का उदाहरण है। कोटेश्वरम महोदय ने बताया कि अंतिम दो जेट वायु का संबंध मानसून की उत्पत्ति से है। उष्ण पूर्वी जेट हवा के कारण दक्षिण-पश्चिमी मानसून की उत्पत्ति होती है जबकि उपोष्ण जेट हवा के कारण लौटती हुई मानसून की उत्पत्ति होती है। मौसम वैज्ञानिकों का यह मानना है कि, जेट स्ट्रीम का अभी पूर्ण अध्ययन किया जाना शेष है। इसके अध्ययन से जलवायु विज्ञान की कई जटिल समस्याएँ समाधान होने की संभावना है।
- 1. थार्नथ्वेट का जलवायु वर्गीकरण / Climatic Classification Of Thornthwaite
- 2. कोपेन का जलवायु वर्गीकरण /Koppens’ Climatic Classification
- 3. कोपेन और थार्न्थवेट के जलवायु वर्गीकरण का तुलनात्मक अध्ययन
- 4. हवाएँ /Winds
- 5. जलचक्र / HYDROLOGIC CYCLE
- 6. वर्षण / Precipitation
- 7. बादल / Clouds
- 8. भूमंडलीय उष्मण के कारण एवं परिणाम /Cause and Effect of Global Warming
- 9. वायुराशि / AIRMASS
- 10. चक्रवात और उष्णकटिबंधीय चक्रवात /CYCLONE AND TROPICAL CYCLONE
- 11. शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात / TEMPERATE CYCLONE
- 12. उष्ण एवं शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों का तुलनात्मक अध्ययन
- 13. वायुमंडलीय तापमान / ENVIRONMENTAL TEMPERATURE
- 14. ऊष्मा बजट/ HEAT BUDGET
- 15. तापीय विलोमता / THERMAL INVERSION
- 16. वायुमंडल का संघठन/ COMPOSITION OF THE ATMOSPHERE
- 17. वायुमंडल की संरचना / Structure of The Atmosphere
- 18. जेट स्ट्रीम / JET STREAM
- 19. आर्द्रता / HUMIDITY
- 20. विश्व की प्रमुख वायुदाब पेटियाँ / MAJOR PRESSURE BELTS OF THE WORLD
- 21. जलवायु परिवर्तन के विभिन्न प्रमाण
- 22. वाताग्र किसे कहते है? / वाताग्रों का वर्गीकरण
- 23. एलनिनो (El Nino) एवं ला निना (La Nina) क्या है?
- 24. वायुमण्डलीय सामान्य संचार प्रणाली के एक-कोशिकीय एवं त्रि-कोशिकीय मॉडल
- 25. सूर्यातप (Insolation)