36. Concept of Space in Geography (भूगोल में स्थान की विचारधारा)
Concept of Space in Geography
(भूगोल में स्थान की विचारधारा)
प्रश्न प्रारूप
Q. स्थानिक या क्षेत्रीय विज्ञान के रूप में भूगोल की व्याख्या कीजिए।
(Explain Geography as a Spatial or Regional Science.)
अथवा, भूगोल में स्थान की विचारधारा की विवेचना करें।
(Discuss the Concept of Space in Geography.)
उत्तर- भूगोल में क्षेत्र या स्थान (Space) और क्षेत्रीय संकल्पना (Spatial Concept) का केन्द्रीय स्थान है। क्षेत्र ठोस, तरल एवं गैसीय पदार्थों की ऐसी विलक्षण इकाई है जहाँ मानव एवं प्रकृति की क्रियाएँ घटित होती हैं। सामान्य भाषा में क्षेत्र से तात्पर्य भू-तल के किसी बिन्दु विशेष से क्षितिज तक वृत्ताकार आकृति में दिखाई देने वाले क्षेत्र से है। क्षितिज व आकाश मिलकर इसे सीमाबद्ध करते हैं।
भूगोल में प्रयुक्त क्षेत्र शब्द व्यापक अर्थ रखता है। यह लघु या विस्तृत भी हो सकता है। यह भू-तल, वायुमण्डल, भूगर्भ या सागर में कहीं पर हो सकता है। यह आवश्यक नहीं कि वह सदैव क्षितिज तक ही फैला हो। भूगोल क्षेत्रों की विशेषतओं का ही अध्ययन करता है।
भूगोल में क्षेत्र (Space) की व्याख्या (Explanation of Space in Geography):-
भूगोल में अध्ययन किए जाने वाले क्षेत्र या स्थान (Space) का अर्थ ‘गृहीत स्थान’ (Occupied Space) से लिया जाता है। क्षेत्रों का सीधा सम्बन्ध भू-तल की ग्लोबीय स्थिति से होता है। यह दिशा, दूरी, विस्तार, व्यापकता या विरलता से प्रभावी रहा है। क्षेत्र विशेष के लक्षणों पर किसी काल विशेष या गतिशिल प्रक्रिया का भी परिणामी प्रभाव बना रहता है।
अमेरिकन विद्वान प्रेस्टन जेम्स का मत है कि “भूगोलवेत्ता एक ऐसा व्यक्ति होता है जो अवस्थिति, दूरी, दिशा, प्रसार व स्थानिक अनुक्रम के महत्त्व के बारे में प्रश्न पूछता है। वह सह-सामाजिकता, नवाचार, प्रसार घनत्व तथा सापेक्षिक स्थिति से जुड़ी अन्य समस्याओं का समाना करता है।”
अरस्तू ने ‘वस्तुओं के अस्तित्व हेतु तार्किक दशा’ को क्षेत्र या स्थान कहा है (Space is the logical condition for existence of things)।
सर आइजक न्यूटन के अनुसार सभी स्थानिक संकल्पनाएँ मानव के चिन्तन से उद्भव होती हैं।
भूगोल में हम जिन स्थानों का अध्ययन करते हैं वे विभेदशील (variable), गतिशील (dynamic) तथा परिवर्तनशील (changing) होने के कारण जटिल रूप से सम्बन्धित होते हैं। यदि स्थानों के मध्य पाये जाने वाले सम्बन्धों को प्रभावित करने वाली सभी घटनाएँ या कारक तत्व स्वतंत्र बने रहते तो सम्भवतः भूगोल मात्र स्थानों का वर्णनात्मक ज्ञान कोष ही बन कर रह जाता।
वर्तमान में यह मान लिया गया है कि जटिल घटनाओं एवं तथ्यों के मध्य भी अन्तर्सम्बन्ध मिलता है। यह मान लिया है कि जटिल घटनाओं एवं तथ्यों के मध्य भी अन्तर्सम्बन्ध मिलता है और विभिन्न स्थानों की ऐसी घटनाओं के मध्य सम्बद्धता है। स्थानों के मध्य अन्तर व विभिन्नता की सीमा के स्तर से क्षेत्रों का निर्माण होता है। भौगोलिक स्थान के स्थिति निर्धारण हेतु जटिल घटनाओं के स्तरीय अन्तर तथा विविध प्रकार की सूचनाओं की सहायता ली जाती है।
