Unique Geography Notes हिंदी में

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GEOGRAPHICAL THOUGHT(भौगोलिक चिंतन)PG SEMESTER-1

 1. Ancient Classical Times in Geography


  Ancient Classical Times in Geography

प्रश्न प्रारूप

प्रश्न- प्राचीन चिरसम्मत काल (Classical Ancient Times) के भौगोलिक ज्ञान के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।

अथवा, भूगोल में चिरसम्मत शास्त्रीय कालीन भूगोलवेताओं के योगदान का वर्णन कीजिए।

            चिरसम्मत शास्त्रीय काल में मुख्यतः यूनानी व रोमन भूगोलवेत्ताओं को सम्मिलित किया जाता है। इस काल में अधिकांश समय यूनानी भूगोलवेत्ताओं का प्रभुत्व ही भूगोल पर रहा। उन्होंने भूगोल को एक स्वतन्त्र विषय के रूप में तो मान्यता दिलाई ही साथ ही विभिन्न भौगोलिक पक्षों (Aspects) का वर्णन भी अपने ग्रन्थों में किया।

             यूनानी भूगोलवेत्ताओं द्वारा भूगोल का विकास प्रमुखतः तीन विधाओं द्वारा किया गया— अन्वेषण, मानचित्र और परिकल्पना।

यूनानी भूगोलवेत्ताओं द्वारा भूगोल की समस्त प्रमुख शाखाएँ स्थापित कर ली गई थीं। गणितीय भूगोल का जन्म, थेल्स, अनेग्जीमेण्डर तथा अरस्तु के द्वारा हुआ जिसे इरेटॉस्थनीज ने चरमोत्कर्ष पर पहुंचाया। पृथ्वी का गोल आकार जो कि आश्चर्यजनक रूप से शुद्धता के निकट था तथा विभिन्न स्थानों के अक्षांश व देशान्तर ज्ञात कर लिए गए थे। 

Ancient Classical Times in Geography

यूनानी भूगोलवेत्ताओं का योगदान 

1. महाकवि होमर (Homer) ⇒ 900 ई० पू०

            लगभग 900 ई० पू० में ये वस्तुतः एक इतिहासकार थे। इन्होंने दो महाकाव्य ओडिसी व इलियड लिखे। इनमें बहुत से क्षेत्रों, मानव वर्गों तथा जनपदों के वर्णन हैं। इनके अनुसार पृथ्वी तैरती हुई वृत्ताकार मानी गई थी। 500 वर्षों तक यह विचारधारा ठीक मानी जाती रही। दूसरे महाकाव्य ओडिसी में सुदूर पूर्व के विभिन्न भू-भागों को वर्णित किया गया है। इसमें यातायात तथा अन्य देशों के निवासियों के भी वर्णन हैं। होमर ने चार स्वर्गों की कल्पना की थी जो पृथ्वी के चारों कोनों पर स्थित माने जाते थे। उन्होंने चार प्रकार की पवनों का उल्लेख किया है—बोरस (उत्तरी हवा, साफ-स्वच्छ नीला आकाश, हवा ठण्डी और तेज); यूरस (पूर्वी हवा, गर्म और मन्द); नोटस (दक्षिणी पवन, यह वर्षा और झंझा युक्त होती हैं) और जेफिरस (पश्चिमी पवन, झंझावाती वेग) 

2. थेल्स (Thales) 700 ई० पू०

            यह एक दार्शनिक था जो यूनान में प्राकृतिक विज्ञान व दर्शनशात्र (Philosophy) का जन्मदाता था। 500 BC में इन्होंने विश्व की उत्पत्ति व नक्षत्रों के विषय में एक पुस्तक लिखी, जिससे उस समय गणितीय भूगोल का जन्म हुआ। थेल्स ने भी पृथ्वी  को चपटी, वृत्ताकार व पानी पर तैरती हुई माना था। इन्होंने बताया था कि जल में तैरने के कारण ही पृथ्वी पर भूकम्प आते हैं। सूर्यग्रहण व चन्द्रग्रहण के सन्दर्भ में भी इन्होंने अपने मत प्रकट किए थे।

