Unique Geography Notes हिंदी में

Unique Geography Notes in Hindi (भूगोल नोट्स) वेबसाइट के माध्यम से दुनिया भर के उन छात्रों और अध्ययन प्रेमियों को काफी मदद मिलेगी, जिन्हें भूगोल के बारे में जानकारी और ज्ञान इकट्ठा करने में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इस वेबसाइट पर नियमित रूप से सभी प्रकार के नोट्स लगातार विषय विशेषज्ञों द्वारा प्रकाशित करने का काम जारी है।

BA SEMESTER-IOCENOGRAPHY (समुद्र विज्ञान)PG SEMESTER-1

15. Tides (ज्वार भाटा)


ज्वार भाटा (Tides)⇒

            समुद्री जल में कई प्रकार की गतियाँ पाई जाती है। जैसे- लहर, जलधारा, ज्वार-भाटा। सर्वप्रथम मर्रे महोदय ने ज्वार-भाटा को परिभाषित करते हुए कहा- “सूर्य और चंद्रमा की आकर्षण शक्ति के कारण समुद्री तल के नियमित रूप से ऊपर उठने और नीचे बैठने की क्रिया को ज्वार-भाटा कहते हैं।” मर्रे की इस परिभाषा से यह स्पष्ट नहीं होता है कि एक दिन में समुद्री तल कितनी बार ऊपर उठता है और कितनी बार नीचे गिरता है। अतः इस समस्या को मारमर महोदय ने अपनी परिभाषा में दूर करते हुए कहा “समुद्र का जल प्रतिदिन दो बार ऊपर उठता है और दो बार नीचे गिरता है तथा आकर्षण के फलस्वरूप समुद्र तल के ऊपर उठने तथा आगे बढ़ने को ज्वार तथा समुद्री तल के नीचे उतरने और पीछे की ओर हटने को भाटा कहते है।” इस प्रकार स्पष्ट है कि नियमित रूप से समुद्री जल का ऊपर उठना और नीचे बैठना ही ज्वार भाटा कहलाता है।

        ज्वार-भाटा के संबंध में मानव प्राचीन काल से ही जानने को उत्सुक रहा है। सर्वप्रथम हेरोडोटस एवं पीथियस ने ज्वार-भाटा का संबंध चंद्रमा से बताया था। उसके बाद में रोमन भूगोलवेत्ता प्लिनी ने ज्वार-भाटा का विस्तृत अध्ययन किया। 17वीं शताब्दी में न्यूटन महोदय ने गुरुत्वाकर्षण शक्ति का न केवल खोज किया बल्कि ज्वार-भाटा की उत्पत्ति के संबंध में 1667 ई० में संतुलन का सिद्धांत प्रस्तुत किया। इसी तरह 1755 ई० में लाप्लास ने गतिक सिद्धांत, 1833 ई० में विलियम वेवेल के प्रगामी तरंग सिद्धांत और आगे चलकर हैरिस महोदय ने 1928 ई०  दोलन सिद्धांत या स्थायी तरंग सिद्धांत प्रस्तुत किया।

