Unique Geography Notes हिंदी में

Unique Geography Notes in Hindi (भूगोल नोट्स) वेबसाइट के माध्यम से दुनिया भर के उन छात्रों और अध्ययन प्रेमियों को काफी मदद मिलेगी, जिन्हें भूगोल के बारे में जानकारी और ज्ञान इकट्ठा करने में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इस वेबसाइट पर नियमित रूप से सभी प्रकार के नोट्स लगातार विषय विशेषज्ञों द्वारा प्रकाशित करने का काम जारी है।

BA SEMESTER/PAPER IIICARTOGRAPHY(मानचित्र कला)

38. Nature and Scope of Cartography



         मानचित्र कला को सामान्यतः मानचित्र की रूपरेखा तैयार करने, रचना करने एवं उत्पत्ति करने की विज्ञान एवं कला समझा जाता है।

⇒ अमेरिकन सोसाइटी ऑफ सिविल इंजीनियर्स के अनुसार, “Cartography is the art of map construction and the science on which it is based. It combines the achievements of the astronomer and mathematician with those of the explorer and surveyor in presenting of the physical characteristics of the earth’s surface.”

⇒ संयुक्त राष्ट्र की सामाजिक कार्य विभाग (1949) के अनुसार, “Cartography is considered as the science of preparing all types of maps and charts, and includes every operation from origional surveys to final printing of copies.” इस प्रकार मानचित्र कला (Cartography) मानचित्र बनाने की कला है एवं वह विज्ञान है जिस पर मानचित्र की रचना आधारित है। यह पृथ्वी की भौतिक विशेषताओं की तस्वीर को मानचित्र पर प्रस्तुत करता है और इस क्रम में खोजकर्त्ता एवं सर्वेक्षणकर्त्ता की उपलब्धियों को खगोलविद् एवं गणितज्ञ की उपलब्धियों के साथ सम्बद्ध करता है।

     मानचित्र कला वह विज्ञान है जो सभी प्रकार के मानचित्र एवं चार्ट को तैयार करता है और इसके अन्तर्गत मौलिक सर्वेक्षण से लेकर मानचित्रों एवं चार्यों की अन्तिम छपाई तक की सभी क्रियाएँ शामिल हैं।

मानचित्र कला की प्रकृति (Nature of Cartography):-

     मानचित्र कला के दो पक्ष हैं-

(i) वैज्ञानिक, तथा

(ii) कलात्मक

     विज्ञान के रूप में यह पृथ्वी से संबंधित जटिल तथ्यों को मानचित्रों, चारों, आरेखों इत्यादि के द्वारा सरल, बोधगम्य एवं सुस्पष्ट रूप से प्रस्तुत करता है। मानचित्र कला एक भौगोलिक विज्ञान है। इसकी विषय-वस्तु धरातल एवं कुछ सीमा तक ग्रह एवं तारे हैं । इसलिए मानचित्र कला के ज्ञाता को भौगोलिक तथ्यों का पृथ्वी पर वास्तविक वितरण एवं सम्बन्धित स्थानों की अवस्थिति का ज्ञान होना जरूरी है। भौगोलिक ज्ञान के आधार पर ही कोई मानचित्र रययिता किसी मानचित्र में आवश्यक तथ्यों का समावेश एवं अनावश्यक तथ्यों के त्याग करने का निर्णय ले सकता है।

      मानचित्र कला के ज्ञाता को भूगोल के साथ-साथ उन विषयों की जानकारी होना भी आवश्यक है जिनका समावेश मानचित्र में होता है। ज्ञातव्य है कि मानचित्र धरातल के जटिल विवरणों का सामान्यीकृत स्वरूप प्रदर्शित करता है। विभिन्न विषयों से सम्बन्धित तथ्यों का मानचित्र में समावेश होने के कारण मानचित्र कला एक अन्तरानुशासनिक (Interdisciplinary) विज्ञान है। यह भौतिक, सामाजिक तथा मानवीय विज्ञानों को संयोजित करने का कार्य करता है।

    कला के रूप में मानचित्र खगोलीय पिण्डों तथा धरातल पर पाये जानेवाले तथ्यों को चित्रित करता है, यह चित्रण निश्चित वैज्ञानिक नियमों पर तो आधारित होता ही है, यह चित्रमय एवं कलात्मक भी होता है। इस प्रकार मानचित्र के चित्रण का अध्ययन होता है। कोई भी अच्छा मानचित्र कला रहित या भोंडा नहीं हो सकता है क्योंकि कला चित्रण का श्रेष्ठतम् रूप है। अतः मानचित्र कला की प्रकृति में कला का अंश है। हालांकि यह भी सत्य है कि मानचित्र कला एवं कला के उद्देश्य भिन्न-भिन्न हैं।