जर्मन विद्वान काण्ट का मत है कि एक स्वतंत्र विषय के रूप में भूगोल का अस्तित्व स्थान (Space) से जुड़ा है। अंग्रेजी शब्द स्पेश या क्षेत्र (Space) का अर्थ है खाली जगह (empty place)। इसका तात्पर्य क्षेत्रीय आयाम (areal dimension) से लिया जाता है। यह भूखण्ड या क्षेत्र का बोध कराता है।
डेविड हार्वे का मत है कि भूगोल का सम्पूर्ण दर्शन एवं व्यवहार ऐसी संकल्पनात्मक परिसीमाओं के विकास पर निर्भर करता है जिसमें वस्तुओं एवं घटनाओं के क्षेत्र में वितरण का लेखा-जोखा किया जा सके।
वस्तुतः क्षेत्र (Space) एक भौतिक शास्त्रीय संकल्पना है। काण्ट के अनुसार क्षेत्र के अन्तर्गत द्रव्यों (Substances) के मध्य सम्बन्ध की व्यवस्था को शामिल किया जाता है तथा क्षेत्रीय विस्तार द्रव्यों द्वारा निःसृत सक्रिय शक्तियों की गहनता का मापन मात्र है।
काण्ट ने स्थान (Space) की अवधारणा को साक्ष्य कहा जिसमें वस्तुओं के मध्य संबंधों की व्यवस्था है।
हार्टशोर्न एवं हेटनर क्षेत्र को निरपेक्ष (absolute) माना। हार्टशोर्न के अनुसार, “क्षेत्र स्वयं कोई लक्षण (तत्व) नहीं है, यह तत्वों की बौद्धिक परिसीमा है; एक अमूर्त्त संकल्पना जिसका वास्तविक नहीं है। उसकी एक तत्व के रूप में अन्य तत्वों से न तुलना की जा सकती है, न ही साहचर्य मूलक संकल्पनाओं की व्यवस्था में वर्गीकृत किया जा सकता है जिससे इसके अन्य तत्वों से सम्बन्ध परक नियम बनाए जा सकें। क्षेत्र स्वयं अपने आन्तरिक तत्त्वों से मात्र इस अर्थ में जुड़ा है कि यह उन तत्वों को अमुक अमुक स्थलों पर समाहित करता है।”
कार्ल साँवर का मत है कि “भूगोल का उत्तरदायित्व क्षेत्रीय अध्ययन है, क्योंकि विद्यालय का प्रत्येक छात्र यह जानता है कि भूगोल विभिन्न देशों के सम्बन्ध में सूचना देता है, किसी अन्य विषय ने क्षेत्रीय अध्ययन (Spatial study) का दावा नहीं किया है।”
विल्हेलम फाल्ज लिखता है, “भूगोल का उद्देश्य एवं अद्वितीय महत्त्व यह है कि उससे हमें पृथ्वी के धरातल का ज्ञान होता है।”
फ्रोबेल पेशेल तथा जरलैंड ने भूगोल को पृथ्वी का विज्ञान (Science of the Earth- Erdkunde) बताया है। भूगोल के अन्तर्गत विविध प्रकार के भौतिक एवं मानवीय तत्वों का अध्ययन क्षेत्रीय परिप्रेक्ष्य में ही किया जाता है। किसी वस्तु का धरातल पर वितरण कहाँ-कहाँ और क्यों है? इसकी व्याख्या भूगोल के माध्यम से की जा सकती है। भूगोल अपनी मूल प्रकृति के अनुसार भू-तल से विलग (isolate) नहीं हो सकता। इसलिये भूगोल को भू-तल का क्षेत्र-विश्लेषण करने वाला विज्ञान मानना चाहिये। पृथ्वी तल भूगोल का मौलिक आधार है।