ज्वार-भाटा की विशेषता

             ज्वार-भाटा सागरीय जल की लंबवत गति है। जिसकी पहचान केवल तट पर ही की जा सकती है। ज्वार-भाटा को तटीय भागों में नियमित रूप से प्रतिदिन देखा जा सकता है। समुद्र के किनारे किसी एक स्थान पर कोई व्यक्ति खड़ा है तो उसे 24 घंटे में दो बार समुद्र का जल ऊपर उठते हुए और दो बार नीचे बैठते हुए प्रतीत होता है। ज्वार-भाटा की उत्पत्ति पर पृथ्वी के घूर्णन गति और चंद्रमा के परिभ्रमण गति का प्रभाव पड़ता है। दो ज्वार या दो भाटा के बीच समय अंतराल नियत होता है। जैसे एक ज्वार अगर आज समुद्र के किनारे 10:00 बजे सुबह आई हो तो अगले दिन ज्वार ठीक 10:00 बजे नहीं आएंगे बल्कि 52 मिनट देर से आती है। दो क्रमबद्ध ज्वार के बीच 26 मिनट का अंतर होता है जबकि दो क्रमबद्ध ज्वार और भाटा के बीच 13 मिनट का अंतर होता है। इसका प्रमुख कारण पृथ्वी और चंद्रमा की स्थिति में क्रमश: घूर्णन एवं परिभ्रमण गति से उत्पन्न देशांतरीय विषमता है। अतः इसी विषमता के कारण किसी भी देशांतर पर 24 घंटे के बाद जो ज्वार-भाटा आता है, वह 52 मिनट की देरी से आता है और यह देर होने का क्रम 27 दिन तक चलता रहता है। पृथ्वी पर एक समय में दो विपरीत देशांतरों पर आकर्षण बल के कारण ज्वार उत्पन्न होता है और ठीक उसी समय समकोणिक देशांतर पर भाटा उत्पन्न होता है।

ज्वार उत्पादक शक्तियॉं

        ज्वार उत्पन्न करने वाले शक्तियों में सूर्य और चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण शक्ति का महत्वपूर्ण योगदान है। सर्वप्रथम न्यूटन महोदय ने स्पष्ट किया कि अंतरिक्ष में स्थित सभी ग्रह, नक्षत्र एवं तारे गुरुत्वाकर्षण शक्ति के द्वारा एक-दूसरे के परिपेक्ष्य में संतुलित है तथा एक-दूसरे को आकर्षित कर रहे हैं। न्यूटन अपने गुरुत्वाकर्षण का नियम ने बताया है कि “दो पिंडों के बीच में आकर्षण शक्ति उनके द्रव्यमान के गुणनफल का समानुपाती एवं दूरी के वर्ग का व्युत्क्रमानुपाती होता है।” अर्थात जो पिण्ड जितना बड़ा होगा उसका आकर्षण शक्ति भी उतना ही अधिक होगा। इसके साथ ही जो पिंड जितना नजदीक होगा उसका भी आकर्षण बल उतना अधिक होगा। अतः इसी कारण से पृथ्वी पर सूर्य की तुलना में चंद्रमा के आकर्षण बल का प्रभाव अधिक रहता है क्योंकि चंद्रमा सूर्य की तुलना में कम द्रव्यमान भले ही रखता है लेकिन सूर्य की तुलना में पृथ्वी से काफी नजदीक है। 

        चंद्रमा पृथ्वी का एक उपग्रह है जिसका व्यास पृथ्वी के व्यास का 1/3 भाग है। यह पृथ्वी का परिक्रमा लगभग 27 दिन में कर लेता है। चंद्रमा और पृथ्वी के केंद्र के बीच की दूरी 3.84 लाख किलोमीटर है। लेकिन दोनों के सतह के बीच की दूरी 3.776 लाख किलोमीटर है। इससे स्पष्ट है कि चंद्रमा के सामने पृथ्वी की धरातलीय सतह वाले भाग के ठीक पीछे से चंद्रमा का धरातल 3.904 किलोमीटर दूर रहता है। पृथ्वी का वह भाग जो चंद्रमा के सामने पड़ता है, चंद्रमा के आकर्षण शक्ति से सर्वाधिक प्रभावित होता है। जबकि पीछे वाला भाग चंद्रमा की आकर्षण शक्ति से सबसे कम प्रभावित होता है। चंद्रमा के सामने वाला पृथ्वी का समुद्री जल चंद्रमा की ओर खींचा जाता है और ज्वार की स्थिति उत्पन्न करता है। जबकि ठीक उसके विपरीत वाले भाग में अपसारी के कारण भी ज्वार की स्थिति उत्पन्न होती है। चंद्रमा के सामने और उसके विपरीत भागों के बीच समकोण पर आकर्षण बल के कम प्रभाव के कारण जल का सतह नीचा ही रह जाता है। जिसके कारण वहाँ भाटा की स्थिति उत्पन्न होती है।

