Unique Geography Notes हिंदी में

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BA SEMESTER/PAPER IIICARTOGRAPHY(मानचित्र कला)

36. Distribution Maps- Dot, Choropleth and Isopleth Method (वितरण मानचित्र: बिंदु, वर्णमात्री तथा सममान रेखा विधि)

Distribution Maps- Dot, Choropleth and Isopleth Method

(वितरण मानचित्र: बिंदु, वर्णमात्री तथा सममान रेखा विधि)



वितरण मानचित्र:-

          प्राकृतिक अथवा सांस्कृतिक वातावरण के किसी तत्व का दिये हुए क्षेत्र में वितरण प्रदर्शित करने वाले मानचित्र को वितरण मानचित्र कहते हैं।

           वितरण मानचित्र बनाने की विधियों को दो वर्गों में विभाजित किया जाता है-

(1) अमात्रात्मक विधियाँ (Non-Quantitative Methods) तथा

(2) मात्रात्मक विधियाँ (Quantitative Methods)।

    अमात्रात्मक विधियों के द्वारा बनाये गये वितरण मानचित्रों को गुण प्रधान मानचित्र कहते हैं तथा मात्रात्मक विधियों के अनुसार बनाए गए वितरण मानचित्र को सांख्यिकीय मानचित्र कहते हैं।

      गुण प्रधान मानचित्रों में किसी तत्व या वस्तु का वितरण दिखाते समय वितरण के घनत्व पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता है। इसके विपरीत सांख्यिकीय मानचित्रों का मूल उद्देश्य किसी तत्व या वस्तु के मूल्य, मात्रा या घनत्व की क्षेत्रीय भिन्नता को चित्रित करना होता है। दोनों प्रकार के मानचित्रों का यही एकमात्र अंतर है।

1. अमात्रात्मक विधियां

(i) रंगारेख विधि (Colour-Patch Method):-

         अमात्रात्मक वितरण मानचित्र बनाने की यह एक सरल एवं लोकप्रिय विधि है। इस विधि के अनुसार बनाए गए वितरण मानचित्रों को रंगारेख मानचित्र (Colour Patch Map), रंगक मानचित्र (Tint Map), वर्ण मानचित्र (Colour Map) तथा कोरोकोमैट्रिक मानचित्र (Chorochomatic Map) आदि, भिन्न-भिन्न नामों से पुकारते हैं। उन मानचित्रों में भिन्न-भिन्न तत्वों या वस्तुओं के वितरण क्षेत्रों को रंग भरकर स्पष्ट करते हैं।

      प्राकृतिक प्रदेशों, राजनीतिक व प्रशासनिक क्षेत्रों, भूमि उपयोग के प्रकारों, भूवैज्ञानिक क्षेत्रों तथा प्राकृतिक वनस्पति व मिट्टियों के प्रकारों को प्रदर्शित करने के लिए प्रायः इस विधि का प्रयोग करते हैं।

  • रंगारेख मानचित्रों में अंतर्राष्ट्रीय मान्यता के अनुसार निर्धारित रंग प्रयोग किये जाते हैं।
  • प्राकृतिक प्रदेश प्रदर्शित करने वाले मानचित्रों में पर्वतीय क्षेत्रों को गहरे भूरे रंग से, पठारी भागों को हल्के भूरे रंग से तथा मैदानों को पीले रंग से दिखाते हैं।
  • वनस्पति मानचित्रों में वनों के लिए हरे रंग का घास के मैदानों के लिए पीले रंग का तथा मरूस्थलीय वनस्पति के लिए भूरे रंग का प्रयोग होता है।

(ii) सामान्य छाया विधि (Simple Shade Method):-

    इसमें रंगों के स्थान पर काली स्याही से बनायी गयी छायाएं प्रयोग में लाते हैं। इस मानचित्र का एकमात्र उद्देश्य भिन्न-भिन्न प्रकार के क्षेत्रों को दिखाना होता है तथा इन मानचित्रों में प्रयुक्त छायाओं का वितरण के घनत्व से कोई संबंध नहीं होता है। इसके विरीत वर्णमात्री मानचित्रों में वितरण के घनत्व के अनुसार छायाओं को हल्का या भारी करना आवश्यक होता है। सामान्य छाया विधि के अनुसार ग्रेट ब्रिटेन में कृषि भूमि उपयोग को दिखलाया जाता है।

