Unique Geography Notes हिंदी में

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BA SEMESTER/PAPER IIIQuestions Bank For UG

MULTIDISCIPLINARY COURSE MDC-3 For Science and Commerce (Theory- Economic Geography) Solved Questions Paper 2024

(MULTIDISCIPLINARY COURSE : MDC-3 For Science and Commerce)

UG (Sem.-III) Examination, 2024

(Session: 2023-27)

GEOGRAPHY

(Economic Geography)

Time: Three Hours]  [Maximum Marks: 70

Note: Candidates are required to give their answers in their own words as far as practicable. The figures in the margin indicate full marks. Answer from all sections as directed.

अभ्यर्थी यथासंभव उत्तर अपने शब्दों में ही दें। उपांत के अंक पूर्णांक के द्योतक हैं। निर्देशानुसार सभी खण्डों से उत्तर दीजिए।

Section-A / खण्ड-अ

(Multiple Choice Questions)

(बहुविकल्पीय प्रश्न)

Note: Choose the correct option from each question.[10×2=20]

प्रत्येक प्रश्न से सही विकल्प का चयन कीजिए।

1. (i) Economic Geography include the study of:

(a) Erosional landform

(b) Ocean deposits

(c) Economic activities

(d) Population

आर्थिक भूगोल के अन्तर्गत पढ़ा जाता है:

(a) अपरदन द्वारा निर्मित स्थलाकृति

(b) समुद्री निक्षेप

(c) आर्थिक क्रियाकलाप

(d) जनसंख्या

उत्तर- (c) आर्थिक क्रियाकलाप

(ii) Research and Innovation belongs to which group of occupation?

(a) Primary

(b) Secondary

(c) Tertiary

(d) All of the above

शोध एवं नवाचार किस व्यवसाय वर्ग के हैं?

(a) प्राथमिक

(b) द्वितीयक

(c) तृतीयक

(d) उपरोक्त सभी

उत्तर- (c) तृतीयक

(iii) Economic Geography is a part of:

(a) Human Geography

(b) Practical Geography

(c) Social Geography

(d) Physical Geography

आर्थिक भूगोल शाखा है:

(a) मानव भूगोल

(b) प्रयोगात्मक भूगोल

(c) सामाजिक भूगोल

(d) भौतिक भूगोल

उत्तर- (a) मानव भूगोल

(iv) Lumbering occupation is a part of which group?

(a) Primary

(b) Secondary

(c) Both (a) and (b)

(d) None of the above

लकड़ी काटना व्यवसाय किस वर्ग का हिस्सा है?

(a) प्राथमिक

(b) द्वितीयक

(c) दोनों (a) और (b)

(d) इनमें से कोई नहीं

उत्तर- (a) प्राथमिक

(v) Monsoon region practices this occupation:

(a) Agriculture

(b) Mining

(c) Tourism

(d) All of the above

मॉनसून प्रदेश में यह व्यवसाय किया जाता है:

(a) कृषि

(b) खनन

(c) पर्यटन

(d) उपरोक्त सभी

उत्तर- (a) कृषि

(vi) The largest producer of cotton textile in the world is:

(a) China

(b) Japan

(c) U.S.A.

(d) India

विश्व में सूती वस्त्र का सबसे बड़ा उत्पादक है:

(a) चीन

(b) जापान

(c) सं.रा. अमेरिका

(d) भारत

उत्तर- (a) चीन

(vii) Detroit is famous for which industry?

(a) Motor Car

(b) Cotton Textile

(c) Iron and Steel

(d) None of the above

डेट्राइट किस उद्योग के लिए प्रचलित है?

(a) मोटर कार

(b) सूती वस्त्र

(c) लौह-इस्पात

(d) इनमें से कोई नहीं

उत्तर- (a) मोटर कार

(viii) In India Surat is famous for which industry?

(a) Iron and Steel

(b) Automobile

(c) Cotton Textile

(d) None of the above

भारत में सूरत किस उद्योग के लिए प्रचलित है?

(a) लौहा एवं इस्पात

(b) ऑटोमोबाइल

(c) सूती वस्त्र

(d) इनमें से कोई नहीं

उत्तर- (c) सूती वस्त्र

(ix) The full form of ‘SEZ’ is:

(a) Special Economic Zone

(b) Social Economic Zone

(c) Secure Entry Zone

(d) Super Energy Zone

सेज का पूर्ण रूप है:

(a) विशेष आर्थिक क्षेत्र

(b) सामाजिक आर्थिक क्षेत्र

(c) सुरक्षित प्रवेश क्षेत्र

(d) विशेष ऊर्जा क्षेत्र

उत्तर- (a) विशेष आर्थिक क्षेत्र

(x) The headquarter of WTO is:

(a) Tokyo

(b) Paris

(c) Geneva

(d) London

विश्व व्यापार संगठन का मुख्यालय है:

(a) टोक्यो

(b) पेरिस

(c) जेनेवा

(d) लंदन

उत्तर- (c) जेनेवा

Section-B / खण्ड-ब

(Short Answer Type Questions)

(लघु उत्तरीय प्रश्न)

Note: Answer any four questions of the following. [4×5=20]

निम्नलिखित में से किन्हीं चार प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

2. Define Economic Geography.

आर्थिक भूगोल को परिभाषित कीजिए।

3. Describe different types of Economic Activities.

विभिन्न प्रकार के आर्थिक क्रियाकलापों को बताइए।

4. What is Commercial Grain Farming?

वाणिज्यिक अनाज कृषि किसे कहते हैं?

5. Discuss important factors for location of industries.

उद्योगों की अवस्थिति के लिए महत्वपूर्ण कारकों की चर्चा कीजिए।

6. What is International Trade?

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार किसे कहते हैं?

7. What is Special Economic Zone?

विशेष आर्थिक क्षेत्र क्या है?

Section-C / खण्ड-स

(Long Answer Type Questions)

(दीर्घ उत्तरीय प्रश्न)

Note: Answer any three questions of the following. [3×10=30]

निम्नलिखित में से किन्हीं तीन प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

8. Define the meaning and scope of Economic Geography.

आर्थिक भूगोल के अर्थ एवं क्षेत्र को परिभाषित कीजिए।

9. Discuss the importance of Economics Activates.

आर्थिक क्रियाकलापों के महत्व को बताइए।

10. Explain the production and distribution of cotton textile industry of India or China.

भारत अथवा चीन में सूती वस्त्र उद्योग के उत्पादन एवं वितरण की व्याख्या कीजिए।

11. Discuss the role of WTO in terms of International Trader.

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के संदर्भ में विश्व व्यापार संगठन की भूमिका स्पष्ट कीजिए।

12. What do you mean by Special Economic Zone? Discuss the SEZ in India.

विशेष आर्थिक क्षेत्र से आप क्या समझते हैं? भारत में सेज़ की चर्चा कीजिए।



सभी लघु एवं दीर्घ उत्तरीय प्रश्नों का उत्तर सरल एवं आसान शब्दों में देना यहाँ सीखें



PART-B / भाग-ब

(Short Answer Type Questions)

(लघु उत्तरीय प्रश्न)

Note: Answer any four questions of the following. [4×5=20]

निम्नलिखित में से किन्हीं चार प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

2. Define Economic Geography.

आर्थिक भूगोल को परिभाषित कीजिए।

उत्तर- पृथ्वी मानव का घर है और मानव व पृथ्वी तल दोनों ही तथ्य अस्थिर एवं परिवर्तनशील हैं। पृथ्वी की भौतिक परिस्थितियों और मानव के कार्य-कलापों के पारस्परिक सम्बन्धों का अध्ययन मानव भूगोल के अन्तर्गत किया जाता है। आर्थिक भूगोल, मानव भूगोल की एक महत्वपूर्ण शाखा है। इस शाखा के जन्मदाता गोट्ज (1882) थे। इसके अध्ययन में हम मानव की आर्थिक क्रियाओं का ही अध्ययन करते हैं। मानव की आकांक्षाएं एवं आवश्यकताएं अत्यधिक असीमित और विविध हैं। इन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मानव अनेक वस्तुओं का उत्पादन करता है तथा जिन वस्तुओं का उत्पादन नहीं कर सकता उनका क्रय करता है तथा अपने द्वारा उत्पादित वस्तुओं से उनका विनिमय करता है।

       प्रो. मेकफरलेन के अनुसार आर्थिक भूगोल के अध्ययन में हम मानव के आर्थिक प्रयत्नों पर भौगोलिक तथा भौतिक पर्यावरण के प्रभाव का अध्ययन करते हैं।

      प्रो. जी. चिशौल्म के अनुसार आर्थिक भूगोल में हम उन भौगोलिक परिस्थितियों का अध्ययन करते हैं जो वस्तुओं के उत्पादन, परिवहन तथा विनिमय को प्रभावित करती हैं।   

        इस अध्ययन के माध्यम से किसी प्रदेश अथवा क्षेत्र के भावी आर्थिक और व्यापारिक क्रियाओं पर पड़ने वाले भौगोलिक प्रभावों के अध्ययन का सम्मिलित प्रभाव भी जाना जाता है।

      सुप्रसिद्ध भूगोलवेत्ता हंटिंगटन जीविकोपार्जन प्रदान करने वाले सभी प्रकार के पदार्थों, साधनों, क्रियाओं, रीति-रिवाजों तथा मानव शक्तियों का अध्ययन आर्थिक भूगोल के क्षेत्र में मानते हैं।

       प्रो. शॉ के अनुसार मानव की आर्थिक क्रियाएं विश्व के उद्योगो, संसाधनों तथा औद्योगिक उत्पादन के अनुरूप होती हैं।

       इसी प्रकार डॉ. एन. जी. जे. पाउण्ड्स के अनुसार आर्थिक भूगोल भू-पृष्ठ पर मानव की उत्पादन क्रियाओं के वितरण का अध्ययन है।

      प्रो. रैयन तथा बैगस्टन के शब्दों में आर्थिक भूगोल के अध्ययन में विश्व के भिन्न-भिन्न भागों में मिलने वाले आधारभूत संसाधन एवं स्रोतों का अध्ययन किया जाता है। इन स्रोतों के शोषण पर पड़ने वाली भौतिक परिस्थितियों के प्रभाव की विवेचना की जाती है। विभिन्न प्रदेशों के आर्थिक विकास के अन्तर की व्याख्या की जाती है।

