लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर :
प्रश्न 1. बिहार में वन संपदा की वर्तमान स्थिति का वर्णन कीजिये।
उत्तर –बिहार विभाजन के बाद वन विस्तार में बिहार राज्य दयनीय स्थिति में आ गया है, क्योंकि वर्तमान बिहार में अधिकतर भूमि कृषि योग्य है। मात्र 6764.14 हेक्टेयर में वन क्षेत्र बच गया है जो कि सम्पूर्ण बिहार के भोगोलिक क्षेत्र का मात्र 7.1 प्रतिशत है। बिहार के 38 जिलों में से 17 जिलों से वन क्षेत्र समाप्त हो गया है। पश्चिमी चम्पारण, मुंगेर, बांका, जमुई, नवादा, नालन्दा, गया, रोहतास, कैमूर और औरंगाबाद जिलों के वनों की स्थिति कुछ बेहतर है, जिसका कुल क्षेत्रफल 3700 वर्ग किमी है। शेष में अवक्रमित वन क्षेत्र है, वन के नाम पर केवल झाड़-झरमूट बच गऐ हैं।
प्रश्न 2. वन विनाश के मुख्य कारकों को लिखिए।
उत्तर –वन विनाश के मुख्य कारक निम्न हैं-
◆पशुचारण
◆ईंधन के लिए लकड़ियों के उपयोग
◆यातायात(सड़क मार्ग, रेलमार्ग) के साधन का निर्माण
◆औद्योगिक एवं नगरीकरण का विकास
◆कुछ पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार भारत के कई क्षेत्रों में सम्वर्द्धन ‘वृक्षारोपण’ अर्थात वाणिज्य की दृष्टि से एकल वृक्ष रोपण करने से पेड़ों की दूसरी प्रजातियाँ खत्म हो गयी है।
प्रश्न 3. वन के पर्यावरणीय महत्व का वर्णन कीजिये।
उत्तर –वन मानव जीवन के प्रमुख हमसफर हैं। वन पृथ्वी के लिए सुरक्षा कवच जैसा है। यह केवल एक संसाधन ही नहीं, बल्कि पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण में महत्वपूर्ण घटक है। हमारा इससे अटूट संबंध है । वास्तव में वन प्रकृति का एक अमूल्य उपहार है। सृष्टि के आरम्भ से ही मानव इसके आँचल में पोषित होता रहा है। यह इस जीवमंडल में सभी जीवों को संतुलित स्थिति में जीने के लिए अथवा संतुलित पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण में सर्वाधिक योगदान देता है क्योंकि सभी जीवों के लिए खाद्य ऊर्जा(Food Energy) का प्रारंभिक स्रोत वनस्पति ही है।
प्रश्न 4. वन्य-जीवों के ह्रास के चार प्रमुख कारकों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर –वन्य जीवों के ह्रास के चार प्रमुख कारक निम्नलिखित हैं-
(l) प्राकृतिक आवासों का अतिक्रमण- यातायात की सुविधाओं में वृद्धि आदि कारणों से भी वन्य जीवों के प्राकृतिक आवासों का अतिक्रमण हो हुआ है जिससे प्राकृतिक आवास के छीन जाने के दबाव से वन्य जीवों की सामान्य वृद्धि तथा प्रजनन क्षमता में कमी आ गई।
(ll) प्रदूषण जनित समस्या- प्रदूषण के कारण वन्य जीवों का जीवन-चक्र गंभीर रूप से प्रभावित हो रहा है।
(lll) आर्थिक लाभ- आर्थिक लाभ के लिए योजनाबद्ध तरीके से खास प्रजातियों के पेड़-पौधों एवं वन्य जीवों को स्थानीय, क्षेत्रीय या राज्यस्तर पर दोहन किये जाने से कई प्रजातियाँ संकट ग्रस्त हो गयी है।
(lV) सह विलुप्तता-जब एक जाति विलुप्त होती है तब उसपर आधारित दूसरी जातियाँ भी विलुप्त होने लगती हैं।
प्रश्न 5. वन और वन्य जीवों के संरक्षण में सहयोगी रीति रिवाजों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर –सहयोगी रीति-रिवाजों का वन और वन्य जीवों के संरक्षण में काफी महत्वपूर्ण योगदान है। ग्रामीण लोग कई धार्मिक अनुष्ठानों में 100 से अधिक पादप प्रजातियों का प्रयोग करते हैं और इन पौधों को अपने खेतों में भी उगाते हैं। आदिवासियों को अपने क्षेत्र में पाये जाने वाले पेड़-पौधों तथा वन्य जीवों से भावनात्मक तथा आत्मीय लगाव होता है। वे प्रजनन काल में मादा वन पशुओं का शिकार नहीं करते हैं। वन संसाधनों का उपयोग चक्रीय पद्धति से करते हैं। वन के खास क्षेत्रों को सुरक्षित रख उसमें प्रवेश नहीं करते हैं। समय-समय पर आवश्यकतानुसार वृक्षारोपण तथा उनकी रक्षा करते है। इस प्रकार से जनजातीय क्षेत्रों के वन को स्वभाविक संरक्षण प्राप्त हो जाता है।
प्रश्न 6. चिपको आंदोलन क्या है?