  • पुस्तकों में रंगारेख मानचित्रों के स्थान पर सामान्य छाया मानचित्रों की सहायता से भिन्न-भिन्न प्रकार के क्षेत्रों, जैसे- जलवायु, कटिबंध, कृषि पेटियाँ, फसलों के क्षेत्र, मिट्टियों के प्रकार, औद्योगिक पेटियाँ व खनिज क्षेत्र आदि का वितरण दिखलाते हैं।

(iii) चित्रीय विधि (Pictorial Method):-

    इस विधि में जिन-जिन वस्तुओं के स्थान, क्षेत्र या वितरण दिखाने होते हैं, उन वस्तुओं के वास्तविक फोटोचित्रों पर आधारित रेखाचित्रों को मानचित्र में यथा स्थान बना दिया जाता है।

  • किसी देश के दर्शनीय स्थानों, पर्यटक केंद्रों, वेश-भूषा के प्रकारों, जनजातियों तथा ऐतिहासिक व सांस्कृतिक वैभव को प्रायः इसी विधि के द्वारा दर्शाया जाता है।
  • पर्यटन कार्यालयों एवं बड़े-बड़े रेलवे स्टेशनों पर इस प्रकार के चित्रीय मानचित्र देखे जा सकते हैं।

(iv) वर्णप्रतीकी या प्रतीक विधि (Choro-Schematic or Symbol Method):-

   प्रतीक या चिह्नों की सहायता से वितरण प्रदर्शित करने की विधि को वर्णप्रतीकी या प्रतीक विधि कहते हैं। इस विधि में जिन वस्तुओं का वितरण दिखलाना होता है उन सबके अलग-अलग चिह्न या प्रतीक निश्चित करके उन्हें मानचित्र में यथा स्थान अंकित कर देते हैं।

  • चित्रमय प्रतीकों का सबसे बड़ा गुण यह है कि इन्हें देखने मात्र से प्रदर्शित की गई वस्तुओं का बोध हो जाता है तथा मानचित्र के संकेत में प्रतीकों का अर्थ देखने की आवश्यकता नहीं है।

(v) नामांकन विधि (Noming Method):-

     यह विधि मूलाक्षर प्रतीक विधि के समान होती है, केवल इतना अंतर है कि मूलाक्षर विधि में प्रदर्शित की जाने वाली वस्तुओं के नाम के प्रथम अक्षर या अक्षरों को प्रतीक के रूप में प्रयोग करते हैं जबकि नामांकन विधि में मानचित्र पर वस्तुओं के यथास्थान पूरे नाम लिखे जाते हैं।

2. मात्रात्मक विधियाँ

     किसी तत्व या वस्तु के मूल्य, मात्रा अथवा घनत्व की क्षेत्रीय भिन्नता प्रकट करने वाली सांख्यिकीय मानचित्रों जैसे, वर्षा-मानचित्र, जनसंख्या मानचित्र, तथा प्रति हेक्टेयर उत्पादन वाले कृषि मानचित्र आदि की रचना करने के लिए मात्रात्मक विधियाँ प्रयोग में लायी जाती हैं। इस प्रकार के वितरण मानचित्रों का भूगोल में काफी महत्त्व है। इन विधियों को निम्नलिखित चार वर्गों में विभाजित किया जाता है-

(i)  वर्णमात्री विधि (Choropleth Method)

(ii) सममान रेखा विधि (Isopleth Method)

(iii) बिंदु-विधि (Dot Method)

(iv) सांख्यिकीय आरेख विधि (Statistical Diagram Method)



(i)  वर्णमात्री विधि (Choropleth Method)



