2. Cotton Textile Industry (सूती वस्त्र उद्योग)
Cotton Textile Industry
(सूती वस्त्र उद्योग)
प्रश्न प्रारूप
Q1. सूती वस्त्र उद्योग की समस्या की चर्चा करे।
Q2. भारत में सूती वस्त्र उद्योग के स्थानीयकरण तथा वर्तमान गतिविधियों की चर्चा करे।
Q3. भारत में सूती वस्त्र के स्थानीयकरण हेतु कारकों का विश्लेषण कीजिए तथा इस उद्योग में अभिनव प्रवृतियों को बताएँ।
Q4. सूती वस्त्र उद्योग के स्थानीयकरण हेतु कारकों की विवेचना कीजिए तथा इसके वितरण प्रतिरूप का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर- सूती वस्त्र उद्योग भारत का सबसे पुराना उद्योग है। यह भारत का सबसे बड़ा उद्योग है। यह भारत का सबसे बड़ा रुग्ण उद्योग भी है। भारत में सर्वाधिक कर्मचारी इसी उद्योग में संलग्न है। भारत कभी विश्व का सबसे बड़ा सूती वस्त्र उत्पादक देश हुआ करता था। लेकिन, इंगलैण्ड में हुए औद्योगिक क्रांति के कारण भारतीय सूती वस्त्र उद्योग को प्रायोजित तरीके से पीछे कर दिया गया।
विकास / वृद्धि
सूती वस्त्र उद्योग यद्यपि भारत का सबसे प्राचीन उद्योग है। फिर इसका आधुनिक कारखाना 1818 ई० में कलकता के ‘फोर्ट ग्लोस्टर’ नामक स्थान पर लगाया गया था। लेकिन कच्चे माल के अभाव में असफल रहा। पुनः सफल सूती वस्त्र का कारखाना 1850 ई० में कलकत्ता में स्थापित किया गया। इस सफल प्रयास के बाद इस उद्योग का विकास सतत् जारी है।
1905 ई० तक भारत में 206 सूती वस्त्र के मील स्थापित हो चुके थे। 1958ई० तक भारत में मीलों की संख्या 1767 पहुंच गयी थी। वर्तमान समय में इसकी संख्या बढ़कर 2000 से भी अधिक हो चुकी है।
स्थानीयकरण
बेवर ने अपने न्यूनतम परिवहन लागत सिद्धांत में बताया कि सूती वस्त्र उद्योग शुद्ध कच्चा माल पर आधारित एक ऐसा उद्योग है जिसमें हम जितना कच्चा माल लगाते है उतने ही मात्रा में शुद्ध उत्पाद प्राप्त करते है। ऐसे उद्योगों को समभार उद्योग कहा जा सकता है। इस प्रकार के उद्योगों का स्थानीकरण कच्चे माल वाले क्षेत्रों में, बाजार में या दोनों स्थानों पर हो सकता है। जैसे- मुम्बई के आसपास इस उद्योग का विकास बड़े पैमाने पर हुआ है क्योंकि महाराष्ट्र के काली मिट्टी की भूमि पर बड़े पैमाने पर कपास की खेती होती है।
पुनः इस उद्योग का स्थानीयकरण कोलकाता के आस-पास हुआ है जबकि पूरे पश्चिम बंगाल में कपास की खेती कहीं नहीं की जाती है। अतः कलकत्ता के आस-पास सूती वस्त्र उद्योग विकास बाजार के कारण हुआ है।
विकास के विभिन्न चरण या नवीन प्रवृति या वितरण
भारत उष्ण एवं उपोष्ण जलवायु वाला देश है। इसलिए सम्पूर्ण भारत में सदैव सूती वस्त्र की माँग होती रही है। प्रारंभ में इसके विकास में केन्द्रीयकरण की प्रवृति थी। कालान्तर में यह विकेन्द्रीकृत उद्योग बना। केन्द्रीयकरण से विकेन्द्रीकृत उद्योग बनने में काफी लम्बा समय लगा है। इस समय को चार चरण में बाँटकर अध्ययन किया जा सकता है:-
प्रथम चरण:-
प्रथम चरण में सूती वस्त्र उद्योग का विकास केवल मुम्बई महानगर में हुआ। यहाँ पर इस उद्योग के स्थानीयकरण के चार कारक महत्त्वपूर्ण थे। जैसे-
(1) मुम्बई भारत का सबसे बड़ा बंदरगाह रहा है।
- कपास निर्यात करने के लिए यहाँ लाये जाते थे।