3. पाइथागोरस (Pythagorus) ⇒ 

                  सर्वप्रथम 582 BC में उन्होंने ब्रह्माण्ड विज्ञान के सन्दर्भ में अपने विचार प्रकट किए। इन्होंने मत प्रकट किया था कि पृथ्वी गोलाकार व अस्थिर है। यह अन्य आकाशीय पिण्डों की परिक्रमा करती है। इन्होंने सूर्य व चन्द्रमा को पृथ्वी की परिक्रमा करते बताया था।

4. अनेग्जीमेण्डर (Anaximander) ⇒ 610-546 ई० पू०

                यह थेल्स के शिष्य थे। इनको नक्षत्र विज्ञान व ब्रह्माण्ड विज्ञान का पर्याप्त ज्ञान था। पृथ्वी की उत्पत्ति, आकार के बारे में इनके विचार प्रगतिवादी थे। इनका मत था कि पृथ्वी गोल है तथा ठोस पिण्ड के रूप में ब्रह्माण्ड के मध्य में स्थित है। वे विश्व के प्रथम मानचित्र के निर्माण में योगदान किया। सर्वप्रथम सूर्य घड़ी (Gnomon) का निर्माण किया। जैव भूगोल जैसे स्वतन्त्र विषयों की नींव रखी। विभिन्न जीव उत्पत्ति तथा प्रकाश सम्बन्धी लेख लिखे। उनका मत था कि पृथ्वी तल के समस्त जीव एक निरन्तर विकास प्रक्रिया के परिणाम है। उन्होंने कहा कि मानव की उत्पत्ति इसी विकास प्रक्रिया के परिणामस्वरूप मछली से हुई है।

5. अनेग्जीमैनस (Anaximenes) ⇒ 

             यह अनेग्जीमेण्डर का शिष्य था। ब्रह्माण्ड विज्ञान के सन्दर्भ में इन्होंने अपने स्वतन्त्र विचार प्रकट किए थे। इनका विचार था कि सूर्य व तारे पृथ्वी से काफी दूर हैं व पर्वतों द्वारा सूर्य का प्रकाश अवरुद्ध हो जाने से रात हो जाती है।

6. हिकेटियस (Hecataeus ⇒ 520 ई० पू०

             हिकेटियस (मलेशियम्) नगर का निवासी था। इन्होंने व्याख्यात्मक भूगोल पर अपने विचार प्रकट किए थे और पृथ्वी का वर्णन’ (Gesperiodos) नाम की पुस्तक लिखी। इसमें उस समय के ज्ञात विश्व का प्रादेशिक वर्णन था। इस ग्रन्थ द्वारा इन्होंने यूनान में प्रादेशिक भूगोल की नींव रखी। इसी पुस्तक में मलेशियस नगर का मानचित्र भी दिखाया गया था। पृथ्वी को इन्होंने वृत्ताकार माना था। हिकेटियस को भूगोल का जनक (Father of Geography) कहा जाता है।

7. हिरोडोटस (Herodotus) ⇒ 485-425ई० पू०

                 इनको इतिहास का जन्मदाता मानते हैं। हिरोडोटस ने उन भौगोलिक क्षेत्रों का निरीक्षण एवं अन्वेषण किया था जो उस समय तक अज्ञात थे। इन्होंने दक्षिणी इटली, भूमध्यसागरीय क्षेत्रों, मिस्र, वेबीलोन, आदि क्षेत्रों का विशद वर्णन प्रस्तुत किया। इन्होंने विश्व के मानचित्र का भी निर्माण किया था और नील नदी के डेल्टा के निर्माण की प्रक्रिया का वर्णन किया था। हेरोडोटस ने ही सबसे पहले विश्व मानचित्र पर याम्योत्तर (Meridian) खींचा। हेरोडोटस ने विश्व की भूसंहति को तीन महादेशों- यूरोप, एशिया तथा लीबिया (अफ्रीका) में बांटा।

