7. Plate Tectonic Theory / प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत
7. Plate Tectonic Theory
(प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत)
Plate Tectonic Theory
प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत⇒
प्लेट विवर्तनिकी एक ऐसा सिद्धान्त है जो भू-भौतिकी से संबंधित अनेक घटनाओं जैसे- पर्वत निर्माण, भूकंप, ज्वालामुखी क्रिया इत्यादि के संबंध में व्यक्त किये गये सभी परम्परागत सिद्धान्तों का परित्याग कर एक नया विचार प्रस्तुत करता है।
इस परिकल्पना के अनुसार पृथ्वी का ऊपरी भाग दृढ़ भूखंडों से निर्मित है। ये भूखंड कई भागों में विभक्त है, इसके एक भाग को प्लेट से संबोधित करते है। अर्थात् पृथ्वी के ऊपरी ठोस परत को ही प्लेट कहते है। इसके अंतर्गत न सिर्फ महाद्वीपीय एवं महासागरीय भूपटल (Crust) शामिल हैं बल्कि मैंटल का ऊपरी पतला हिस्सा भी शामिल है। वास्तव में यह स्थलमंडल (Lithosphere) ही है, जिसके नीचे दुर्बलमंडल (Astheno sphere) स्थित है।
सर्वप्रथम वर्ष 1955 में कनाडा के भू-वैज्ञानिक जे. टूजो विल्सन (J-Tuzo Wilson) ने ‘प्लेट’ शब्द का प्रयोग किया था। इन प्लेटों के स्वभाव और प्रवाह से संबंधित अध्ययन को ही प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त कहते है। यह सिद्धांत किसी एक व्यक्ति द्वारा प्रतिपादित नहीं है बल्कि इसमें कई विद्धानों (मोर्गन, मैकेंजी व पार्कर इत्यादि) का योगदान है। इस सिद्धांत के विकास में पहले से चली आ रही निम्नलिखित तीन सिद्धांतों का महत्वपूर्ण योगदान हैः-
(i) महाद्वीपीय प्रवाह सिद्धांत (अलफ्रेड वेगनर, 1912 ई.)
(ii) संवहन तरंग सिद्धांत (ऑर्थर होम्स, 1929 ई.)
(iii) समुद्र तली प्रसार सिद्धांत (हैरीहेस, 1960 ई.)
परंतु 1962 ई० में हैरिहस महोदय ने इन सभी विचारों को संगठित कर एक सिद्धान्त के रूप में प्रस्तुत किया।
{नोट:
♣ प्लेट शब्द- टूजो विल्सन
♣ प्लेट विवर्तनिकी शब्द- मोर्गन
♣प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत का प्रतिपादन- हैरिहेस
♣ प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत की वैज्ञानिक रूप से विस्तृत व्याख्या- मोर्गन
♣ प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत में अन्य भू-वैज्ञानिक जो सहायता किए- मैकेंजी व पार्कर}
प्लेटों का स्वभाव तथा संख्या
इस परिकल्पना के अनुसार प्लेटों की अधिकतम मोटाई महाद्वीपीय भागों में 100 किमी० और न्यूनतम मोटाई महासागरीय भागों में 5 किमी० तथा औसत मोटाई 70 किमी० है। अमेरिकी अर्थ साइंस के अनुसार पृथ्वी के 7 बड़े और 6 छोटे प्लेट निम्नलिखित है-
प्रमुख प्लेट (बड़े प्लेट)- 7
1. प्रशांत महासागरीय प्लेट
2. उ० अमेरिकी प्लेट
3. द० अमेरिकी प्लेट
4. अफ्रीकन प्लेट
5. यूरेशियन प्लेट
6. इण्डियन प्लेट (इंडो-ऑस्ट्रेलियन प्लेट)
7. अंटार्कटिका प्लेट
नोट: कुछ विद्वान उत्तरी अमेरिका एवं दक्षिणी अमेरिका को एक ही प्लेट मानते हैं। ऐसी स्थिति में बड़े प्लेटों की संख्या 6 हो जाती है।
गौण प्लेट (छोटे प्लेट)- 6
(i) अरेबियन प्लेट
(ii) फिलीपींस /फिलीपाइन प्लेट
(iii) कोकस प्लेट
(iv) नास्का प्लेट
(v) स्कोशिया प्लेट
(vi) कैरेबियन प्लेट
प्लेटों के प्रकार
⇒ गति के आधार पर
इस सिद्धांत के अनुसार गति के आधार पर प्लेटों को दो भागों में बांटा जाता है–
1. स्थिर प्लेट
2. गतिशील प्लेट
स्थिर प्लेटों के नीचे संवहन तरंगे नहीं चल रही है जबकि गतिशील प्लेटों के नीचे संवहन तरंगे चल रही है।
⇒ संरचना के आधार पर
संरचना के दृष्टिकोण से प्लेट दो प्रकार के होते है-
1. महासागरीय प्लेट:- प्रशांत महासागरीय प्लेट, इण्डियन प्लेट या इंडो-ऑस्ट्रेलियाई प्लेट।