- कपास के व्यापारी मुम्बई में ही रहा करते थे। उनके पास पूँजी और तकनीक पहले से मौजूद थी।
- पुनः मुम्बई की आर्द्र जलवालु सूती वस्त्र उद्योग के लिए उपयुक्त वातावरण उपलब्ध कराती थी।
यही कारण था कि मुम्बई द्वीप पर सूटी वस्त्र उद्योग का प्रथम विकास हुआ।
(2) चीन में विकसित हो रहे सूती वस्त्र उद्योग में धागा आपूर्ति करने का कार्य ब्रिटिश कंपनियाँ किया करती थी। जब ब्रिटिश कंपनियाँ चीन को पर्याप्त मात्रा में धागा आपूर्ति करने में असफल होने लगी तो उन्होंने भारतीय व्यापारियों के इस क्षेत्र में पूंजी निवेश के लिए प्रोत्साहित किया।
(3) मुम्बई महानगर में वाणिज्यिक ऊर्जा की कमी थी लेकिन द० अफ्रीका से आयातित कोयला पर मुम्बई के पास तापीय विद्युत केन्द्र की स्थापना की गई तो सुचारू रूप से विद्युत की आपूर्ति होने लगी।
(4) सस्ते श्रमिक और आन्तरिक बाजार की उपलब्धता भी यहाँ पर इस उद्योग के विकास में सहायक रहा।
ऊपर वर्णित कारकों के कारण 19वीं सदी के अन्त तक मुम्बई द्वीप पर करीब 40 कारखाने विकसित हो चुके थे। इसे “भारत का मैनचेस्टर” या “कपास की महानगरी” भी कहा जाने लगा। स्वेज नहर के पूरब में सूती वस्त्र उत्पादन करने वाला यह सबसे बड़ा केन्द्र बन गया।
दूसरा चरण:-
1900-23 ईo के मध्य लगे सूती वस्त्र उद्योग को इस चरण में शामिल करते हैं। इस चरण में उद्योगों का विकास मुम्बई के बाहरी क्षेत्रों में हुआ क्योंकि मुम्बई महानगर में लगातार जमीन का मूल्य बढ़ता जा रहा था। श्रमिक संगठनों का विकास बड़े पैमाने पर हो चुका था। मलीन बस्तियाँ विकसित होने लगी थी। अतः निवेशकों ने मुम्बई के बाहरी क्षेत्रों में पूँजी निवेश का कार्य प्रारंभ किया। इस चरण में स्थानीयकरण की दो प्रवृति थी- प्रथम मुम्बई के ही बाहरी क्षेत्रों में सूती वस्त्र के कारखाने लगाये गये।
पुनः सूती वस्त्र कारखाना लगाने हेतु मुम्बई के आप-पास के नगरों का चयन किया जहाँ मुम्बई के समान सभी परिस्थितियाँ अनुकूल थी। जैसे- इस चरण में कल्याण, थाणे, पुणे, नासिक, सूरत, बड़ोदरा तथा अहमदाबाद जैसे नगरों में सूती वस्त्र उद्योग का तेजी से विकास हुआ क्योंकि ये सभी केन्द्र अरब सागर के निकट थे जिसके कारण नम जलवायु उपलब्ध थी। बड़ौदरा, सूरत बंदरगाह थे। “टाटा हाइड्रल प्रोजेक्ट” के द्वारा विद्युत की आपूर्ति सुनिश्चित हो चुकी थी। मुम्बई के ही समान सस्ते श्रमिक तथा बाजार उपलब्ध थे।
तीसार चरण:-
1923 से 1947 ई० के बीच लगे उद्योगों को इस चरण में शामिल करते हैं। इस चरण में सूती वस्त्र उद्योग का विकास दक्कन के लावा के पठारी क्षेत्र तथा मध्यवर्ती पठार पर हुआ। दक्कन के पठार पर पोरबन्दर, राजकोट, सुरेन्द्रनगर (सूरत), भूसावल, अहमदनगर, नागपुर, कोल्हापुर, सोलापुर, गुलवर्गा प्रमुख केन्द्र के रूप में थे। इन केन्द्रों में इस उद्योग का विकास कपास की खेती, सस्ते श्रमिक तथा बाजार की उपलब्धता के कारण हुआ।
भारत के उ० मध्यवर्ती पठारी क्षेत्र में इस उद्योग का विकास इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर, भोपाल, इटारसी, भिलवाड़ा, अजमेर, जयपुर, जोधपुर तथा बीकानेर में हुआ। इन क्षेत्रों में सूती वस्त्र उद्योग का विकास कई कारणों के चलते हुआ। जैसे-