       इस विधि द्वारा प्रशासकीय इकाइयों को आधार मानकर पदार्थों की मात्रा तथा घनत्व का वितरण, मानचित्र पर एक ही रंग की कई आभाओं तथा साधारण रेखा छाया द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। इस प्रकार के मानचित्र दी हुई सांख्यिकीय तालिका की सहायता से खींचे जाते हैं। सर्वप्रथम, इस तालिका की सहायता से विभिन्न प्रशासकीय इकाइयों के लिए क्रमबद्ध घनत्व आंकड़ों (Graded Density Figures) की तालिका निश्चित कर लेते हैं। तत्पश्चात् एक रंग की विभिन्न आभाओं तथा रेखाओं द्वारा व विभिन्न छायाओं द्वारा पदार्थों के घनत्व एवं मात्रा को प्रदर्शित कर देते हैं।

       ऊंचाई दर्शाने के लिए रंग छाया विधि अधिक उपयोगी है, परन्तु अन्य पदार्थों के घनत्व एवं मात्रा का वितरण रेखाओं द्वारा छाया देकर प्रदर्शित किया जाता है। इस प्रकार के मानचित्र छाया-वितरण अथवा वर्णमात्री वितरण-मानचित्र (Choropleth Maps) कहलाते हैं। वर्णमात्री-मानचित्र (Choropleth Maps) द्वारा कृषि, उद्योग-धन्धों तथा यातायात सम्बन्धी आंकड़े प्रदर्शित किए जाते हैं।

  • इन मानचित्रों में घनत्व आदि की भिन्नता को राजनीतिक अथवा प्रशासकीय क्षेत्रों के आधार पर प्रदर्शित किया जाता है।
  • इस प्रकार के मानचित्र में सबसे कम घनत्व वाले क्षेत्र में सबसे हल्की छाया, उससे अधिक घनत्व वाले क्षेत्र में और भारी छाया तथा सबसे अधिक घनत्व वाले क्षेत्र में सबसे भारी छाया भरी जाती है।

     छाया विधि द्वारा पदार्थों की मात्रा एवं घनत्व का प्रदर्शन करने के लिए विभिन्न घनत्वों एवं मात्राओं पर आधारित एक छाया-तालिका (Index to Shading) बना ली जाती है। यह छाया तालिका क्रमानुसार (Graded) होती है। तत्पश्चात् विभिन्न घनत्व के क्षेत्रों में इस तालिकानुसार छाया दी जाती है। उदाहरण के लिए, वर्षा के घनत्व को प्रदर्शित करने के लिए 75 सेमी० से कम, 76 सेमी० से 100 सेमी० तक, 101 सेमी० से 135 सेमी० तक वर्षा के विभिन्न घनत्वों के लिए घनत्व की रेखाएं खींच देते हैं। 135 सेमी० अथवा सबसे अधिक घनत्व को काले रंग अथवा अत्यधिक पास खींची गई रेखाओं द्वारा प्रदर्शित करते हैं।

     यहां एक तत्व अत्यन्त महत्वपूर्ण है। वह यह है कि केवल वही मानचित्र कोरोप्लेथ मानचित्र (Choropleth Maps) कहलाते हैं जिनमें वितरण प्रशासकीय सीमाओं (Administrative Boundaries) के अनुसार, उन सीमाओं को मानचित्र में खींचकर प्रदर्शित किया जाता है। ऐसे मानचित्रों में चाहे एक ही रंग की विभिन्न आभाओं द्वारा वितरण का घनत्व प्रदर्शित किया जाए चाहे रेखा छाया द्वारा घनत्व प्रदर्शित किया जाये, घनत्व प्रशासकीय इकाइयों के अनुसार मानचित्र में भरा जाता है। अतः ऐसे मानचित्रों (Choropleth Maps) में प्रशासकीय इकाइयां खींचना आवश्यक होता है।

      इस विधि द्वारा पदार्थों की मात्रा तथा घनत्व का प्रदर्शन प्रायः अशुद्ध रहता है। इसका कारण यह है कि घनत्व के विभिन्न क्षेत्र अधिकतर राजनीतिक सीमाओं का अनुसरण करते हैं। इसके अतिरिक्त समस्त क्षेत्र में पदार्थ के समान घनत्व का भ्रम होता है, यद्यपि अधिक न्यून घनत्व भी उस क्षेत्र में हो सकता है। 



(ii) सममान रेखा विधि (Isopleth Method)