3. Describe different types of Economic Activities.

विभिन्न प्रकार के आर्थिक क्रियाकलापों को बताइए।

उत्तर- मानव अपनी मूलभूत और उच्चतर आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु विभिन्न प्रकार की आर्थिक क्रियाएँ करता है। इन क्रियाओं द्वारा मानव की आर्थिक प्रगति होती है। मनुष्य की आर्थिक क्रियाओं पर भौतिक एवं सामाजिक पर्यावरण का प्रभाव पड़ता है। चूंकि पृथ्वी सतह पर भौतिक एवं सामाजिक पर्यावरण में क्षेत्रीय विभिन्नता विद्यमान है, अतः मानव की आर्थिक क्रियाओं में भी क्षेत्रीय विभिन्नता पाई जाती है।

          मनुष्य की आर्थिक क्रियाओं या गतिविधियों को निम्नलिखित चार वर्गों में विभाजित किया जा सकता है, यद्यपि ये चारों वर्ग एक-दूसरे से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित हैं:

1. प्राथमिक व्यवसाय (Primary Occupation):-

       प्राथमिक व्यवसाय पूर्णतः प्रकृति पर आश्रित होते हैं। प्राथमिक व्यवसायों के संचालन हेतु अपेक्षाकृत विस्तृत क्षेत्र की आवश्यकता होती है। वनों से संग्रहण, आखेट, लकड़ी काटना घास के मैदानों में पशु चराना, पशुओं से दूध, मांस, खालें, आदि प्राप्त करना, समुद्रों, नदियों एवं झीलों से मछली पकड़ना, कृषि तथा खानों से खनिज निकालना, आदि प्रमुख प्राथमिक व्यवसाय हैं।

2. द्वितीयक व्यवसाय (Secondary Occupation):-

         द्वितीयक या गौण व्यवसाय में वे सभी प्रकार के विनिर्माण उद्योग सम्मिलित किए जाते हैं जो प्राथमिक व्यवसायों जैसे- कृषि, खनन, पशुपालन, मत्स्य संग्रहण, लकड़ी काटना, आदि से प्राप्त उत्पादों को कच्चे माल के रूप में प्रयुक्त कर मशीनी प्रक्रिया द्वारा उसे तैयार माल में बदलते हैं। इस प्रक्रिया द्वारा गौण व्यवसाय कच्चे माल के स्वरूप में परिवर्तन करते हैं, उसके मूल्य में वृद्धि करते हैं और उसकी उपयोगिता को बढ़ा देते हैं।

     उदाहरण के लिए कृषि से प्राप्त गन्ना गौण व्यवसाय के लिए कच्चा माल है, मशीनी प्रक्रिया द्वारा गन्ने से चीनी बनाई जाती है। इस प्रकार गन्ने का स्वरूप भी परिवर्तित हो जाता है, गन्ने से शक्कर बनने पर उसके मूल्य और उपयोगिता में वृद्धि हो जाती है।

3. तृतीयक व्यवसाय (Tertiary Occupation):-

      तृतीयक व्यवसायों में समाज को दी जाने वाली व्यक्तिगत तथा व्यावसायिक सेवाएं सम्मिलित हैं। इस व्यवसाय को सेवा श्रेणी भी कहा जाता है। सामान्यतः विकास की प्रक्रिया का एक निश्चित क्रम होता है। प्रारम्भ में प्राथमिक व्यवसायों की प्रधानता होती है। इसके बाद गौण व्यवसायों का महत्व बढ़ता है तथा अन्त में तृतीयक और चतुर्थक व्यवसाय महत्वपूर्ण बन जाते हैं।

    तृतीयक व्यवसायों के अन्तर्गत समाज को प्रदान की जाने वाली सेवाओं में रेल, सडक, जहाज, वायुयान, सेवाएं, डाक-तार सेवाएं, दूरदर्शन, रेडियो, फिल्म, साहित्य, कानूनी सेवाएं, जनसम्पर्क और परामर्श, विज्ञापन, वित्त, बीमा, थोक और फुटकर व्यापार, मरम्मत के कार्य जैसी सेवाएं, स्थानीय, राज्यीय, राष्ट्रीय प्रशासन, पुलिस, सेना और अन्य जन सेवाएं तथा गैर सरकारी संगठनों द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाएं उल्लेखनीय हैं।

4. चतुर्थक व्यवसाय (Quaternary Occupation):-

       वर्तमान समय में मानव के आर्थिक क्रियाकलाप दिनोंदिन बहुत ही विशिष्ट और जटिल होते जा रहे हैं। फलतः मानव की कानून, वित्त, शिक्षा, शोध और संचार से जुड़ी उन आर्थिक गतिविधियों को जो सूचना (information), सूचना के संग्रहण, (Acquisition), सूचना के संसाधन, (Manipulation) और सूचना के प्रसारण (Transmission) से सम्बन्धित है, को चतुर्थक व्यवसाय के अन्तर्गत सम्मिलित किया गया है।

4. What is Commercial Grain Farming?

वाणिज्यिक अनाज कृषि किसे कहते हैं?

उत्तर- यह कम जनसंख्या वाला ऐसा क्षेत्र है जहाँ कृषि का उद्देश्य व्यापार करना होता है। उत्तरी अमेरिका में प्रेयरी, रूस में स्टेपी, अर्जेण्टाइना में पम्पा, आस्ट्रेलिया में मरे-डार्लिंग बेसिन आदि इसी कृषि प्रदेश में आते हैं।

अन्य विशेषतायें-

          सैकड़ों हेक्टेयर के खेत तथा एकाकी मकान इस प्रदेश में कृषि की पहचान होते हैं। फार्मों में व्यापक पैमाने पर यंत्रों का प्रयोग होता है, तथा एक या दो व्यक्ति मिलकर फसल संबंधी सभी कार्य जुताई-बुआई, निराई-गुड़ाई कटाई-महाई, भण्डारण आदि करते हैं। कटाई के समय कभी-कभी अस्थाई श्रमिक भी लगाये जाते हैं।

          यहाँ कीटनाशक दवाओं का प्रयोग, खाद, सिंचाई का प्रयोग पर्याप्त होता है। वर्षा प्राय: 25 से 50 सेमी० तक होती है अतः गेहूँ ही प्रधान फसल है। यहाँ की मिट्टी में नमी पर्याप्त मात्रा में होती है, अतः प्रति इकाई उपज अधिक होती है।

          कृषि व्यापार पर आधारित होती है। विदेशों में माँग कम होने या कीमत गिरने या अत्यधिक उत्पादन होने पर फसल या तो जानवरों को खिलाई जाती है या जला दी जाती है।

5. Discuss important factors for location of industries.

उद्योगों की अवस्थिति के लिए महत्वपूर्ण कारकों की चर्चा कीजिए।

उत्तर- किसी भी उद्योग में लागत को कम करने तथा लाभ को बढ़ाने के लिए एक अनुकूल स्थान की आवश्यकता होती है। उ‌द्योगों की स्थापना को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकों को हम तीन वर्गों में विभाजित कर सकते हैं:

1. भौगोलिक कारक

2. आर्थिक कारक

3. राजनीतिक कारक

1. भौगोलिक कारक (Geographical Factors)

         इसमें कच्चा माल, शक्ति, श्रम, परिवहन तथा संचार, बाजार, जलवायु, जल आपूर्ति तथा सस्ती भूमि शामिल है।

कच्चा माल (Access to Raw Material):-

       कोई भी उ‌द्योग कच्चे माल के द्वारा ही तैयार माल उत्पन्न करता है और यह कच्चे माल दो प्रकार के होते हैं: वजन ह्रास और बिना वजन ह्रास। सामान्यता उ‌द्योग उन्ही स्थानों पर लगाए जाते हैं अहां कच्चे माल प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हो, जैसे वन, कृषि क्षेत्र तथा समुद्र के निकट आदि। अधिकांश लौह इस्पात उ‌द्योग वहां स्थापित किया जाता है जहां लौह अयस्क और कोयला दोनों ही उपलब्ध हों क्योंकि दोनों वजन हास कच्चे माल है।

       इसी प्रकार निर्माण प्रक्रिया में जिस कच्चे माल का भार घटता है उसे वजन हासमान पदार्थ कहते हैं। कुछ वस्तुएं ऐसी भी होती है जिनके भार का हास नहीं होता, जैसे 1 टन सूत बनाने के लिए 1 टन रुई की आवश्यकता होती है। वजन हास उ‌द्योग है लौह इस्पात उ‌द्योग, गन्ने से चीनी बनाना, लकड़ी से लुग्दी, लुगदी से कागज, लेटेक्स से रबर आदि।

शक्ति (Access to source of Energy):-

       उ‌द्योगों के मशीनों को चलाने के लिए शक्ति की आवश्यकता होती है। ये शक्ति के सदन हैं: तापीय शक्ति, पेट्रोलियम ऊर्जा, विद्युत शक्ति, जल विद्युत शक्ति, प्राकृतिक गैस तथा परमाणु ऊर्जा आदि। अधिकांश उ‌द्योग शक्ति के साधनों के निकट ही स्थापित होते हैं।

श्रम (Access to Labour supply):-

       बिना श्रम के किसी भी उ‌द्योग की कल्पना नहीं की जा सकती है, हालांकि पहले यह पूर्णतः मानव श्रम पर आधारित था जबकि अब कंप्यूटर और मशीनों के आ जाने से मानव श्रम की कम जरुरत पड़ती है परंतु अब कुशल मानव श्रम की आवश्यकता बढ़ गई है।

परिवहन तथा संचार के साधन (Transport and communication):-

       कच्चे माल को कारखाना तक लाने और तैयार माल को कारखाना से बाजार भेजने या निर्यात के लिए परिवहन के विकसित साधनों की आवश्यकता होती है। इसलिए अधिकांश उद्‌द्योग रेलवे लाइन या बंदरगाह के निकट स्थापित होते हैं। परिवहन के साथ ही संचार के साधन जैसे डाक, तार, टेलीफोन और इन्टरनेट व ईमेल इत्यादि सूचनाओं का आदान-प्रदान तीव्र गति से करते हैं जो सहायक सिद्ध होते हैं।

