Unique Geography Notes हिंदी में

Unique Geography Notes in Hindi (भूगोल नोट्स) वेबसाइट के माध्यम से दुनिया भर के उन छात्रों और अध्ययन प्रेमियों को काफी मदद मिलेगी, जिन्हें भूगोल के बारे में जानकारी और ज्ञान इकट्ठा करने में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इस वेबसाइट पर नियमित रूप से सभी प्रकार के नोट्स लगातार विषय विशेषज्ञों द्वारा प्रकाशित करने का काम जारी है।

BA SEMESTER-ICLIMATOLOGY(जलवायु विज्ञान)PG SEMESTER-1

  6. Clouds (बादल)


Clouds (बादल)⇒

Clouds (बादल)

संघनन- जल के गैसीय अवस्था से तरल या ठोस अवस्था में परिवर्तित होने की प्रक्रिया को संघनन कहा जाता है। यदि हवा का तापमान ओसांक बिन्दु से नीचे पहुंच जाये तो संघनन की क्रिया प्रारंभ होती है। संघनन की प्रक्रिया पर वायु के आयतन, तापमान, वायुदाब एवं आर्द्रता का प्रभाव पड़ता है।

यदि संघनन हिमांक (Freezing Point) से नीचे होता है, तो तुषार (Frost), हिम (Snow) एवं पक्षाभ मेघ (Cirrus Cloud) का निर्माण होता है।

यदि संघनन हिमांक से ऊपर होता है तो ओस, कुहरा, कुहासा एवं बादलों का निर्माण होता है।

 यदि संघनन पृथ्वी के धरातल के समीप होता है तो ओस (Dew), पाला (Frost), कुहरा एवं कुहासे का निर्माण होता है।

 जब संघनन की क्रिया अधिक ऊँचाई पर होती है तो बादलों का निर्माण होता है।

ओस (Dew)- हवा का जलवाष्प जब संघनित होकर छोटी-छोटी बूंदों के रूप में धरातल पर पड़ी वस्तुओं (घास पत्तियों आदि) पर जमा हो जाता है, तो इसे ओस कहा जाता है। ओस के निर्माण के लिए साफ आकाश, लगभग शांत वायुमंडल, उच्च सापेक्षिक आर्द्रता एवं ठंडी तथा लंबी रात का होना आवश्यक है।

 ओस के निर्माण के लिए यह आवश्यक है कि तापमान हिमांक से ऊपर हो।

तुषार या पाला (Frost)- जब संघनन की क्रिया हिमांक से नीचे होती है (0°C या उससे कम पर) तो जलवाष्प जल कणों के बदले हिम कणों में परिवर्तित हो जाता है। इसे ही तुषार या पाला कहा जाता है। पाला के निर्माण के लिए उन सभी अन्य परिस्थितियों का होना आवश्यक है, जो ओस के निर्माण के लिए हैं।

नोट :- ओस या पाला ऊपर से नहीं गिरता है, बल्कि यह वहीं बनता है जहां हम इसे देखते हैं।

कुहरा (Fog)- कुहरा एक प्रकार का बादल है। जब जलवाष्प का संघनन धरातल के बिल्कुल समीप होता है तो कुहरे का निर्माण होता है। कुहरे में कुहासे की तुलना में जल के कण अधिक छोटे एवं सघन होते हैं।

कुहासा (Mist)- कुहासा भी एक प्रकार का कुहरा है, जिसमें कुहरे की अपेक्षा दृश्यता (Visibility) दूर तक रहती है। इसमें दृश्यता एक किलोमीटर से अधिक, परंतु दो किलोमीटर से कम होती है।

धुआंसा (Smog)- बड़े-बड़े शहरों में फैक्टरियों के निकट जब कुहरे में धुएं के कण मिल जाते हैं तो उसे धुआंसा (Smoke+Fog = Smog) कहा जाता है। धुआंसा कुहरे की तुलना में और अधिक सघन होता है एवं इसमें दृश्यता और भी कम होती है।

बादल (Clouds):- वायुमंडल में संघनन के पश्चात हिमकणों अथवा जलसीकरों (Droplets/Rain Drops) के समूह को बादल कहा जाता है। अर्थात् जब वायु का तापमान ओसांक (Dew-point) से नीचे गिर जाता है, तो जलवाष्प धूल तथा धुँए के कणों पर केन्द्रित होकर बादल का रूप धारण कर लेती है।

कुहरा(Fog)- जब 100 मीटर से कम दूरी दिखाई दे।

कुहासा(Mist)- जब 100 मीटर से अधिक दूरी दिखाई दे।

तुषार/पाला(Frost)- पानी से हिम बनना

बादलों का निर्माण प्रायः क्षोभमंडल के ऊपरी भाग में होता है। बादल निर्माण हेतु वायुमंडल में जलवाष्प का होना एक अनिवार्य तत्व है।  वायुमंडल में जलवाष्प की प्राप्ति मुख्यतः तीन प्रक्रियाओं से होती है। 

(i) वाष्पीकरण (Evaporation)

