जलवायु / CLIMATE / NCERT CLASS -9 Geography Solutions (हिंदी माध्यम)
अध्याय-4. जलवायु (CLIMATE)
एनसीईआरटी के 9वीं कक्षा का भूगोल विषय का सम्पूर्ण प्रश्नोत्तर
सरल एवं आसान शब्दों में उत्तर देना सीखें
1. दिए गये चार विकल्पों में से सही उत्तर चुनिए।
(i) नीचे दिए गये स्थानों में किस स्थान पर विश्व में सबसे अधिक वर्षा होती है?
(क) सिलचर
(ख) चेरापूंज
(ग) मासिनराम
(घ) गुवाहाटी
उत्तर -(ग) मासिनराम (मेघालय)
(ii) ग्रीष्म ऋतु में उत्तरी मैदानों में बहने वाली पवन को निन्मलिखित में से क्या कहा जाता है?
(क) काल वैशाखी
(ख) व्यापारिक पवनें
(ग) लू
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर – (ग) लू
(iii) निन्मलिखित में से कौन सा कारण भारत के उत्तर-पश्चिम भाग में शीत ऋतु में होने वाली वर्षा के लिए उत्तरदायी है –
(क) चक्रवातीय अवदाब
(ख) पश्चिमी विक्षोभ
(ग) मानसून की वापसी
(घ) दक्षिण-पश्चिम मानसून
उत्तर -(ख) पश्चिमी विक्षोभ
(iv) भारत में मानसून का आगमन निन्मलिखित में से कब होता है-
(क) मई के प्रारंभ में
(ख) जून के प्रारंभ में
(ग) जुलाई के प्रारंभ में
(घ) अगस्त के प्रारंभ में
उत्तर – (ख) जून के प्रारंभ में
(v) निन्मलिखित में से कौन-सी भारत में शीत ऋतु की विशेषता है?
(क) गर्म दिन एवं गर्म रात
(ख) गर्म दिन एवं ठंडी रातें
(ग) ठंडा दिन एवं ठंडा रातें
(घ) ठंडा दिन एवं ठंडा रातें
उत्तर – (ख) गर्म दिन एवं ठंडी रातें
2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में दीजिए।
(i) भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कौन-कौन से कारक है?
उत्तर- भारतीय जलवायु को प्रभावित करने वाले छः प्रमुख कारक है – अक्षांश, तुंगता(ऊँचाई), वायुदाब एवं पवन तंत्र, समुद्र से दूरी, महासागरीय धाराएँ तथा उच्चावच लक्षण।
(ii) भारत में मानसूनी प्रकार की जलवायु क्यों है?
उत्तर – भारत की अक्षांशीय स्थिति 8°4′ उत्तरी अक्षांश से 37°6′ उत्तरी अक्षांश के बीच है। चुँकि मानसून का प्रभाव भी उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में लगभग 20° उत्तर एवं 20° दक्षिण के बीच ही रहता है। जिसके कारण भारत की जलवायु मानसूनी पवनों से बहुत अधिक प्रभावित है। यही कारण है कि भारत में मानसूनी प्रकार की जलवायु पाई जाती है।
(iii) भारत के किस भाग में दैनिक तापमान अधिक होता है एवं क्यों ?
उत्तर – भारत के पश्चिमी भाग में खासकर राजस्थान में गर्मी का मौसम अत्यंत गर्म हो उठता है। दिन में तापमान में 50°-55° सेल्सियस से ऊपर पहुँच जाता है। राजस्थान में थार मरुस्थल स्थित होने के कारण ही गर्मी का दिन बेहद गर्म होता है तो रात बेहद ठंडी। तापमान गिरते हुए 0℃ तक चला आता है। भारत के किसी और भाग में इतना अधिक दैनिक तापांतर नहीं मिलता है।
(iv) किन पवनों के कारण मालाबार तट पर वर्षा होती है?
उत्तर – मालाबार तट प्रायद्वीपीय पठार के पश्चिमी घाट पर स्थित है। यहाँ अरब सागर से चलने वाली दक्षिणी-पश्चिमी मानसूनी पवनों के कारण वर्षा होती है।
(v) जेट धाराएँ क्या है तथा वे किस प्रकार भारत की जलवायु को प्रभावित करती है?
