Unique Geography Notes हिंदी में

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GEOGRAPHY OF INDIA(भारत का भूगोल)

4. Agricultural Region of India (भारत का कृषि प्रदेश)

4. Agricultural Region of India

(भारत का कृषि प्रदेश)



प्रश्न प्रारूप

Q. भारत को कृषि प्रदेशों में वर्गीकृत करें और प्रत्येक प्रदेश की विशेषता लिखें।

Q. कृषि प्रदेश के वर्गीकरण के आधार को स्पष्ट करें तथा कृषि प्रदेशों का वर्गीकरण करते हुए प्रत्येक प्रदेश की विशेषता लिखें।

उत्तर-

         वैश्विक स्तर पर कृषि प्रदेश का अध्ययन कई भूगोलवेताओं के द्वारा किया गया है जिनमें जर्मन भूगोलवेता व्हिटलसी के द्वारा प्रस्तुत कृषि प्रदेश सबसे प्रमुख है। इन्होंने 5 कारकों को आधार मानते हुए विश्व को 13 कृषि प्रदेश में वर्गीकृत किया था। किसी भी भौगोलिक प्रदेश में कृषि के विभिन्न तत्वों के बीच अगर समरूपता पायी जाती है तो वैसे प्रदेश को कृषि प्रदेश कहते हैं। कृषि प्रदेश के निर्धारण में प्रमुख फसल, उत्पादन की प्रक्रिया, पूंजी एवं तकनीक के प्रयोग का स्तर, फसल और पशुओं तथा फसलों के बीच साहचर्य, कृषि उत्पादों का विपणन इत्यादि को ध्यान में रखकर किया जाता है।

          कृषि प्रदेश के निर्धारण हेतु द्वितीय विश्वयुद्ध के पूर्व अनुभावाश्रित विधि को महत्व दिया जाता था लेकिन द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद कृषि प्रदेशों के निर्धारण हेतु सांख्यिकी विधि का प्रयोग किया जाने लगा। सांख्यिकी विधि के आधार पर फसल संयोजन को प्राथमिकता दी गई। वर्तमान समय में सांख्यिकी विधि पर आधारित फसल संयोजन के आधार पर भारतीय कृषि प्रदेश का निर्धारण किया जा रहा है।

     भारतीय भूगोलवेत्ता प्रो० मुहम्मद शफी, पीठावाला, चतुर्भुज ममोरिया जैसे लोगों ने फसल संयोजन, फसलों की विशेषता, फसलों की प्रमुखता के अलावे स्थलाकृतिक विशेषता जलवायु, मृदा तथा जनसंख्या दबाव को आधार मानते हुए कृषि प्रदेश का निर्धारण किया है। वास्तव में यह विधि अनुभावाश्रित सह सांख्यिकी विधि पर आधारित है। इन भूगोलवेत्ताओं ने भारत को छः कृषि प्रदेशों में वर्गीकृत दिया है। जैसे-

(1) फल एवं सब्जी कृषि प्रदेश

(2) चावल, जूट और चाय कृषि प्रदेश

(3) गेहूँ एवं गन्ना कृषि प्रदेश

(4) ज्वार, बाजरा एवं तेलहन कृषि प्रदेश

(5) मक्का एवं मोटे अनाज वाले कृषि प्रदेश

(6) कपास आधारित कृषि प्रदेश

(1) फल एवं सब्जी कृषि प्रदेश:-

      इसके अन्तर्गत हिमालय प्रदेश को शामिल करते हैं। हिमालय प्रदेश के पर्वतीय मिट्टी मुख्यतः शिवालिक के ढाल तथा अन्तरा पर्वतीय घाटियों में मिलती है। ढाल पर फलों की खेती होती है जबकि घाटी में सब्जी की खेती होती है। वस्तुतः इस प्रदेश में होने वाले पर्यटन, नगरीकरण और अन्तरर्राष्ट्रीय बाजार में होने वाली माँग के कारण इस कृषि प्रदेश का विकास हुआ है।

      वस्तुतः फल एवं सब्जी कृषि प्रदेश के अन्तर्गत 10% भूमि शामिल है। लेकिन आर्थिक मूल्य के दृष्टि से सबसे प्रमुख प्रदेश है। परंपरागत रूप से यह कृषि प्रदेश झूम कृषि, सीढ़ीनुमा कृषि तथा यायावर जीवन के लिए प्रसिद्ध रहा है। पुन: इस कृषि प्रदेश में कश्मीर की घाटी में चावल & उत्तरी-पूर्वी भारत के ढालों पर चाय की खेती की जाती है। हिमालय प्रदेश के कृषि प्रदेश को पुनः दो भागों में बांटा जाता है-

