11. Earthquake / भूकंप
11. Earthquake / भूकंप
Earthquake / भूकंप
भूकम्प दो शब्दों के मिलने से बना है- भू + कम्प
भू = भूपटल
कम्प = कम्पन
इस प्रकार भूपटल में उत्पन्न होने वाला किसी भी प्रकार के कम्पन को भूकम्प कहते है।
★समुद्र के अंदर उत्पन्न होने वाले भूकंप को सूनामी (Tsunami) कहते है।
★ सूनामी जापानी शब्द है जिसका अर्थ समुद्री तरंग होता है।
★ विज्ञान की वह शाखा जिसमें भूकम्प का अध्ययन किया जाता है उसे सिस्मोलोजी (Seismology) कहते है।
★ भूपटल के जिस बिंदु से भूकम्प प्रारंभ होती है। उसे भूकम्प केंद्र या भूकंप मूल या हाइपोसेंटर (Focus) कहते है।
प्रघात (Shocks)-
अधिकेंद्र पर भूकम्पीय तरंग के द्वारा अनुभव किया गया पहला भूकम्पीय झटका को प्रघात कहते है । जब भूकंप समाप्त हो जाता है तो कई दिनों तक हल्के भूकम्प के झटके महसूस किए जाते है उसे After Shock कहा जाता है।
★ बिहार में औसतन प्रत्येक 17 वर्ष पर भूकम्प आता है।
सिस्मोग्राफ
सिस्मोग्राफ भूकम्पीय तरंगों के प्रवृति को रेखांकन करने वाला यन्त्र है।
समभूकम्प रेखा
समान भूकम्पीय तीव्रता वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखा को समभूकम्पीय रेखा (Isoseismal line) कहते है।
सहभूकम्प रेखा
एक ही समय पर पहुँचने वाले भूकम्पीय तरंगों को मिलाने वाली सरल रेखा को सहभूकम्प रेखा (Homoseismal line) कहते है।
भूकम्प के प्रकार
भूकम्प का वर्गीकरण दो आधार पर किया जाता है:-
(A) गहराई के आधार पर
(B) समय के आधार पर
(A) गहराई के आधार पर
गहराई के आधार पर भूकम्प तीन प्रकार के होते है–
(i) सामान्य गहराई के भूकंप– फोकस 50 KM से ऊपर होता है।
(ii) मध्यम गहराई के भूकंप– फोकस 50-250 KM के बीच
(iii) अधिक गहराई के भूकंप– फोकस 250-700 KM के बीच
(B) समय के आधार पर
समय के आधार पर भूकम्प दो प्रकार के होते है:-
(i) धीमा भूकम्प
(ii) अचानक भूकम्प
➤ धीमा भूकम्प की तीव्रता कम होती है लेकिन इसके झटके लम्बे समय तक अनुभव किये जाते है। ऐसे भूकम्प से ही वलित पर्वत तथा पठारों का निर्माण होता है।
➤ अचानक भूकम्प की तीव्रता अधिक होती है। इसके झटके अति उच्च समय तक अनुभव किये जाते है। इसके चलते इससे ज्वालामुखी पर्वत तथा ब्लॉक पर्वत का निर्माण होता है।
➤ विश्व में सर्वाधिक कम गहराई वाले भूकंप या छिछले उदगम वाले भूकम्प आते हैं जिसका प्रभाव लम्बे समय तक होता है।
भूकम्प के कारण
भूकम्प क्यों आते है उन कारणों को दो भागों में बाँटकर अध्ययन किया जा सकता है:-
(A) मानवीय कारण
(B) प्राकृतिक कारण
(A) मानवीय कारण:-
(i) परमाणु विस्फोट
(ii) मानव के द्वारा किया जा रहा खनन कार्य
(iii) बड़े-बड़े बाँधों का निर्माण
(iv) पर्वतीय क्षेत्रों में किया जा रहा विकास कार्यक्रम जैसे- सड़क निर्माण इत्यादि।
(B) प्राकृतिक कारक:-
ज्वालामुखी उदगार, मोड़दार एवं ब्लॉक पर्वत का निर्माण जब कभी होता है तो भूकम्प आने से संबंधित प्राकृतिक कारणों की व्याख्या होती है। भूकम्प आने से संबंधित प्राकृतिक कारणों की व्याख्या करने हेतु दो सिद्धान्त प्रस्तुत किये गए है:-
(1) प्रत्यास्थ पुनश्चलन का सिद्धान्त (Elastic Rebond Theory)
इस सिद्धांत को अमेरिकी वैज्ञानिक H.F. रीड ने दिया था। इनके अनुसार भुपटल प्रत्यास्थ चट्टानों से निर्मित है। जब इन चट्टानों पर बाहरी दबाव बल कार्य करता है तो चट्टानें फैलती है और जब दबाव हटता है तो चट्टानें सिकुड़ने के क्रम में ही भूकम्प उत्पन्न होता है।
(2) प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त (Plate Tectonic Theory)