        इस विधि द्वारा रेखाओं द्वारा घनत्व अथवा मात्रा का वितरण प्रदर्शित करते हैं। पदार्थों के समान मात्रा एवं घनत्व वाले स्थानों को रेखाओं द्वारा मिला देते हैं। इन रेखाओं को सममान रेखाएं (Isopleth) कहते हैं।

     दूसरे शब्दों में मानचित्रों पर किसी वस्तु के समान मूल्य या घनत्व वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखाएँ को सममान रेखाएँ कहा जाता है। 

(नोट : सम = बराबर, मान = मूल्य अर्थात मानचित्र पर किसी तत्व या वस्तु के समान मूल्य / घनत्व) 

    उदाहरण के लिए, समान तापक्रम वाले स्थानों को मिलाने वाली समताप रेखाएं (Isotherms), समान वायु दाब वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखाएं समदाब रेखा (Isobars), तथा समान वर्षा वाले स्थानों को मिलाने वाली समवर्षा रेखाएं (Isohyets) कहलाती हैं। समोच्च रेखाएं (Contours) भी इसी प्रकार की रेखाएं होती हैं।

     इसी प्रकार कृषि के समान उपज वाले स्थानों को मिलाने के लिए रेखाएं खींचकर Agricultural Isopleth Maps आदि बना सकते हैं, परन्तु इस विधि का उपयोग जलवायु के तत्वों के प्रदर्शन के लिए किया जाता है।

    इस विधि द्वारा निर्मित मात्रात्मक वितरण-मानचित्र भूगोल में अति उपयोगी होती हैं। समान रेखाएं किसी देश अथवा क्षेत्र को विभिन्न मात्रा एवं घनत्व के क्षेत्रों में विभाजित कर देती हैं। उदाहरण के लिए, समवृष्टि रेखाओं द्वारा अधिक एवं न्यून वर्षा क्षेत्रों के विषय में मानचित्र को एक ही बार देखने से वर्षा का ज्ञान प्राप्त हो जाता है। सममान रेखाएं (Isopleth Lines) शुद्ध आंकड़ों के प्राप्त होने पर ही खींची जा सकती हैं। इन रेखाओं के खींचने में निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए :

  • सममान रेखाओं का मान निश्चित अन्तिम मान शून्य से प्रारम्भ करके निर्धारित करते हैं।
  • सममान रेखाएं निश्चित अन्तर पर खींची जाती हैं।
  • पास-पास खिंची सममान रेखाएं वितरण के अधिक परिवर्तन की द्योतक हैं। इसी प्रकार दूर-दूर खिंची समरेखाएं वितरण का न्यून परिवर्तन दर्शाती हैं।

मानचित्रों पर दर्शाएँ जाने वाली प्रमुख सममान रेखाएँ

1. आइसोनीफ (Isonif)⇒ समान हिम वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखा को आइसोनीफ कहते है।

2.  सममेघ रेखा या आइसोनेफ (Isoneph)⇒ समान मेघ आच्छादन वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखा को आइसोनेफ कहते है।

3. आइसो बाथ (Isobath)⇒ समुद्र के अंदर समान गहराई वाले स्थानों को मिलाकर खींचे जाने वाली रेखा को आइसो बाथ कहते है।

4. आइसो ब्रांट (Isobront)⇒ एक समान समय पर तूफान आने वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखा।

5. समपवनवेग रेखा या आइसोटैक (Isotach)⇒ मौसम मानचित्र पर पवन की समान गति वाले स्थानों को मिलाकर खींची गई रेखा।

6. समताप रेखा (Isotherm)⇒ समान तापमान वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखा।

7. आइसोपैच (Isopach)⇒ हिमानी अथवा चट्टानों के समान मोटाई वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखा।

8.  समकाल रेखा या आइसोक्रोन (Isochrone)⇒ किसी बिंदु से एक समान समय में तय कि गई दूरी वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखा।

9. समदिक्पाती रेखा (Isogone)⇒ समान चुंबकीय झुकाव वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखा।

10. समलवणता रेखा (Isohaline)⇒ समुद्री जल में खारेपन की समान मात्रा मात्रा वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखा

