7. Crop Pattern (कृषि प्रतिरूप / फसल प्रतिरूप / शस्यन प्रतिरूप)
7. Crop Pattern
(कृषि प्रतिरूप / फसल प्रतिरूप / शस्यन प्रतिरूप)
प्रश्न प्रारूप
Q.1 फसल प्रतिरूप से आप क्या समझते है?
Q.2 फसल प्रतिरूप को प्रभावित करने वाले कारक;
Q.3 फसल प्रतिरूप का वितरण, महत्व तथा मूल्यांकन एवं सुझाव।
फसल प्रतिरूप क्या है?
फसल प्रतिरूप का तात्पर्य किसी निश्चित समय में विभिन्न फसलों के अन्तर्गत प्रयोग किये जाने वाले भूमि से है। प्रत्येक वर्ष सरकार इस प्रकार का आंकड़ा प्रस्तुत करती है, जिसमें यह बताया जाता है कि किस फसल के अन्तर्गत कितना भूमि का उपयोग किया गया है।
कृषि प्रतिरूप एक गत्यात्मक संकल्पना है जो समय तथा स्थान के संदर्भ में परिवर्तन होता रहता है। किसी भी भौगोलिक प्रदेश के फसल प्रतिरूप कई कारकों के द्वारा प्रभावित होता है जिनमें भौगोलिक कारक, सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक कारक महत्वपूर्ण है।
भौगोलिक कारकों के अन्तर्गत धरातल की विशेषता जैसे- पर्वत, पठार और मैदान, जलवायु से संबंधित कारक मृदा और जल की उपलब्धता को शामिल करते हैं। जहाँ पर भौगोलिक कारक प्रतिकूल होते हैं वहाँ पर विभिन्न फसलों के अन्तर्गत प्रयुक्त किये जाने वाले भूमि का क्षेत्रफल कम होता है। लेकिन, जहाँ पर भौगोलिक परिस्थितियाँ अनुकूल होती है, वहाँ फसल प्रतिरूप का स्तर ऊँचा होता है।
भौगोलिक विविधता, फसल प्रतिरूप को कैसे प्रभावित करती है, इसे उदाहरण से समझा जा सकता है। जैसे- राजस्थान में कम वर्षा वाला क्षेत्र के किसान अधिकतर भूमि का प्रयोग बाजरा की खेती में करते हैं जबकि असम के ब्रह्मपुत्र घाटी में अधिकतर भूमि का प्रयोग चावल कृषि के अन्तर्गत किया जाता है।
भौगोलिक कारकों के अलावे कई सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक कारक भी फसल प्रतिरूप को प्रभावित करते है। भूमि स्वामित्व, भूमि काश्तकारी, जोत का आकार, चकबंदी कृषि विकास के लिए चलाये जा रहे कार्यक्रम इत्यादि जैसे कारक प्रमुख मानवीय कारक है। छोटे भूमि रखने वाला किसान खेती के लिए श्रम वाले फसल का चयन करते हैं, वहीं बड़े जोत रखने वाले किसान गहन पूंजी पर आधारित फसलों की प्रधानता देते हैं।
वर्तमान समय में मानव के द्वारा किया जा रहा तकनीकी विकास भौतिक सीमाओं में सुधार लाकर फसल प्रतिरूप में परिवर्तन ला रहा है जैसे- पंजाब, हरियाणा, उ० राजस्थान में चावल की कृषि संभव नहीं है लेकिन यहाँ के किसानों ने सिंचाई साधनों का विकास कर अधिकाधिक उर्वरकों का प्रयोग कर चावल की कृषि करने लगे हैं। जिसके कारण उस क्षेत्र का कृषि प्रतिरूप लगातार परिवर्तित होता जा रहा है।
कृषि प्रतिरूप का आकलन आपेक्षिक उपज सूचकांक तथा आपेक्षिक विस्तार के आधार पर ज्ञात किया जाता है। आपेक्षिक उपज सूचकांक और आपेक्षिक उपज विस्तार निम्न सूत्र से ज्ञात करते हैं:-
(1) आपेक्षिक सूचकांक = क्षेत्रीय इकाई क्षेत्रफल में किसी फसल का औसत उपज / कुल क्षेत्रफल का औसत उपज X 100
(2) आपेक्षिक विस्तार सूचकांक = किसी विशिष्ट फसल के अंतर्गत प्रयुक्त भूमि का क्षेत्रफल (% के रूप में) / कुल फसल के अंतर्गत प्रयुक्त भूमिका क्षेत्रफल X 100
भारतीय कृषि वैज्ञानिकों ने संपूर्ण भारत को चार फसल प्रतिरूप में विभक्त किया है:-
(1) अधिक उपज अधिक विस्तार वाला क्षेत्र, जैसे- धान एवं गेहूँ का फसल प्रतिरूप।
(2) अधिक उपज निम्न विस्तार का क्षेत्र,जैसे- फल एवं सब्जी कृषि फसल प्रतिरूप।
(3) निम्न उपज अधिक विस्तार का क्षेत्र, जैसे- मोटे अनाज फसल प्रतिरूप।
(4) निम्न उपज निम्न विस्तार का क्षेत्र, जैसे- दहलन तथा तेलहन फसल प्रतिरूप।
उपरोक्त वर्गीकरण से स्पष्ट है कि भारत में विविध फसल प्रतिरूप का विकास हुआ है। कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि ऊपर बताया गया फसल प्रतिरूप कोई दीर्घकालिक वर्गीकरण नहीं है बल्कि समय तथा स्थान के संदर्भ में परिवर्तित होता रहा है।
फसल प्रतिरूप का महत्व
फसल प्रतिरूप संकल्पना का अध्ययन कृषि अर्थव्यवस्था के विकास हेतु महत्वपूर्ण है। इसके अध्ययन से किस फसल के अंतर्गत कितना भूमिका उपयोग होता है, इसके संबंध में जानकारी प्राप्त कर कितना संस्थागत तथा संरचनात्मक कारकों का निवेश किया जा सकता है। इसका आकलन किया जा सकता है। इसके अलावे किस भौगोलिक क्षेत्र में किस फसल को प्राथमिकता दी जाय? इसका निर्धारण किया जा सकता है।
फसल प्रतिरूप के अध्ययन से ही यह ज्ञात हुआ है कि भारत के 72% योग्य भूमि पर खाद्यान्न फसलों की खेती होती है उसमें भी धान तथा गेहूँ की महत्ता अधिक है। भारत में जीवन निर्वाह फसलों की खेती अधिक होती है। यहाँ का किसान आधुनिक तकनीक तथा पूंजी का निवेश कम करता है। इसका मूल्यांकन हम आपेक्षिक विस्तार सूचकांक के माध्यम से ज्ञात करते हैं।
अत: भारत में अधिक उपज देने वाले फसल-प्रतिरूप को बढ़ावा देने हेतु ज्यादा से ज्यादा संस्थागत एवं संरचनात्मक कारकों के पुनर्निवेशन को बढ़ावा देना होगा। फसल चक्र पर आधारित कृषि कार्य को महत्ता प्रदान करनी होगी।