उत्तर – सुदरलाल बहुगुणा के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश के टेहरी- गढ़वाल पर्वतीय जिले में वन की रक्षा हेतु जो आंदोलन चलाया गया उसे चिपको आन्दोदन के नाम से जाना जाता है। इस आंदोलन में स्थानीय लोग ठेकेदारों की कुल्हाड़ी से हरे-भरे पौधों को काटते देख, उसे बचाने के लिए अपने आगोश में पौधा को घेर कर इसकी रक्षा करते थे। इस आंदोलन की शुरूआत 1972 में हुआ था।
प्रश्न 7. कैंसर रोग के उपचार में वन का क्या योगदान है ?
उत्तर – टेक्सस बेनकेटा एवं टी. ब्रव्ही फोलिया एक औषधीय पौधा है जो हिमालय और अरुणाचल प्रदेश के कई क्षेत्रों में पाया जाता है तथा यह एक सदाबहार वृक्ष है। चीड़ की छाल, पत्तियों, टहनियों और जड़ों से टैक्सोल नामक रसायन निकाला जाता है। इससे कैंसर रोधी औषधि बनायी जाती है। यह विश्व में सबसे अधिक बिकने वाली कैंसर औषधि है।
प्रश्न 8. दस लुप्त होने वाले पशु-पंक्षियों का नाम लिखिए।
उत्तर –दस लुप्त होने वाले पशु-पंक्षियां का नाम – एशियाई चीता, गुलाबी सिर वाला बत्तख, डोडो, गिद्ध (भारत), थाईलैंसीन (आस्ट्रेलिया), ‘स्टीलर्स सीकाउ (रूस), शेर की तीन प्रजातियाँ (बाली, जावन एवं कास्पियन) (अफ्रिका), कस्तुरी मृग, चीतल, लाल पांडा।
प्रश्न 9. वन्य-जीवों के ह्रास में प्रदुषण जनित समस्याओं पर अपना विचार स्पष्ट कीजिए।
उत्तर –बढ़ते प्रदूषणों ने कई समस्याओं को जन्म दिया है। पराबैंगनी किरणें, अम्ल वर्षा और हरितगृह प्रभाव प्रमुख प्रदूषक हैं जिन्होंने वन्य जीवों को काफी प्रभावित किया है। इसके अलावे वायु, जल एवं मृदा प्रदूषण के कारण वन एवं वन्य जीवों का जीवनचक्र गंभीर रूप से प्रभावित हो रहा है। इससे इनकी प्रजनन क्षमता प्रभावित हो रही है। फलस्वरूप धीरे-धीरे वन्य जीवन संकटग्रस्त होते जा है।
प्रश्न 10. भारत के दो प्रमुख जैवमंडल क्षेत्र का नाम, क्षेत्रफल एवं राज्यों का नाम बताएं।
उत्तर –
◆नीलगिरि -5520 वर्ग किमी – तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक।
◆सुंदरवन-9630 वर्ग किमी –पश्चिम बंगाल
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर :
प्रश्न 1. वन एवं वन्य जीवों के महत्व का विस्तार सेे वर्णण कीजिये।
उत्तर -पृथ्वी का वह बड़े भूभाग जो पेड़-पौधे तथा झाड़ियों द्वारा आच्छादित होते है, उसे वन कहा जाता है। एवं उसमें रहने वाले जीव-जंतुओं को वन्य जीव कहा जाता है। वन एवं वन्य जीव मानव के प्रमुख हमसफ़र है। वन पृथ्वी के लिए सुरक्षा कवच का काम करता है। वन जैव विविधताओं का आवास होता है। यह न केवल एक संसाधन ही है बल्कि पारिस्थितिक तंत्र के निर्माण में इसकी भूमिका काफी महत्वपूर्ण है। मानव का इससे अटूट संबंध है। वन प्रकृति का एक अमूल्य धरोहर है। वन एवं वन्य प्राणी मानव के लिए प्रतिस्थापित होने वाला संसाधन है। यह इस जीव-मंडल में सभी जीवों की संतुलित स्थिति में जीने के लिए पारिस्थितिक तंत्र के निर्माण में सर्वाधिक योगदान देता है क्योंकि सभी जीवों लिए खाद्य ऊर्जा का प्रारंभिक स्रोत वनस्पति होता है। वर्तमान समय के विकास की दौड़ में हम ने अपने अतीत के सभी गौरवशाली परंपराओं को नकार दिया है। वन एवं वन्य प्राणी के महत्व को नहीं समझ रहे हैं। और तेजी से इस संसाधन का विदोहन कर रहे है। वस्तुतः वन एवं वन्य प्राणी के महत्व को हमे समझना होगा और उसके संरक्षण पर पर ध्यान देना होगा।