8. प्लेटो (Plato) ⇒ 428-348 ई० पू०

             प्लेटो (428-348 ई. पू.) का नाम तो सदैव दर्शनशास्त्र के साथ जोड़ा जाता है। परन्तु उन्होंने भौगोलिक अवधारणाओं के विकास में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। निगमनात्मक तर्कणा (Deductive Reasoning) के प्रबल प्रतिपादक प्लेटो को यह बताने का श्रेय प्राप्त है कि धरती एक गोलाभ (Sphare) की भांति है और ब्रह्माण्ड के केन्द्र में स्थित है तथा सूर्य सहित शेष सभी खगोलीय पिण्ड धरती के चारों ओर चक्कर काटते हैं। उनकी यह खोज उनके जमाने में बड़ी क्रांतिकारी सिद्ध हुई।

9. अरस्तु (Aristotle) – 384-322 ई० पू०

          यह प्रसिद्ध विचारक प्लेटो का शिष्य था। इसको वैज्ञानिक भूगोल का जन्मदाता माना जाता है। अरस्तु दर्शनशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, जीवविज्ञान, आदि विषयों में प्रकाण्ड पण्डित थे। गणितीय भूगोल में इनका योगदान सराहनीय है। उन्हाने पृथ्वी की आकृति गोलाकार बताई थी। सर्वप्रथम जलवायु कटिबन्धों का निर्धारण किया था और मौसम विज्ञान पर ग्रन्थ लिखा था। इसमें वायु ऋतु परिवर्तन, वर्षा, ओला, भूकम्प आदि का वर्णन किया था। वातावरणवाद (Environmental Determinism) को सर्वप्रथम व्यवस्थित रूप में अरस्तु ने ही प्रस्तुत किया था।

10. सिकन्दर (Alexander) ⇒

            यह एक अन्वेषक यात्री थे। इन्होंने युद्धों के सन्दर्भ में अनेक यात्राएं की थी। इन यात्राओं के वर्णनों में भौगोलिक ज्ञान के दर्शन होते हैं तथा उन्होंने दक्षिण-पश्चिमी एशिया, दक्षिणी एशिया, मिस्र, आदि की खोज की थी। इनके वर्णन प्रादेशिक व सामान्य भूगोल के विकास में सहायक सिद्ध हुए तथा उनसे व्याख्यात्मक भूगोल को भी बल मिला।

11. थियोफ्रेस्टस (Theophrastus) ⇒ 

             यह अरस्तु के शिष्य थे। इन्होने अरस्तु के कार्यों को आगे बढ़ाया। जलवायु विज्ञान पर अपने स्वतन्त्र विचार भी प्रस्तुत किए। जलवायु व वनस्पति के सम्बन्धों का वर्णन किया। चट्टानों एवं मिट्टियों का अध्ययन किया। इन्होंने ‘हिस्ट्री ऑफ प्लेनेटस’ (History of Planets) नाम की पुस्तक लिखी जिसमें मैसिडोनिया के मैदानी क्षेत्रों, निकटवर्ती पर्वतीय क्षेत्रों तथा अन्य क्षेत्रों की वनस्पति का तुलनात्मक अध्ययन किया था। इस प्रकार वनस्पति भूगोल की नींव डाली।

12. इरेटास्थनीज (Eratosthenes) ⇒ 276-196 ई० पू०इरेटास्थनीज             यह प्रसिद्ध गणित भूगोलवेत्ता थे और सिकन्दरिया (Alexandria) स्थित संसार की सर्वोच्च शिक्षा संस्था के पुस्तकालयाध्यक्ष थे। यहां इन्होंने अपने भौगोलिक ज्ञान में वृद्धि की तथा नक्षत्र विज्ञान व गणितीय भूगोल पर काफी लेख लिखे। इन्होने पृथ्वी की परिधि की गणना की थी जो शुद्ध माप से 14% अशुद्ध थी। उन्होंने उस समय के ज्ञात विश्व का मानचित्र भी बनाया था और पृथ्वी के वर्णन के लिए सर्वप्रथम ज्यॉग्राफी (Geography) शब्द का प्रयोग किया या भूगोल विषय पर पहली औपचारिक कृति ‘The Geographica’ नाम से इरेटास्थनीज ने ही लिखी।

