2. Climate of Bihar (बिहार की जलवायु)
2. Climate of Bihar
(बिहार की जलवायु)
प्रश्न प्रारूप
Q. Explain Climate of Bihar.
(बिहार की जलवायु का विस्तृत वर्णन करें।)
उत्तर- बिहार की जलवायु उष्णार्द्र मानसूनी है। यह जलवायु अल्प वर्षाकाल तथा दीर्घ शुष्ककाल के मानी जाती है। यहाँ की जलवायु में महाद्वीपीयता के लक्षण मिलते हैं, लेकिन अधिक आर्द्रता के कारण यहाँ संशोधित महाद्वीपीय जलवायु है। उत्तर की ओर हिमालय की हिमाच्छादित श्रेणियाँ इसको मध्य एशिया की ओर से आने वाली शीतल वायु से बचाकर महाद्वीपीय जलवायु का स्वरूप प्रदान करती है। इस जलवायु की मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
(i) न्यून दैनिक ताप परिसर
(ii) ताप परिसर की समानता
(iii) वायु में अधिक आर्द्रता
(iv) वर्षा का न्यूनाधिक रूप में सर्वत्र होना
(v) ऋतु परिवर्तन होना
बिहार की जलवायु निम्नलिखित भौगोलिक तत्त्वों से प्रभावित होती है-
(i) अक्षांशीय विस्तार
(ii) हिमालय पर्वत की स्थिति
(iii) स्थलाकृति का प्रभाव
(iv) बंगाल की खाड़ी से निकटता
(v) नारवेस्टर तथा अन्य ग्रीष्मकालीन तूफान
(vi) दक्षिण-पश्चिम मानसून की क्रियाशीलता
मॉनसूनी जलवायु की सबसे बड़ी विशेषता यहाँ के मौसमी परिवर्तन की हैं। यहाँ की ऋतुएँ ऐसी है जो लयबद्ध रूप में आती है। ग्रीष्मकाल की भीषण गर्मी से उबने के बाद वर्षाकाल की फुहारे वातावरण में प्रसन्नता पैदा करती है। जब वर्षाकाल की उमस से मन उब जाता है, तो शरदकालीन ठण्डक से राहत मिलती है। जबकी शीत लहर से मन घबरा जाता है और जन-जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है तो ग्रीष्म ऋतु राहत पहुँचाती है। इस प्रकार बिहार की जलवायु में तीन ऋतुएँ स्पष्ट अनुभव की जाती है। अतः यहाँ तीन ऋतुएँ निम्नलिखित हैं-
1. ग्रीष्म ऋतु- मध्य मार्च से मध्य जून तक
2. वर्षा ऋतु- मध्य जून से मध्य अक्टूबर तक
3. शरद ऋतु-मध्य अक्टूबर से मध्य मार्च तक
1. ग्रीष्म ऋतु:-
यह ऋतु मध्य मार्च से प्रारम्भ होता है। इस माह के बाद तापमान धीरे-धीरे बढ़ने लगता है मई के अन्त तक तापमान बहुत बढ़ जाता है। अधिक गर्मी से सापेक्षित आर्द्रता बहुत घट जाती है। मई-जून में कुछ स्थानों का तापमान 46°C तक पहुँच जाता है। बिहार के पश्चिमी भाग के क्षेत्रों में अधिक तापमान रहता है। पछुआ हवा के कारण हवा बहुत ही गर्म हो जाती है। जिसे ‘लू’ कहा जाता है। इसकी तुलना में पूर्वी भाग के क्षेत्रों में तापमान कम रहता है।
इस ऋतु में अधिक गर्मी के कारण हवा का दबाव कम हो जाता है, हवा के निम्नदाब के कारण बिहार के पूर्वी भाग में चक्रवाती तूफान आता है, जिससे वर्षा होती है, इस तूफान से पूर्णियाँ, कटिहार में 4 से 8 सेमी० वर्षा होती है। इस भयंकर तूफान को ‘काल वैशाखी’ कहते हैं। इस आर्द्रयुक्त हवा से वर्षा होती है, जिसे नारवेस्टर या मैंगोसाँवर कहते हैं। इस वर्षा से आम एवं लीची फसलों को फायदा पहुँचती है। इस मौसम में गया शहर का तापमान सबसे ऊँचा 47°C तक चला जाता है।
(2) वर्षा ऋतु:-
ग्रीष्मकाल से भीषण गर्मी के कारण एक विशाल निम्न भार का कटिबन्ध कायम हो जाता है। इस निम्न भार को भरने के लिए बंगाल की खाड़ी से मुड़कर दक्षिण-पश्चिम हवाएँ स्थल की ओर चलने लगती हैं। बिहार में मानसूनी हवा का प्रवेश पूर्व से जानेवाली मानसूनी धारा के रूप में होता है। यह हिमालय के समानान्तर चलती है। सामान्यतः 15-20 जून तक बिहार में मानसून का आगमन हो जाता है। इस मानसून के आगमन से तापमान में कमी होती है और सापेक्ष आर्द्रता बढ़ जाती है। धीरे-धीरे तापमान में कमी होती है और उमस बढ़ जाती है। जुलाई-अगस्त में काफी वृष्टि होती है।
राज्य के पूर्वी भाग में वर्षा अधिक तथा पश्चिम में वर्षा कम होती है। पूर्व में स्थित कुछ प्रमुख शहरों की औसत वार्षिक वर्षा तथा पश्चिम में स्थित राज्य के कुछ प्रमुख शहरों की औसत वार्षिक वर्षा से यह बात स्पष्ट हो जाती है। जैसे- पूर्णियाँ 107.5 सेमी०, सहरसा 138.5 सेमी०, दरभंगा 125 सेमी०, पटना 117 सेमी०, गया 99.2 सेमी० इस आँकड़े से पूर्व से पश्चिम आने पर वर्षा में कमी आती जाती है।
बिहार में अधिकतर वर्षा ग्रीष्मकालीन मौनसून से होती है। इसे दक्षिण-पश्चिम मानसून भी कहते हैं।
मानसून की वापसी तापमान की कमी के कारण अक्टूबर माह में प्रारम्भ होती है। इस काल में वर्षा की स्थिति नहीं बन पाती है। इस समय केवल हथिया नक्षत्र में थोड़ी वर्षा हो जाती है। इस समय रबी की फसल की बुआई शुरू हो जाती है।
3. शरद ऋतु:-
वर्षा ऋतु के समाप्त होने पर सितम्बर महीने से तापमान में गिरावट शुरू हो जाती है। इसके फलस्वरूप नवम्बर से फरवरी तक की अवधि में शीत शुष्क में बदल जाती है। इस ऋतु में मौसम अच्छा रहता है। यहाँ का औसत तापमान 10°C से नीचे चला जाता है। इस समय पश्चिमी चक्रवात से थोड़ी वर्षा हो जाती है। वर्षा की मात्रा 1 से 2 सेमी० से अधिक नहीं होती है। इस ऋतु में पटना का औसत तापमान 6.1°C, गया का 5.8°C तथा पूर्णियाँ का 4.4°C रहता है। शरद के अन्तिम चरण में तापमान धीरे-धीरे बढ़ने लगता है।