(1) इन क्षेत्रों में कई बड़े देशी रियासत रहा करते थे। इन रियासतों ने इस उद्योग में रुचि लिया। ब्रिटिश कंपनियों ने भी देशी रजबाड़ों को इस क्षेत्र में आमंत्रित किया। देशी रजबाड़ों ने ब्रिटिश कंपनियों को भूमि दिया तो दूसरी ओर ब्रिटिश कंपनियों ने बड़े पैमाने पर पूंजी तथा तकनीक का निवेश किया। इसके अलावे मैदानी भारत का बाजार, सस्ते श्रमिक उपलब्धता और कपास की खेती ने भी इस उद्योग को आकर्षित किया।
इसी चरण में कानपुर, आगरा, दिल्ली, हैदराबाद, बंगलोर, विशाखापतन तथा कलकता भी सूती वस्त्र केन्द्र के रूप में उभरे क्योंकि यहाँ की सभी भौगोलिक परिस्थितियाँ अनुकूल थी तथा सस्ते श्रमिक और बाजार उपलब्ध थे।
आजादी के बाद भारत में सूती वस्त्र उद्योग
चौथा चरण:-
आजादी के बाद विकसित हुए सूती वस्त्र उद्योगों को इसमें शामिल करते हैं। इस चरण में सूती वस्त्र उद्योग का विकास चार क्षेत्रों में हुआ-
(i) उ०-प० भारत-
इसमें पंजाब तथा हरियाणा को शामिल करते हैं। सिंचाई की सुविधा उपलब्ध होने के कारण इन क्षेत्रों में कपास की खेती प्रारंभ की गई। कपास की स्थानीय उपलब्धता के करण जालंधर, लुधियाना, अम्बाला, चंडीगढ़ अमृतसर तथा गंगानगर जिला सूती वस्त्र उद्योग केन्द्र के रूप में उभरे।
(ii) UP तथा बिहार-
यहाँ पर सस्ते श्रमिक तथा बाजार की उपलब्धता के कारण इस उद्योग का विकास हुआ। UP में मेरठ, गाजियाबाद, सहारनपुर, मोदीनगर, मुरादाबाद, वाराणसी, मिर्जापुर जैसे नगर में और बिहार में गया, डुमराँव, भागलपुर, मुजफ्फरपुर, पटना इत्यादि में विकसित हुआ। इस क्षेत्रों में सस्ते श्रमिक तथा बाजार उपलब्ध होने के कारण इस उद्योग कर विकास हुआ था।
(iii) पूर्वी भारत-
बाजार की सुविधा, सस्ते श्रमिक, आयात-निर्यात की सुविधा तथा हुगली औद्योगिक प्रदेश में विकसित संरचनात्मक सुविधाओं के कारण इस उद्योग का यहाँ विकास हुआ। यहाँ इस उद्योग के मुख्य केन्द्र कोलकाता, हावड़ा, मानिकपुर, नैहाटी, चन्दन नगर, सियारामपुर, दीमापुर, इम्फाल, गुवाहाटी तथा कटक थे।
(iv) द० भारत-
यहाँ सस्ते जल विद्युत की अपलब्धता तथा कपास की खेती किए जाने के कारण इस उद्योग का विकास हुआ। विजयवाड़ा, बेलगाँव मैसूर, काँचीपुरम्, मदुरई, तिरुचिरापल्ली, पाण्डिचेरी तथा तिरुअनन्तपुरम जैसे नगरों में इस उद्योग का विकास हुआ। कोयम्बटूर को “दक्षिण भारत का मैनचेस्टर” भी कहा जाने लगा। भारत में सर्वाधिक सूती वस्त्र का मील तमिलनाडु राज्य में ही स्थित है।
उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि भारत में सूती वस्त्र उद्योग का अभूतपूर्व विकेन्द्रीकरण हुआ है। भारत के प्रमुख सूती वस्त्र केन्द्रों को नीचे मानचित्र में देखा जा सकता है।
भारत में सूती वस्त्र का उत्पादन तीन क्षेत्रों में किया जाता है:-
(1) मील
(2) पावरलूम
(3) हथकरघा / चरखा
इन तीनों क्षेत्रों में होने वाला उत्पादन को नीचे के तालिका में देखा जा सकता है:-
क्षेत्र | भारत के कुल उत्पादन का प्रतिशत | 2005-06 में (लाख वर्ग मी० में उत्पादन) |
मील | 3.3% | 1656 |
पावरलूम | 82.8% | 41044 |
हथकरघा | 12.3% | 6108 |
अन्य | 1.6% | 769 |
कुल | 100% | 49577 |
नीचे के तालिका में सूत उत्पादन को प्रदर्शित किया जा रहा है:-
वर्ष | सूत का उत्पादन हजार टन में |
1950-51 | 835 |
1960-61 | 1075 |
1970-71 | 1050 |
1980-81 | 1400 |