इरेटास्थनीज

13. हिप्पार्कस (Hipparchus) ⇒ 190-125 ई० पू०

               हिप्पार्कस एक खगोलशास्त्री तथा गणितज्ञ था जिसने Equinoxes का पता लगाया तथा वर्ष की लम्बाई बतायीं। यह पहला विद्वान था जिसने असीरियाई गणित के आधार पर वृत्त को 360º में विभक्त किया था। इसने विषुवत रेखा तथा देशांतरीय वृत्त को वृहत्त वृत्त (Great Circle) बताया। इन्होंने ही नक्षत्रों के अध्ययन के लिए एस्ट्रोलेब (Astrolabe) नामक यंत्र का अविष्कार किया और इसकी सहायता से अक्षांश एवं देशांतर वृतों का भी निर्धारण किया। एस्ट्रोब नोमान की तुलना में सरलता से प्रयोग किया जा सकता था।

            अक्षांस एवं देशांतर के आधार पर उसने विश्व को क्लाइमाटा (Climata) अर्थात अक्षांश पेटियों में विभाजित किया। अक्षांश एवं देशांतर रेखा जाल की सहायता से इसने ज्ञात विश्व को 11 जलवायु प्रदेशों में विभाजित किया था।

         हिप्पार्कस ही पहला व्यक्ति था जिसने त्रि विमीय (Three Dimension) गोलाभ को दो विमीय (Two Dimension) तल में बदलने का तरीका खोज निकला, परिणामस्वरुप पृथ्वी के गोलीय भाग को समतल क्षेत्र में बनाना संभव हो पाया। इसने दो प्रक्षेप बनाने की विधि बताएँ- (1) समरूपीय प्रक्षेप (Stereographic Projection) और (2) लंबरेखीये प्रक्षेप (Orthographic Projection)। इसने अक्षांश और देशांतर के महत्व पर बल दिया। इस प्रकार उन्होंने वैज्ञानिक मानचित्र कला (Scientific Cartography) के क्षेत्र में सराहनीय कार्य किये।

14. पोसीडोनियस (Posidonius) ⇒ 135-50 ई० पू०

              पोसिडोनियस एक महत्वपूर्ण यूनानी इतिहासकार और भूगोलवेता था। इन्होंने ने “द ओसियन” नामक पुस्तक लिखा था। इसको समुद्र विज्ञान का विशेषज्ञ माना जाता है। क्योंकि  सर्वप्रथम इन्होंने ही बताया की पूर्णिमा (Full Moon) और अमावस्या (New Moon) के दिन सूर्य चन्द्रमा और पृथ्वी तीनो के एक सीध में होने के कारण समुद्र में दीर्घ ज्वार (Spring Tide) आते है और साथ ही कृष्ण पक्ष (Waning Moon) और शुक्ल पक्ष (Waxing Moon) को समकोण की स्थिती में होने के कारण लघु ज्वार (Neap Tide) आते हैं। महासागरों की गहराई ज्ञात करने वाला यह पहला भूगोलवेत्ता था। पोसिडोनियस ने भौतिक भूगोल को तर्कसंगत ढंग से विक्सित किया जिसके कारण इसे भौतिक भूगोल का पिता भी कहा जाता है। 

रोमन भूगोलवेताओं का योगदान 

1.  स्ट्रेबो (Strabo) ⇒ 64-20 ई० पू०

स्ट्रेबो

⇒ स्ट्रैबो ने उस समय के बसे हुए संसार के ज्ञात भाग का वर्णन 17 पुस्तकों की ग्रंथमाला (Geographical Encyclopedia) के रूप में संकलित किया था।

⇒ स्ट्रेबो द्वारा तत्कालीन समस्त भौगोलिक ज्ञान को एक साथ एकत्रित कर एक सामान्य पुस्तक के रूप में प्रस्तुत करने का सबसे पहला प्रयास किया गया।