उत्तर – जेट धाराएँ एक संकरी पट्टी में स्थित एवं क्षोभमंडल में अत्यधिक ऊँचाई (12000 मीटर से अधिक) वाले पश्चिमी हवाएँ होती है। इनकी गति गर्मी में 110 कि०मी० प्रति घंटा एवं सर्दी में 184 कि०मी० प्रति घंटा होती है। बहुत सी अलग-अलग जीत धाराओं को पहचाना गया है। उनमें सबसे स्थिर मध्य अक्षांशीय एवं उपोष्ण कटिबंधीय जेट धाराएँ हैं।
जेट धाराएँ लगभग 27° से 30° उत्तरी अक्षांश के बीच स्थित होती है, इसलिए इन्हें उपोष्ण कटिबंधीय पश्चिमी जेट धाराएँ कहा जाता है। भारत में ये जेट धाराएँ ग्रीष्म ऋतु को छोड़कर पूरे वर्ष हिमालय के दक्षिण में प्रवाहित होती है। इस पश्चिमी प्रवाह के द्वारा देश के उत्तर एवं उत्तर-पश्चिमी भाग में पश्चिमी चक्रवाती विक्षोभ आते हैं।
गर्मियों में सूर्य की आभासी गति के साथ ही उपोष्ण कटिबंधीय पश्चिमी जेट धारा हिमालय के उत्तर में चली जाती है। एक पूर्वी जेट धारा जिसे उपोष्ण कटिबंधीय पूर्वी जेट धारा कहा जाता है, गर्मी के महीनों में प्रायद्वीपीय भारत के ऊपर लगभग 14° उत्तरी अक्षांश में प्रवाहित होती है।
(vi) मानसून को परिभाषित करें। मानसून में विराम से आप क्या समझते हैं?
उत्तर- मानसून शब्द की उत्पत्ति अरबी शब्द मौसिम से हुई है जिसका शाब्दिक अर्थ मौसम है। मानसून का अर्थ एक वर्ष के दौरान वायु की दिशा में ऋतु के अनुसार परिवर्तन है। अर्थात ऋतु के अनुसार वायु की दिशा में होने वाले परिवर्तन को ही मानसून कहा जाता है।
मानसूनी वर्षा एक समय में कुछ दिनों तक ही होती है। इनमें वर्षा रहित अंतराल भी होते हैं।मानसून में आने वाले ये विराम मानसूनी गर्त की गति से संबंधित होती है। विभिन्न कारणों से गर्त एवं इसका अक्ष उत्तर या दक्षिण की ओर खिसकता रहता है, जिसके कारण वर्षा का स्थानिक वितरण सुनिश्चित होता है। जब मानसून के गर्त का अक्ष मैदान के ऊपर होता है तब इन भागों में वर्षा अच्छी होती है।
दूसरी ओर जब अक्ष हिमालय के समीप चला जाता है तब मैदानों में लंबे समय तक शुष्क अवस्था रहती है तथा हिमालय की नदियों में पर्वतीय जलग्रहण क्षेत्रों में विस्तृत वर्षा होती है। इस भारी वर्षा के कारण मैदानी क्षेत्रों में विनाशकारी बाढ़ें आती है एवं जान एवं माल की भारी क्षति होती है।
उष्णकटिबंधीय निम्न दाब की तीव्रता एवं आवृत्ति भी मानसूनी वर्षा की मात्रा एवं समय को निर्धारित करती है। यह निम्न दाब का क्षेत्र बंगाल की खाड़ी के ऊपर बनता है तथा मुख्य स्थलीय भाग को पार कर जाता है। यह निम्न दाब के मानसून गर्त अक्ष के अनुसार होता है। मानसून को इसके अनिश्चितता के लिए जाना जाता है। इसीलिए यह कभी-कभी देश के किसानों की कृषि कार्यों को अव्यवस्थित कर देता है।
(vii) मानसून को एक सूत्र में बाँधने वाला क्यों समझा जाता है?