11. आइसोरेमे (Isoraime)⇒ पाला गिरने की समान मात्रा वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखा।

12. आइसोस्टेड (Isostade)⇒ समान अधिवासीय संख्या को मिलाने वाली रेखा।

13. समभूकंपीय (Isoseismal)⇒ भूकंपीय तीव्रता की समानता वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखा।

14. सहभूकंप रेखा या होमोसिस्मल (Homoseismal) ⇒ भूकंप के एक ही समय आने वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखा।

15. आइसोथेरे (Isothere)⇒ ग्रीष्मकाल के समान तापमान वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखा।

16. समदाब रेखा (Isobars)⇒ समान वायुदाब वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखा।

17. इसालोबार (Isallobar)⇒ एक विशिष्ट अवधि में वायुमंडलीय दबाव में होने वाले समान परिवर्तन के स्थानों को मिलाने वाली रेखा।

18. आइसोहेल (Isohel)⇒ सूर्य के प्रकाश की समान अवधि वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखा।

19. समोच्च रेखा या आइसोहाइप (Contour lines or Isohypes)⇒ समुद्र तल से समान ऊँचाई वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखा।

20. आइसोपाइकनिक (Isopycnic)⇒ मानव जनसंख्या के समान घनत्व वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखा।

21. आइसोकाइनेटिक (Isokinetic)⇒ समान पवन वेग के स्थानों को मिलाने वाली रेखा।

22. समवर्षा रेखा (Isohytes)⇒ वर्षा की समान मात्रा वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखा।

23. आइसोमेर (Isomer)⇒ वर्षा की वार्षिक मात्रा की प्रतिशत के रूप में व्यक्त की जाने वाली उसकी औसत मासिक मात्रा के स्थानों को मिलाने वाली रेखा।

24. आइसोपाथ (Isopath)⇒ भूगर्भिक अथवा भू भौतिक परत की समान मोटाई वाले बिंदुओं को मिलाने वाली रेखा।

25. आइसोसिस्ट (Isoseist)⇒ समान भूकंपीय लहरों को एक समय में ही अनुभव करने वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखा।

26. आइसोटालेंटोज (Isotalantose)⇒ औसत मासिक तापांतर की समानता वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखा।

27. आइसोइकेते (Isoikete)⇒ लोगों केहने योग्य निवास की समान मात्रा वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखा।

28. आइसोफीन (Isophene)⇒ समान मौसमी घटनाओं को दर्शाने वाली रेखा।

29. आइसोथर्मो बाथ (Isothermobath)⇒ सागरीय जल की गहराई के अनुसा समान ताप वाले बिंदुओं को मिलाने वाली रेखा।

30. आइसोचाइम (Isochime)⇒ औसत शीत की तापमान की समानता वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखा।

31. आइसोफाइट (Isophite) ⇒ वनस्पतियों की समान ऊंचाई अथवा समान ऊंचाई वाले वनस्पति के स्तरों को मिलाने वाली रेखा।

32. आइसोप्रैक्ट (Isopract)⇒ मानव जनसंख्या के समान वितरण वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखा।



(iii) बिंदु-विधि (Dot Method)



        वितरण मानचित्र बनाने की इस विधि में किसी वस्तु के वितरण के घनत्व को समान आकार व आकृति वाले बिंदुओं के द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। यह एक ऐसा वर्णप्रतीकी मानचित्र होता है जिसमें एक ही प्रतीक की बार-बार पुनरावृत्ति होती है। चूंकि बिंदुकित मानचित्र में बिंदुओं की कुल संख्या तथा प्रदर्शित मात्राओं के मध्य निरपेक्ष अनुपात होता है। अतः बिंदु विधि को कभी-कभी निरपेक्ष विधि (Absolute Method) नाम से भी जाना जाता है।

    इस कार्य के लिए एक बिन्दु का कोई मान, जैसे- 5,000 व्यक्ति, 4,000 पशु अथवा 5,000 हेक्टेअर, आदि निश्चित कर लेते हैं। इसके बाद दिए गए क्षेत्र के प्रत्येक विभाग जैसे- देश, राज्य, जिला, तहसील या विकास खण्ड जिसके अनुसार आंकड़े दिए गए हों, में सम्बन्धित वस्तु की सम्पूर्ण संख्या अथवा मात्रा प्रकट करने के लिए बिन्दुओं की संख्या ज्ञात करते हैं तथा अन्त में इन बिन्दुओं को उस क्षेत्र के रूपरेखा मानचित्र में अंकित कर देते हैं।