बाजार (Access to Market):-

      उद्योगों का मुख्य उ‌द्देश्य ही है कि तैयार माल को जरूरतमंदों के पास पहुंचाया जाए नहीं तो उत्पादन का खपत नहीं हो पायेगा। इसके लिए एक के अच्छे बाजार की आवश्यकता होती है। इसलिए अधिकांश उद्‌द्योग बाजार के निकट या फिर बाजार से करखाने तक परिवहन के सांधन अच्छा हो तो बाजार से थोड़ी दूर भी स्थापित हो सकता है।

जलवायु (Climate):-

         जलवायु उ‌द्योगों की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। बहुत उ‌द्योगों के लिए नम जलवायु की आवश्यकता होती है और बहुत सारे उ‌द्योगों के लिए शुष्क जलवायु की आवश्यकता होती है।

जल (Availability of Water):-

      अधिकांश उ‌द्योग भारी मात्रा में जल का उपयोग करते हैं। इसलिए अधिकांश उ‌द्योग जल स्रोतों के निकट स्थापित होते हैं। जैसे टाटा का लौह इस्पात उ‌द्योग खरकई और स्वर्णरेखा नदियों से जल प्राप्त करता है।

भूमि (Availability of Cheap Land):-

       उ‌द्योगों को स्थापित करने के लिए विस्तृत भूमि की आवश्यकता होती है क्योंकि इसमें उत्पादन के लिए मशीन स्थापित करना, कच्चे माल रखने के लिए व्यवस्था करना, उत्पादित माल को सुरक्षित रखना तथा मजदूरों के रहने के लिए व्यवस्था करना आदि में बहुत ज्यादा भूमि की आवश्यकता होती है। इसलिए भूमि सस्ती होनी चाहिए।

2. आर्थिक कारक (Economic Factor)

       इसमें मुख्य रूप से पूंजी, बैंकिंग सुविधा तथा बीमा सुविधा आती है।

पूंजी (Capital Flow):-

     किसी भी उद्‌योग को स्थापित करने के लिए पर्याप्त पूंजी की आवश्यकता होती है। कारखाना लगाने, कच्चे माल खरीदने, मजदूरों को वेतन देने से लेकर बाजार तक पहुंचाने के लिए एक बड़ी रकम की आवश्यकता होती है।

बैंकिंग सुविधा (Banking Facility):-

        कारखाना के लगातार विकास के लिए निरंतर बहुत ज्यादा पूंजी की आवश्यकता पड़ती रहती हैं और इसीलिए बैंक उन्हें ऋण सुविधा के द्वारा यह रकम देते रहते हैं, जिससे उद्‌द्योगों का विकास होता है।

बीमा सुविधा (Insurance Facility):-

       आजकल जीवन के हर क्षेत्र में बीमा एक जरूरत बन गई है। इसी प्रकार किसी उ‌द्योग के लिए भी यह बहुत बड़ी जरूरत बन गई है। भारी मशीनों का बीमा, भूमि का बीमा, कारखाना का बीमा, श्रमिकों का बीमा से लेकर हर चीज का बीमा आवश्यक हो गया है।

3. राजनैतिक कारक (Political Factors)

         इसके अंतर्गत सरकार की नीतियां और राजनैतिक स्थिरता आती है।

सरकार की नीतियाँ (Government Policies):-

         उ‌द्योग की स्थापना में सरकार की नीतियां भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।

जैसे यदि किसी देश में सरकार कारखानों का राष्ट्रीयकरण कर रही हो तो वहां पर उद्‌द्योगपति अपने उद्‌द्योग नहीं लगाएंगे इसके विपरीत यदि कहीं टैक्स में छूट दिया जा रहा है तो उ‌द्योगपति वहीं पर अपना कारखाना लगाने लगते हैं।

राजनैतिक स्थिरता (Political Stability):-

        कोई भी कारखाना वहीं स्थापित हो सकता है जहां राजनीतिक स्थिरता हो। युद्ध और अशांति की स्थिति में कोई भी उ‌द्योग विकास नहीं कर सकता।

उ‌द्योगों के बीच लिंक (Access to Agglomeration Economies):-

        कई उ‌द्योगों अपने आस-पास के किसी बड़े या अन्य उ‌द्योगों से लाभान्वित होते हैं। मैं Agglomeration Economies के रूप में जाने जाते हैं। उ‌द्योगों के बीच लिंक होने से बचत भी होती है।

      इस प्रकार स्पष्ट है कि किसी भी उ‌द्योग के स्थापित होने में कई कारक काम करते है जहां पर उपरोक्त में से अधिकतम कारक मिल पाते हैं उ‌द्योगों की स्थापना नहीं होती है।

6. What is International Trade?

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार किसे कहते हैं?

उत्तर- अंतर्राष्ट्रीय व्यापार- अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को विभिन्न देशों के बीच वस्तुओं और सेवाओं के आदान-प्रदान या व्यापार के रूप में संदर्भित किया जाता है। इस तरह का व्यापार विश्व अर्थव्यवस्था में योगदान देता है और उसे बढ़ाता है। सबसे अधिक कारोबार की जाने वाली वस्तुएँ टेलीविज़न सेट, कपड़े, मशीनरी, पूंजीगत सामान, भोजन, कच्चा माल आदि हैं।

       अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में असाधारण वृद्धि हुई है, जिसमें विदेशी परिवहन, यात्रा और पर्यटन, बैंकिंग, भंडारण, संचार, वितरण और विज्ञापन जैसी सेवाएँ शामिल हैं। अन्य समान रूप से महत्वपूर्ण विकास विदेशी निवेश में वृद्धि और एक अंतरराष्ट्रीय देश में विदेशी वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन है।

     ये विदेशी निवेश और उत्पादन कम्पनियों को अपने अंतर्राष्ट्रीय ग्राहकों के करीब आने में मदद करते हैं, जिससे उन्हें बहुत कम दर पर वस्तुएं और सेवाएं उपलब्ध होती हैं।

     उपरोक्त सभी गतिविधियाँ अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के अंग हैं। यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और उत्पादन अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के दो पहलू हैं, जो दुनिया भर में दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे हैं।

7. What is Special Economic Zone?

विशेष आर्थिक क्षेत्र क्या है?

उत्तर- विशेष आर्थिक क्षेत्र (Special Economic Zone) एक ऐसे भौगोलिक प्रदेश है जहाँ देश का सामान्य आर्थिक कानून पूरी तरह से लागू नहीं होती। दूसरे शब्दों में ‘SEZ’ शुल्क मुक्त आर्थिक क्षेत्र है जहाँ पर विदेशी निवेशकों को आकर्षित कर आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा दिया जाता है और उत्पादकों को निर्यात के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।

        विशेष आर्थिक क्षेत्र की स्थापना के कई लाभ हो सकते है:-

(1) उद्योगों के विकास हेतु विदेशी एवं घरेलू निवेशकों को उपयुक्त वातावरण उपलब्ध कराना।

(2) निर्यात को बढ़ावा देना।

(3) अधिक से अधिक रोजगार उत्पन्न करना।

(4) पिछड़े हुए क्षेत्रों को विकसित करना।

(5) सामाजिक-आर्थिक विषमता को कम करना।

(6) औद्योगीकरण तथा नगरीकरण को बढ़ावा देना।

Section-C / खण्ड-स

(Long Answer Type Questions)

(दीर्घ उत्तरीय प्रश्न)

Note: Answer any three questions of the following. [3×10=30]

निम्नलिखित में से किन्हीं तीन प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

8. Define the meaning and scope of Economic Geography.

आर्थिक भूगोल के अर्थ एवं क्षेत्र को परिभाषित कीजिए।

उत्तर- पृथ्वी मानव का घर है और मानव व पृथ्वी तल दोनों ही तथ्य अस्थिर एवं परिवर्तनशील हैं। पृथ्वी की भौतिक परिस्थितियों और मानव के कार्य-कलापों के पारस्परिक सम्बन्धों का अध्ययन मानव भूगोल के अन्तर्गत किया जाता है। आर्थिक भूगोल, मानव भूगोल की एक महत्वपूर्ण शाखा है। इस शाखा के जन्मदाता गोट्ज (1882) थे। इसके अध्ययन में हम मानव की आर्थिक क्रियाओं का ही अध्ययन करते हैं। मानव की आकांक्षाएं एवं आवश्यकताएं अत्यधिक असीमित और विविध हैं। इन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मानव अनेक वस्तुओं का उत्पादन करता है तथा जिन वस्तुओं का उत्पादन नहीं कर सकता उनका क्रय करता है तथा अपने द्वारा उत्पादित वस्तुओं से उनका विनिमय करता है।

       प्रो. मेकफरलेन के अनुसार आर्थिक भूगोल के अध्ययन में हम मानव के आर्थिक प्रयत्नों पर भौगोलिक तथा भौतिक पर्यावरण के प्रभाव का अध्ययन करते हैं।

      प्रो. जी. चिशौल्म के अनुसार आर्थिक भूगोल में हम उन भौगोलिक परिस्थितियों का अध्ययन करते हैं जो वस्तुओं के उत्पादन, परिवहन तथा विनिमय को प्रभावित करती हैं।   

        इस अध्ययन के माध्यम से किसी प्रदेश अथवा क्षेत्र के भावी आर्थिक और व्यापारिक क्रियाओं पर पड़ने वाले भौगोलिक प्रभावों के अध्ययन का सम्मिलित प्रभाव भी जाना जाता है।

      सुप्रसिद्ध भूगोलवेत्ता हंटिंगटन जीविकोपार्जन प्रदान करने वाले सभी प्रकार के पदार्थों, साधनों, क्रियाओं, रीति-रिवाजों तथा मानव शक्तियों का अध्ययन आर्थिक भूगोल के क्षेत्र में मानते हैं।

       प्रो. शॉ के अनुसार मानव की आर्थिक क्रियाएं विश्व के उद्योगो, संसाधनों तथा औद्योगिक उत्पादन के अनुरूप होती हैं।

       इसी प्रकार डॉ. एन. जी. जे. पाउण्ड्स के अनुसार आर्थिक भूगोल भू-पृष्ठ पर मानव की उत्पादन क्रियाओं के वितरण का अध्ययन है।

