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BA SEMESTER/PAPER IIIGEOGRAPHY OF INDIA(भारत का भूगोल)

21. मानसून उत्पत्ति के सिद्धांत

21. मानसून उत्पत्ति के सिद्धांत


मानसून उत्पत्ति के सिद्धांत

      मानसून अपनी अनिश्चितताओं के लिए प्रसिद्ध है। इसकी उत्पत्ति के संबंध में कई विचार प्रस्तुत किये गये हैं। लेकिन कोई भी सिद्धांत इसकी उत्पत्ति एवं विशेषताओं का पूर्ण व्याख्या करने में सक्षम नहीं हैं। फिर भी मानसून की उत्पत्ति के संबंध में निम्नलिखित चार सिद्धांतों पर विचार करते हैं:-

(1) तापीय सिद्धांत- एडमंड हैली, बेकर और डडले स्टाम्प

(2) विषुवतीय पछुवा हवा सिद्धांत- फ्लोन

(3) जेट स्ट्रीम सिद्धांत- रॉक्सबी, एम.टी. यीन, कोटेश्वरम

(4) अलनीनो सिद्धांत- गिल्बर्ट वाकर

(1) तापीय सिद्धांत 

        तापीय सिद्धांत का प्रतिपादन ब्रिटिश मौसम वैज्ञानिकों के द्वारा किया गया था। यह सिद्धांत पृथ्वी की वार्षिक गति या सूर्य के उतरायण एवं दक्षिणायण होने पर आधारित है। वस्तुतः पृथ्वी की वार्षिक गति के प्रभाव से सूर्य की किरणें जून महीने में कर्क रेखा पर लम्बवत चमकती है। अर्थात सूर्य के उतरायण होने से भारतीय उपमहाद्वीप पर ग्रीष्म ऋतु की स्थिति होती है। सूर्य के लम्बवत किरण के कारण भारतीय उपमहाद्वीप का सम्पूर्ण मैदानी क्षेत्र गर्म होने लगती है।

        धरातल के गर्म होने से वायु भी गर्म होकर ऊपर उठने लगती है जिससे सम्पूर्ण मैदानी क्षेत्र निम्न वायुदाब क्षेत्र में बदल जाती है दूसरी ओर हिन्द महासागर में सूर्य की तिरछी किरण पड़ने के कारण वायु ठण्डी ही रह जाती है। जिससे समुद्र के ऊपर उच्च वायुदाब क्षेत्र का निर्माण होता है। फलतः वायु H.P. से L.P. की ओर अग्रसारित होने लगती है। लेकिन फेरल के नियमानुसार अग्रसारित होने वाली वायु दायीं ओर मुड़कर द०-प० मानसून को जन्म देती है। यही मानसून भारतीय उपमहाद्वीप में अधिकांश वर्षा करने के लिए जिम्मेदार है।

मानसून उत्पत्ति

       तापीय सिद्धांत को मौसम वैज्ञानिकों ने थोड़ा परिमार्जित करते हुए प्रस्तुत किया है। जैसे सूर्य का उत्तरायण होते ही उत्तर भारत का मैदानी क्षेत्र LP में बदल जाती है जिससे उतरी गोलार्द्ध की वाणिज्यिक हवा विषुवत रेखा तक नहीं पहुँच पाती है जिसके कारण भारतीय उपमहाद्वीप के सामने विषुवत रेखा पर अंतर उष्ण अभिसरण क्षेत्र (ITCZ) का निर्माण नहीं कर पाती है। लेकिन दक्षिणी गोलार्द्ध में चलने वाली वाणिज्यिक हवा विषुवत रेखा तक पहुँचने की प्रवृति रखती है।

         दक्षिणी गोलार्द्ध की वाणिज्यिक हवा को विषुवतीय क्षेत्र में जब कोई अवरोध नहीं मिलता है तो उत्तरी गोलार्द्ध में यह प्रविष्ट कर जाती है। पुन: इस हवा पर फेरल का नियम लागू होने लगता है जिसके कारण यह द०-प० से उ०-पू० की ओर चलने लगती है। इसे ही द०-पश्चिम मानसून की संज्ञा देते हैं।

चित्र: तापीय सिद्धांत के अनुसार द०-प० मानसून की उत्पत्ति

      शीत ऋतु में स्थितियाँ भिन्न होती है। जैसे सूर्य दक्षिणायण हो जाती है तथा उसकी किरण मकर रेखा पर लम्बत गिरने लगती है। भारतीय उपमहाद्वीप की तुलना में समुद्र गर्म होकर L.P. का निर्माण करती है जबकि स्थल तिरछी किरण प्राप्त करने के कारण H.P. में बदल जाती है। फलत: वायु स्थल से समुद्र की ओर प्रवाहित होते लगती है। इस पर फेरल का नियम लागू होने के कारण यह उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम की ओर चलने लगती है। इसकी एक शाखा बंगाल की खाड़ी से जलवाष्प ग्रहण कर तमिलनाडु में वर्षण का कार्य करती है।

चित्र: तापीय सिद्धांत के अनुसार उ०-पू० मानसून की उत्पत्ति

नोट:-

⇒ तापीय सिद्धांत के अनुसार सूर्य के उतरायण होने से द०-प० मानसून और दक्षिणायण होने से उ०-पूर्वी मानसून की उत्पत्ति होती है। 