उत्तर – भारतीय प्रायद्वीप पर मानसून की एकता का प्रभाव स्पष्ट है। पवन के दिशाओं ऋतुओं के अनुसार परिवर्तन तथा उनसे संबंधित ऋतु की दशाएँ ऋतु चक्रों को एक लय प्रदान करती है। वर्षा की अनिश्चितताएँ तथा उसका असमान वितरण मानसून का एक विशेष लक्षण है। संपूर्ण भारतीय भू-दृश्य, इसके जीव तथा वनस्पति, इसका कृषि-चक्र, मानव जीवन तथा उनके त्यौहार-उत्सव सभी इस मानसूनी लय के चारों ओर घूम रहे हैं।
उत्तर से दक्षिण तथा पूर्व से पश्चिम तक संपूर्ण भारतवासी प्रति वर्ष मानसून के आगमन की प्रतीक्षा करते हैं। यह मानसूनी पवनें हमें जल प्रदान कर कृषि की प्रक्रिया में तेजी लाती है एवं संपूर्ण देश को एक सूत्र में बाँधती है। नदी घाटियाँ जो इन जलों का संवहन करती है, उन्हें भी एक नदी घाटी इकाई का नाम दिया जाता है।
3. भारत में पूर्व से पश्चिम की ओर वर्षा की मात्रा क्यों घटती जाती है?
उत्तर – उत्तर-भारत में पूर्व से पश्चिम की ओर वर्षा की मात्रा घटती जाती है क्योंकि समुद्र से दूरी बढ़ने पर वर्षा की मात्रा घटती हैं। कोलकाता में 162.5 सेमी०, पटना में 135 सेमी० इलाहाबाद में 100 सेमी० तथा दिल्ली में केवल 67 सेमी० वर्षा होती है।
4. कारण बताएँ
(i) भारतीय उपमहाद्वीप में वायु की दिशा में मौसम परिवर्तन क्यों होता है?
उत्तर – भारत उत्तरी-पूर्वी व्यापारिक पवनों वाले क्षेत्र में स्थित है। ये पवनें उत्तरी गोलार्ध के उपोष्ण कटिबंधीय उच्च दाब पट्टियों से उत्पन्न होती है। ये दक्षिण की ओर बहती, कोरिओलिस बल के कारण दाहिनी ओर विक्षेपित होकर विषुवतीय निम्न दाब वाले क्षेत्र की ओर बढ़ती है।
भारत की वायु दाब एवं पवन तंत्र अद्वितीय है। शीत ऋतु में हिमालय के उत्तर में उच्च दाब होता है। इस क्षेत्र की ठंडी शुष्क हवाएँ दक्षिण में निम्न दाब वाले महासागरीय क्षेत्र के ऊपर बहती है। ग्रीष्म ऋतु में आंतरिक एशिया एवं उत्तरी-पूर्वी भारत के ऊपर निम्न दाब का क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है। इसके कारण गर्मी के दिनों में वायु की दिशा पूरी तरह से परिवर्तित हो जाती है।
वायु दक्षिण में स्थित हिंद महासागर की उच्च दाब वाले क्षेत्र से दक्षिण पूर्वी दिशा में बढ़ते हुए विषुवत वृत्त को पार कर दाहिनी ओर मुड़ते हुए भारतीय उप महाद्वीप पर स्थित निम्न दाब की ओर बहने लगती हैं। इन्हें ही दक्षिण-पश्चिम मानसून पवनों के नाम से जाना जाता है। ये पवनें कोष्ण महासागरों के ऊपर से बहती है, नमी ग्रहण करती है तथा तथा भारत की मुख्य भूमि पर वर्षा करती है। इस प्रकार स्पष्ट है कि भारतीय उपमहाद्वीप में वायु की दिशा में मौसम परिवर्तन होता है।
(ii) भारत में अधिकतर वर्षा कुछ ही महीनों में होती है।
उत्तर – भारत में अधिकतर वर्षा (80 प्रतिशत) मानसूनी पवनों से हुआ करती है। चुँकि मानसून का समय भारत में जून से सितंबर तक ही होती है। यही कारण है कि भारत मे अधिकतर वर्षा कुछ ही महीनों में होती है ।
(iii) तमिलनाडु तट पर शीत ऋतु में वर्षा होती है।