      प्रो. रैयन तथा बैगस्टन के शब्दों में आर्थिक भूगोल के अध्ययन में विश्व के भिन्न-भिन्न भागों में मिलने वाले आधारभूत संसाधन एवं स्रोतों का अध्ययन किया जाता है। इन स्रोतों के शोषण पर पड़ने वाली भौतिक परिस्थितियों के प्रभाव की विवेचना की जाती है। विभिन्न प्रदेशों के आर्थिक विकास के अन्तर की व्याख्या की जाती है।

       भूगोल की अन्य शाखाओं की भांति आर्थिक भूगोल की विषय-वस्तु एवं विषय-क्षेत्र पर भूगोलवेत्ताओं के विचारों में पर्याप्त मतभेद रहा है। कुछ विद्वान मानव के भौतिक तथा सांस्कृतिक पर्यावरण के अध्ययन को अधिक महत्व देते हैं, तो कुछ मानव की आर्थिक क्रियाओं तथा जीविकोपार्जन के अनेकानेक साधनों के अध्ययन को मुख्य मानते हैं। संक्षेप में विश्व के विभिन्न भागों में मिलने वाले खनिज, कृषि, औद्योगिक साधनों का उत्पादन, उपभोग, वितरण, परिवहन तथा व्यापारिक अध्ययन आर्थिक भूगोल के अन्तर्गत किया जाता है।

         वर्तमान में मानव ने विज्ञान और तकनीक की सहायता से आशानुरूप विकास कर लिया है। मानव ने अपने आर्थिक क्षेत्र का विस्तार, समुद्र, भू-गर्भ और अन्तरिक्ष तक कर लिया है। व्यावहारिक जगत में आर्थिक भूगोल के अध्ययन का अत्यधिक महत्व है; इसके अध्ययन के माध्यम से कृषक, श्रमिक, व्यापारी, उद्योगपति तथा राजनीतिज्ञ सव ही लाभान्वित होते हैं।

         विभिन्न देशों को अपनी आर्थिक क्षमता बढ़ाने तथा विकास की भावी योजनाओं के निर्माण में आर्थिक भूगोल के अध्ययन को आधार बनाना पड़ता है। किसी प्रदेश के आर्थिक साधनों का उच्चतम सीमा तक विकास कर वहां की बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए जीविकोपार्जन के साधन सुलभ किए जा सकते हैं। किसी देश की अर्थव्यवस्था को सन्तुलित तथा मानव शक्ति को उत्पादन क्रिया से सम्बद्ध करने में आर्थिक भूगोल का योगदान बड़ा महत्वपूर्ण होता है।

        मानव की आधुनिक अनुसन्धान एवं अन्वेषण की प्रवृत्ति ने मानव के आर्थिक क्रिया-कलापों को और अधिक विस्तृत बना दिया है।

        इस विषय की मुख्य संकल्पनाएँ निम्नलिखित हैं-

(1) आर्थिक भू-दृश्य:-

     इसमें किसी प्रदेश के आर्थिक व्यक्तित्व को अभिव्यक्त किया जाता है। मानव द्वारा प्राकृतिक साधनों के अधिकाधिक उपयोग पर बल दिया जाता है।

(2) गत्यात्मक आर्थिक भू-दृश्य:-

     इस संकल्पना में सदैव परिवर्तन एवं विकास के तत्व को महत्व दिया गया है। जहां आर्थिक भू-दृश्य भूतकाल के आर्थिक कार्यों का परिणाम है, वहां गत्यात्मक आर्थिक भू-दृश्य पुरोगामी और भावी विकास की सम्भावनाओं को व्यक्त करता है।

(3) वर्तमान आर्थिक भू-दृश्य:-

     ये संसाधन, संरचना, आर्थिक विकास एवं आर्थिक प्रक्रिया द्वारा उपलब्धि के परिचायक हैं। वहां की आर्थिक स्थिति को विकासावस्था स्तर भी प्रकट करते हैं। युवावस्था में संसाधनों के शोषण के अवसर उपलब्ध रहते हैं; चरमोत्कर्ष की परिपक्व अवस्था में संसाधनो के उच्चतम उपभोग एवं वृद्धावस्था में विकास की अवरुद्ध एवं धीमी प्रगति के आसार दृष्टिगोचर होते रहते हैं।

(4) आर्थिक क्रिया-कलापों की स्थिति में सिद्धान्तों और नियमों के आधार पर स्थिति-स्थापना तथा वितरण की व्याख्या की जाती है। इसमे विषय-वस्तु उपागम तथा प्रादेशिक उपागम को आधार बना कर अध्ययन किया जाता है।

(5) क्षेत्रीय आर्थिक भिन्नता के साथ-साथ सांस्कृतिक एवं जैविक भिन्नता के अन्तर के परिणामस्वरूप उपलब्धि के स्तर में भी भिन्नता मिलती है।

(6) क्षेत्रीय क्रियात्मक अन्योन्यक्रिया में विभिन्न प्रदेशो में विचित्र-सा पारस्परिक क्रियात्मक अन्तर सम्बन्ध दृष्टिगोचर होता है। यह सम्बन्ध लम्बवत् और क्षैतिज दोनों प्रकार का होता है।

(7) भू-दृश्यों का क्षेत्रीय कार्यात्मक सगठन संकेन्द्रीय और समान दोनों प्रकार का होता है। इसमें पारस्परिक सम्बन्ध कहीं स्पष्ट तो कहीं अस्पष्ट होता है। अस्पष्ट सम्बन्धों को परिवहन और संचारवाहन से सम्बद्ध किया जाता है।

(8) क्षेत्रीय आर्थिक विकास संकल्पना में विकास की तुलना, अन्य प्रदेशों से सांस्कृतिक तथा तकनीकी प्रगति और प्राकृतिक संसाधनों के आधार पर की जाती है। प्रगति के लिए क्षेत्र विशेष के आर्थिक संसाधनों के विकास पर अधिकाधिक बल दिया जाता है।

9. Discuss the importance of Economics Activates.

आर्थिक क्रियाकलापों के महत्व को बताइए।

उत्तर- मानव अपनी मूलभूत और उच्चतर आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु विभिन्न प्रकार की आर्थिक क्रियाएँ करता है। इन क्रियाओं द्वारा मानव की आर्थिक प्रगति होती है। मनुष्य की आर्थिक क्रियाओं पर भौतिक एवं सामाजिक पर्यावरण का प्रभाव पड़ता है। चूंकि पृथ्वी सतह पर भौतिक एवं सामाजिक पर्यावरण में क्षेत्रीय विभिन्नता विद्यमान है, अतः मानव की आर्थिक क्रियाओं में भी क्षेत्रीय विभिन्नता पाई जाती है।

     उदाहरण के लिए वनों में मानव एकत्रीकरण या संग्रहण, आखेट एवं लकड़ी काटने जैसे आर्थिक क्रियाएँ सम्पन्न करता है तो घास के मैदानों में पशुचारण, उपजाऊ समतल मैदानी भागों में कृषि, खनिजों की उपलब्धि वाले क्षेत्रों में खनन, जल की उपलब्धि वाले क्षेत्रों में मत्स्याखेट जैसी आर्थिक क्रियाएँ करता है। साथ ही अनुकूल अवस्थिति वाले क्षेत्रों में विनिर्माण उद्योगों, परिवहन, व्यापार एवं सेवाओं से सम्बन्धित आर्थिक गतिविधियों में भी संलग्न रहता है।

     मनुष्य की आर्थिक क्रियाओं या गतिविधियों को निम्नलिखित चार वर्गों में विभाजित किया जा सकता है, यद्यपि ये चारों वर्ग एक-दूसरे से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित हैं:

1. प्राथमिक व्यवसाय (Primary Occupation):-

       प्राथमिक व्यवसाय पूर्णतः प्रकृति पर आश्रित होते हैं। प्राथमिक व्यवसायों के संचालन हेतु अपेक्षाकृत विस्तृत क्षेत्र की आवश्यकता होती है। वनों से संग्रहण, आखेट, लकड़ी काटना घास के मैदानों में पशु चराना, पशुओं से दूध, मांस, खालें, आदि प्राप्त करना, समुद्रों, नदियों एवं झीलों से मछली पकड़ना, कृषि तथा खानों से खनिज निकालना, आदि प्रमुख प्राथमिक व्यवसाय हैं।

     विश्व के विकासशील देशों में कार्यशील जनसंख्या का अधिकांश भाग प्राथमिक व्यवसायों में लगा हुआ है और विकसित देशों में कार्यरत जनसंख्या का अधिकांश भाग तृतीयक एवं चतुर्थक व्यवसायों में कार्यरत है।

  भारत में 60 प्रतिशत, चीन में 50 प्रतिशत, इथोपिया में 80 प्रतिशत, नाइजीरिया में 70 प्रतिशत जनसंख्या प्राथमिक व्यवसायों में लगी हुई है जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका में 8 प्रतिशत, ग्रेट ब्रिटेन में 1 प्रतिशत, जापान में 5 प्रतिशत जनसंख्या ही प्राथमिक व्यवसायों में संलग्न है।

2. द्वितीयक व्यवसाय (Secondary Occupation):-

    द्वितीयक या गौण व्यवसाय में वे सभी प्रकार के विनिर्माण उद्योग सम्मिलित किए जाते हैं जो प्राथमिक व्यवसायों जैसे- कृषि, खनन, पशुपालन, मत्स्य संग्रहण, लकड़ी काटना, आदि से प्राप्त उत्पादों को कच्चे माल के रूप में प्रयुक्त कर मशीनी प्रक्रिया द्वारा उसे तैयार माल में बदलते हैं। इस प्रक्रिया द्वारा गौण व्यवसाय कच्चे माल के स्वरूप में परिवर्तन करते हैं, उसके मूल्य में वृद्धि करते हैं और उसकी उपयोगिता को बढ़ा देते हैं।

     उदाहरण के लिए कृषि से प्राप्त गन्ना गौण व्यवसाय के लिए कच्चा माल है, मशीनी प्रक्रिया द्वारा गन्ने से चीनी बनाई जाती है। इस प्रकार गन्ने का स्वरूप भी परिवर्तित हो जाता है, गन्ने से शक्कर बनने पर उसके मूल्य और उपयोगिता में वृद्धि हो जाती है।