अतः, महाद्वीप, देश, प्रदेश, क्षेत्र, जिला, ग्राम आदि इकाइयों का मूलाधार भूगोल ही है जो भूतल के किसी न किसी अंश को व्यक्त करते हैं। प्रदेश किसी न किसी भौतिक व सांस्कृतिक तत्व के वितरण को ग्रहण किए हुए होता है। वीडाल-डी-ला-ब्लाश का मत है कि “मनुष्य के लिए किसी क्षेत्र की समस्त परिस्थितियों की समष्टि सर्वोपरि होती है।” महान् खोज यात्राओं के युग के आरंभ में क्षेत्रीय विभिन्नताओं से संबंधित सामाजिक दशाओं के दृश्य ने भूगोलवेत्ताओं का ध्यान आकृष्ट किया है।
ब्लाश ने लिखा है कि “एक देश की विशिष्ट प्रकृति की अभिव्यक्ति उसके पर्वतों, मरुस्थलों तथा नदियों की अपेक्षा उसके निवासियों, उनकी बस्तियों तथा मानव जनसंख्या के भौतिक तत्व से कहीं अधिक होती है।”
विश्व के सम्पूर्ण ज्ञान के लिए क्षेत्रीय विधि (Regional Method) को भूगोल में महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है। भूगोल की क्षेत्रीय विधि विश्व का सम्पूर्ण, शुद्ध तथा क्रमबद्ध ज्ञान प्रदान करके मानव उत्सुकता को संतुष्ट करने में समर्थ है। जिस प्रकार इतिहास काल (Time) का अतीत (Past) के संदर्भ अध्ययन करता है, उसी प्रकार भूगोल घटनाओं या तत्वों के स्थानों के संदर्भ में अध्ययन करता है।
विश्व के प्रत्यक्ष ज्ञान के प्रसार से सम्बन्धित मानव शिक्षा में भूगोल के महत्व को किसी प्रकार कम नहीं आंकना चाहिए, परन्तु भूगोल को संसार का अध्ययन संकुचित क्षेत्रों के संदर्भ में ही करना चाहिए, जिनमें वस्तुओं में पारस्परिक घनिष्ठ सम्बन्ध हों। क्या भूगोलवेत्ता ही क्षेत्रीय ज्ञान की प्राप्ति के लिए सर्वाधिक उपयुक्त व्यक्ति होता है? निश्चय ही यह सत्य है कि अनेक गैर-भूगोलवेत्ता क्षेत्रीय ज्ञान में योगदान देने के इच्छुक रहते हैं।
राल्फ ब्राउन द्वारा यू० एस० ए० के अटलांटिक तट का 1810 में किया गया अध्ययन इस बात का साक्षी है कि विश्व में केवल व्यावसायिक भूगोलवेत्ता ही इसके लिए समर्थ नहीं हैं। परन्तु, गैर-भूगोलवेत्ता या विद्वानों द्वारा एकत्रित सामग्री की विश्वसनीयता की जाँच यदि क्षेत्रीय अध्ययन के रूप में कर ली जाय तो भौगोलिक ज्ञान का महत्व और भी बढ़ जाता है। भूगोल में ऐसी तमाम सामग्री समाविष्ट कर ली गई है जो प्राचीन अन्वेषकों, यात्रियों व साहित्यकारों ने दी है। हेटनर का मत है कि यदि भूगोलवेत्ता और गैर-भूगोलवेत्ता दोनों एक साथ क्षेत्र का वर्णन करें तो भूगोल तथा क्षेत्र का अध्ययन सशक्त होगा।
एक प्रादेशिक भूगोलवेत्ता का कार्य क्षेत्र का संश्लिष्ट वर्णन प्रस्तुत करना होता है। उसका कार्य कलाकार (Artist) से भिन्न होता है। यद्यपि भूगोलवेत्ता की विधि की प्रकृति फोटो ग्राफिक है जिसमें व्यक्तिगत प्रतिक्रियाओं का योगदान लघुत्तम होता है। भूगोलवेत्ता दृश्य घटनाओं के पारस्परिक संबंधों की व्याख्या क्षेत्र की सम्पूर्ण तस्वीर को लेकर करता है जो गैर-भूगोलवेत्ता के लिए संभव नहीं है। कोई प्रशिक्षिति भूगोलवेत्ता ही किसी क्षेत्र का वस्तुनिष्ठ, वैज्ञानिक तथा विश्वसनीय वर्णन प्रस्तुत कर सकता है।
