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BA SEMESTER-IOCENOGRAPHY (समुद्र विज्ञान)PG SEMESTER-1

10. OCEAN WAVE / समुद्री तरंग

10. OCEAN WAVE (समुद्री तरंग)

OCEAN WAVE


OCEAN WAVE (समुद्री तरंग)

          समुद्री जल में कई प्रकार की गतियाँ पायी जाती है। जैसे- ज्वार-भाटा, जलधारा, तरंग इत्यादि। रिचर्ड महोदय ने समुद्री तरंग को परिभाषित करते हुए कहा है कि “समुद्री लहर महासागर की तरल सतह का एक विक्षोभ गति है।” इसे दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि समुद्री जल का ऊपरी भाग किसी एक निश्चित बिंदु के इर्द-गिर्द दोलन करने वाली गति को तरंग कहते हैं। समुद्री लहरें व्यापक एवं सर्वत्र पायी जाने वाली गति है। लहरों की उत्पत्ति में वायु, ज्वार-भाटा तथा भूकंप का योगदान होता है। इन तीनों में सर्वाधिक योगदान वायु की होती है। वायु जब सागरीय जल के साथ घर्षण करते हुए आगे बढ़ती है तो सागरीय जल के ऊपरी भाग में एक दोलन गति उत्पन्न होती है। इस गति में जल का स्थानांतरण नहीं होता है बल्कि जल एक निश्चित बिंदु के आगे या पीछे ऊपर या नीचे दोलन करती है।

OCEAN WAVE

 

लहर की संरचना

          तरंग में जल के लगातार उठाव और गिराव का क्रम जारी रहता है। इसके उठाव वाले भाग को शिखर या शीर्ष कहते हैं। जबकि गिराव वाले भाग को गर्त कहते हैं। दो क्रमबद्ध शीर्ष या दो क्रमबद्व गर्त के बीच की दूरी को तरंग की लंबाई कहते हैं।

           गर्त बिंदु से शीर्ष बिंदु के बीच की लम्बवत ऊंचाई को तरंग की ऊंचाई कहते हैं। दो शीर्ष बिंदुओं को एक निश्चित बिंदु से गुजरने में जो समय लगता है उसे तरंग की अवधि कहते हैं। तरंग की वेग और उसकी अवधि वायु की गति पर निर्भर करती है। जैसे- खुले समुद्रों में निर्विध्न रुप से हवाएं चलती है वहां अधिक लंबी एक ऊंची लहरें उत्पन्न होती है। पवन का प्रभाव सागर के भीतर 100 वर्ग मीटर की गहराई तक पड़ता है।
         सागरीय तरंगे तट की ओर अग्रसर होती है। जैसे-जैसे लहरें तट के निकट आते जाती है वैसे-वैसे सागरों की गहराई में भी कमी आते जाती है। इसी कारण से छिछले समुद्र में तरंग का निचला भाग समुद्र नितल से रगड़ खाकर आगे बढ़ने लगता है। रगड़ के कारण तरंग के प्रवाह में रुकावट आती है जिसके कारण लहरों की ऊंचाई अधिक हो जाती है लेकिन तरंग की लंबाई कम हो जाती है। तरंग की शीर्ष की ऊंचाई अधिक हो जाने से वह टूटकर आगे गिरता है। तरंग की टूटी हुई जल की भाग को सर्फ या ब्रेकर या स्वाश कहा जाता है। इसमें जल पीछे की ओर गिरते हुए प्रतीत होता है। 
 चित्र  : समुद्र में उत्पन्न तरंग एवं सर्फ
 
         समुद्री तरंगों में उत्पन्न तरंग दो कारकों पर निर्भर करते हैं-
(i) जल की गहराई पर
(ii) तरंग की ऊंचाई पर
      टुक्कर नामक समुद्रीवेता ने तरंग की लंबाई ज्ञात करने के लिए एक सूत्र का प्रयोग किया। जैसे-
तरंग की लंबाई = तरंग के दो शीर्षों की लम्बाई ÷ उनकी अवधि
        इस सूत्र के आधार पर टुक्कर ने बताया कि यदि तरंग की लंबाई अधिक है और जल की गहराई कम है तो उसकी गति पर नियंत्रण जल की गहराई का होता है। यदि लहर की लंबाई कम है तो गति पर लहर की लंबाई का नियंत्रण होता है। खुले समुद्रों में लहरों की गति एवं आकार पर जल की गहराई और वायु के वेग पर निर्भर करती है। लेकिन तटवर्ती क्षेत्रों में तटीय आकृति का भी लहरों पर प्रभाव पड़ने लगता है।
तरंग की प्रकार
 