        चंद्रमा की परिक्रमण दिशा और पृथ्वी की घूर्णन दिशा एक समान है तथा चंद्रमा पृथ्वी के चारों ओर परिक्रमा कर रही है। जब पृथ्वी 24 घंटे के घूर्णन गति के बाद पुनः चंद्रमा के सामने आती है तो चंद्रमा अपने परिक्रमण पथ पर 52 मिनट आगे बढ़ जाता है। फलत: पृथ्वी की नियत देशांतर को चंद्रमा के सम्मुख आने में 52 मिनट की देरी हो जाती है। इसी देर होने के कारण एक देशांतर पर ज्वार 24 घंटे के बाद 52 मिनट के देर से आती है।

ज्वार के प्रकार

        समुद्रीवेत्ताओं ने ज्वार के कई प्रकार बताया है। जैसे-

(1) दीर्घ / वृहत ज्वार (Spring Tide)

(2) लघु ज्वार

(3) दैनिक ज्वार

(4) मिश्रित ज्वार

(5) अपभू एवं उपभू ज्वार (Apogean & Perigean Tides)

(6) अयनवृतीय ज्वार & भूमध्यरेखीय ज्वार (Tropical Tides & Equatorial Tides)

(1) दीर्घ / वृहत ज्वार (Spring Tide)- यह पूर्णमासी (Full Moon) और अमावस्या (New Moon) के दिन आता है क्योंकि इन दोनों दिनों में सूर्य चंद्रमा और पृथ्वी तीनों एक सीधी रेखा में स्थित होते हैं। इस स्थिति को यूति-वियुति (Syzygy) कहा जाता है। पूर्णिमा के दिन वियुति (Opposition) कहते  हैं। जबकि अमावस्या के दिन यूति (Conjuction) की स्थिति उत्पन्न होती है।

      अमावस्या एवं पूर्णिमा के दिन सूर्य और चंद्रमा एक सीधी में होते हैं जिसके कारण समुद्री जल पर दोनों क्षेत्रों के आकर्षण बल कार्य करते हैं जिसके कारण प्रतिदिन आने वाले सामान्य ज्वार की तुलना में 20% अधिक जल ऊपर उठ जाता है। इसे ही “दीर्घ ज्वार” कहते हैं।

(2) लघु ज्वार-  प्रत्येक महीने शुक्ल  एवं कृष्ण पक्ष की सप्तमी एवं अष्टमी के रात में सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा एक-दूसरे के समकोण की स्थिति में होते हैं जिसके कारण दोनों के आकर्षण बल का प्रभाव एक साथ नहीं पड़ पाता है जिसके कारण एक देशांतर पर आने वाला प्रतिदिन के समान ज्वार की तुलना में 20% कमी जल ऊपर उठ पाता है। इसीलिए इसे लघु ज्वार करते हैं।

(3) दैनिक ज्वार- किसी स्थान पर एक दिन में आने वाले एक ज्वार और एक भाटा को दैनिक ज्वार कहते हैं। दैनिक ज्वार ही है जो 24 घंटे के बाद अगले दिन 52 मिनट देर से आती है। मैक्सिको की खाड़ी, फिलीपींस और आलास्का के तट पर आने वाले दैनिक ज्वार को देखा जा सकता है। 

अर्द्ध दैनिक ज्वार (Semi Daily Tides)- कई स्थानों पर 24 घंटे में दो बार ज्वार और दो बार भाटा आता है। एक बार आने के बाद 12 घंटे 26 मिनट बाद आने वाली ज्वार को अर्द्ध दैनिक ज्वार कहते हैं।

(4) मिश्रित ज्वार- दैनिक ज्वार और अर्द्ध दैनिक ज्वार को मिश्चित ज्वार कहते हैं। किसी भी स्थान पर भिन्न ऊंचाई वाले ज्वार को भी मिश्रित ज्वार कहते हैं।