भूगोलवेत्ता कुछ-कुछ कलाकार, मानचित्रकार, साहित्यकार व वैज्ञानिक भी होता है। उसके द्वारा खींचा गया किसी क्षेत्र का चित्र-कलाकार के चित्र से कई अर्थों में भिन्न होता है। वह संकेतों व विरंजक चित्रों से क्षेत्रीय सूचनाओं को आँखों के समक्ष दिखाने में समर्थ होता है।
एम० मार्टे ने यह स्वीकार किया था कि “भूगोल मूलतः वितरण का विज्ञान है” (Geography is the Science of Distribution)। उसने इस दृष्टिकोण पर सर्वाधिक बल दिया और भूगोल को ‘वस्तुओं के कहाँ? का अध्ययन बताया। यदि वितरण का अध्ययन, भूगोल की प्रकृति का मूल है तो इसे भूगोल प्रतीत होना चाहिए जिससे कि इसकी अन्य विज्ञानों से पहचान हो सके। जब वनस्पति शास्त्री पौधों के वितरण को निर्धारित करता है, तथा समाजशास्त्री जनसंख्या के वितरण को दर्शाता है तो वह भी भूगोलवेत्ता हो जाता है अथवा कम से कम वह भी भूगोल के क्षेत्र में कार्य करने लगता है।
मिशोटे का तर्क है कि इनमें से प्रत्येक अपने विज्ञान के दृष्टिकोण से विशिष्ट प्रकार की घटनाओं का अध्ययन करता है, भूगोल के दृष्टिकोण से नहीं। हेटनर ने स्पष्ट किया कि ‘वितरण वस्तुओं का गुण है।’ (Distribution is the attribute of things)। वर्गीकृत विज्ञान घटनाओं पर बल देता है। जिनका वह वितरण अध्ययन करता है, भूगोल क्षेत्रों पर बल देता है जिसके तत्वों में विविधताएँ होती हैं। भूगोल की वितरण-विज्ञान की संकल्पना के सम्बन्ध में कार्ले सॉवर का मत है कि भूगोल कहाँ (where) का विज्ञान है। भूगोलवेत्ता सदैव यह जानने का प्रयास करता है कि उसकी दृश्य घटनाएँ कहाँ हैं? कहाँ? का अध्ययन भूगोल विषय का एक अंग है।
हरमन लाटेन्साच का मत है कि भूगोल का अध्ययन क्षेत्र रूप के निरीक्षण से ही आरम्भ होता है। क्षेत्र में प्रवेश करते समय सर्वप्रथम भूगोलवेत्ता की दृष्टि पहाड़ियों, वनों, खेतों, ग्रामों व नगरों आदि की विभिन्नता पर ही जाती है। वास्तव में भूगोलवेत्ता भू-तल की मुखाकृति का आलोकन करके अलग-अलग क्षेत्रों में तथ्यों का वर्णन करता है।
आइंस्टीन ने क्षेत्र (Space) को काल से विलग नहीं माना है। वे देश-काल (Space-time) के संदर्भ में भूगोल को देखते थे। क्षेत्र (Space) एवं काल (Time) एक-दूसरे के परिपूरक हैं। वे विलग नहीं किए जा सकते हैं। प्रत्येक कालावधि में क्षेत्रीय आयाम (गुण-धर्म) बदल जाता है अर्थात् प्रत्येक क्षेत्रीय इकाई की विशेषतायें काल-क्रमानुसार भिन्न होती है। इस प्रकार (Space) अन्तराल (Gap) नहीं अन्तर्सम्बन्धों का पुंज है।
शेफर (Schaefer F) ने निरपेक्ष क्षेत्र (Absolute Space) के स्थान पर सापेक्ष्य क्षेत्र (Relatives Space) को अपनाने पर बल दिया है। इसीलिए वर्तमान वैज्ञानिकतावादी युग में विभिन्न सांख्यिकीय एवं ज्यामितिक संकल्पनाओं का उपयोग करते हुए विभिन्न तत्वों के क्षेत्रीय अन्तर्सम्बन्धों की व्याख्या विश्लेषण के आधार पर क्षेत्रीय प्रतिरूप एवं प्रक्रियाओं के विवेचन पर बल दिया जाता है।
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