     इसी प्रकार लौह अयस्क का खनन प्राथमिक व्यवसाय है, लेकिन लोहा-इस्पात का निर्माण गौण व्यवसाय है। विभिन्न प्रकार के उद्योग एक-दूसरे के निकट स्थापित हो जाते हैं, क्योंकि एक उद्योग का तैयार माल दूसरे उद्योग के लिए कच्चा माल हो सकता है। उदाहरण के लिए लौह इस्पात उद्योग अनेक प्रकार के इंजीनियरिंग उद्योगों को विकसित कर सकता है।

     उद्योगों का विकास कच्चे माल, शक्ति, श्रमिक, पूंजी और तैयार माल के लिए बाजार की उपलब्धि पर निर्भर है। इन कारकों के अलावा परिवहन और संचार की सुविधाएं, कच्चे माल और शक्ति का लागत मूल्य, श्रमिकों का वेतन तथा तैयार माल का लागत मूल्य भी उद्योगों की स्थापना और विकास में महत्वपूर्ण आर्थिक कारक है।

     किसी देश में गौण व्यवसायों में कितनी विविधता है तथा उन व्यवसायों में कितने लोग काम करते हैं, यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि उस देश में औद्योगिक विकास कितना हुआ है। संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, जर्मनी, फ्रांस, इटली, ग्रेट ब्रिटेन, जापान, कनाडा, आस्ट्रेलिया, आदि देशों में प्राथमिक व्यवसायों की तुलना में गौण व्यवसायों में अधिक लोग काम करते हैं।

     उद्योगों में कार्यरत लोगों की संख्या, उपयोग में आने वाली यान्त्रिक शक्ति तथा निर्मित उत्पादों के मूल्य के आधार पर उद्योग तीन प्रकार के होते हैं यथा- वृहत् उद्योग, लघु उद्योग और कुटीर उद्योग।

     दस्तकार स्थानीय पदार्थों का उपयोग करके दस्तकारी की वस्तुएं बनाते हैं। हथकरघा, बुनकर, टोकरी बनाने वाले, कालीन बनाने वाले, आदि गौण व्यवसायों में लगे हैं। इन गौण व्यवसायों को कुटीर उद्योग कहते हैं। कुटीर उद्योग की प्रत्येक इकाई में लोग कम संख्या में काम करते हैं और इनमें यांत्रिक शक्ति का प्रयोग नहीं होता है।

    लघु उद्योग यांत्रिक शक्ति का उपयोग करते हैं। ये उद्योग बड़े उद्योगों के लिए पुर्जे भी बनाने हैं। इलेक्ट्रोनिक वस्तुएं बनाने वाली औद्योगिक इकाइयां जैसे- रेडियो, टी. वी. सेट, प्लास्टिक की वस्तुएं, सामान्यतः लघु उद्योगों की श्रेणी में आते हैं।

Tertiary and Quaternary Economic
प्लास्टिक की वस्तुएं

     वृहत् उद्योगों में सैकड़ों लोग काम करते हैं और इनमें करोड़ों रुपए की पूंजी लगी हुई होती है। इनमें से कुछ उद्योग जैसे मोटर कार उद्योग या दुपहिया वाहन उद्योग अधिक उत्पादन के लिए एसेम्बली लाइन तकनीक का उपयोग करते हैं। एसेम्बली लाइन में अलग-अलग स्थानों पर कच्चे पदार्थ तथा विविध पुर्जों को जोड़ने का कार्य होता है।

     एसेम्बली लाइन पर जैसे-जैसे निर्माणाधीन वस्तु आगे सरकती है, प्रत्येक श्रमिक कोई निश्चित काम करता है, फिर दूसरी निर्माणाधीन वस्तु में वह वही काम करता है। इस तरह अन्त तक पहुंचते-पहुंचते वस्तु का निर्माण पूरा हो जाता है और इस प्रकार एसेम्बली लाइन में से निर्मित वस्तु बाहर निकलती है। इस विधि में प्रत्येक श्रमिक किसी एक काम में विशेष दक्ष होता है, जिसे वह बार-बार दोहराता है। निर्माण उद्योगों के परिणामस्वरूप प्राथमिक व्यवसायों जैसे- कृषि, खनन, मत्स्य ग्रहण, आदि में भी मशीनों का खूब प्रयोग होने लगा है।

3. तृतीयक व्यवसाय (Tertiary Occupation):-

      तृतीयक व्यवसायों में समाज को दी जाने वाली व्यक्तिगत तथा व्यावसायिक सेवाएं सम्मिलित हैं। इस व्यवसाय को सेवा श्रेणी भी कहा जाता है। सामान्यतः विकास की प्रक्रिया का एक निश्चित क्रम होता है। प्रारम्भ में प्राथमिक व्यवसायों की प्रधानता होती है। इसके बाद गौण व्यवसायों का महत्व बढ़ता है तथा अन्त में तृतीयक और चतुर्थक व्यवसाय महत्वपूर्ण बन जाते हैं।

    तृतीयक व्यवसायों के अन्तर्गत समाज को प्रदान की जाने वाली सेवाओं में रेल, सडक, जहाज, वायुयान, सेवाएं, डाक-तार सेवाएं, दूरदर्शन, रेडियो, फिल्म, साहित्य, कानूनी सेवाएं, जनसम्पर्क और परामर्श, विज्ञापन, वित्त, बीमा, थोक और फुटकर व्यापार, मरम्मत के कार्य जैसी सेवाएं, स्थानीय, राज्यीय, राष्ट्रीय प्रशासन, पुलिस, सेना और अन्य जन सेवाएं तथा गैर सरकारी संगठनों द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाएं उल्लेखनीय हैं।

     उद्योगों के विकास के साथ-साथ नगरीय जनसंख्या में तेजी से वृद्धि हुई है। परिणामस्वरूप विभिन्न प्रकार की सेवाओं की मांग में भी वृद्धि हुई है। ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में नगरीय क्षेत्रों में अपेक्षाकृत अधिक संख्या में लोग तृतीयक व्यवसायों में संलग्न हैं।

     विकासशील देशों की तुलना में विकसित देशों में कार्यरत जनसंख्या का अधिकांश भाग सेवाओं में लगा हुआ है। उदाहरण के लिए जापान में 70 प्रतिशत, आस्ट्रेलिया में 73 प्रतिशत, कनाडा में 74 प्रतिशत, जर्मनी में 64 प्रतिशत कार्यशील लोग तृतीयक व्यवसायों में संलग्न हैं जबकि भारत में 23 प्रतिशत और चीन में 28 प्रतिशत कार्यशील जनसंख्या ही तृतीयक व्यवसायों में लगी हुई है।

    विकसित देशों में प्रति व्यक्ति आय के बढ़ने से विभिन्न प्रकार की सेवाओं विशेषकर मनोरंजन, परिवहन और स्वास्थ्य सेवाओं की मांग में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। प्राथमिक एवं गौण व्यवसायों में काम करने वाले लोगों की भांति तृतीयक व्यवसायों में सेवारत लोगों के कार्य भी महत्वपूर्ण हैं। प्राथमिक और गौण व्यवसायों में लगे लोग, समाज के लिए आवश्यक वस्तुओं का उत्पादन करते हैं और तृतीयक व्यवसायी समाज को विभिन्न सेवाएं प्रदान करते हैं।

4. चतुर्थक व्यवसाय (Quaternary Occupation):-

       वर्तमान समय में मानव के आर्थिक क्रियाकलाप दिनोंदिन बहुत ही विशिष्ट और जटिल होते जा रहे हैं। फलतः मानव की कानून, वित्त, शिक्षा, शोध और संचार से जुड़ी उन आर्थिक गतिविधियों को जो सूचना (information), सूचना के संग्रहण, (Acquisition), सूचना के संसाधन, (Manipulation) और सूचना के प्रसारण (Transmission) से सम्बन्धित है, को चतुर्थक व्यवसाय के अन्तर्गत सम्मिलित किया गया है।

    वर्तमान में विश्व के लगभग सभी देशों में और विशेषकर विकसित देशों में चतुर्थक व्यवसाय में संलग्न लोगों की संख्या में निरन्तर वृद्धि हो रही है। इस व्यवसाय के लोगों में उच्च वेतनमान और पदोन्नति की चाह में गतिशीलता अधिक पाई जाती है।

    कम्प्यूटर के बढ़ते प्रयोग और सूचना प्रौद्योगिकी ने इस व्यवसाय के महत्व को बहुत बढ़ा दिया है। परिणामस्वरूप औद्योगिक समाज के तकनीकी तत्वों में क्रान्तिकारी परिवर्तन आ गया है और वर्तमान आर्थिक क्रियाकलाप मुख्य रूप से उन अप्रत्यक्ष उत्पादों से प्रभावित हो गए हैं जिनके उत्पादन में ज्ञान, सूचना और संचा अधिक महत्वपूर्ण है।

10. Explain the production and distribution of cotton textile industry of India or China.

भारत अथवा चीन में सूती वस्त्र उद्योग के उत्पादन एवं वितरण की व्याख्या कीजिए।

उत्तर- सूती वस्त्र उद्योग भारत का सबसे पुराना उद्योग है। यह भारत का सबसे बड़ा उद्योग है। यह भारत का सबसे बड़ा रुग्ण उद्योग भी है। भारत में सर्वाधिक कर्मचारी इसी उद्योग में संलग्न है। भारत कभी विश्व का सबसे बड़ा सूती वस्त्र उत्पादक देश हुआ करता था। लेकिन, इंगलैण्ड में हुए औद्योगिक क्रांति के कारण भारतीय सूती वस्त्र उद्योग को प्रायोजित तरीके से पीछे कर दिया गया।

विकास / वृद्धि

    सूती वस्त्र उद्योग यद्यपि भारत का सबसे प्राचीन उद्योग है। फिर इसका आधुनिक कारखाना 1818 ई० में कलकता के ‘फोर्ट ग्लोस्टर’ नामक स्थान पर लगाया गया था। लेकिन कच्चे माल के अभाव में असफल रहा। पुनः सफल सूती वस्त्र का कारखाना 1850 ई० में कलकत्ता में स्थापित किया गया। इस सफल प्रयास के बाद इस उद्योग का विकास सतत् जारी है। 