         मानचित्र कला का ज्ञाता मानचित्र निर्माण के नियमों से बँधा रहता है। उसका उद्देश्य ऐसा मानचित्र बनाना होता है जो सिर्फ कलात्मक नहीं हो बल्कि स्वतः स्पष्ट (Self explanatory) भी हो एवं उपयोग में लाने योग्य हो। इसके विपरीत कलाकार स्वच्छन्द होता है। अपनी कल्पना या विचार को मूर्तरूप देने में वह किसी नियम से बँधा नहीं होता है भले ही उसकी कलाकृति अस्पष्ट एवं सामान्य व्यक्ति के समझ से परे हो।

     उपरोक्त तथ्यों पर विचार करने के पश्चात् हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि मानचित्र कला वैज्ञानिक विधियों एवं तर्कों पर आधारित ऐसा विषय है जिसकी प्रकृति वैज्ञानिक एवं कलात्मक दोनों है। यह न तो भौतिक विज्ञान एवं रसायन शास्त्र की भाँति कोई विशुद्ध विज्ञान है और न ही समाजशास्त्र या अर्थशास्त्र जैसे विषयों की तरह सामाजिक विज्ञान है।

     मानचित्र कला का एक अन्य पक्ष मानव-संचार के विज्ञान के रूप में भी है। मानचित्र कला का उद्देश्य तथ्यों एवं विचारों को आरेखणों, शब्दों एवं प्रतीकों के संयोग द्वारा स्पष्ट एवं प्रभावपूर्ण ढंग से संचारित करना है। मानचित्र की सफलता का निर्धारण प्रायः इसके द्वारा संवादों के प्रेषण की प्रभावपूर्णता के आधार पर होता है।

      इस प्रकार मानचित्र कला एक संचार विज्ञान हो जाता है। अब चूँकि धरातल के हर भाग का सर्वेक्षण हो चुका है और मानव अन्य ग्रहों एवं उपग्रहों की विस्तृत जानकारी प्राप्त करने की दिशा में अग्रसर हो रहा है, पृथ्वी से सम्बन्धित तथ्यों का अधिक प्रभावपूर्ण निरूपण मानचित्र कला का दायित्व हो गया है। अब तथ्यों के प्रभावपूर्ण प्रदर्शन का तात्पर्य उनके प्रभावपूर्ण संचार से है।

     किसी संचार प्रणाली के निम्नलिखित पाँच अवयव हो सकते हैं-

(i) स्रोत (Source),

(ii) प्रेषक (Transmitter),

(iii) मार्ग (Channel),

(iv) ग्राही (Receiver) तथा

(v) गन्तव्य (Destination)।

     एक आदर्श संचार प्रणाली निम्न प्रकार से कार्य करता है- प्रेषक स्रोत से संवाद प्राप्त करता है। वह इस संवाद को ऐसी भाषा में कूटबद्ध करता है जिसे संवाद के प्रेषण हेतु चयनित मार्ग (Channel) में भरा जा सके। मार्ग में अगर शोर (Noise) हो तो संवाद की गुणवत्ता प्रभावित होती है। दूसरे छोर पर स्थित ग्राही कूटबद्ध संवाद को प्राप्त कर उसे कूटानुवाद (Decode) करता है तो गन्तव्य को प्राप्त होता है। अगर इस प्रणाली को मानचित्र के क्षेत्र में प्रयुक्त किया जाय तो हमें निम्नलिखित व्यवस्था प्राप्त होगी-

1. सूचना स्रोत- पृथ्वी एवं धरातल के अध्ययन से सम्बन्धित सभी प्राकृतिक एवं सामाजिक विज्ञान।

2. संवाद- पृथ्वी एवं धरातल साथ ही खगोलीय पिण्डों से सम्बन्धित तथ्य एवं विचार।

3. प्रेषक- मानचित्रकार जो इन तथ्यों एवं विचारों को शब्दों, आरेखण्डों एवं प्रतीकों में परिवर्तित करते हैं।

4. संकेत- शब्द, आरेखण एवं प्रतीक तथा उनकी पारस्परिक व्यवस्था।

5. मार्ग- मानचित्र एवं अन्य मानचित्रण उत्पाद।

6. शोर स्रोत- घटिया रूपरेखा या आरेखण, प्रतीकों का घाल-मेल, प्रासंगिक तथ्यों को क्षति पहुँचाकर अनावश्यक तथ्यों का समावेशन, घटिया छपाई इत्यादि।

7. प्राप्त संकेत- शब्द, आरेखण, प्रतीक इत्यादि जैसा कि मानचित्र के उपयोगकर्ता के द्वारा समझा जाता है।

8. गन्तव्य- सम्पूर्ण विश्व के पैमाने पर मानचित्र के उपयोगकर्ता।

      इस प्रकार मानचित्रकला की प्रकृति कलात्मक, वैज्ञानिक एवं मानव संचार विज्ञान के रूप में है।