⇒ प्राचीन भूगोल के विषय में जो जानकारी आज उपलब्ध है वह मुख्य रूप से स्ट्रेबो की ‘ज्योग्राफी’ से ही ली गई है, क्योंकि प्रारंभिक भूगोलवेत्ताओं द्वारा लिखी गई अधिकांश पुस्तकें विलुप्त हो चुकी हैं। स्ट्रैबो ने 43 ग्रंथों की रचना ‘ऐतिहासिक स्मृतियाँ’ (Historical Memories) के शीर्षक से की है।

⇒ स्ट्रैबो प्रथम विद्वान था जिसने संपूर्ण भौगोलिक प्रबंध, उसकी सभी चारों शाखाओं (गणितीय, भौतिक, राजनीतिक एवं ऐतिहासिक) के संबंध में लिखे।

⇒ भूगोल एवं इतिहास के बीच के गहरे संबंध को उसने स्पष्ट करने का प्रयास किया। इतिहास के विकास पर भूगोल के प्रभाव का वर्णन करते हुए उसने यह लिखा कि इटली की विशेष सुरक्षित भौगोलिक स्थिति के कारण ही इस देश के निवासी प्रगतिशील एवं विकासशील रहे हैं।

⇒ स्ट्रैबो को नियतिवादी चिंतन का प्रथम महत्त्वपूर्ण विचारक माना जाता है।

⇒ उसने पहली बार एटलस एवं विसुवियस पर्वत का वर्णन किया है। विसुवियस को उसने ‘जलता हुआ पर्वत’ कहा है।

⇒ उसने अधिवासित प्रदेशों के लिए ‘ओकुमेन’ (Oikoumene) शब्द का प्रयोग किया, जिसे वर्तमान समय में ‘इकुमेन’ (Ecumene) कहा जाता है।

⇒ स्ट्रैबो ने पृथ्वी को दीर्घायत अर्थात (Oblong) माना था।

2. प्लिनी (Pliny) ⇒ 27-79 ई० पू०

           इन्होंने ‘हिस्टोरिया नेचुरेलिस‘ (Historia Naturalis) नामक प्रसिद्ध पुस्तक की रचना की थी जिसमें उसने ब्रह्माण्ड, जीव विज्ञान तथा मानव विज्ञान का वर्णन किया था।

3. टॉलमी (Ptolemy) ⇒ 90-168 ई० 

                   टॉलमी ज्योतिष विज्ञान के प्रकाण्ड पण्डित थे। इनके अध्ययन के प्रमुख क्षेत्र गणितीय भूगोल, मानचित्र विज्ञान, नक्षत्र विज्ञान, आदि थे। इनके कार्य इरेटास्थनीज व स्ट्रैबों से काफी मिलते जुलते हैं। टॉलमी ने पृथ्वी को गोलाकार बताया था। अल्मागेस्ट (Almagest) टॉलमी की प्रसिद्ध पुस्तक है। इसमें गणितीय भूगोल तथा खगोलिकी की जटिल समस्याओं की चर्चा है। इन्होंने खगोलीय कार्यों के लिए कुछ यन्त्रों का प्रयोग किया था जिसमें टॉलमी मापक, म्यूरल चक्र यन्त्र (Mural Quardrand), गोला यन्त्र (Armillary), आदि प्रमुख हैं। मानचित्रांकन में टॉलमी ने प्रक्षेपों का सहारा लिया। टॉलमी ने अपने कार्यों में कुछ त्रुटियाँ भी की जिनका उत्तकालीन भूगोलवेत्ताओं पर व्यापक प्रभाव पड़ा।

3. पोम्पोनियस मेला (Pomponiums)  ⇒ 335-391 ई०

          इसकी पुस्तक दो खण्डों में लैटिन भाषा में प्रकाशित हुई। प्रथम खण्ड कॉस्मोग्राफी (Cosmography) एवं द्वितीय खंड डी-कोरोग्राफिया (De-Georographia) के नाम से जाना जाता है।

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I ‘Dr. Amar Kumar’ am working as an Assistant Professor in The Department Of Geography in PPU, Patna (Bihar) India. I want to help the students and study lovers across the world who face difficulties to gather the information and knowledge about Geography. I think my latest UNIQUE GEOGRAPHY NOTES are more useful for them and I publish all types of notes regularly.

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