      1905 ई० तक भारत में 206 सूती वस्त्र के मील स्थापित हो चुके थे। 1958ई० तक भारत में मीलों की संख्या 1767 पहुंच गयी थी। वर्तमान समय में इसकी संख्या बढ़कर 2000 से भी अधिक हो चुकी है।

स्थानीयकरण

      बेवर ने अपने न्यूनतम परिवहन लागत सिद्धांत में बताया कि सूती वस्त्र उद्योग शुद्ध कच्चा माल पर आधारित एक ऐसा उद्योग है जिसमें हम जितना कच्चा माल लगाते है उतने ही मात्रा में शुद्ध उत्पाद प्राप्त करते है। ऐसे उद्योगों को समभार उद्योग कहा जा सकता है। इस प्रकार के उद्योगों का स्थानीकरण कच्चे माल वाले क्षेत्रों में, बाजार में या दोनों स्थानों पर हो सकता है। जैसे- मुम्बई के आसपास इस उद्योग का विकास बड़े पैमाने पर हुआ है क्योंकि महाराष्ट्र के काली मिट्टी की भूमि पर बड़े पैमाने पर कपास की खेती होती है।

      पुनः इस उद्योग का स्थानीयकरण कोलकाता के आस-पास हुआ है जबकि पूरे पश्चिम बंगाल में कपास की खेती कहीं नहीं की जाती है। अतः कलकत्ता के आस-पास सूती वस्त्र उद्योग विकास बाजार के कारण हुआ है।

विकास के विभिन्न चरण या नवीन प्रवृति या वितरण

    भारत उष्ण एवं उपोष्ण जलवायु वाला देश है। इसलिए सम्पूर्ण भारत में सदैव सूती वस्त्र की माँग होती रही है। प्रारंभ में इसके विकास में केन्द्रीयकरण की प्रवृति थी। कालान्तर में यह विकेन्द्रीकृत उद्योग बना। केन्द्रीयकरण से विकेन्द्रीकृत उद्योग बनने में काफी लम्बा समय लगा है। इस समय को चार चरण में बाँटकर अध्ययन किया जा सकता है:-

प्रथम चरण:-

    प्रथम चरण में सूती वस्त्र उद्योग का विकास केवल मुम्बई महानगर में हुआ। यहाँ पर इस उद्योग के स्थानीयकरण के चार कारक महत्त्वपूर्ण थे। जैसे-

(1) मुम्बई भारत का सबसे बड़ा बंदरगाह रहा है।

  • कपास निर्यात करने के लिए यहाँ लाये जाते थे।
  • कपास के व्यापारी मुम्बई में ही रहा करते थे। उनके पास पूँजी और तकनीक पहले से मौजूद थी।
  • पुनः मुम्बई की आर्द्र जलवालु सूती वस्त्र उद्योग के लिए उपयुक्त वातावरण उपलब्ध कराती थी।

     यही कारण था कि मुम्बई द्वीप पर सूटी वस्त्र उद्योग का प्रथम विकास हुआ।

(2) चीन में विकसित हो रहे सूती वस्त्र उद्योग में धागा आपूर्ति करने का कार्य ब्रिटिश कंपनियाँ किया करती थी। जब ब्रिटिश कंपनियाँ चीन को पर्याप्त मात्रा में धागा आपूर्ति करने में असफल होने लगी तो उन्होंने भारतीय व्यापारियों के इस क्षेत्र में पूंजी निवेश के लिए प्रोत्साहित किया।

(3) मुम्बई महानगर में वाणिज्यिक ऊर्जा की कमी थी लेकिन द० अफ्रीका से आयातित कोयला पर मुम्बई के पास तापीय विद्युत केन्द्र की स्थापना की गई तो सुचारू रूप से विद्युत की आपूर्ति होने लगी।

(4) सस्ते श्रमिक और आन्तरिक बाजार की उपलब्धता भी यहाँ पर इस उद्योग के विकास में सहायक रहा।

    ऊपर वर्णित कारकों के कारण 19वीं सदी के अन्त तक मुम्बई द्वीप पर करीब 40 कारखाने विकसित हो चुके थे। इसे “भारत का मैनचेस्टर” या “कपास की महानगरी” भी कहा जाने लगा। स्वेज नहर के पूरब में सूती वस्त्र उत्पादन करने वाला यह सबसे बड़ा केन्द्र बन गया।

दूसरा चरण:-

      1900-23 ईo के मध्य लगे सूती वस्त्र उद्योग को इस चरण में शामिल करते हैं। इस चरण में उद्योगों का विकास मुम्बई के बाहरी क्षेत्रों में हुआ क्योंकि मुम्बई महानगर में लगातार जमीन का मूल्य बढ़ता जा रहा था। श्रमिक संगठनों का विकास बड़े पैमाने पर हो चुका था। मलीन बस्तियाँ विकसित होने लगी थी। अतः निवेशकों ने मुम्बई के बाहरी क्षेत्रों में पूँजी निवेश का कार्य प्रारंभ किया। इस चरण में स्थानीयकरण की दो प्रवृति थी- प्रथम मुम्बई के ही बाहरी क्षेत्रों में सूती वस्त्र के कारखाने लगाये गये।

     पुनः सूती वस्त्र कारखाना लगाने हेतु मुम्बई के आप-पास के नगरों का चयन किया जहाँ मुम्बई के समान सभी परिस्थितियाँ अनुकूल थी। जैसे- इस चरण में कल्याण, थाणे, पुणे, नासिक, सूरत, बड़ोदरा तथा अहमदाबाद जैसे नगरों में सूती वस्त्र उद्योग का तेजी से विकास हुआ क्योंकि ये सभी केन्द्र अरब सागर के निकट थे जिसके कारण नम जलवायु उपलब्ध थी। बड़ौदरा, सूरत बंदरगाह थे। “टाटा हाइड्रल प्रोजेक्ट” के द्वारा विद्युत की आपूर्ति सुनिश्चित हो चुकी थी। मुम्बई के ही समान सस्ते श्रमिक तथा बाजार उपलब्ध थे।

तीसार चरण:-

     1923 से 1947 ई० के बीच लगे उद्योगों को इस चरण में शामिल करते हैं। इस चरण में सूती वस्त्र उद्योग का विकास दक्कन के लावा के पठारी क्षेत्र तथा मध्यवर्ती पठार पर हुआ। दक्कन के पठार पर पोरबन्दर, राजकोट, सुरेन्द्रनगर (सूरत), भूसावल, अहमदनगर, नागपुर, कोल्हापुर, सोलापुर, गुलवर्गा प्रमुख केन्द्र के रूप में थे। इन केन्द्रों में इस उद्योग का विकास कपास की खेती, सस्ते श्रमिक तथा बाजार की उपलब्धता के कारण हुआ।

      भारत के उ० मध्यवर्ती पठारी क्षेत्र में इस उद्योग का विकास इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर, भोपाल, इटारसी, भिलवाड़ा, अजमेर, जयपुर, जोधपुर तथा बीकानेर में हुआ। इन क्षेत्रों में सूती वस्त्र उद्योग का विकास कई कारणों के चलते हुआ। जैसे-

(1) इन क्षेत्रों में कई बड़े देशी रियासत रहा करते थे। इन रियासतों ने इस उद्योग में रुचि लिया। ब्रिटिश कंपनियों ने भी देशी रजबाड़ों को इस क्षेत्र में आमंत्रित किया। देशी रजबाड़ों ने ब्रिटिश कंपनियों को भूमि दिया तो दूसरी ओर ब्रिटिश कंपनियों ने बड़े पैमाने पर पूंजी तथा तकनीक का निवेश किया। इसके अलावे मैदानी भारत का बाजार, सस्ते श्रमिक उपलब्धता और कपास की खेती ने भी इस उद्योग को आकर्षित किया।

     इसी चरण में कानपुर, आगरा, दिल्ली, हैदराबाद, बंगलोर, विशाखापतन तथा कलकता भी सूती वस्त्र केन्द्र के रूप में उभरे क्योंकि यहाँ की सभी भौगोलिक परिस्थितियाँ अनुकूल थी तथा सस्ते श्रमिक और बाजार उपलब्ध थे।

   आजादी के बाद भारत में सूती वस्त्र उद्योग

चौथा चरण:-

     आजादी के बाद विकसित हुए सूती वस्त्र उद्योगों को इसमें शामिल करते हैं। इस चरण में सूती वस्त्र उद्योग का विकास चार क्षेत्रों में हुआ-

(i) उ०-प० भारत-

   इसमें पंजाब तथा हरियाणा को शामिल करते हैं। सिंचाई की सुविधा उपलब्ध होने के कारण इन क्षेत्रों में कपास की खेती प्रारंभ की गई। कपास की स्थानीय उपलब्धता के करण जालंधर, लुधियाना, अम्बाला, चंडीगढ़ अमृतसर तथा गंगानगर जिला सूती वस्त्र उद्योग केन्द्र के रूप में उभरे।

(ii) UP तथा बिहार-

   यहाँ पर सस्ते श्रमिक तथा बाजार की उपलब्धता के कारण इस उद्योग का विकास हुआ। UP में मेरठ, गाजियाबाद, सहारनपुर, मोदीनगर, मुरादाबाद, वाराणसी, मिर्जापुर जैसे नगर में और बिहार में गया, डुमराँव, भागलपुर, मुजफ्फरपुर, पटना इत्यादि में विकसित हुआ। इस क्षेत्रों में सस्ते श्रमिक तथा बाजार उपलब्ध होने के कारण इस उद्योग कर विकास हुआ था।

(iii) पूर्वी भारत-

   बाजार की सुविधा, सस्ते श्रमिक, आयात-निर्यात की सुविधा तथा हुगली औद्योगिक प्रदेश में विकसित संरचनात्मक सुविधाओं के कारण इस उद्योग का यहाँ विकास हुआ। यहाँ इस उद्योग के मुख्य केन्द्र कोलकाता, हावड़ा, मानिकपुर, नैहाटी, चन्दन नगर, सियारामपुर, दीमापुर, इम्फाल, गुवाहाटी तथा कटक थे।