⇒ गति- 5 सेमी० प्रति वर्ष
2. महाद्वीपीय प्लेट:- उ० अमेरिकी प्लेट, द० अमेरिकी प्लेट, अफ्रीकन प्लेट, युरेशियन प्लेट, अंटार्कटिका प्लेट।
⇒ गति- 2 सेमी० प्रति वर्ष
महासागरीय प्लेट बैसाल्ट चट्टानों से निर्मित है तथा इसका घनत्व (2.9 ग्राम/सेमी०3) अधिक है जबकि महाद्वीपीय प्लेट ग्रेनाइट चट्टानों से निर्मित है तथा इसका घनत्व (2.7 ग्राम/सेमी०3) कम है।
प्लेट सीमांत तथा प्लेट सीमा
इस सिद्धांत के अनुसार किसी एक प्लेट के किनारे या अंत के हिस्से को प्लेट सीमांत (Plate Margins) कहते है।
‘प्लेट सीमा’ (Plate Boundaries) दो या दो से अधिक प्लेटों के मध्य का वह क्षेत्र है जिसके सहारे वे आपस में मिलते (converge) हैं या दूर जाते (diverge) हैं या घर्षण (slide) करते हैं।
इसके अनुसार प्लेट में 3 प्रकार की सीमाएं होती है। इसे निम्न चित्रों में देखा जा सकता है-
प्लेटों के संचालन शक्तियाँ
इस सिद्धांत के अनुसार सभी प्लेट पृथ्वी के अक्ष का अनुसरण करते हुए पूरब से पश्चिम दिशा की ओर प्रवाहित हो रही है। प्लेटों में गति हेतु कई कारक उत्तरदायी माना गया है। जैसे-
(i) पृथ्वी के घूर्णन गति,
(ii) प्लवनशीलता बल,
(iii) गुरुत्वाकर्षण बल और प्लेटों का 45° पर प्रत्यावर्तन,
(iv) सूर्य एवं चन्द्रमा का ज्वारीय बल,
(v) संवहन तरंग आदि।
इस सिद्धांत के अनुसार प्लेटों में 3 प्रकार के गतियाँ पायी जाती है। जैसे-
(i) निर्माणकारी प्लेट गति- इसकी उत्पत्ति अपसरण प्लेट सीमा के सहारे होती है।
(ii) विनाशकारी प्लेट गति- इसकी उत्पति अभिसारी प्लेट सीमा के सहारे होती है।
(iii) संरक्षी प्लेट गति- इसकी उत्पति संरक्षी प्लेट सीमा के सहारे होती है।
प्लेटों का क्रियाविधि
उठती हुई संवहन तरंगे अपसरण सीमा को जन्म देती है। इसी सीमा के सहारे दरार का निर्माण होता है। इन दरारों से ही दुर्बलमंडल से लावा/मैग्मा निकलती है, जिससे ज्वालामुखी क्रिया होती है। गिरती हुई संवहन तरंगे अभिसारी सीमा का निर्माण करती है। इस सीमा के सहारे अधिक घनत्व वाले प्लेट कम घनत्व वाले प्लेट में घुसने की प्रवृति रखती है। प्लेट अत्यधिक अंदर जाकर पिघलती है और “बेनी ऑफ जोन” निर्माण करती है तथा चट्टानों के वलन के साथ-साथ ज्वालामुखी का उदगार भी होता है। इसे निम्न चित्र से समझा जा सकता है-
सिद्धांत के पक्ष में प्रस्तुत किये गए प्रमाण
प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत के समर्थन में निम्नलिखित प्रमाण प्रस्तुत किये गए है–
1. ज्वालामुखी:–
विश्व के ज्वालामुखी वितरण के अध्ययन से स्पष्ट है कि विश्व के अधिकांश ज्वालामुखी क्रियाएं अभिसारी प्लेट सीमा के सहारे होती है।
2. भूकम्प:–
भूकम्पीय वितरण के अध्ययन से स्पष्ट है कि विश्व में सर्वाधिक भूकम्प प्रशांत महासागर के चारों ओर स्थित क्षेत्रों में आती है। ये क्षेत्र संरक्षी प्लेट सीमा के सहारे स्थित है।
3. सागर नितल प्रसार और पुराचुम्बकत्व:-
सागर नितल प्रसार सिद्धान्त से स्पष्ट है कि सागर नितल प्रसार अपसारी सीमा के सहारे हो रही है तथा नवीन चट्टानों में पुराचुम्बकत्व का गुण कम तथा पुराने चट्टानों में पुराचुम्बकत्व का गुण अधिक पाया जाता है।
4. भूगर्भिक समस्याओं का समाधान:-
प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त के माध्यम से कई भूगर्भिक समस्याओं का समाधान होता है। जैसे- पर्वतों के उत्त्पति, भूकंप, भूसंचलन, महाद्वीपीय विखण्डन, समुद्री नितल प्रसार, पुराचुम्बकत्व, द्वीपीय चाप के निर्माण आदि।
आलोचना
उपरोक्त विशेषताओं के वाबजूद इस सिद्धांत की कई खामियाँ है। जैसे-
(i) प्लेटों की संख्या का स्पष्ट पता नहीं चल पाता है। जैसे-जैसे सर्वेक्षण किए जा रहे हैं, प्लेटों की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है।