मानचित्र कला के विषय-क्षेत्र (The scope of cartography):-

    मानचित्र कला का अध्ययन क्षेत्र बहुत व्यापक है। इसके अन्तर्गत मानचित्र, ग्लोब, चार्ट, आरेख, मानारेख इत्यादि का निर्माण एवं निर्माण की विभिन्न प्रक्रियाएँ सभी शामिल हैं। मानचित्र कला की विषय-वस्तु विशाल है, इसके निर्माण की प्रक्रियाएँ प्रारम्भ से अन्त तक असंख्य हैं एवं विविधताओं से भरे हैं। हाल के वर्षों में मानचित्र कला की कई शाखाओं का विकास हुआ है यथा भौगोलिक मानचित्र कला (Geographical Cartography), विषयक मानचित्र कला (Thematic Cartography), वैज्ञानिक मानचित्र कला (Scientific Cartography), वायु आकाशीय मानचित्र कला (Aerospace Cartography), सांख्यिकी मानचित्र कला (Statistical Cartography) इत्यादि।

      मानचित्र कला के विभिन्न शाखाओं के विकास से इसे विशिष्टिकरण एवं बढ़ती लोकप्रियता का बोध होता है। लेकिन इनके मूल नियम एवं तकनीक समान हैं एवं उस अनुसार इन शाखाओं में मौलिक अन्तर नहीं है। मानचित्र कला की प्रकृति के आधार पर इसके अध्ययन क्षेत्र को मुख्य रूप से दो भागों में विभक्त किया जा सकता है-

(i) सैद्धान्तिक मानचित्र कला (Theoretical Cartography), एवं

(ii) प्रयुक्त मानचित्र कला (Applied Cartography)

     सैद्धान्तिक मानचित्र कला के अन्तर्गत अवधारणात्मक एवं सैद्धान्तिक पक्ष का अध्ययन होता है। यह मानचित्र की रूप रेखा एवं विषय-वस्तु, प्रतिनिधित्व की लेखा चित्रीय विधि तथा मानचित्र संपादन के सिद्धान्तों इत्यादि का आलोचनात्मक परीक्षण एवं अग्रेत्तर विकास का अध्ययन करता है।

      सैद्धान्तिक मानचित्रकार मानचित्र के प्रयोगकर्ताओं के सम्पर्क में रहना चाहता है ताकि वह उनकी भविष्य की आवश्यकताओं एवं उपलब्ध मानचित्र के बारे में उनकी प्रतिक्रिया की जानकारी प्राप्त कर सके । वह ऐसे मानचित्र की परिकल्पना करता है तथा आविष्कार करने का प्रयास करता है जो मानचित्र के उपयोगकर्ता की आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके और साथ-साथ चाक्षुण संचारण (Visual Communication) का प्रभावकारी माध्यम के रूप में कार्य कर सके ।

     प्रयुक्त मानचित्रकला के अन्तर्गत मानचित्र के विन्यास एवं अन्तिम आरेखण जैसी क्रियाएँ शामिल हैं। प्रयुक्त मानचित्रकार सैद्धान्तिक मानचित्रकार के द्वारा निर्धारित नियमों एवं मार्गदर्शन के अनुरूप कार्य करता है, इसके अन्तर्गत मानचित्रों के पुनरुत्पादन एवं आरेखण के विकसित विधि का विकास भी शामिल है। इसलिए यांत्रिकरण एवं स्वचालन प्रयुक्त मानचित्र कला के अन्तर्गत आते हैं। स्थलाकृतिक एवं सामाजिक-भौगोलिक सर्वेक्षण भी प्रयुक्त मानचित्र कला के पक्ष समझे जाते हैं।

    मानचित्रों के वास्तविक आरेखण की तकनीक प्रयुक्त मानचित्र कला का मुख्य क्षेत्र है। हमारे समाज के सामने अनेक समस्याएँ हैं। मानचित्रिक विधियों के अनुप्रयोग से उन समस्याओं के समाधान में सहायता मिल सकती है। प्रयुक्त मानचित्रकार ऐसे मानचित्रिक विधियों के अनुप्रयोग के विकास हेतु अनुसंधान में रुचि लेता। वह नियोजनकर्त्ता, विस्तार कार्य के अभिकर्ता तथा शिक्षकों के उनके भावों और विचारों को प्रसारित करने में सहायता करता है।



प्रश्न प्रारूप 1. मानचित्र कला से क्या आशय हैं? इसकी प्रकृति तथा विषय-क्षेत्र की विवेचना करें।

(What do you mean cartography? Discuss its nature and scope.)

I ‘Dr. Amar Kumar’ am working as an Assistant Professor in The Department Of Geography in PPU, Patna (Bihar) India. I want to help the students and study lovers across the world who face difficulties to gather the information and knowledge about Geography. I think my latest UNIQUE GEOGRAPHY NOTES are more useful for them and I publish all types of notes regularly.

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