उत्तर – तमिलनाडु तट पर शीत ऋतु में वर्षा लौटते मानसून के कारण होती है। बंगाल की खाड़ी को पार करते समय लौटते मानसून पवन आर्द्रता ग्रहण कर दक्षिण-पूर्वी तट (कोरोमंडल तट) पर भारी वर्षा करते हैं । तमिलनाडु में वर्ष भर की अधिकतम वर्षा (44% से 60%) शीत ऋतु में होती है। बंगाल की खाड़ी में बनने वाले चक्रवात उसे भी यहाँ वर्षा होती है।
(iv) पूर्वी तट के डेल्टा वाले क्षेत्र में प्रायः चक्रवात आते हैं।
उत्तर – नवंबर के प्रारंभ में, उत्तर-पश्चिम भारत के ऊपर निम्न दाब वाली अवस्था बंगाल की खाड़ी पर हस्तांतरित हो जाती है। यह स्थानांतरण चक्रवाती निम्न दाब से संबंधित होता है, जो कि अंडमान सागर के ऊपर उत्पन्न होता है। यह चक्रवात सामान्यतः भारत के पूर्वी तट को पार करते हैं, जिसके कारण व्यापक एवं भारी वर्षा होती है।
उष्णकटिबंधीय चक्रवात प्रायः विनाशकारी होते हैं। गोदावरी, कृष्णा एवं कावेरी नदियों के सघन आबादी वाले डेल्टा प्रदेशों में अक्सर चक्रवात आते हैं, जिसके कारण बड़े पैमाने पर जान-माल की क्षति होती है। कभी-कभी ये चक्रवात उड़ीसा, पश्चिम बंगाल एवं बांग्लादेश के तटीय क्षेत्रों में भी पहुँच जाते हैं। कोरोमंडल तट पर अधिकतर वर्षा इन्हीं चक्रवातों तथा अवदाबों से होती है।
(v) राजस्थान, गुजरात के कुछ भाग तथा पश्चिमी घाट का वृष्टि छाया क्षेत्र सूखा प्रभावित क्षेत्र है।
उत्तर – राजस्थान, गुजरात के कुछ भाग तथा पश्चिमी घाट की वृष्टि छाया क्षेत्र सूखा प्रभावित क्षेत्र है क्योंकि राजस्थान, गुजरात के कुछ भागों में मानसूनी पवनें जब पहुँचती है तो इनकी आर्द्रता समाप्त हो चुकी होती है इसके भी दो मुख्य कारण है –
◆ अरावली पर्वत की दिशा पवनों के समानांतर होना, और
◆ पाकिस्तान से आने वाली गर्म एवं शुष्क हवाएँ न केवल अरब सागर की मानसूनी पवनों को ऊपर उठने से रोकती है, बल्कि नमी को भी कम कर देती है। इससे इन हवाओं की वर्षा करने की शक्ति और भी कम हो जाती है।
पश्चिमी घाट का वृष्टि छाया क्षेत्र पवनविमुख ढाल पर स्थित है। यहाँ वर्षा बहुत कम होती है। अतः ये सूखा प्रभावित क्षेत्र है।
5. भारत की जलवायु अवस्थाओं की क्षेत्रीय विभिनताओं को उदाहरण सहित समझाएँ।
उत्तर – भारत के विभिन्न भागों में मानसूनी वर्षा की मात्रा में काफी अंतर पाया जाता है एक ओर जहाँ मासिनराम जैसे स्थान पर 1141 सें०मी० वर्षा होती है तो वहीं दूसरी ओर थार एवं लद्दाख के मरुस्थल में वर्षा की मात्रा मात्र 25 सेंटीमीटर से भी कम होती है। अधिक वर्षा के क्षेत्रों में विभिन्नता कम एवं कम वर्षा के क्षेत्रों में विभिन्नता और अधिक पाई जाती है।
ऐसा पाया गया है कि 10 वर्षों में केवल दो वर्ष ही मानसून समय पर आकर समय पर समाप्त होता है। मानसूनी वर्षा भी निरंतर नहीं होती बल्कि इसमें अंतराल पाया जाता है। अगस्त के महीने में यह अंतराल काफी लंबा हो जाता है। यूं तो मानसून की अवधि 4 महीने है परंतु इन 4 महीनों में वास्तविक वर्षा के दिन 40 से 45 के बीच होते हैं। भारत का अधिकांश भाग कुल वर्ष का 80% इसी समय प्राप्त करता है। वर्षा इतनी मूसलाधार होती है कि अक्सर कहा जाता है कि मानसूनी वर्षा में बादल जल बरसाते नहीं बल्कि उड़ेलते हैं।
