6. Intensity of Cropping (फसल गहनता / शस्य गहनता / फसल तीव्रता)
6. Intensity of Cropping
(फसल गहनता / शस्य गहनता / फसल तीव्रता)
शस्य गहनता का अर्थ यह है कि एक खेत में एक वर्ष में कितनी बार फसलें ली जाती है। शस्य गहनता भूमि उपयोग की गहनता को व्यक्त करता है। शस्य गहनता का सूचकांक जितना अधिक होगा, भूमि उपयोग की क्षमता भी उतनी अधिक होगी।
भारत का शस्य गहनता सूचकांक 136% (2021 में) है।
खाद्यान्नों के उत्पादन को बढ़ाने के दो उपाय है-
(i) कृषि योग्य भूमि का विस्तार कर और
(ⅱ) फसल गहनता में वृद्धि कर।
भारत के संदर्भ में अब, कृषि योग्य भूमि का विस्तार किसी सीमा तक ही बढ़ाया जा सकता है, उसके बाद नहीं। अतः खाद्यान्नों के उत्पादन में वृद्धि करने के लिए शस्य गहनता में वृद्धि एक मात्र विकल्प नजर आता है।
शस्य गहनता कुल बोया गया क्षेत्र तथा कुल कृषि योग्य भूमि का अनुपात होता है। इसे प्रतिशत (%) में व्यक्त किया जाता है। भूगोलवेत्ता डॉ. ब्रजभूषण सिंह ने फसल गहनता निकालने के लिए 1979 ईo में निम्न सूत्र विकसित किया है-
शस्य गहनता = कुल बोया गया क्षेत्र/ कुल कृषि योग्य भूमि X 100
उदाहरण के लिए माना कि किसी किसान के पास 10 हेक्टेयर कृषि भूमि है। उसने खरीफ के मौसम में पूरे 10 हेक्टेयर क्षेत्र पर फसलें बो दी और खरीफ की फसल काटने के बाद उसने पुनः 6 हेक्टेयर भूमि पर रबी की फसलें बो दीं। इसका अर्थ यह हुआ कि उसने 10+6 = 16 हेक्टेयर भूमि से फसलें ली, हालांकि उसके पास कुल भूमि 10 हेक्टेयर ही है। इस उदाहरण में शस्य गहनता 160% हुई।
शस्य गहनता = 16 /10 ×100
= 160%
इस प्रकार, शस्य गहनता भूमि उपयोग की गहनता/क्षमता/दक्षता को व्यक्त करता है। शस्य गहनता का सूचकांक जितना अधिक होगा, भूमि उपयोग की क्षमता भी उतनी ही अधिक होगी।
शस्य गहनता को प्रभावित करने वाले कारक
(1) सिंचाई
(2) उर्वक
(3) शीघ्र पकने वाली तथा उन्नत बीज (HYV)
(4) कृषि का यंत्रीकरण
(5) कीटनाशक दवाएँ
(6) मृदा की उर्वरता
(7) कृषि पद्धति
(8) जलवायु
(9) संस्थागत एवं संस्चनात्मक सुविधाओं का विकास
शस्य गहनाता का वितरण
सम्पूर्ण भारत में औसत शस्य गहनता सूचकांक 135% है। यह विभिन्न प्रदेशों में भिन्न-भिन्न है जिससे विभिन्न क्षेत्रों में भूमि की उपयोगिता तथा खाद्यान्नों के उत्पादन का अनुमान लगाया जा सकता है। शस्य गहनता का सूचकांक एक बार से अधिक बोये गये क्षेत्र के विस्तार पर निर्भर करता है। जितना एक बार से अधिक बोया गया क्षेत्र विस्तृत होगा, उतना ही शस्य गहनता का सूचकांक भी अधिक होगा। जिन क्षेत्रों में शस्य गहनता का सूचकांक अधिक होगा, वहाँ पर खाद्यान्नों का उत्पादन भी अधिक होगा।
भारत में शस्य गहनता का वितरण | |||
गहनता का वर्ग | गहनता का % | क्षेत्र | कारण |
अति न्यून गहनता | 10 % से कम | प० राजस्थान, लद्दाख, वृष्टि छाया प्रदेश | मरुस्थलीय भाग, पहाड़, कम वर्षा |
न्यून गहनता | 10-30 % | उ०-पू० भारत, सिक्किम, कुमायूं हिमालय | पर्वतीय स्थिति |
मध्यम गहनता | 30-70% | मध्यवर्ती भारत, प्रायद्वीपीय भारत के 50-100 cm वर्षा वाला क्षेत्र | पठारीय स्थिति |
अधिक गहनता | 70-130 % | हरित क्रांति एवं कमांड एरिया वाले क्षेत्र | हरित क्रांति, संरचनात्मक एवं संस्थागत सुविधा का विकास |
अत्यधिक गहनता | 130 % से अधिक | पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, महानगरों के चारों ओर | हरित क्रांति, महानगरीय सुविधा |
स्रोत: कृषि संगणना वर्ष (2005-06)
फसल गहनता बढ़ाने के उपाय
(1) सिंचाई का विकास
(2) HYV
(3) उर्वरक तथा कीटनाशक का प्रयोग
(4) कृषि का यंत्रीकरण
(5) फसल चक्र
(6) वैज्ञानिक कृषि पद्धति
(7) इन्द्रधनुषी क्रांति
(8) पशु और फसलों का संयोजन
इत्यादि आधारभूत संरचना एवं संस्थागत सुविधाओं का विस्तार कर फसल गहनता बढ़ायी जा सकती है।
निष्कर्ष:
उपर्युक्त तथ्यों से स्पष्ट होता है कि भारत में फसल गहनता में काफी विषमता देखी जाती है। अतः निम्न फसल गहनता वाले क्षेत्रों में ऊपर बताये गये उपायों को लागू कर फसल गहनता बढ़ायी जा सकती है।