(iv) द० भारत-

    यहाँ सस्ते जल विद्युत की अपलब्धता तथा कपास की खेती किए जाने के कारण इस उद्योग का विकास हुआ। विजयवाड़ा,  बेलगाँव मैसूर, काँचीपुरम्, मदुरई, तिरुचिरापल्ली, पाण्डिचेरी तथा तिरुअनन्तपुरम जैसे नगरों में इस उद्योग का विकास हुआ। कोयम्बटूर को “दक्षिण भारत का मैनचेस्टर” भी कहा जाने लगा। भारत में सर्वाधिक सूती वस्त्र का मील तमिलनाडु राज्य में ही स्थित है।

   उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि भारत में सूती वस्त्र उद्योग का अभूतपूर्व विकेन्द्रीकरण हुआ है। भारत के प्रमुख सूती वस्त्र केन्द्रों को नीचे मानचित्र में देखा जा सकता है।

Cotton Textile Industry
चित्र: भारत के प्रमुख सूत्री वस्त्र उद्योग केंद्र

   भारत में सूती वस्त्र का उत्पादन तीन क्षेत्रों में किया जाता है:-

(1) मील 

(2) पावरलूम

(3) हथकरघा / चरखा

   इन तीनों क्षेत्रों में होने वाला उत्पादन को नीचे के तालिका में देखा जा सकता है:-

क्षेत्र भारत के कुल उत्पादन का प्रतिशत 2005-06 में  (लाख वर्ग मी० में उत्पादन)
मील 3.3% 1656
पावरलूम 82.8% 41044
हथकरघा 12.3% 6108
अन्य 1.6% 769
कुल 100% 49577

           नीचे के तालिका में सूत उत्पादन को प्रदर्शित किया जा रहा है:-     

वर्ष सूत का उत्पादन हजार टन में
1950-51  835
1960-61 1075
1970-71 1050
1980-81 1400
1990-91 1430
2000-01 1600
2010-11 1820

       भारत में सूती वस्त्र उत्पादन करने वाला राज्यों का क्रम इस प्रकार से हैं-

(1) महाराष्ट्र- 39%

(2) गुजरात- 35%

(3) तमिलनाडु- 6.4%

(4) पंजाब- 6%

समस्या तथा संभावना

    सूती वस्त्र उद्योग कई समस्याओं का सामना कर रही है। जैसे-

(1) कच्चे माल की समस्या-

    भारत में बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण वस्त्र की माँग लगातार बढ़‌ती ही जा रही है। बढ़ती हुई मांग को देश पूरा नहीं कर पा रहा है जिसके कारण कपास का मूल्य लगागर बढ़‌ता ही जा रहा है। फलतः भारत को अन्य देशों से कपास आयात करना पड़ता है।

    भारत के पास कपास उत्पादन हेतु विस्तृत काली मिट्टी का क्षेत्र उपलब्ध है। अतः सिंचाई सुविधाओं का विकास कर कपास का उत्पादन बढ़ाया जा सकता है। उत्पादन को बढ़ाकर आयात पर से निर्भरता कम की जा सकती है।

(2) पुराने मशीन-

    भारत में अधिकांश वस्त्र का उत्पादन पूराने मशीनों से किया जाता है। जबकि USA, चीन, मिस्र, जैसे आधुनिक तकनीक का प्रयोग कर सूती का उत्पादन करते हैं जिसके कारण भारतीय सूती वस्त्र उद्योग अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में पिछड़‌ता जा रहा है। लेकिन, नई औद्योगिक नीति की घोषणा से यह उम्मीद जगी है कि भारत में नवीन विदेशी तकनीक आगमन होगा।

(3) अनियमित विद्युत की आपूर्ति-

     देश में लगातार ऊर्जा की मांग बढ़ती जा रही है। माँग के अनुरूप विद्युत की आपूर्ति न होने के कारण कोई भी कारखाना निर्बाध्य रूप से नहीं चल पाता है। लेकिन, आने वाले समय में परमाणु ऊर्जा, जल विद्युत ऊर्जा इत्यादि के विकास से इस समस्या से निजात मिल सकेगा।

(4) हड़ताल तथा तालाबंदी-

    सूती वस्त्र उद्योग से जुड़े हुए श्रमिक संगठन काफी मजबूत है। ये संगठन अपने मांगों को लेकर हड़ताल करते हैं। अगर उनकी मांग पूरी नहीं हुई तो कंपनी में ताला लटका देते हैं, जिसके कारण उत्पादन में कमी आती है।

     हालांकि न्यापालिका के हस्तक्षेप से और सरकार के बीच-बचाव से इस समस्या में लगातार कमी आ रही है।

(5) कृत्रिम रेशे के साथ प्रतिस्पर्द्धा-

       देश की गरीब जनता कृत्रिम रेसे से बने वस्त्र का उपयोग करते हैं जो अधिक टिकाऊ, सस्ता तथा आकर्षक होता है जबकि सूती वस्त्र कम टिकाऊ तथा महंगा होता है।

(6) घाटे में चल रही मील-

    भारत में सबसे ज्यादा सूती वस्त्र मील तमिलनाडु में है। लेकिन, तमिलनाडू भारत का मात्र 6.4% ही सूती वस्त्र का उत्पादन करता है। उत्तर भारत में खाद्यान्न फसल की खेती कपास उपजाने वाले भूमि पर की जाने लगी, जिसके कार‌ण कच्चे माल की कमी हो गई। फलतः अधिकांश उत्तर भारत के सूती वस्त्र उद्योग बन्द हो गए। पुनः अधिक आयात शुल्क होने के कारण उसका आयात भी संभव नहीं था। लेकिन नवीन औद्योगिक नीति के कारण इसमें सुधार आने की संभावना है।

निष्कर्ष:

       ऊपर के तथ्यों से स्पष्ट है कि भारत के सूती वस्त्र उद्योग कई समस्याओं का सामना कर रही है। फिर भी, यह भारत का सबसे बड़ा उद्योग है, इस उद्योग में सबसे अधिक लोगों को रोजगार मिला हुआ है।

      यह भारत का पूर्ण रूप से विकेन्द्रित उद्योग है। भारत के पास देशी एवं विदेशी बाजार उपलब्ध है। अतः कहा जा सकता है कि भारत में सूती वस्त्र उद्योग का भविष्य काफी उज्ज्वल है।

11. Discuss the role of WTO in terms of International Trader.

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के संदर्भ में विश्व व्यापार संगठन की भूमिका स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- ओपेक जैसे संगठनों के अस्तित्व और वस्तुओं के आयात पर भारी प्रशुल्कों से विश्व में वस्तुओं एवं सेवाओं के मुक्त व्यापार में कृत्रिम बाधा उपस्थित होती है। इन कृत्रिम बाधाओं को दूर करने के लिए तथा अपनी राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के विकास हेतु तथा मुक्त व्यापार को प्रोत्साहित करने हेतु अनेक देशों ने प्रादेशिक स्तर पर साझा बाजार की स्थापना की है।

      इस प्रकार के साझा बाजार का मुख्य उद्देश्य सदस्य देशों के बीच कृत्रिम बाधाओं को दूर करते हुए वस्तुओं एवं सेवाओं के मुक्त व्यापार को बढ़ावा देना है। साझा बाजार के सदस्य देश अपनी वस्तुओं का आयात-निर्यात बिना किसी प्रतिस्पर्द्धा, भेदभाव और प्रशुल्क दरों के बीच स्वतंत्रतापूर्वक कर सकते हैं।

     इस प्रकार के साझा बाजारों में यूरोपियन आर्थिक समुदाय (EEC) या यूरोपियन संघ (EC) या यूरोपियन साझा बाजार (ECM) उल्लेखनीय हैं जिसकी स्थापना 1951 में 6 यूरोपियन देशों द्वारा अपने कोयला और इस्पात उद्योग के समन्वय विकास हेतु हुई।

      वर्तमान में 15 सदस्य देशों के साथ यह एक शक्तिशाली साझा बाजार व्यवस्था है। अन्य साझा बाजार व्यवस्था वाले संगठनों में 1994 में कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका और मेक्सिको द्वारा स्थापित उत्तरी अमेरिका मुक्त व्यापार समझौता (नाफ्टा), 1973 में 13 केरीबियन देशों द्वारा स्थापित केरीबियन समुदाय और साझा बाजार (केरीकोम), 1969 में स्थापित लैटिन अमेरिकी स्वतंत्र व्यापार संघ (लाफ्टा) उल्लेखनीय हैं।

     देशों के बीच मुक्त व्यापार को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से अन्तर्राष्ट्रीय प्रयासों के अन्तर्गत हवाना में 1947-48 में एक सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसमें 53 देशों ने अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार संगठन का गठन करने सम्बन्धी एक चार्टर पर हस्ताक्षर किए, किन्तु अमेरिका का समर्थन न मिल पाने के कारण विश्व व्यापार संगठन स्थापित नहीं किया जा सका।

    अन्ततः विश्व व्यापार संगठन की स्थापना 1.1.1995 को प्रशुल्क और व्यापार सम्बन्धी सामान्य करार (General Agreement on Trade and Tarrif) (GATT) के उरुग्वे दौर में हुए समझौते के परिणामस्वरूप हुई।

प्रशुल्क और व्यापार सम्बन्धी करार (गैट):-

    गेट एक बहुपक्षीय व्यापार सन्धि है जो जेनेवा में 23 देशों के मध्य हुए समझौते के आधार पर 1 जनवरी, 1948 से लागू हुई। इसका उद्देश्य परस्पर सहमति द्वारा व्यापारिक प्रतिबन्धों को समाप्त करना था। गैट वार्ताओं के अब तक कुल बारह चक्र आयोजित किए गए हैं। उरुग्वे के पश्चात् दोहा और कानकुन में इन वार्ताओं के दौर आयोजित किए जा चुके हैं।

    सात वर्षीय उरुग्वे दौर में चार नए समझौते हुए जो अब डब्ल्यू. टी. ओ. के मूलभूत समझौते के भाग हैं। ये समझौते निम्न हैं-

1. व्यापार सम्बन्धी बौद्धिक सम्पदा अधिकार (ट्रिप्स),

2. व्यापार सम्बन्धी निवेश उपाय (ट्रिम्स),

3. सेवाओं में व्यापार का सामान्य समझौता (गैट्स)

4. कृषि।

विश्व व्यापार संगठन के उद्देश्य

     डंकल समझौते के अन्तर्गत ही गैट के स्थान पर 1 जनवरी, 1995 को विश्व व्यापार संगठन अस्तित्व में आया। इस संगठन के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं:-