इस सिद्धान्त के प्रतिपादक हैरीहेस महोदय है। इन्होंने बताया कि पृथ्वी का भूपटल कई प्लेटों से निर्मित है। यही प्लेट जब क्षैतिज या उदग्र रूप से गति करते है तो भूकम्प उत्पन्न होते है। प्लेटों में सर्वाधिक भूकम्प प्लेट के किनारे अनुभव किये जाते है। भूकम्प के आधार पर प्लेट के किनारों को तीन भागों में बांटा गया है–
(i) अपसरण सीमा
(ii) अभिसरण सीमा
(iii) संरक्षी सीमा
जैसे:-
(i) चन्द्रमा एवं ब्रहाण्डीय पिण्डों का आकर्षण बल
(ii) एक प्लेट के सापेक्ष में दूसरे प्लेट का 45° कोण पर झुका हुआ होना
(iii) पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल
(iv) दुर्बलमण्डल में उत्पन्न होने वाला संवहन तरंग
प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त में उपरोक्त सभी कारणों को भूकम्प के लिए जिम्मेवार बताये गये है लेकिन इनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण संवहन तरंग है। जिन किनारों पर संवहन तरंग ऊपर की ओर उठकर फैलने की प्रवृति रखती है वहाँ पर अपसरण सीमा का निर्माण होता है और प्लेटों में उत्पन्न होने वाले गति को अपसरण गति कहते है।
जैसे- अटलांटिक कटक के सहारे
भूकम्प का वितरण
विश्व में मुख्यतः भूकम्प के तीन क्षेत्र है:-
(i) प्रशांत महासागर के चारों ओर–
विश्व में सर्वाधिक भूकम्प प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में ही आती है। यहाँ अधिकांश गहरे केंद्र वाले भूकम्प आते है।
(ii) मध्य महाद्वीपीय क्षेत्र–
यह क्षेत्र यूरेशियन प्लेट और इसके दक्षिण में स्थित भारतीय प्लेट तथा अफ्रीकन प्लेट के मध्य स्थित है। यहाँ मध्यम एवं छिछले किस्म के भूकम्प आते है।
(iii) मध्य अटलांटिक कटक-
अटलांटिक महासागर में अपसरण सीमा के सहारे भूकम्प आती है जिसका विस्तार उत्तर में आइसलैंड से दक्षिण में बोबेट द्वीप तक हुआ है।
भूकम्पीय तीव्रता एवं इसका मापन
भूकम्प के आगमन के दौरान बड़ी मात्रा में ऊर्जा का उत्सर्जन होता है, इसी ऊर्जा का मापन भूकम्पीय तीव्रता कहलाता है। वैज्ञानिकों ने भूकम्पीय तीव्रता की मापन हेतु दो प्रकार के पैमाने का विकास किया है–
1. मार्सेली पैमाना
2. रिचर पैमाना
मार्सेली पैमाना
मार्सेली पैमाना का विकास फ्रांस के मार्सेली महोदय द्वारा किया गया था। इन्होंने इसे ज्ञानेन्द्रियों के अनुभव एवं विनाशकारी प्रभाव पर विकसित किया। इस पैमाने से न्यूनतम 1 और अधिकतम 12 इकाई तक भूकम्पीय तीव्रता का मापन किया जाता है।
रिचर पैमाना
रिचर पैमाना का विकास 1835 ई० में सी.एफ. रिचर महोदय ने किया था। इसके अंतर्गत भूकम्पीय तीव्रता का मापन 1 से 9/10 इकाई तक किया जाता है। रिचर पैमाना में भूकम्पीय तीव्रता का मापन स्केल पर अंकित हर अगला अंक अपने ठीक पिछले अंक की तुलना में 10 गुना अधिक तीव्र होता है।
रिचर पैमाना पर तीव्रता | प्रभाव |
1 | केवल यंत्रों द्वारा अनुभव किया जाता है। |
2 | केवल अधिकेन्द्र के पास हल्का कम्पन होता है। |
3 | चट्टानों में सामान्य कम्पन होती है। |
4 | केन्द्र से 32 किमी० की त्रिज्या में भूकम्प अनुभव की जाती है। |
5 | अधिकेन्द्र से 5 हजार किमी० की दूरी तक भूकम्प अनुभव किया जाता है और पेड़-पौधे हिलने लगते हैं। |
6 | विनाश प्रारंभ हो जाता है और दीवारों में दरारें पड़ने लगती हैं। |
7 | दीवारें ध्वस्त हो जाती है, वृहत भूकम्प की स्थिति उत्पन्न होती है। |
8 | इसका प्रभाव विश्वव्यापी होती है, नदियाँ अपना मार्ग बदल लेती है। |
9 | सम्पूर्ण सर्वनाश (नदी, नाला, मकान स्थिति उत्पन्न हो जायेगी। |
भूकम्पीय तरंग एवं इसकी विशेषता