(ii) हॉट स्पॉट की संख्या का भी स्पष्ट पता नहीं चल पाता है।
(iii) कई संभावित क्षेत्रों में बेनी ऑफ जोन का निर्माण नहीं हुआ है।
(iv) बेनी ऑफ जोन से निकलने वाला मैग्मा पदार्थ के परिणाम का वैज्ञानिक व्याख्या नहीं करता।
(v) प्लेटों में संवहन तरंगे क्यों उत्पन्न होती है? इसकी स्पष्ट व्याख्या नहीं किया गया है।
(vi) एक प्लेट को एक ही दिशा में गतिशील होना चाहिए, लेकिन कई प्लेटों में विपरीत (opposite) गति के प्रमाण भी मिलते हैं, जैसे- अफ्रीकी प्लेट।
(vii) कई प्राचीन मोड़दार पर्वतों के निर्माण की व्याख्या करने में यह सिद्धांत सक्षम नहीं है, जैसे- सेरा डो मार (Serra do Mar) पर्वत (ब्राजील), ड्रेकेन्सबर्ग पर्वत (दक्षिण अफ्रीका), ग्रेट डिवाइडिंग रेंज (ऑस्ट्रेलिया) आदि पर्वतों की अवस्थिति प्लेट सीमा पर नहीं है, वरन् प्लेटों के मध्य है।
(viii) रचनात्मक सीमा मध्य महासागरीय कटक के रूप में सभी महासागरों में पाए जाते हैं, लेकिन विनाशात्मक सीमा अथवा प्रत्यावर्तन क्षेत्र (सिंक/Sink) सभी महासागरों में नहीं पाए जाते हैं। ये मुख्यतः प्रशांत महासागर के तटों के सहारे ही देखे जाते हैं।
इन सीमाओं के वाबजूद भूगर्भ विज्ञान का एक क्रांतिकारी विचार है क्योंकि भूपटल से संबंधित सभी भूगर्भिक घटनाओं का एक बार में ही व्याख्या प्रस्तुत करता है।
Read More:
- भू-आकृति विज्ञान की प्रकृति और विषय क्षेत्र
- पृथ्वी की उत्पति (Origin Of The Earth)
- काण्ट की वायव्य राशि परिकल्पना (Kant’s Gaseous Hyphothesis)
- लाप्लास की निहारिका परिकल्पना (Nebular Hypothesis of Laplace)
- जेम्स जीन्स की ज्वारीय परिकल्पना (Tidal Hypothesis of James Jeans)
- रसेल की द्वैतारक परिकल्पना (Binary Star Hypothesis of Russell)
- बिग बैंग तथा स्फीति सिद्धान्त/महाविस्फोट सिद्धांत-जॉर्ज लैमेण्टर
- पृथ्वी की आंतरिक संरचना (Internal Structure of The Earth)
- भुसन्नत्ति पर्वतोत्पत्ति सिद्धांत- कोबर (GEOSYNCLINE OROGEN THEORY- KOBER)
- होम्स का संवहन तरंग सिद्धांत (Convection Current Theory of Holmes)
- भूसंतुलन /समस्थिति (ISOSTASY)
- वेगनर का महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त/Continental Drift Theory
- प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत/ Plate Tectonic Theory
- सागर नितल प्रसार का सिद्धांत/Sea Floor Spreading Theory
- ज्वालामुखी (Volcanism)
- ज्वालामुखी क्रिया द्वारा निर्मित स्थलाकृति(Volcanic Landforms )
- भूकम्प (Earthquake)
- भारत में भूकम्पीय क्षेत्र (Earthquake Region in India)
- अपरदन चक्र (CYCLE OF EROSION)- By- W.M. DEVIS
- नदी द्वारा निर्मित स्थलाकृति (River Landforms)
- हिमानी प्रक्रम और स्थलरुप (GLACIAL PROCESS AND LANDFORMS)
- पवन द्वारा निर्मित स्थलाकृति/शुष्क स्थलाकृति/Arid Topography
- कार्स्ट स्थलाकृति /Karst Topography
- समुद्र तटीय स्थलाकृति / Coastal Topography
- अनुप्रयुक्त भू-आकृति विज्ञान/Applied Geomorphology
- समप्राय मैदान (Peneplain)
- बहुचक्रीय स्थलाकृति
- “भूदृश्य संरचना, प्रक्रिया और अवस्था का फलन है।” का व्याख्या करें।
- डेविस और पेंक के अपरदन चक्र सिद्धांत का तुलनात्मक अध्ययन करें।
- पेंक का अपरदन चक्र सिद्धांत
- अपक्षय एवं अपरदन (Weathering and Erosion)
- चट्टानें एवं चट्टानों का प्रकार (Rocks and its Types)
- अन्तर्जात एवं बहिर्जात बल (Endogenetic and Exogenetic Forces)
- एल. सी. किंग द्वारा प्रतिपादित भ्वाकृतिक उद्भव के सिद्धान्त (The Theory of Morphogenic Evolution Propunded By L. C. King)