प्रश्न 2. वृक्षों के घनत्व के आधार पर वनों का वर्गीकरण कीजिये और सभी वर्गों का वर्णन विस्तार से कीजिये।
उत्तर- भारत में वनों का विस्तार एक समान नहीं है, यहां का पूर्वोत्तर राज्य एवम मध्यप्रदेश वनों की दृष्टि से काफी समृद्ध है, किंतु अंडमान निकोबार द्वीप समूह सबसे आगे है, जहां 90.3 प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्रों में वन विकसित हैं। वृक्षों के घनत्व के आधार पर वनों को पांच वर्गों में बाँटा गया है-
1. अत्यंत सघन वन- भारत में इस प्रकार के वन विस्तार 54.6 लाख हेक्टेयर भूमि पर है जो कुल भौगोलिक क्षेत्र का 1.66 प्रतिशत है, असाम और सिक्किम को छोड़कर समूचा पूर्वोत्तर – राज्य इस वर्ग में आते हैं। इन क्षेत्रों में वनों का घनत्व 75% से अधिक है।
2.सघन वन- इसके अन्तर्गत 73.60 लाख हेक्टेयर भूमि आती है जो कुल भौगोलिक क्षेत्र का 3% है। हिमालय, सिक्किम, मध्यप्रदेश, जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र एवं उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में इस प्रकार के वनों का विस्तार है। यहाँ वनों का घनत्व 621.99 प्रतिशत है।
3. खुले वन- 2.59 करोड़ हेक्टेयर भूमि पर इस प्रकार के वनों का विस्तार है। यह कुल भौगोलिक क्षेत्र का 7.12% है, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, आंध्रप्रदेश, उड़ीसा के कुछ जिले एवं असम के 16 आदिवासी जिलों में इस प्रकार के वनों का विस्तार है, असाम आदिवासी जिलों में वृक्षों का घनत्व 23.89% है।
4. झाड़ियाँ एवं अन्य वन- राजस्थान का मरुस्थलीय क्षेत्र एवं अर्द्धशुष्क क्षेत्र में इस प्रकार के वन पाये जाते हैं। पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, बिहार एवं प. बंगाल के मैदानी भागों में वृक्षों का घनत्व 10% से भी कम है इसलिए यह क्षेत्र इसी वर्ग में सम्मिलित है। इसके अन्तर्गत 2.459 करोड़ हेक्टेयर भूमि आती है, जो कुल भौगोलिक क्षेत्र का 8.66% है।
5. मैंग्रोव (तटीय वन) – विश्व के तटीय वन क्षेत्र (मैंग्रोव्स) का मात्र 5% 4,500 किमी. क्षेत्र ही भारत में है, जो समुद्र तटीय राज्यों में फैला है, जिसमें आधा क्षेत्र पश्चिम बंगाल का सुंदरवन है, इसके बाद गुजरात के अंडमान निकोबार द्वीप समूह आते हैं, कुल मिलाकर 12 राज्यों तथा केन्द्र प्रशासित प्रदेशों में मैंग्रोव्स वन है जिनमें आंध्रप्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र, उड़ीसा, तमिलनाडु, प. बंगाल, अंडमान-निकोबार, पाण्डेिचरी, केरल एवं दमन-द्वीप शामिल हैं।
प्रश्न 3. जैव विविधता क्या है? यह मानव के लिए क्यों महत्वपूर्ण है? विस्तार से लिखिए।
उत्तर- जैव विविधता से तात्पर्य, पृथ्वी पर पाये पाई जाने वाली जीवों की विविधता से है। यह शब्द किसी विशेष क्षेत्र में पाये जाने वाले जीवों की विभिन्न रूपों की ओर इंगित करता है। एक मोटे अनुमान के मुताबिक पृथ्वी पर जीवों की करीब एक करोड़ प्रजातियां पाई जाती हैं।