(i) जीवन-स्तर में वृद्धि करना।

(ii) पूर्ण रोजगार एवं प्रभावपूर्ण मांग में वृहत्स्तरीय एवं ठोस वृद्धि करना।

(iii) वस्तुओं के उत्पादन एवं व्यापार का विस्तार करना।

(iv) सेवाओं के उत्पादन एवं व्यापार का विस्तार करना।

(v) विश्व के संसाधनों का अनुकूलतम उपयोग करना।

(vi) सुस्थिर या टिकाऊ विकास की आवधारणा को स्वीकार करना।

(vii) पर्यावरण की सुरक्षा एवं संरक्षण करना।

(viii) विकास के वैयक्तिक स्तरों की आवश्यकता के साथ निरन्तर चलते रहने के साधनों में वृद्धि करना।

        इन उद्देश्यों में प्रथम तीन गैट के भी उद्देश्य थे। गैट के उद्देश्यों में विश्व संसाधनों के पूर्ण उपयोग की बात कही गई थी जबकि विश्व व्यापार संगठन के उद्देश्यों में विश्व संसाधनों के अनुकूलतम उपयोग पर अधिक बल दिया गया तथा सुस्थिर विकास एवं पर्यावरण की सुरक्षा एवं संरक्षण के उद्देश्यों को भी जोड़ा गया है।

     अतः विश्व व्यापार संगठन के उद्देश्य अधिक व्यापक एवं प्रभावी हैं। विश्व व्यापार संगठन की प्रस्तावना में विकासशील देशों और विशेष रूप से कम विकसित देशों के लिए ऐसे सकारात्मक प्रयासों की आवश्यकता बताई गई जो उनकी विकासात्मक आवश्यकताओं के अनुरूप अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में उनकी हिस्सेदारी को बढ़ा सकें।

विश्व व्यापार संगठन के प्रमुख कार्य

    विश्व व्यापार संगठन के उद्देश्यों को मूर्तरूप देने के लिए विश्व व्यापार संगठन के प्रमुख कार्य इस प्रकार हैं:-

(i) अन्तर्राष्ट्रीय समझौते से सम्बन्धित विचार विमर्श के लिए एक सामूहिक संस्थागत मंच के रूप में काम करना।

(ii) विश्व व्यापार समझौता, बहुपक्षीय तथा बहुवचनीय समझौते के क्रियान्वयन, प्रशासन तथा परिचालन हेतु सुविधाएं प्रदान करना।

(iii) व्यापार एवं प्रशुल्क सम्बन्धी किसी भी मसले पर सदस्यों को विचार-विमर्श हेतु मंच प्रदान करना।

(iv) व्यापार नीति समीक्षा प्रक्रिया (Trade Policy Revise mechanism) से सम्बन्धित नियमों एवं प्रावधानों को लागू करना।

(v) सदस्य राष्ट्रों के बीच विवादों के निपटारे से सम्बन्धित नियमों एवं प्रक्रियाओं को प्रशासित करना।

(vi) वैश्विक आर्थिक नीति निर्माण में अधिक सामजस्य भाव लाने हेतु विश्व बैंक तथा अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से पूरा-पूरा सहयोग करना।

(vii) विश्व में संसाधनों के अनुकूलतम उपयोग को बढ़ावा देना।

     इस प्रकार विश्व व्यापार संगठन के कार्यों में उन सभी बातों का समावेश है जिससे उसके सदस्य देशों को समझौते से सम्बन्धित मामलों पर विचार विमर्श का एक सामूहिक संस्थागत मंच प्राप्त होने के साथ-साथ एक एकीकृत स्थायी एवं मजबूत बहुपक्षीय प्रणाली द्वारा व्यापार सम्बन्धों को बढ़ाने, वैधानिक ढंग से विवादों के निपटाने और व्यापार नीति समीक्षा प्रक्रिया के प्रावधानों को लागू करने में सहायता मिलेगी।

     गैट और उसके पश्चात् विश्व व्यापार संगठन के गठन होने से प्रायः सभी देश इसकी नीतियां एवं प्रावधानों से प्रभावित हुए हैं। 90 के दशक से विश्व स्तर पर उदारीकरण और वैश्वीकरण द्रुतगति से प्रसारित हो रहे हैं। प्रत्येक देश इनका लाभ उठाने के लिए अपनी नीतियों में संशोधन क हा है।

12. What do you mean by Special Economic Zone? Discuss the SEZ in India.

विशेष आर्थिक क्षेत्र से आप क्या समझते हैं? भारत में सेज की चर्चा कीजिए।

उत्तर- विशेष आर्थिक क्षेत्र (Special Economic Zone) एक ऐसे भौगोलिक प्रदेश है जहाँ देश का सामान्य आर्थिक कानून पूरी तरह से लागू नहीं होती। दूसरे शब्दों में ‘SEZ’ शुल्क मुक्त आर्थिक क्षेत्र है जहाँ पर विदेशी निवेशकों को आकर्षित कर आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा दिया जाता है और उत्पादकों को निर्यात के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।

ऐतिहासिक पक्ष

     रॉबर्ट सी हेवर्ड के अनुसार SEZ की अवधारणा काफी प्राचीन है। प्राचीनतम SEZ का प्रमाण यूनान के टायर नगर से मिलता है। 1960 ई० में चीन ने SEZ का निर्माण कर अपनी अर्थव्यवस्था को विकसित करने के प्रयास किया। जबकि भारत ने अप्रैल 2000 ई० में पहले SEZ नीति की घोषणा की।

प्रकार/वर्गीकरण

      SEZ कई प्रकार के हो सकते हैं। जैसे- मुक्त व्यापार क्षेत्र (Free Trade Zone) निर्यात संवर्धन क्षेत्र (Export Prossising Zone), मुक्त क्षेत्र (Free Zone), औद्योगिक क्षेत्र (Industrial Estate), मुक्त बंदरगाह, नगरीय उद्यम क्षेत्र इत्यादि।

उद्देश्य

     SEZ की स्थापना के पीछे कई उद्देश्य है।

(1) उद्योगों के विकास हेतु विदेशी एवं घरेलू निवेशकों को उपयुक्त वातावरण उपलब्ध कराना।

(2) निर्यात को बढ़ावा देना।

(3) अधिक से अधिक रोजगार उत्पन्न करना।

(4) पिछड़े हुए क्षेत्रों को विकसित करना।

(5) सामाजिक-आर्थिक विषमता को कम करना।

(6) औद्योगीकरण तथा नगरीकरण को बढ़ावा देना।

स्वरूप एवं विशेषता

      किसी भी एक आदर्श SEZ के अंतर्गत एक हजार हेक्टेयर भूमि पर स्थापित किया जा सकता है और उसमें कम से कम 10 हजार करोड़ रूपये का निवेश होना चाहिए। पुनः उसकी निम्नलिखित विशेषताएँ होनी चाहिए:-

(1) SEZ के अंतर्गत कार्य करने वाले इकाइ‌यों के द्वारा वस्तु तथा सेवाओं का मुक्त संचलन होना चाहिए।

(2) विश्व स्तर की आधारभूत संरचना का विकास किया जाना चाहिए।

(3) निर्माण या उत्पादन का कार्य गहन तरीके से होना चाहिए।

(4) निर्यात अभिमुख होना चाहिए।

(5) उन्नत तकनीक होना चाहिए।

(6) उचित प्रबंधन तथा उच्च तकनीक का उपयोग होना चाहिए।

वर्तमान स्थिति एवं महत्त्व

     वर्तमान में 379 SEZs अधिसूचित हैं, जिनमें से 265 चालू हैं। लगभग 64% SEZ पाँच राज्यों- तमिलनाडु, तेलंगाना, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र में स्थित हैं। इससे एक लाख से अधिक लोगों को रोजगार मिल रहा है। SEZ पर बाबा कल्याणी समिति की सिफारिशों के अनुसार, SEZ में MSME योजनाओं को जोड़कर तथा वैकल्पिक क्षेत्रों को क्षेत्र-विशिष्ट SEZ में निवेश करने की अनुमति देकर MSME निवेश को बढ़ावा देना है।

      इसके अतिरिक्त सक्षम और प्रक्रियात्मक छूट के साथ-साथ SEZ को अवसंरचनात्मक स्थिति प्रदान करने हेतु वित्त तक उनकी पहुँच में सुधार करके तथा  दीर्घकालिक ऋण को सक्षम करने के लिये भी अग्रगामी कदम उठाए गए। कुछ SEZ के उदाहरण निम्नलिखित है:-

भारत:-

(1) काण्डला तथा सूरत- गुजरात

(2) कोचीन- केरल

(3) सांताक्रुज- मुम्बई

(4) फाल्टा- पश्चिम बंगाल

(5) चेन्नई- तमिलनाडु

(6) विशाखापतनम- आन्ध्र प्रदेश

(7) नोएडा- उत्तर प्रदेश

(8) इंदौर- मध्य प्रदेश

(9) राजीव गाँधी इंटेफोर्ट पार्क- हिंजेवादी, पूना।

(10) जयपुर- राजस्थान

(11) सिंगुर (टाटा मोटर्स कंपनी)- पश्चिम बंगाल 

नोट: टाटा मोटर्स कंपनी 2008 में सिंगूर परियोजना को छोड़ने के बाद कंपनी ने अपनी विनिर्माण इकाई को साणंद, गुजरात में स्थानांतरित कर दिया।

MULTIDISCIPLINARY COUR
टाटा मोटर्स कंपनी साणंद, गुजरात

(12) नन्दीग्राम (सलीम अली ग्रुप केमिकल फैक्ट्री)- पश्चिम बंगाल

        संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास सम्मेलन (UNCTAD) के अनुसार, 2019 तक, 147 देशों ने किसी न किसी तरह के SEZ की स्थापना की थी, दुनिया भर में SEZ की कुल संख्या 5,400 के करीब है।

I ‘Dr. Amar Kumar’ am working as an Assistant Professor in The Department Of Geography in PPU, Patna (Bihar) India. I want to help the students and study lovers across the world who face difficulties to gather the information and knowledge about Geography. I think my latest UNIQUE GEOGRAPHY NOTES are more useful for them and I publish all types of notes regularly.

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