जिन भागों में मानसून सबसे पहले आता है वहाँ वह सबसे अधिक समय तक रहता है एवं जहाँ देर से पहुँचता है वहाँ से जल्दी लौट जाता है। केरल में मानसून की अवधि 5 जून से 30 नवंबर है, जबकि पंजाब के मैदान में यही अवधि 1 जुलाई से 30 सितंबर है।
इस प्रकार कहा जा सकता है कि भारत की मानसूनी जलवायु में क्षेत्रीय विभिन्नता अत्यधिक पाई जाती है।
6. मानसून अभिक्रिया की व्याख्या करें।
उत्तर – भारत की जलवायु मानसूनी पवनों से बहुत अधिक प्रभावित है। ऐतिहासिक काल में भारत आने वाले नाविकों ने सबसे पहले मानसून परिघटना पर ध्यान दिया था। पवन तंत्र की दिशा उलट जाने (उत्क्रमन) के कारण उन्हें लाभ हुआ। चूँकि उनके जहाज पवन के प्रवाह की दिशा पर निर्भर थे। अरबवासी जो व्यापारियों की तरह भारत आए थे उन लोगों ने पवन तंत्र के इस मौसमी उत्क्रमण को मानसून का नाम दिया।
मानसून का प्रभाव उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में लगभग 20° उत्तर एवं 20° दक्षिण के बीच रहता है। मानसून की प्रक्रिया को समझने के लिए निम्नलिखित तथ्य महत्वपूर्ण है-
◆ स्थल तथा ज्ञान के गर्म एवं ठंडे होने की विभ्रेदी प्रक्रिया के कारण भारत के स्थल भाग पर निम्न दाब का क्षेत्र उत्पन्न होता है, जबकि इसके आस-पास के समुद्रों के ऊपर उच्च दाब का क्षेत्र बनता है।
◆ ग्रीष्म ऋतु के दिनों में अन्तः उष्ण कटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र की स्थिति गंगा के मैदान की ओर खिसक जाती है। (यह विषुवतीय गर्त है, जो प्रायः विषुवत वृत्त से 5° उत्तर में स्थित होता है। इसे मानसून ऋतु में मानसून गर्त के नाम से भी जाना जाता है।)
◆ हिंद महासागर में मेडागास्कर के पूर्व लगभग 20° से अक्षांश के ऊपर उच्च दाब वाला क्षेत्र होता है। इस उच्च दाब वाले क्षेत्र की स्थिति एवं तीव्रता भारतीय मानसून को प्रभावित करती है।
◆ ग्रीष्म ऋतु में, तिब्बत का पठार बहुत अधिक गर्म हो जाता है, जिसके परिणामस्वरुप पठार के ऊपर समुद्र तल से लगभग 9 किलोमीटर की ऊंचाई पर तीव्र ऊर्ध्वाधर वायु धाराओं एव उच्च दाब का निर्माण होता है।
◆ ग्रीष्म ऋतु में हिमालय के उत्तर-पश्चिम जेट धाराओं का तथा भारतीय प्रायद्वीप के ऊपर उष्णकटिबंधीय पूर्वी जेट धाराओं का प्रभाव होता है।
7. शीत ऋतु की अवस्था एवं उसकी विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर – शीत ऋतु में सूर्य दक्षिणी गोलार्ध में होता है तथा उत्तरी गोलार्ध ठंडा रहता है। जनवरी में दक्षिण तथा मध्य भारत में औसत तापमान 21° से 27° सेंटीग्रेड के बीच और गंगा के मैदानी भाग में 12° से 18° सेंटीग्रेड के बीच पाया जाता है। इस समय चेन्नई का औसत तापमान 25° सेंटीग्रेड, कोलकाता का 20° सेंटीग्रेड, पटना का 17° सेंटीग्रेड तथा दिल्ली का 14° सेंटीग्रेड रहता है।