ये हमारी धरा पर अमूल्य धरोहर हैं। वन्य जीव सदियों से हमारे सांस्कृतिक एवं आर्थिक क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं। इनसे हमें भोजन, वस्त्र के लिए रेशे, खालें, आवास आदि सामग्री एवं अन्य उत्पाद प्राप्त होते हैं। इनकी चहक और महक हमारे जीवन में स्फूर्ति प्रदान करते हैं। पारिस्थितिकी के लिए ये श्रृंगार के समान हैं। भारत में इन्हें सदैव आदरभाव एवं पूज्य समझा गया। मनीषियों के लिए प्रेरणा का स्रोत तो सैलानियों के लिए आकर्षण का विषय रहा है। ये पर्यावरण संतुलन के लिए भी अति आवश्यक हैं तथा हमारी भावी पीढ़ियों के लिए भी ये अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। हमारा देश जैविक विविधता में समृद्ध देश है। सबसे समृद्ध जैव विविधता वाले क्षेत्र पश्चिमी घाट और उत्तरी पूर्वी भारत है। इनमें क्रमशः भारत का 4% और 5.2 % भौगोलिक क्षेत्रफल है, विश्व के 15 हॉट स्पॉट में इन्हें भी रखा गया है।
प्रश्न 4. विस्तार पूर्वक बतायें कि मानव किस प्रकार प्राकृतिक वनस्पति और प्राणीजात के ह्रास के कारक है।
उत्तर- मानव के निम्नलिखित क्रियाकलापों वनस्पतियों एवं प्राणीजगत के ह्रास के कारक हैं –
◆आवासीय एवं कृषि योग्य भूमि का विस्तार
◆हानिकारक रसायनों का प्रयोग
◆आर्थिक लाभ प्राप्त करने के लिये जैव विविधताओं का अति दोहन
◆जनसंख्या में वृद्धि
◆औद्योगिकीकरण एवं शहरीकरण में वृद्धि
◆जंगली जीवों का शिकार इत्यादि।
मानव जीवमण्डल का सबसे महत्वपूर्ण सदस्य है जो न केवल अन्य जैविक घटकों को ही प्रभावित करता है बल्कि पर्यावरण के अजैविक घटकों में भी अत्यधिक परिवर्तन लाता है। मानव अपनी बुद्धि और विवेक के कारण प्रकृति के दूसरे जीवों और अजैविक घटकों का प्रयोग कर अपने जीवन को सुखमय और आरामदायक बनाता है। किन्तु जब मानव के क्रियाकलाप अनियंत्रित हो जाते हैं तो पर्यावरण के घटकों जैसे-वायु, जल तथा मृदा एवं दूसरे जीवों में अनावश्यक परिवर्तन हो जाता है जिसका वनस्पतियों एवं प्राणियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। मानव अपने आवास, खेती एवं कारखाने स्थापित करने के लिए बड़े पैमाने पर जंगलों को काटता रहा है। शाकाहारी एवं मांसाहारी जानवरों का अंधाधुंध शिकार कर जीवों में असंतुलन पैदा कर दिया है और बहुत-से जन्तु लुप्त होने के कगार पर हैं। जैसे—सिंह, बाघ, चीता, गैंडा, बारहसिंगा, कस्तुरी मृग आदि।
5. भारतीय जैवमण्डल क्षेत्रों की चर्चा विस्तार से कीजिये।
उत्तर- हमारा देश जैव विविधता के संदर्भ में विश्व के सर्वाधिक समृद्ध देशों में से एक है। इसकी गणना विश्व के 12 विशाल जैविक-विविधता वाले देशों में की जाती है। यहाँ विश्व की सारी जैव उप जातियों का 8 प्रतिशत संख्या (लगभग 16 लाख) पाई जाती है। राष्ट्र के स्वास्थ्य जैव मंडल एवं जैविक उद्योग के लिए समृद्ध जैव-विविधता अनिवार्य है। जैव-विविधता से हम सभी लोग प्रत्यक्ष या परोक्ष रुप से लाभ उठाते है। इससे भोज, औषधियां, भैषज्य दवाइयों, रेशों, रबड़, लकडियाँ इत्यादि करते है। कई सूक्ष्म जीवों का उपयोग बहुमूल्य उत्पाद तैयार करने के लिए उद्योगों में प्रयोग होता है। इन्हीं जैव विविधताओं के संरक्षण हेतु यूनेस्को के सहयोग से भारत में 14 जैव मण्डल आरक्षित क्षेत्र की स्थापना की गई है जिसका विवरण निम्नलिखित है-