(i) प० हिमालय की कृषि प्रदेश

(ii) पूर्वी हिमालय की कृषि प्रदेश

      दोनों प्रदेशों में पहाड़ी के ढालों पर आलू कृषि की प्राथमिकता दी जाती है। प० हिमालय में इसकी सर्वाधिक खेती लाहूल एवं स्फीति घाटी में की जाती है। पूर्वी हिमालय में मुख्यतः उष्णकटिबंधीय फलों की व्यापारिक खेती की जाती है जिसमें अनानस तथा नारंगी प्रमुख है। प० हिमालय सेब की खेती के लिए प्रसिद्ध है। कुल्लू तथा कांगड़ा घाटी उच्च कोटि के सेब उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है।

      पुनः प० हिमालय कशर उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है। कश्मीर का डोडा जिला और हिमाचल प्रदेश के कई जिलों में इसकी कृषि होती है। पश्चिम हिमालय अखरोट और अंगूर जैसे फसलों के लिए प्रसिद्ध है। अंगूर की कृषि, पीर-पंजाल के दक्षिणी ढाल पर, आखरोट की खेती बनिहाल में सबसे अधिक की जाती है।

    स्पष्ट है कि हिमालय क्षेत्र फल एवं सब्जी उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ इटली और बुल्गारिया के सहयोग से फल एवं सब्जी का उत्पादन किया जा रहा है। इस क्षेत्र के उत्पाद अपनी गुणवत्ता के लिए विश्व प्रसिद्ध है।

(2) चावल, जूट और चाय कृषि प्रदेश:-

      इस प्रदेश में भारत के वैसे क्षेत्र को शामिल किया जाता है जहाँ वार्षिक वर्षा 100-200 cm और तापमान 80°F से 90°F होती है। पूर्वी उत्तर प्रदेश, सम्पूर्ण बिहार बंगाल, असम की घाटी, पूर्वी एवं पश्चिमी तटवर्ती मैदान को इसमें शामिल करते हैं। ये क्षेत्र भारत के 3/4 चावल का उत्पादन करते है। बंगाल, आन्ध्र प्रदेश और उत्तर प्रदेश चावल के सबसे बड़े उत्पादक राज्य है।

    जलोढ़ समतल मैदान, अनुकूल वर्षा एवं श्रम के अधिकता के कारण चावल कृषि का विकास अधिक हुआ है। इस प्रदेश का कृषक जूट, चाय व नारियल की खेती वाणिज्यिक फसल के रूप में करता है। जूट की कृषि तराई, प० बंगाल, पूर्वी बिहार ‌और महानदी के डेल्टाई भाग में की जाती है। चाय की खेती असम और प० बंगाल के पर्वतीय ढालों पर की जाती है। तटवर्ती मैदान में नारियल की कृषि होती है। इस प्रदेश में तम्बाकू हाल के वर्षों में प्रवेश किया है।

      ऊपर के तथ्यों से स्पष्ट है कि यह प्रदेश विविध प्रकार के फसलों के लिए प्रसिद्ध है। लेकिन चावल एक ऐसा फसल है जो सम्पूर्ण प्रदेश को जोड़ता है।

(3) गेहूँ एवं गन्ना कृषि प्रदेश:-

       यह प्रदेश भारत के उपार्द्र जलवायु प्रदेश में स्थित है। इसके अंतर्गत सतलज के मैदान पंजाब, हरियाणा, उ० राजस्थान और प० UP को शामिल करते हैं। इस प्रदेश की सबसे प्रमुख फसल गेंहूँ है। जोड़े की ऋतु में पछुआ विक्षोभ से हल्की बारिश होती है जो गेहूँ फसल के लिए लाभकारी होता है। इस प्रदेश में गेहूँ एवं गन्ना की खेती किये जाने के अन्य कारण भी मौजूद है। जैसे- पुरानी जलोढ़ मिट्टी के मैदान उपलब्ध है। इस क्षेत्र में जुझारू किसान रहते है। सिंचाई साधनों का विकास बड़े पैमाने पर किया गया है।

