2. मार्क्स का जनसंख्या सिद्धांत (Marx’s population theory)
2. मार्क्स का जनसंख्या सिद्धांत
(Marx’s population theory)
मार्क्स का जनसंख्या सिद्धांत ⇒
मार्क्स को साम्यवादी चिन्तन का जन्मदाता माना जाता है। इन्होंने 1867 ई० में जनसंख्या पर अपना विचार प्रकट किया था। मार्क्स के पहले जितने भी विद्वान थे उन्होंने जनसंख्या वृद्धि को जैविक प्रक्रिया मानते थे। जबकि मार्क्स ने पहली बार जनसंख्या वृद्धि को सामाजिक संकल्पना पर आधारित माना।
कार्ल मार्क्स अपने साम्यवादी चिन्तन में कहा था कि पूरी दुनिया दो वर्गों में विभाजित है- “एक अमीर वर्ग और दूसरा गरीब वर्ग”। उनके अनुसार अमीरों का वर्ग हमेशा सम्पति एकत्रित में लगा रहता है। अमीर वर्ग कम से कम श्रमिक का उपयोग कर अधिक से अधिक उत्पादन करना चाहता है। तकनीक के प्रयोग पर अधिक से अधिक जोर देता है। वह श्रमिकों को कम-से-कम मजदूरी देकर अधिक औद्योगिक उत्पादन कर अधिक से अधिक लाभ कमाना चाहता है। इस तरह उसके पास समय अभाव के कारण जनसंख्या वृद्धि का मौका नहीं मिल पाता है।
दूसरी तरफ समाज का वह वर्ग जो गरीबी से गुजर रहा है। उनमें निराशा का वातावरण होता है। जीविका उपार्जन हेतु श्रम के अलावे कोई दूसरा उपाय नहीं दिखता है। अत: गरीब वर्ग ज्यादा से ज्यादा धन एकत्रित करने हेतु श्रम का एकत्रीकरण शुरू कर देता है। फलतः जनसंख्या वृद्धि स्वाभाविक रूप से बढ़ते रहती है।
मार्क्स ने मजदूरी और जन्म दर एवं मृत्यु दर के बीच प्रतिकूल सह सम्बन्ध पाया है।
मजदूरी ∝ 1 ⁄ जन्म दर एवं मृत्यु दर
उपरोक्त सूत्र के आधार पर उन्होंने बताया कि कम मजदूरी भी जनसंख्या विस्फोट की स्थिति उत्पन्न करती है। जब जनसंख्या का विस्फोट हो जाता है तो उस विस्फोटित जनसंख्या के सामने चार प्रकार की समस्या उत्पन्न होती है-
(1) बेरोजगारी
(2) कुपोषण
(3) गरीबी और
(4) कष्टकर जीवन
उपरोक्त समस्याएँ गरीब एवं श्रमिक वर्ग को बेचैन कर देती है, जिसके कारण वर्ग संघर्ष प्रारंभ हो जाता है। मार्क्स ने बताया कि वर्ग संघर्ष से ही सभी आर्थिक, सामाजिक समस्याओं का समाधान होता है। धन सही रूप से समाज में वितरण हो जाता है। वर्ग संघर्ष में कई लोग मारे जाते हैं जिससे जनसंख्या में कमी आती है।
मार्क्स का जनसंख्या सिद्धांत का आलोचना
मार्क्स के द्वारा प्रस्तुत जनसंख्या वृद्धि सिद्धांत की कई आधारों पर आलोचना की गई है। जैसे:-
(1) मार्क्स ने धर्म, विश्वास एवं जैविक प्रक्रिया को जनसंख्या वृद्धि का प्रमुख कारण नही माना है। जबकि क्लार्क महोदय के अनुसार जनसंख्या वृद्धि का प्रमुख कारण धर्म है, जबकि जननांकी संक्रमण सिद्धांत के अनुसार जनसंख्या वृद्धि का मूल कारण जैविक प्रक्रिया है।
(2) मार्क्स के अनुसार बढ़ती जनसंख्या से मजदूरी में सापेक्षिक कमी आती है। जबकि वास्तव में यह एक गलत अवधारणा है, क्योंकि लोक कल्याणी राज्यों में मजदूरी का निर्धारण लोग स्वयं नहीं करते हैं, यह सरकार के द्वारा किया जाता है।
(3) मार्क्स के अनुसार निजी सम्पत्ति और पूँजीपति समाज का विकास ही अप्रत्यक्ष रूप से जनसंख्या विस्फोट का कारण है लेकिन पश्चिमी यूरोप के संदर्भ में यह अवधारणा गलत साबित होती है।
(4) ड्यू मॉन्ट (फांसीजी)⇒
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद कल्याणकारी राज्य की अवधारणा में अभिवृद्धि हुई है। इसके साथ ही साक्षरता में भी वृद्धि हुई है। समाज में चाहे अमीर हो या गरीब यह भावना पनपी है कि नियोजित और छोटा जीवन अधिक से अधिक खुशहाली ला सकता है। इससे स्पष्ट होता है कि जनसंख्या वृद्धि अमीरी & गरीबी से जुड़ी हुई नहीं है।
(5) अधिकतर विकासशील देशों में ऐसा देखने से लगता है कि अप्रत्याशित जनसंख्या वृद्धि का संबंध निम्न मजदूरी है। लेकिन यह वास्तव में यह निम्न मजदूरी से जुड़ा हुआ नहीं है बल्कि निम्न स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़ा हुआ है अर्थात् निम्न स्वास्थ्य का स्तर होने के कारण बच्चों के जीवित रहने की गारंटी नहीं होती है। फलत:, सामान्य व्यक्ति अधिक से अधिक बच्चा चाहता है।
निष्कर्ष :
उपरोक्त आलोचनाओं के बावजूद इनकी अवधारणा उचित जान पड़ती है क्योंकि कहीं न कहीं गरीबी, बेरोजगारी और जनसंख्या में सह-संबंध है। एडम स्मिथ ने कहा है कि गरीबी जनसंख्या वृद्धि के लिए उपयुक्त वातावरण निर्माण करती है। मार्क्स के द्वारा व्यक्त यह विचार व्यक्त किया गया कि बढ़ती हुई जनसंख्या राष्ट्र की संपत्ति होती है। यह भी सापेक्षिक रूप से सही प्रतीत होता है। जैसे -भारत में ही कुछ समय पहले तक जनसंख्या वृद्धि को एक अभिशाप के रूप में माना जाता था। जबकि Out Soursing, BPO, सूचना क्रांति के आगमन ने भारतीय जनसंख्या को संसाधन के रूप में बदल दिया है।