⇒ ग्रीष्म ऋतु में सूर्य के उत्तरायण से उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्र LP और हिन्द महासागर में HP का निर्माण होता है। फलत: वायु HP से LP की ओर चलने लगती है जिससे द०-प० मानसून की उत्पति होती है।

⇒ जाड़े के दिनों में सूर्य के दक्षिणायण से भारतीय उपमहाद्वीप पर HP और हिन्द महासागर में LP का निर्माण होता है। फलत: वायु H.P. से L.P. की ओर चलकर फेरल के नियम का अनुसरण करते हुए उ०-पूर्वी मानसून को जन्म देती है।

आलोचना 

      तापीय सिद्धांत के विश्लेषण करने से स्पष्ट होता है कि भारतीय मानसून की उत्पत्ति सूर्य के उत्तरायण एवं दक्षिणायण होने पर आधारित है। सूर्य का उतरायण एवं दक्षिणायण होना नियत है। जबकि मानसून आने और जाने की तिथि अनियमित है। यह इस सिद्धांत की सबसे बड़ी आलोचना है। पुन: यह सिद्धांत भारत में अतिवृष्टि और अनावृष्टि की व्याख्या करने में सक्षम नहीं है। फिर भी मानसून की उत्पत्ति की व्याख्या का सैद्धांतिकरण करने में एक सफल प्रयास था।

(2) विषुवतीय पछुवा हवा का सिद्धांत

       इस सिद्धांत का प्रतिपादक फ्लोन महोदय हैं। इनके अनुसार द०-प० मानसून मूलत: विषुवतीय पछुवा हवा का एक विकसित रूप है। उनके अनुसार विषुवतीय पछुआ हवा की उत्पत्ति ITCZ  से जुड़ी हुई है।

       इस सिद्धांत के अनुसार सूर्य के उत्तरायण होते ही ITCZ उत्तर की तरफ खिसक जाती है। यहाँ तक कि ITCZ भारतीय उपमहाद्वीप के ऊपर से होकर गुजरने लगती है। ऐसी स्थिति में भारतीय उपमहाद्वीप के सामने विषुवत रेखा पर ITCZ का निर्माण नहीं होता है लेकिन अरब सागर और अफ्रीका महाद्वीप के ऊपर ITCZ का निर्माण होता है। ITCZ में दोनों गोलार्द्ध की मिलने वाली वाणिज्यिक हवा पृथ्वी की घूर्णन गति के प्रभाव में आकर पश्चिम से पूरब की ओर चलने लगती है जिसे “विषुवतीय पछुवा हवा” कहते हैं। इसी हवा को भारतीय उपमहाद्वीप पर निर्मित निम्न वायुदाब क्षेत्र चुम्बक की तरह अपनी ओर खींचने की प्रवृत्ति रखती है जिससे द०-प० मानसून की उत्पत्ति होती है।

      विषुवतीय पछुवा हवा का सिद्धांत एक प्रकार का तापीय सिद्धांत ही है लेकिन कुछ मायने में यह सिद्धांत भिन्न भी है। जैसे- विषुवतीय पछुवा हवा सिद्धांत के अनुसार भारतीय उपमहाद्वीप पर निम्न वायुदाब के निर्माण का दो कारण उत्तरदायी माने जाते है:

(i) सूर्य का उत्तरायण होना

(ii) ITCZ का उत्तर की ओर खिसकना

      यह सिद्धांत भारत में होने वाले अनावृष्टि और अतिवृष्टि की व्याख्या का भी प्रयास करती है। जैसे अगर ITCZ का विस्तार उत्तर में शिवालिक पर्वत तक हो जाता है तो उत्तर भारत में तीव्र वर्षा होने के कारण बाढ़ की स्थिति उत्पन्न करती है। लेकिन जब ITCZ प्रायद्वीपीय भारत तक ही सीमित रहता है तो उत्तर भारत में सूखे की स्थिति उत्पन्न होती है।

       यह सिद्धांत मानसून की अनिश्चितता को भी स्पष्ट करने का प्रयास करता है। जैसे- इस सिद्धांत के अनुसार ज्यों-2 ITCZ उत्तर की ओर अग्रसारित होता है त्यों-2 मानसून का आगमन होता है। जब किसी कारणवश ITCZ के खिसकाव में बाधा उत्पन्न होती है तब ही मानसून के आने में देरी होती है।

चित्र: विषुवतीय पछुवा हवा सिद्धांत के अनुसार द०-प० मानसून की उत्पत्ति

आलोचना

(i) इस सिद्धांत को तापीय सिद्धांत का ही प्रतिलिपि माना जाता है।

(ii) यह सिद्धांत विषुवतीय रेखा या तापीय रेखा तथा ITCZ के निर्माण पर कोई प्रकाश नहीं डालता है।

(iii) चूंकि इन दोनों का निर्माण सूर्य की स्थिति पर निर्भर करती है और सूर्य की स्थिति (उतरायण या दक्षिणायण होना) नियत है। ऐसे में ITCZ का खिसकाव नियत होना चाहिए।

     अत: इस प्रका इस सिद्धांत को भी अमान्य घोषित क दिया गया है।


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I ‘Dr. Amar Kumar’ am working as an Assistant Professor in The Department Of Geography in PPU, Patna (Bihar) India. I want to help the students and study lovers across the world who face difficulties to gather the information and knowledge about Geography. I think my latest UNIQUE GEOGRAPHY NOTES are more useful for them and I publish all types of notes regularly.

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