    यहाँ पर अच्छी तरह जान लेना चाहिए कि बिन्दुकित मानचित्र बनाने का कार्य उतना सरल नहीं है जितना कि यह दिखता है। इसका कारण निम्नलिखित चार समस्यएं हैं, जिन्हें मानचित्र बनाने से पूर्व हल कर लेना अत्यन्त आवश्यक है:-

(i) बिन्दु मूल्य निश्चित करना

(ii) बिन्दुओं का आकार

(iii) बिन्दुओं को अंकित करना-

(a) सम वितरण प्रणाली तथा

(b) असम वितरण प्रणाली

(iv) एक समान बिन्दु बनाना, आदि।

     जनसंख्या का वितरण प्रदर्शित करने वाले बिंदुकित मानचित्र में कोई ऐसा बिंदु-मूल्य चुनना कठिन होता है जिससे नगरीय व ग्रामीण दोनों प्रकार की जनसंख्या का सही-सही वितरण दिखाया जा सके।

     उपर्युक्त समस्याओं को हल करने की निम्नांकित दो विधियां हैं-:

(A) स्टिलजेन बोर विधि (Stilgen Baur’s Method):-

     इसे बिन्दु तथा वृत्त विधि भी कहते हैं। इसमें बिन्दु तथा वृत्तों द्वारा जनसंख्या का प्रदर्शन किया जाता है। इस विधि का आविष्कार 1930 ई० में नगरीय एवं ग्रामीण जनसंख्या को एक ही मानचित्र पर प्रदर्शित करने के लिए अमेरिकी मानचित्रकार स्टिलजेन बोर महोदय ने किया। इसमें ग्रामीण जनसंख्या को समान आकार वाले बिन्दुओं द्वारा तथा नगरीय जनसंख्या को वृत्तों द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। नगरीय जनसंख्या को प्रदर्शित करने वाले वृत्तों के अर्द्धव्यास निम्नलिखित सूत्र द्वारा निकाले जाते हैं।

Distribution Maps
Stilgen Baur’s Method
(B) स्टेन डी गीयर विधि (Sten De Geer’s Method):-

     इसे बिन्दु तथा गोला विधि भी कहते हैं। इस विधि का आविष्कार अमेरिकी मानचित्रकार स्टेन डी गीयर ने 1917 ई. में किया। इसमें ग्रामीण जनसंख्या को बिन्दुओं द्वारा तथा नगरीय जनसंख्या को गोलों द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। गोले बनाने के लिए घनमूल निकालना पड़ता है। इसे निम्न सूत्र द्वारा ज्ञात किया जा सकता है:

Sten De Geer’s Method

बिन्दु विधि के गुण (Merits of dot Methods)-

     बिन्दु विधि के निम्नलिखित गुण विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं:-

1. चूंकि बिन्दु स्वयं असांतत्य रूप (Discountinuous Form) में होते हैं, अतः यह विधि असांतत्य इकाइयों में मिलने वाली वस्तुओं (जैसे- जनसंख्या, पालतू पशु तथा फसलों, आदि) के वितरण को प्रदर्शित करने में बहुत उपयोगी है।

2. साधारणतया किसी बिन्दुकित मानचित्र में केवल एक वस्तु का वितरण प्रदर्शित करते हैं, लेकिन विशेष परिस्थिति में एक ही मानचित्र में कई सम्बन्धित वस्तुओं को भिन्न-भिन्न प्रकार के बिन्दुओं द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है।

3. बिन्दु विधि का प्रयोग क्षेत्रफल सम्बन्धी आंकड़ों का वितरण दिखाने तक सीमित नहीं है, बल्कि इस विधि के द्वारा मूल्य, आयतन, भार, आदि आंकड़ों का वितरण भी प्रदर्शित किया जा सकता है।