          UP गेहूँ और गन्ना उत्पादन में सबसे अग्रणी राज्य है। यह प्रदेश अन्न भण्डार के रूप में जानी जाती है। इस क्षेत्र में संरचनात्मक सुविधाओं के विकास के कारण नवीन फसल जैसे- चावल, कपास, चारा, तेलहन और दलहन फसलों का आगमन हुआ है। भारत में हरित क्रांति और दुग्ध क्रांति सर्वाधिक सफल इसी प्रदेश में हुआ है।

(4) ज्वार, बाजरा एवं तेलहन कृषि प्रदेश:-

     इसके अन्तर्गत प्रायद्वीपीय भारत के 50-125 cm वर्षा वाले क्षेत्र को शामिल करते हैं। इन फसलों का क्षेत्र मुख्यतः लाल एवं लेटेराइट मिट्टी पर आधारित है। वर्षा की कम मात्रा और वर्षा की अनिश्चितता के कारण यहाँ के कृषक मोटे अनाजों की खेती करते हैं। ज्वार तथा बाजरा के उत्पादन में भारत विश्व का अग्रणी देश है। ज्वार उत्पादन में महाराष्ट्र और बाजरा के उत्पादन में राजस्थान सबसे अग्रणी है। इस प्रदेश में परंपरागत रूप से टोपायका मडुवा की खेती की जाती है।

(5) मक्का एवं मोटे अनाज वाले कृषि प्रदेश:-

      यह कृषि प्रदेश के शुष्क जलवायु कृषि प्रदेश में स्थित है। यहाँ वर्षा 50 cm से कम होती है। भारत में इस कृषि प्रदेश का विकास तीन क्षेत्रों में हुआ है:-

(i) प्रायद्वीपीय भारत के वृष्टि छाया प्रदेश- यहाँ की मक्का और ज्वार प्रमुख फसल है।

(ii) प० राजस्थान और गुजरात- यहाँ का प्रमुख फसल मक्का है।

(ii) लद्दाख क्षेत्र- यहाँ का मुख्य फसल मक्का है।

     वस्तुतः ये प्रदेश अत्यन्त ही सूखा ग्रस्त क्षेत्र है। भूमिगत जलस्तर काफी नीचे है। भौगोलिक परिस्थितियाँ प्रतिकूल है। संरचनात्मक सुविधाओं का विकास नहीं हो सका है। जिसके कारण उत्पादकता बहुत कम है।

(6) कपास आधारित कृषि प्रदेश:-

        यह दक्वन लावा पठारीय भाग पर स्थित है। यह प्रदेश महाराष्ट्र, गुजरात, मालवा के पठार, तेलंगाना के पठार, कोयम्बटूर पठार, कर्नाटक का पठार पर स्थित है। यह विश्व का सबसे बड़ा कपास की पेटी है। यहाँ की सबसे प्रमुख फसल कपास है क्योंकि इस प्रदेश में अति उर्वर काली मिट्टी पायी जाती है। मिट्टी में लम्बे समय तक नमी धारण करने की क्षमता होती है। वर्षा 75-100 cm तक हो जाती है।

     कपास आधारित कृषि प्रदेश में ज्वार की खेती की जाती है। हाल के वर्षों में गन्ना का आगमन नकदी फसल के रूप में हुआ है।

निष्कर्ष:-

      इस तरह ऊपर के तथ्यों से स्पष्ट है कि भारत के अलग-2 क्षेत्रों में मुख्यतः 6 कृषि प्रदेश का विकास हुआ है। पुनः प्रत्येक कृषि प्रदेश में अभूतपूर्व फसलों में विविधता दिखाई देती है। पुनः यह कृषि प्रदेश गत्यात्मक है क्योंकि प्रत्येक प्रदेश परंपरागत रूप से विशेष फसलों के लिए जाने जाते थे, लेकिन वर्तमान समय में विभिन्न फसलों के लिए जाने जाते है अर्थात जिन प्रदेशों में संस्थागत संरचनात्मक सुविधाओं का ज्योंहि विकास किया जाता है त्यों ही उस प्रदेश में नवीन फसलों का आगमन हो जाता है। इस प्रकार सरंपरागत पह‌चान को त्यागक नवीन पहचान स्थापित क देते हैं।

I ‘Dr. Amar Kumar’ am working as an Assistant Professor in The Department Of Geography in PPU, Patna (Bihar) India. I want to help the students and study lovers across the world who face difficulties to gather the information and knowledge about Geography. I think my latest UNIQUE GEOGRAPHY NOTES are more useful for them and I publish all types of notes regularly.

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