सबसे अधिक ठंडक उत्तर-पश्चिमी भाग में रहती है। अतः वहाँ एक उच्च वायुदाब क्षेत्र बन जाता है। इस समय हवाएँ स्थल से समुद्र की ओर बहती है जो शुष्क होती है तथा वर्षा नहीं करती। आकाश स्वच्छ रहता है। बादल रहित आकाश के कारण रात में ताप विकिरण तेजी से होती है। जिससे पारा नीचे गिर जाता है।
हिमालय क्षेत्र के जम्मू एवं कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में इन दिनों हिमपात होता है। इस ऋतु में भारत के 2 क्षेत्रों में वर्षा होती है। एक उत्तरी पश्चिमी भाग तथा दूसरा दक्षिण पूर्वी तटीय भाग में। उत्तर पश्चिमी भारत में चक्रवातीय वर्षा होती है जो दिसंबर से मार्च तक पूर्वी भूमध्यसागर से इराक, ईरान तथा पाकिस्तान के रास्ते भारत पहुँचती है। यह वर्षा मात्र 3 से 6 सेंटीमीटर होती होती है। परन्तु रबी फसलों के लिए काफी लाभदायक होती है।
जनवरी-फरवरी में उत्तरी पूर्वी शुष्क हवाएँ बंगाल की खाड़ी से गुजरती हुई जलवाष्प ग्रहण कर भारत के दक्षिण पूर्वी भाग में (तमिलनाडु) वर्षा करती है। इस वर्षा से वहाँ जड़ें में चावल की कृषि होती है।
8. भारत में होने वाली मानसूनी वर्षा एवं उसकी विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर – अरबी शब्द मौसिम (ऋतु) से मॉनसून शब्द की उत्पति हुई है इस शब्द का उपयोग सर्प्रथम अरब के नाविक अरब सागर में चलने वाली उन हवाओं के लिए किया करते थे जो ऋतु के बदलते ही अपनी दिशा भी लेते थे। भारत में बोल-चाल की भाषा में मानसून का अर्थ वर्षा से है।
अच्छा मानसून का अर्थ अच्छी वर्षा से है। भारत में इन हवाओं की दिशा 6 माह दक्षिण-पश्चिम और 6 माह उत्तर पूरब रहती है। अतः इन्हें क्रमशः दक्षिण पश्चिम मॉनसून तथा उत्तर पूर्व मानसून कहा जाता है। भारतीय मानसून की विशेषताएँ निम्नलिखित है –
◆ दक्षिण पश्चिम मानसून की वर्षा मौसमी है जो जून से सितंबर तक होती है।
◆समुद्र से दूरी बढ़ने पर वर्षा की मात्रा घटती हैं। कोलकाता में 162.5 सेमी०, पटना में 135 सेमी० इलाहाबाद में 100 सेमी० तथा दिल्ली में केवल 67 सेमी० वर्षा होती है।
◆ मानसून वर्षा भू-आकृति द्वारा नियंत्रित होती है।
◆ गर्मी में वर्षा मूसलाधार होती है जिससे पानी का बहाव बढ़ जाता है और मृदा अपरदन की गति तेज हो जाती है। कई क्षेत्र बाढ़ के चपेट में आ जाते हैं।
◆ भारत की कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था में मानसून का महत्वपूर्ण योगदान है।
◆ मानसूनी वर्षा का भारत में वितरण अससमान है जो औसत 12 सेमी० से 1180 सेमी० के बीच पाया जाता है।
◆ मानसून कभी पहले और कभी देर से आती है। कभी अतिवृष्टि एवं कभी अनावृष्टि लाती है। फलत: फसलें प्रभावित होती है तथा बाढ़ एवं सूखा जैसी आपदाएँ लाती है।
मानचित्र कौशल
भारत के रेखा मानचित्र पर निम्नलिखित को दर्शाएँ –
(i) 400 से०मी० से अधिक वर्षा वाले क्षेत्र
(ii) 20 से०मी० से कम वर्षा वाले क्षेत्र
(iii) भारत में दक्षिण पश्चिम मानसून की दिशा
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