1990-91 | 1430 |
2000-01 | 1600 |
2010-11 | 1820 |
भारत में सूती वस्त्र उत्पादन करने वाला राज्यों का क्रम इस प्रकार से हैं-
(1) महाराष्ट्र- 39%
(2) गुजरात- 35%
(3) तमिलनाडु- 6.4%
(4) पंजाब- 6%
समस्या तथा संभावना
सूती वस्त्र उद्योग कई समस्याओं का सामना कर रही है। जैसे-
(1) कच्चे माल की समस्या-
भारत में बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण वस्त्र की माँग लगातार बढ़ती ही जा रही है। बढ़ती हुई मांग को देश पूरा नहीं कर पा रहा है जिसके कारण कपास का मूल्य लगागर बढ़ता ही जा रहा है। फलतः भारत को अन्य देशों से कपास आयात करना पड़ता है।
भारत के पास कपास उत्पादन हेतु विस्तृत काली मिट्टी का क्षेत्र उपलब्ध है। अतः सिंचाई सुविधाओं का विकास कर कपास का उत्पादन बढ़ाया जा सकता है। उत्पादन को बढ़ाकर आयात पर से निर्भरता कम की जा सकती है।
(2) पुराने मशीन-
भारत में अधिकांश वस्त्र का उत्पादन पूराने मशीनों से किया जाता है। जबकि USA, चीन, मिस्र, जैसे आधुनिक तकनीक का प्रयोग कर सूती का उत्पादन करते हैं जिसके कारण भारतीय सूती वस्त्र उद्योग अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में पिछड़ता जा रहा है। लेकिन, नई औद्योगिक नीति की घोषणा से यह उम्मीद जगी है कि भारत में नवीन विदेशी तकनीक आगमन होगा।
(3) अनियमित विद्युत की आपूर्ति-
देश में लगातार ऊर्जा की मांग बढ़ती जा रही है। माँग के अनुरूप विद्युत की आपूर्ति न होने के कारण कोई भी कारखाना निर्बाध्य रूप से नहीं चल पाता है। लेकिन, आने वाले समय में परमाणु ऊर्जा, जल विद्युत ऊर्जा इत्यादि के विकास से इस समस्या से निजात मिल सकेगा।
(4) हड़ताल तथा तालाबंदी-
सूती वस्त्र उद्योग से जुड़े हुए श्रमिक संगठन काफी मजबूत है। ये संगठन अपने मांगों को लेकर हड़ताल करते हैं। अगर उनकी मांग पूरी नहीं हुई तो कंपनी में ताला लटका देते हैं, जिसके कारण उत्पादन में कमी आती है।
हालांकि न्यापालिका के हस्तक्षेप से और सरकार के बीच-बचाव से इस समस्या में लगातार कमी आ रही है।
(5) कृत्रिम रेशे के साथ प्रतिस्पर्द्धा-
देश की गरीब जनता कृत्रिम रेसे से बने वस्त्र का उपयोग करते हैं जो अधिक टिकाऊ, सस्ता तथा आकर्षक होता है जबकि सूती वस्त्र कम टिकाऊ तथा महंगा होता है।
(6) घाटे में चल रही मील-
भारत में सबसे ज्यादा सूती वस्त्र मील तमिलनाडु में है। लेकिन, तमिलनाडू भारत का मात्र 6.4% ही सूती वस्त्र का उत्पादन करता है। उत्तर भारत में खाद्यान्न फसल की खेती कपास उपजाने वाले भूमि पर की जाने लगी, जिसके कारण कच्चे माल की कमी हो गई। फलतः अधिकांश उत्तर भारत के सूती वस्त्र उद्योग बन्द हो गए। पुनः अधिक आयात शुल्क होने के कारण उसका आयात भी संभव नहीं था। लेकिन नवीन औद्योगिक नीति के कारण इसमें सुधार आने की संभावना है।
निष्कर्ष:
ऊपर के तथ्यों से स्पष्ट है कि भारत के सूती वस्त्र उद्योग कई समस्याओं का सामना कर रही है। फिर भी, यह भारत का सबसे बड़ा उद्योग है, इस उद्योग में सबसे अधिक लोगों को रोजगार मिला हुआ है।
यह भारत का पूर्ण रूप से विकेन्द्रित उद्योग है। भारत के पास देशी एवं विदेशी बाजार उपलब्ध है। अतः कहा जा सकता है कि भारत में सूती वस्त्र उद्योग का भविष्य काफी उज्ज्वल है।