(5) अपभू एवं उपभू ज्वार (Apogean & Perigean Tides)- 

      जब चंद्रमा पृथ्वी से सबसे निकट (3.54 किमी०) होती है तो उसे उपभू (Perigean) और जब सबसे दूर (4.07 किमी०) में स्थित होती है तो उसे अपभू (Apogean) कहते हैं। 

        उपभू की स्थिति में उत्पन्न ज्वार को उपभू ज्वार (Perigean Tides) और अपभू (Apogean Tides) की स्थिति में उत्पन्न ज्वार को अपभू कहते हैं।

(6) अयनवृतीय ज्वार & भूमध्यरेखीय ज्वार (Tropical Tides & Equatorial Tides)- ज्वार चंद्रमा की आकर्षण शक्ति के कारण उत्पन्न होती है। एक चंद्रमास में चंद्रमा कर्क रेखा, मकर रेखा और भूमध्य रेखा के सम्मुख बारी-बारी से आती है। जब चंद्रमा कर्क एवं मकर रेखा पर होती है तो उस वक्त उत्पन्न ज्वार  को अयनवृत्तीय ज्वार (मध्य अक्षांशीय ज्वार) कहते हैं लेकिन जब चंद्रमा विषुवत रेखा पर होती है तो उस स्थिति में उत्पन्न ज्वार को विषुवतीय ज्वार (भूमध्यरेखीय ज्वार )कहते हैं।

ज्वार-भाटा की उत्पत्ति से संबंधित सिद्धांत 

       ज्वार-भाटा की उत्पत्ति से संबंधित प्रक्रिया को कई भूगोलवेताओं ने सैद्धांतिकरण करने का प्रयास किया है। उन सिद्धांतों में प्रमुख सिद्धांत है:-

(i) संतुलन का सिद्धांत (Equilibrium Theory)- न्यूटन

(ii) प्रगामी तरंग सिद्धांत (Progressive Wave Theory)- विलियम वेवेल

(iii) स्थायी तरंग सिद्धांत (Stationary Wave Theory)-  हैरिस

(iv) नहर सिद्धान्त- एयरी

(v) गतिक सिद्धान्त- लाप्लास

    उपरोक्त सिद्धान्तों में सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत संतुलन का सिद्धांत को माना जा रहा है जिनकी व्याख्या नीचे की जा रही है।

संतुलन का सिद्धांत (Equilibrium Theory)

         संतुलन सिद्धांत के प्रस्तुतकर्ता सर आइजक न्यूटन रहे हैं। इन्होंने 1687 ई० में गुरुत्वाकर्षण के आधार पर संतुलन का सिद्धांत प्रस्तुत किया। न्यूटन ने बताया कि विभिन्न आकाशीय पिंड एक-दूसरे को आकर्षित करते हैं। ये आकर्षण बल आकाशीय पिंडों के द्रव्यमान के गुणनफल पर और दूरी के वर्ग पर निर्भर करते हैं। इसे प्रदर्शित करने के लिए उन्होंने निम्नलिखित सूत्र का प्रतिपादन किया।  

जहाँ,  F = आकर्षण बल

G = एक नियतांक

m1 = पृथ्वी का द्रव्यमान

m2 = चन्द्रमा का द्रव्यमान

r = दोनों आकाशीय पिण्डों के बीच की दूरी

        इस नियम के अनुसार न्यूटन ने बताया कि सूर्य एवं चंद्रमा की आकर्षण शक्ति के कारण ही समुद्र में ज्वार उत्पन्न होते हैं। कालांतर में लाप्लास महोदय ने इस सिद्धांत को और विकसित करने का प्रयास किया। लाप्लास के अनुसार ज्वार चंद्रमा एवं सूर्य के आकर्षण बल तथा अपकेंद्रीय बल दोनों के कारण उत्पन्न होती है। उन्होंने बताया कि जब कोई पिंड वृत्ताकार पथ पर गतिशील होती है तो आकर्षण शक्ति के विरुद्ध अपकेंद्रीय बल का जन्म होता है ताकि आकर्षण बल एवं अपकेंद्रीय बल के कारण संतुलन की स्थिति बना रहे।