भूकम्प के दौरान कई प्रकार के प्रमुख एवं गौण तरंगों की उत्पति होती है:-
(A) प्रमुख तरंग
1. P तरंग
2. S तरंग
3. L तरंग
(B) गौण तरंग
1. P* तथा S*
2. Pg तथा Sg
(A) प्रमुख तरंग
P तरंग
P तरंग को कई नामों से जानते है। जैसे: प्राथमिक तरंग, Pull & Push तरंग या अनुधैर्य तरंग। इसे ध्वनि तरंग से तुलना की जा सकती है क्योंकि यह ठोस, द्रव्य तथा गैस तीनों प्रकार के माध्यम से संचारित हो सकती है। इसकी गति 7.8 Km/Sec होती है। P तरंग भूकम्प रिकॉर्डिंग स्टेशन पर सबसे पहले पहुँचती है या अनुभव किया जाता है। इसकी उत्पत्ति भूकम्पीय केंद्र / फोकस से होती है।
S तरंग
S तरंग को द्वितीयक तरंग या अनुप्रस्थ तरंग कहते है। इसकी तुलना प्रकाश तरंग से की जा सकती है। यह तरंग तरल भाग में विलुप्त हो जाती है। भूकम्प रिकॉर्डिंग स्टेशन पर P तरंग की तुलना में S तरंग देरी से पहुंचती है। S तरंग की भी उत्पति भूकम्पीय केंद्र / फोकस से होती है।
➤ P तरंग अपने संचरण अक्ष के क्षैतिज जबकि S तरंग अपने संचरण मार्ग के लम्बवत गमन करती है। S तरंग की औसत गति 4.5 Km/Sec होता है।
L तरंग
L तरंग को सतही तरंग भी कहा जाता है। L तरंग की उत्पति अधिकेंद्र (Epicentre) से होती है। L तरंग रिकॉर्डिंग स्टेशन पर सबसे देर से पहुँचती है। इसी तरंग के कारण सर्वाधिक क्षति होती है। L तरंग की गति काफी अनियमित होती है।
भूकंपीय छाया क्षेत्र (Shadow Zone)
भूकंप लेखी यंत्र (सिस्मोग्राफ) पर दूर के क्षेत्रों से आने वाली भूकंपीय तरंग अंकित होती हैं, परन्तु कुछ ऐसे क्षेत्र भी हैं जहाँ कोई भी भूकंपीय तरंग अंकित नहीं होती है, ऐसे क्षेत्र को भूकंपीय छाया क्षेत्र कहते है।
➤ भूकंप अधिकेंद्र से 105° और 145° के बीच का क्षेत्र जहाँ कोई भी भूकंपीय तरंग अंकित नहीं होती है। यह क्षेत्र दोनों प्रकार की तरगों के लिए छाया क्षेत्र (Shadow zone) हैं।
➤ 105° के परे पूरे क्षेत्र में ‘S’ तरंगें नहीं पहुँचतीं।
➤ ‘S’ तरंगों का छाया क्षेत्र ‘P’ तरंगों के छाया क्षेत्र से अधिक विस्तृत है।
➤ भूकंप अधिकेंद्र के 105° से 145° तक ‘P’ तरंगों का छाया क्षेत्र एक पट्टी (Band) के रूप में पृथ्वी के चारों तरफ प्रतीत होता है।
➤ ‘S’ तरंगों का छाया क्षेत्र न केवल विस्तार में बड़ा है, वरन् यह पृथ्वी के 40 प्रतिशत भाग से भी अधिक है।
(B) गौण तरंग
पृथ्वी का भुपटल मुख्यत: दो प्रकार के चट्टानों से निर्मित है:-
(1) ग्रेनाइट तथा
(2) बैसाल्ट चट्टान
P* & S* ऐसा तरंग है जो केवल बैसाल्टिक चट्टानों से होकर गुजरती है।
P* की गति=6-7 Km/Sec
S* की गति=3-4 Km/Sec
ये तरंग समुद्री भूपटल और महाद्वीपों के आंतरिक भागों में चलती है। इस तरंगों की खोज 1923 ई० में कोनार्ड महोदय के द्वारा किया गया था। इस तरंगों की खोज कोनार्ड ने टायर्न में आये भूकम्प के दौरान किया गया था।
Pg & Sg तरंग
ये दोनों तरंगे ग्रेनाइट चट्टानों से होकर गुजरती है। इसका खोज जेफरीज महोदय ने 1909 ई० में क्रोएशिया (Croatia) के कुपा घाटी में आये भूकम्प के दौरान किया था।
Pg तरंग की औसत गति =5.4 Km/Sec
Sg तरंग की औसत गति =3.3 Km/Sec
Pg & Sg एक ऐसी तरंग है जो केवल महाद्वीपीय भागों से होकर गुजरती है।
निष्कर्ष:-
इस तरह उपर्युक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि भूकम्प के दौरान अलग-अलग प्रकार के तरंगों की उत्पत्ति होती है जिनकी अपनी विषिष्टता होती है। इन्हीं विशिष्टताओं के आधार पर पृथ्वी के आंतरिक भागों के अध्ययन वैज्ञानिक तरीके से किया जाता है।
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