(ii) वाष्पोतर्जन

(iii) उर्ध्वपातन

       किसी वाष्प या गैस का द्रव या ठोस के रूप में परिवर्तन होना संघनन कहलाता है। वस्तुतः संघनन वाष्पीकरण का उल्टा प्रक्रिया होता है। वाष्पीकरण में जल गैस के रूप में तब्दील करता है जबकि संघनन में गैस द्रव्य या ठोस के रूप में बदलता है। वाष्पीकरण में गुप्त ऊष्मा ग्रहण किया जाता है जबकि संघनन क्रिया में गुप्त ऊष्मा बाहर की ओर निकलता है।

 वायु में जितना जलवाष्प ग्रहण करने की क्षमता है उतना ही जलवाष्प मौजूद हो तो उसे संतृप्त वायु कहते हैं।

 अगर जिस वायु में जितना आर्द्रता ग्रहण करने की क्षमता है और उतनी मात्रा में जलवाष्प मौजूद नहीं हो तो वैसी वायु को संतृप्त वायु कहते हैं।

 अगर संतृप्त वायु का तापमान बढ़ा दिया जाए तो वह असंतृप्त वायु में तब्दील कर जाती है।

 जब असंतृप्त वायु का तापमान घटा दिया जाए तो वह संतृप्त वायु में बदल जाती है।

 किस तापमान पर वायु संतृप्त हो जाती है उस तापमान को ओसांक बिंदु (Dew Point) कहते हैं।

 जल के वाष्पीकरण से वर्षण तक निम्नलिखित चरण पाये जाते है:-

जल का वाष्पीकरण- असंतृप्त वायु- ओसांक बिंदु- संतृप्त वायु- संघनन- वर्षण

 संतृप्त वायु में संघनन की क्रिया तब ही प्रारंभ होती है जब वायुमंडल में सूक्ष्म जलग्राही नाभिक प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होते हैं। वायुमंडल में निम्नलिखित जलग्राही नाभिक मौजूद होते हैं।

1. लवण

2. सल्फर डाइऑक्साइड 

3. नाइट्रिक ऑक्साइड

D. ब्रन्ट – वायुमंडल में 2000-5000 की संख्या में जल ग्राही नाभिक मौजूद रहने के बाद ही संघनन प्रारंभ होता है।

 जलग्राही कणों का आकार 0.01 माइक्रोन से 50 माइक्रोन तक होता है।

 जलग्राही नाविकों का तापमान सबसे कम होता है तभी उसके चारों ओर जलवाष्प का संघनन होता है। संघनन के पूर्व वायुमंडल की सापेक्षिक आर्दता 100% पहुँच जाती है।

 संघनन के बाद पहले धूंध या कुहासा उसके बाद कुहरा, कुहरा के बाद बादल और बादल के बाद जल बूँदों या हिमकणों का निर्माण होता है।

मेघाच्छान्नता का विश्व वितरण

        आकाश का जितना भाग मेघों से आच्छादित रहता है उसे  मेघाच्छान्नता कहते हैं। इसके वितरण नीचे के तालिका में देखा जा सकता है – 

 क्षेत्र-  मेघाच्छान्नता का विश्व में क्रम-  कारण- वर्षा

1. विषुवतीय क्षेत्र- दूसरे स्थान- संवहन धारा- सर्वाधिक

2. 30°-60° अक्षांश- प्रथम स्थान- शीतोष्ण चक्रवात- दूसरे स्थान पर

3. उपोष्ण कटिबंध उच्च वायुदाब – अति अल्प- प्रतिचक्रवात- अल्प

बादलों का वर्गीकरण

       बादलों का वर्गीकरण कई आधार पर किया जाता है। अन्तराष्ट्रीय मौसम विभाग ने 1932 ई० में बादलों को 3 वर्गों में बाँटा है-

1. अधिक ऊँचाई वाले बादल- 7-12 Km के बीच

2. मध्यम ऊँचाई वाले बादल- 2.5 -7 Km के बीच

3. निम्न ऊँचाई वाले बादल- 2.5Km के नीचे

1. अधिक ऊँचाई वाले बादल- 3 प्रकार

(i) Cirus Clouds (पक्षाभ बादल)

(ii) Cirro Stratus (पक्षाभ स्तरी बादल)

(iii) Cirro Cumulus (पक्षाभ कपासी बादल)

(i) Cirus Clouds (पक्षाभ बादल)-

        पक्षाभ बादल सबसे अधिक ऊँचाई पर बनने वाला बादल है। देखने में बच्चों के घुंघराले बाल या पंख की भांति होता है। बादलों में सूक्ष्म हिमकण पाए जाते हैं। जब यह आसमान में असंगठित रूप में मौजूद होता है तो मौसम साफ होने का सूचना देता है। लेकिन जब संगठित रूप से इसका विस्तार बहुत अधिक होता है तो मौसम खराब होने का सूचना देता है। इस बादल के कारण शाम के वक्त नैनाभिराम दृश्य (जो देखने में आकर्षित कर ले) उत्पन्न होता है।