4. चूंकि बिन्दुकित मानचित्रों में वर्णमात्री मानचित्रों की तरह बार-बार संकेत देखने की जरूरत नहीं होती है, अतः इन मानचित्रों को शीघ्रतापूर्वक आसानी से पढ़ा जा सकता है।

5. बिन्दु विधि के द्वारा सही-सही बनाए गए मानचित्र से किसी वस्तु के वास्तविक वितरण का काफी सीमा तक यथार्थ चित्रण सम्भव है।

6. आवश्यकता पड़ने पर किसी सांख्यिकीय इकाई के बिन्दुओं को गिनकर पुनः आंकड़ों में बदला जा सकता है, लेकिन बिन्दु गिनने में होने वाली कठिनाई व त्रुटि की सम्भावना के कारण यह गुण विवादास्पद है।

बिन्दु विधि के दोष (Demerits of Dot Method)-

       बिन्दु विधि के प्रमुख दोष निम्नलिखित हैं :

1. पर्याप्त अभ्यास के बिना समान आकार व आकृति के बिन्दु बनाना कठिन होता है।

2. छोटी-छोटी सांख्यिकीय इकाइयों के आधार पर आंकड़े उपलब्ध न होने की दशा में बिन्दु विधि के द्वारा किसी वस्तु के वितरण की वास्तविक दशाओं का यथार्थ चित्रण करना असम्भव है।

3. बिन्दु विधि मानचित्र बनाने के लिए ऐसे आधार मानचित्र की आवश्यकता होती है जिसमें आव- श्यक सांख्यिकी इकाई क्षेत्रों में सीमाएं हों। इस तरह के आधार मानचित्र सदैव उपलब्ध नहीं होते हैं, अतः सहायक मानचित्रों की सहायता से आधार मानचित्र में इन सीमाओं को अंकित करने के लिए अतिरिक्त परिश्रम व समय की आवश्यकता पड़ती है।

4. विषय की जानकारी एवं दिए हुए क्षेत्र के भौगोलिक ज्ञान के अभाव में सही-सही बिन्दुकित मानचित्र बनाना कठिन होता है।

5. बिन्दुकित मानचित्र की नकल करके उसकी प्रतिलिपि बनाना कठिन होता है।

6. बिन्दु अंकित करने की प्रक्रिया में मानचित्रकार के द्वारा की गई त्रुटियों को मानचित्र में पहचानना कठिन होता है।



(iv) सांख्यिकीय आरेख विधि (Statistical Diagram Method)



       आंकड़ों का प्रदर्शन भिन्न-भिन्न प्रकार के आरेखों (Diagrams) द्वारा भी किया जा सकता है। यह आरेख मानचित्र पर स्थान-विशेष पर खींचकर अध्यारोपित (Superimpose) कर दिए जाते हैं। इस प्रकार आंकड़ों का प्रदर्शन निम्न प्रकार के आरेखों द्वारा किया जाता है:-

(i) रैखिक आरेख (Line Graph)।

(ii) दण्ड या पट्टिका या स्तम्भ आलेख अथवा स्तम्भाकार आरेख (Bar Graph and Columnar Diagrams)।

(iii) मिश्रित अथवा संयुक्त स्तम्भ, दण्ड अथवा पट्टिका आरेख (Compound Bar Graph)।

(iv) द्वि-विस्तारीय मान आयताकार आरेख (Two Dimensional Value Area Rectangular Diagrams)।

(v) वृत्ताकार तथा चक्रारेख (Ring, Pie, Circle or Wheel Diagrams)।

(vi) घनक अथवा इष्टिका पुंज आरेख (Block Pile Diagrams)।

(vii) पिण्ड अथवा गोलाकार आरेख (Spherical Diagrams)।

(viii) चित्रात्मक चित्र (Pictorial Diagrams)।

(ix) तारक आरेख (Star Diagrams)।

I ‘Dr. Amar Kumar’ am working as an Assistant Professor in The Department Of Geography in PPU, Patna (Bihar) India. I want to help the students and study lovers across the world who face difficulties to gather the information and knowledge about Geography. I think my latest UNIQUE GEOGRAPHY NOTES are more useful for them and I publish all types of notes regularly.

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