19. Definition and Scope of social geography (सामाजिक भूगोल की परिभाषा तथा विषय क्षेत्र)
19. Definition and Scope of social geography
(सामाजिक भूगोल की परिभाषा तथा विषय क्षेत्र)
प्रश्न प्रारूप
Q. सामाजिक भूगोल को परिभाषित कीजिए तथा इसका विषय क्षेत्र बताइए।
उत्तर- सामाजिक भूगोल मानव भूगोल की महत्वपूर्ण शाखा है। मानव एक सामाजिक प्राणी है, अतः समाज में घटित होने वाली समस्त घटनाओं का अध्ययन मानव भूगोल की इस शाखा में होता है। समाज में रहकर मानव विभिन्न क्रिया-कलाप करता है। इन क्रिया-कलापों के लिए कुछ कारक भी उत्तरदायी होते हैं। समाज में पाए जाने वाले विभिन्न सामाजिक वर्गों एवं सामाजिक विभिन्नताओं में अन्तर पाया जाता है, अतः सामाजिक भूगोल में इस अन्तर के कारणों का भी अध्ययन किया जाता है।
हैरीसन के अनुसार, “सामाजिक भूगोल समाज का इसके पर्यावरण के सम्बन्ध में एक क्रमिक व्यवहार नहीं था, अपितु सामाजिक भिन्नताओं का एक उत्पत्तिजनक विवरण था क्योंकि वे अन्य कारकों से एवं पृथ्वी सतह के क्षेत्रों में भिन्नताओं से सम्बन्धित हैं।”
डेरियल फोर्ड ने इसमें आदिम समाज का वर्णन बताया है जबकि ग्रिफिथ टेलर ने इसमें विकसित समाज के सामाजिक एवं सांस्कृतिक तथ्य सम्मिलित करने पर बल दिया है।
विषय क्षेत्र-
सामाजिक भूगोलवेत्ताओं का अध्ययन क्षेत्र केवल भाव वाचक मानव नहीं है तथा न ही जैविक मानव है, किन्तु आदमी, औरतें, बच्चे हैं जो सामाजिक समूहों के सदस्य हैं। इस प्रकार मनुष्य जाति (Mankind) को विभिन्न छोटे व्यक्तिगत समूहों में बांटा जा सकता है तथा सामाजिक भूगोल वेत्ताओं का दायित्व है कि वे उनके जीवन का अध्ययन करें।
सामाजिक भूगोल में मानव समाज के तथ्य- आवास, विविध स्वरूप, सामाजिक तत्व व तंत्र, राजनीतिक भूगोल, पारितंत्र, विकसित व विकासशील परिवेश प्रारूप तथा उसका मानव पर प्रभाव, मानव के आचार-विचार, आदतें व अर्थतंत्र एवं सामंजस्य जैसे तत्व सम्मिलित हैं। इसमें यह अध्ययन किया जाता है कि पृथ्वी पर बसे हुए लोगों के सामाजिक वर्गों एवं सामाजिक विभिन्नताओं में अन्तर क्यों है? अर्थात् मानव समुदायों, सामाजिक संगठन, परिवार प्रणाली, श्रम विभाजन, रीति-रिवाज एवं सामाजिक प्रथाओं, समुदायों का अध्ययन इसमें किया जाता है।
प्रो. वाटसन के अनुसार यदि भूगोल पृथ्वी के नक्षत्र का विज्ञान है, या पारिस्थितिकी का विज्ञान है अथवा वस्तु वितरण का विज्ञान है तो इसके सामाजिक सामंजस्यों का अध्ययन करने के लिए ऐसी सामाजिक शक्तियों का अध्ययन करना आवश्यक होगा जिनके परिणामस्वरूप उस क्षेत्र विशेष के सामाजिक प्रतिमान उत्पन्न होते हैं। ऐसा अध्ययन करने वाला विज्ञान सामाजिक भूगोल है।
अब व्यक्तिगत प्रोत्साहन (Individual Motivation) पर अधिक आनुभविक कार्य किया जा रहा है। उदाहरणार्थ स्थानान्तरण के सम्बन्ध में अनेक विस्तृत प्रोत्साहन अध्ययन किए जा रहे हैं जिससे यह पता चले कि प्राचीन एवं वर्तमान स्थानान्तरण में क्या सम्बन्ध है तथा परिवर्तन हुआ है। व्यवहार तथा सामाजिक भूगोल के सम्बन्ध में बहुत कम अध्ययन किया गया है। यह दृढ़ विश्वास किया जाता रहा है कि पर्यावरणीय अथवा आर्थिक क्षेत्र में सामान्यीकरण की व्याख्या को छोड़ दिया गया है।
किर्क तथा अन्य ने 1963 में स्पष्ट किया कि मानव तथ्य पर्यावरण (Phenomenal environment) के विरुद्ध व्यावहारिक पर्यावरण में निवास करते हैं तथा कार्य करते हैं। व्यवहार उन प्रत्युत्तरों एवं मूल्यों से प्रत्यक्षतः जुड़ा हुआ है जो सामाजिक रूप से प्राप्त होते हैं।
मानव को विशिष्ट संस्कृति का सदस्य मानकर अध्ययन किया जाता है। अतः इसका विस्तृत अध्ययन सामाजिक भूगोल का क्षेत्र है। डेरियल फोर्ड ने सामाजिक भूगोल में केवल आदिम समाज का वर्णन बताया है जबकि ग्रिफिथ टेलर का विचार है कि इसमें विकसित समाज के सामाजिक एवं सांस्कृतिक तथ्य सम्मिलित किए जाने चाहिए।
वर्तमान समय में सामाजिक भूगोल में मानव समाज की बढ़ती समस्याओं के प्रति चेतना बढ़ती जा रही है। इसी सन्दर्भ में मानव समाज के कल्याण की संकल्पना (Concept of social well being) के अन्तर्गत आने वाले समस्त मानवीय प्रयासों का अध्ययन सामाजिक भूगोल के अन्तर्गत किया जाने लगा है।