       न्यूटन एवं लाप्लास दोनों ने बताया कि सूर्य की तुलना में चंद्रमा के आकर्षण बल का प्रभाव पृथ्वी पर अधिक पड़ता है क्योंकि सूर्य की तुलना में चन्द्रमा काफी निकट है। चंद्रमा के ठीक सामने वाला पृथ्वी का भाग केंद्र की अपेक्षा 6400 किलोमीटर चंद्रमा के निकट होता है। जबकि इसके विपरीत वाला भाग चंद्रमा से 12800 किलोमीटर अधिक को दूर होता है जिसके कारण चंद्रमा के सम्मुख वाले पृथ्वी के भाग पर अधिक आकर्षण बल कार्य करता है जबकि ठीक उसके विपरीत आकर्षण बल का प्रभाव नगण्य होता है। विपरीत भाग में आकर्षण बल को संतुलित करने हेतु अपकेंद्रीय बल लगने लगता है। इन दोनों बलों के कारण ही समुद्री जल में उछाल आती है।जिससे ज्वार उत्पन्न होता है। 

आलोचना-     

       कई समुद्रवेत्ताओं ने इस सिद्धांत को दो आधारों पर आलोचना किया है। 

(1) पृथ्वी के धरातल पर अगर केवल जल ही होता तो इस सिद्धांत के क्रियाशील होने की संभावना थी परंतु, पृथ्वी के धरातल पर जल एवं स्थल का वितरण काफी असमान है। यहाँ ज्वार चंद्रमा की आकर्षण बल के कारण एक ही देशांतर पर एक ही बार ज्वार उत्पन्न नहीं होता है। 

(2) सागर की गहराई सागर की नितलीय उच्चावच, चक्रवात और चंद्रमा की कलाएँ इत्यादि का ज्वार-भाटा की उत्पत्ति में कोई उल्लेख नहीं किया है। 

(3) इस नियम के अनुसार प्रतिदिन एक देशांतर पर निश्चित अंतराल पर दो बार ज्वार और दो बार भाटा आना चाहिए। लेकिन इंग्लिश चैनल में एक दिन में चार बार ज्वार और चार बार भाटा आती है। इसके कारणों का भी स्पष्टीकरण न्यूटन ने नहीं किया है। 

(4) चंद्रमा के आकर्षण शक्ति का प्रभाव पृथ्वी की एक ही देशांतर पर एक समान रूप से पड़नी चाहिए थी और एक देशांतर पर जल का उत्थान भी एक समान होनी चाहिए था। लेकिन सामान्य रूप से ऐसा नहीं होता। जैसे- उत्तरी अमेरिका के तट पर अवस्थित फंडी की खाड़ी में विश्व के सबसे ऊँचा ज्वार उत्पन्न होता है। यहाँ 15 से 18 मीटर तक जल में उछाल आता है जबकि ठीक उसी देशांतर पर इतनी ऊँची-ऊँची ज्वारें नहीं आती। 

निष्कर्ष:-  इस तरह उपर्युक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि न्यूटन के द्वारा प्रतिपादित संतुलन सिद्धांत की कई सीमाएँ हैं। इसके बावजूद ज्वार-भाटा के उत्पत्ति की व्याख्या करने वाला सबसे मान्य सिद्धांत है।


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I ‘Dr. Amar Kumar’ am working as an Assistant Professor in The Department Of Geography in PPU, Patna (Bihar) India. I want to help the students and study lovers across the world who face difficulties to gather the information and knowledge about Geography. I think my latest UNIQUE GEOGRAPHY NOTES are more useful for them and I publish all types of notes regularly.

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