      दोलन के आधार पर सागरीय तरंग दो प्रकार के होते हैं:-
1. अनुप्रस्थ
2. अनुधैर्य
        अनुप्रस्थ तरंग की तुलना प्रकाश तरंग से और अनुदैर्ध्य तरंग की तुलना ध्वनि गति से की जा सकती है। अनुप्रस्थ तरंग में जल किसी निश्चित बिंदु के इर्द-गिर्द लंबवत रूप से ऊपर उठने एवं नीचे बैठने की प्रवृत्ति रखता है जबकि अनुदैर्ध्य तरंग में क्षैतिज रूप से जल दोलन करने की प्रवृत्ति रखता है। ब्यूफोर्ट महोदय ने कुछ विशिष्ट लहरों का विवरण प्रस्तुत किया है। जैसे- 
(1) स्वेल- स्वेल तरंग में तरंग का शीर्ष गोलाकार तथा गर्त ज्यावक्रीय होती है। इसमें जल की सतह हल्के उभार वाली होती है। 
(2) फेनिल तरंग (Surf)- ऐसे तरंगें छिछले सागरों में उत्पन्न होते है। छिछले सागर में तरंग की शीर्ष टूटकर सर्प का निर्माण होता है। 
(3) स्थानांतरण तरंग- स्थानांतरण तरंग में जल की वास्तविक गति और तरंग की गति एक ही दिशा में होती है। स्थानांतरण तरंग में जल की ऊपरी सतह से लेकर सागर की तली तक का समस्त जल एक ही दिशा में गतिशील होता है।
(4) दोलन करने वाली लहरें- जब किसी निश्चित बिंदु के इर्द-गिर्द तरंगों के शीर्ष एवं गर्त का निर्माण होता है तो उसे दोलन करने वाली लहरें कहते हैं।
(5) हानिकारक तरंग- इसे ब्यूफोर्ट महोदय ने पुनः दो भागों में बाँटा है:-
(i) सूनामी- सुनामी समुद्री क्षेत्रों में आने वाले भूकंप एवं ज्वालामुखी उद्गारों के कारण उत्पन्न होते हैं। सुनामी एक जापानी शब्द है जिसका तात्पर्य भूकंप से उत्पन्न समुद्री लहर है। सुनामी लहर के उत्पन्न में वायु का कोई योगदान नहीं होता। सुनामी सामान्य लहरों की तुलना में बड़ी एवं विनाशकारी होती है। भूकम्प आने के 12 मिनट बाद सुनामी लहरें आती है। समुद्र में जितने भूकंप के झटके आते हैं समुद्र में उतने ही सुनामी लहरें आती है। प्रशांत महासागर सुनामी तरंगों के लिए प्रसिद्ध है। फिलीपींस, जापान, हवाई द्वीप सुनामी तरंगों से अत्याधिक प्रभावित होते हैं। खुले समुद्रों में सुनामी तरंगे अधिक हानिकारक नहीं होती है। लेकिन तटीय क्षेत्रों में इनकी भयंकर परिणाम होते हैं। 1883 ई० में इंडोनेशिया के क्राकाडोवा द्वीप पर भयंकर ज्वालामुखी उद्गार से 360 मीटर ऊँची तरंगे उत्पन्न हुई थी जिसमें 36000 लोग मारे गए थे। 26 दिसंबर 2004 को सुमात्रा के दक्षिणी भाग में आए भूकंप के कारण उत्पन्न सुनामी लहरों के कारण लाखों लोग मारे गए।
(ii) तूफानी तरंग- जब हरिकेन जैसे चक्रवात उत्पन्न होते हैं तो तटीय भागों में ऊंची-ऊंची लहरें उठती है। इससे प्रायः तटीय भागों में जन-जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है।
समुद्री तरंग का महत्व
(1) समुद्री तरंगों के द्वारा तट का कटाव होता है। कटे-फटे तट जलयानों एवं बंदरगाहों के लिए उपयुक्त माना जाता है।
(2) लहरों के द्वारा होने वाले कटाव के कारण कृषि योग्य भूमि इत्यादि विलीन हो जाते हैं।
(3) लहरों के कारण वायु और जल में मिश्रण का कार्य होता है जिससे समुद्री जीव ऑक्सीजन ग्रहण कर जीवित रहते हैं। 
(4) लहरों के कारण संचार व्यवस्था प्रभावित होती है।
(5) लहरों के कारण समुद्री तट पर कई प्रकार के निक्षेप एकत्रित हो जाते हैं।
(6) लहरी तरंग ऊर्जा के उत्पादन में सहायक होता है।
निष्कर्ष:- इस उपर्युक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि समुद्री लहर मानव जीवन को कई प्रकार से प्रभावित करते हैं।

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I ‘Dr. Amar Kumar’ am working as an Assistant Professor in The Department Of Geography in PPU, Patna (Bihar) India. I want to help the students and study lovers across the world who face difficulties to gather the information and knowledge about Geography. I think my latest UNIQUE GEOGRAPHY NOTES are more useful for them and I publish all types of notes regularly.

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