(ii) Cirro Stratus (पक्षाभ स्तरी बादल)- 

         पक्षाभ स्तरी बादल 7 से 12 Km के बीच बनता है वर्गीकरण में इसे दूसरा स्थान प्राप्त है। इस कारण दूधिया और स्वरूप चादर के समान है। यह बादल सूर्य और चंद्रमा के चारों ओर प्रभामंडल (Halo) का निर्माण करते हैं। इस बादल की उपस्थिति बताती है कि निकट भविष्य में चक्रवात आने वाला है।

(iii) Cirro Cumulus (पक्षाभ कपासी बादल)-

         7-12 Km के बीच पाया जाता है। इसे वर्गीकरण में तीसरा स्थान प्राप्त है। इसकी संरचना रुई के ढेर के समान होती है। इसका रंग श्वेत होता है और इसका आकार लहरनुमा होता है।

        इसे मैकरल स्काई क्लाइड भी कहते हैं। ऐसे बादल से धरातल पर छाया का निर्माण नहीं होता।

2. मध्यम ऊँचाई वाले बादल- 2 प्रकार

(i) मध्य स्तरी बादल (Alto Stratus Clouds)

(ii) मध्य कपासी बादल (Alto Cumulus Clouds)

(i) मध्य स्तरी बादल (Alto Stratus Clouds):-

         यह मध्यम ऊँचाई का बादल है जो देखने में रुई के ढेर के समान होता है। इस बादल का रंग ग्रे या काला होता है। इससे कभी-कभी बूँदा-बूँदी होती है।

(ii) मध्य कपासी बादल (Alto Cumulus Clouds)

        इसे पताका मेघ कहा जाता है। यह भी रुई के ढ़ेर के समान होता है लेकिन इसका मध्य भाग काला या भूरा रंग का होता है जबकि बाहरी भाग चमकीला होता है। इस बादल के कारण कभी इंद्रधनुष का निर्माण होता है। ऐसे बादल पर्वतों के शिखर पर बनते हैं। इसलिए इसे पर्वतीय मेघ बादल कहा जाता है।

3. निम्न ऊँचाई वाले बादल- 3 प्रकार

(i) स्तरी कपासी बादल (Strato Cumulus Clouds

(ii) स्तरी बादल (Stratus Clouds)

(iii) स्तरी बर्षी बादल या बर्षा स्तरी बादल (Nimbo Stratus Clouds)

         निम्न ऊँचाई पर ही दो अन्य विशिष्ट प्रकार के बादल बनते है:-

(i) कपासी बादल 

(ii) कपासी बर्षी बादल

(i) स्तरी कपासी बादल (Strato Cumulus Clouds) 

        यह 300-2500 m के बीच बनती है। इसमें बादल के कई स्तर मिलते हैं। जिसके कारण पृथ्वी पर गहरा छाया उत्पन्न होता है। इस बादल में कई स्तर उत्पन्न होते हैं तथा इससे कभी-कभी भारी वर्षा होती है।

(ii) स्तरी बादल (Stratus Clouds) 
       यह कुहासा के समान होता है। इस बादल का निर्माण दो विपरीत स्वभाव वाली हवाओं के मिलने से उत्पन्न होता है। इस बादल के कारण आकाश लंबे समय तक धुंधला रहता है और बूँदा-बाँदी की संभावना रहती है।
(iii) स्तरी बर्षी बादल या बर्षा स्तरी बादल (Nimbo Stratus Clouds)
      इसे वर्षा वाला बादल भी कहते हैं क्योंकि इससे वर्षा अधिक होती है। यह बादल शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात के उष्ण वाताग्र के क्षेत्र में तथा उष्णकटिबंधीय चक्रवात के दौरान इस भारत का निर्माण होता है। इस बादल के कारण कभी-कभी ओले भी गिरते हैं।
कपासी बादल (Cumulus Clouds)
       इसका आकार फूल गोभी के समान होता है। इस बादल का निर्माण दोपहर के बाद विषुवतीय क्षेत्र में होता है। इस बादल का लम्बवत विस्तार अधिक होता है। यह बादल गर्जन एवं चमक के साथ वर्षा लाती है।
कपासी बर्षी बादल (Cumulo Nimbus Clouds)
          इसे थंडर क्लाउड या ओलावृष्टि या तूफान को जन्म देने वाला बादल कहा जाता है। इस बादल का आकार कीप के समान होता है। इस बादल के निचले भाग में वर्षा वाले बादल पाए जाते हैं। भारत में यह बादल मार्च-अप्रैल में बनता है। तड़ित झंझा, मूसलाधार वर्षा तथा ओला कपासी वर्षी बादल की प्रमुख विशेषता है।

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I ‘Dr. Amar Kumar’ am working as an Assistant Professor in The Department Of Geography in PPU, Patna (Bihar) India. I want to help the students and study lovers across the world who face difficulties to gather the information and knowledge about Geography. I think my latest UNIQUE GEOGRAPHY NOTES are more useful for them and I publish all types of notes regularly.

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