7. Environmental Pollution and Degradation (पर्यावरण प्रदूषण एवं अवनयन)
7. Environmental Pollution and Degradation
(पर्यावरण प्रदूषण एवं अवनयन)
विश्व की तीन प्रमुख समस्याएँ हैं जिन्हें Three-P के नाम से सम्बोधित किया जाता है वो है- Population (जनसंख्या), Poverty (गरीबी) और Pollution (प्रदूषण)।
इनमें Pollution वर्तमान युग की सबसे विकट समस्या है जो मानवीय अस्तित्व को भी खतरे में डाल सकती है। प्रदूषण से आशय विशेष दूषण या दोष से है। दूषण = दोष। ‘प्र’ उपसर्ग है जो प्रखरता के लिये प्रयुक्त किया जाता है।
हवा, पानी व मिट्टी सभी अपने आप में निसर्ग की ओर से शुद्ध व ग्रहण करने योग्य है और जीवन के संवाहक है। जब इनमें कोई पदार्थ इस सीमा तक मिल जाता है कि उसके नैसर्गिक गुणों का ह्रास होने लगता है, ये सभी तत्व अपनी प्राकृतिक अवस्था में रंगहीन, गन्धहीन, स्वादहीन होते हैं।
परन्तु जब इनमें कोई रंग, गन्ध, स्वाद जुड़ जाता है जिससे उसके भौतिक, रासायनिक और जैविक गुण बदल जाते हैं और इन विजातीय पदार्थों की वजह से वह अपनी प्राकृतिक गुणवत्ता को छोड़ देते हैं। इससे जीवों को क्षति होने लगती है तो यह मानवीय स्वास्थ्य, सम्पत्ति और कार्यक्षमता कुप्रभावित करती है अथवा जीव-जन्तुओं और वनस्पतियों तथा पर्यावरण के घटकों पर कुप्रभाव पड़ता है तो उसे प्रदूषण के अन्तर्गत लिया जायेगा।
अथवा जब पर्यावरणीय संसाधनों में नकारात्मक परिवर्तन अथवा ह्रास होने लगता है तो इसको प्रदूषण के अन्तर्गत माना जाता है। संक्षेप में किसी भी तथ्य की अधिकता और न्यूनता जो कार्यक्षमता को कुप्रभावित करती है, प्रदूषण के अन्तर्गत आती है।
पर्यावरण अवनयन से आशय:-
पर्यावरणीय प्रदूषण के प्रति निकट पर्यावरणीय अवनयन शब्द है। अतः इसे भी समझना अनिवार्य है। पर्यावरण अवनयन से अभिप्राय जैव मंडल के पारिस्थितिक तत्वों की विभिन्न प्रक्रियाओं में अवरोध उत्पन्न हो जाना है। प्राकृतिक चक्रों में बाधाएँ पड़ने लगती हैं और नैसर्गिक सन्तुलन बिगड़ने लगता है। साथ ही प्रजातियों का विलुप्तीकरण बढ़ जाता है।
“पृथ्वी के उपग्रहीय तंत्र में अनगिनत प्रक्रियाओं एवं सक्रियताओं के सन्तुलन में दीर्घकालीन आसंजन को पर्यावरणीय अवनयन तथा प्रदूषण के रूप में जाना जाता है जिसकी सार्थकता जैविक, वातावरणीय जलीय एवं रासायनिक (लियो) चक्रों को इंगित करती है।”
इस प्रकार, संक्षेप में लिख सकते हैं कि पर्यावरण अवनयन मानवीय एवं प्राकृतिक क्रियाओं से जो प्रदूषक (Pollutant) उत्पन्न होते हैं उनका आधिक्य प्रदूषण निर्मित करता है जिससे पारिस्थितिक तंत्र और प्राकृतिक चक्रों में बाधा पड़ती है, इसे पर्यावरण अवनयन कहते हैं। प्रदूषण की प्राथमिक अवस्था पर्यावरण अवनयन है।
अमेरीकी राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी के अनुसार- “प्रदूषण जल, वायु या भूमि के भौतिक, रासायनिक या जैविक गुणों में होने वाला कोई भी अवांछनीय परिवर्तन है जिससे मनुष्य अन्य जीवों, औद्योगिक प्रक्रियाओं या सांस्कृतिक तत्वों तथा प्राकृतिक संसाधनों को कोई हानि हो या होने की आशंका हो।”
प्रदूषण वृद्धि का कारण मनुष्य द्वारा वस्तुओं के प्रयोग करने के बाद फेंक देने की प्रवृत्ति और मनुष्य की बढ़ती जनसंख्या के कारण आवश्यकताओं में वृद्धि है। अर्थात् कहा जा सकता है कि “प्रकृति के अवयवों में कोई भी विजातीय पदार्थ का मिलना जो जीव सम्पदा को क्षति पहुँचाए, प्रदूषण के अन्तर्गत आते हैं अर्थात् पर्यावरण में प्रदूषकों की अत्यधिक वृद्धि जो सहनीय क्षमता से अधिक हो प्रदूषण कहा है। संयुक्त राष्ट्रसंघ के पर्यावरण सम्मेलन में संसाधनों को हानि पहुँचाने वाले पदार्थों को प्रदूषण के अन्तर्गत माना है।”
प्रदूषण वायु, जल और स्थल की भौतिक, रासायनिक और जैविक विशेषताओं का अवांछनीय परिवर्तन है, जो मनुष्य और उसके लिए नुकसानदायक है। दूसरे जन्तुओं, पौधों, औद्योगिक संस्थानों एवं कच्चे माल आदि को किसी भी रूप में हानि पहुँचाता है। अवांछित तत्वों की मौजूदगी पर्यावरण प्रदूषण कहलाती है।
इन्हीं तत्वों को ई. पी. ओडम (E.P. Odam) के अनुसार– “हवा, जल और मृदा के भौतिक रासायनिक, जैविक गुणों के ऐसे अवांछनीय परिणामों से जिससे मनुष्य स्वयं को तथा सम्पूर्ण परिवेश प्राकृतिक, जैविक और सांस्कृतिक तत्वों को हानि पहुँचाता है, प्रदूषण कहते हैं।
दूसरी परिभाषा के अनुसार उस दशा या स्थिति को प्रदूषण कहते हैं जब मानव द्वारा पर्यावरण में विभिन्न तत्वों और ऊर्जा का इस सीमा तक सान्द्रण हो जाये कि पारिस्थितिक तंत्र द्वारा आत्मसात करने की क्षमता से अधिक हो तो इसे प्रदूषण कहा जाता है।
“नि:संदेह पारिस्थितिक तंत्र स्वंय शुद्धीकरण की क्षमता से अलंकृत है। जब स्वयं शुद्धीकरण की इस प्राकृतिक क्षमता में ह्रास होता है तो इसे प्रदूषण कहते हैं।”
एम. वाल्टर के अनुसार, “प्रदूषण पर्यावरण में पायी जाने वाली अवांछित अपद्रव्यताएँ (Unwanted impurifiers) हैं। इन्हें प्रकृति स्वतः शुद्धि नहीं कर पाती है इसीलिए यह प्रदूषण के अन्तर्गत आती हैं।”
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