20. मानसून क्या है?
20. मानसून क्या है?
मानसून क्या है?
मानसून अनिश्चितताओं से भरा एक मौसमी हवा है जिसका प्रभाव सम्पूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप के सामाजिक-आर्थिक गतिविधियों पर सदियों से देखा जा सकता है। यूनानी भूगोलवेता हिप्पार्कस ने सबसे पहले मानसूनी हवा के संदर्भ में अनुमान लगाया था। लेकिन मानसून की खोज करने का श्रेय अरब भूगोलवेत्ता अलमसूदी को जाता है। मानसून शब्द की उत्पत्ति अरबी भाषा के मौसिम से हुआ है जिसका तात्पर्य है मौसम के अनुसार चलने वाली हवा।
अनेक भूगोलवेत्ताओं ने मानसून को परिभाषित करने का प्रयास किया है। उनमें सर्वमान्य परिभाषा ब्रिटिश भूगोलवेता हेली के द्वारा प्रस्तुत किया गया है। इनके अनुसार “यह एक ऐसी वायु प्रवाह है जो छ: महीने द०-प० से उ०-पू० की ओर (15 मई से 15 नवम्बर तक) तथा अगले छ: महीने (15 नवम्बर से 15 मई तक) उ०-पू० से द०-प० की ओर प्रवाहित होती है।” जैसे:-
(नोट: हैली– मानसून एक वृहत समुद्री स्थलीय समीर है, जो 6 माह सागर से स्थल की ओर तथा शेष 6 माह स्थल से सागर की ओर चलती है।
अरब भुगोलवेत्ताओं द्वारा- ऋतुवत वायु की दिशा में परिवर्तन को मानसून पवन कहा जाता है।)
मानसून का प्रकार
भूगोलवेत्ताओं ने मानसून का अध्ययन वैश्विक स्तर पर करते हुए बताया है कि मानसून दो प्रकार के होते हैं। जैसे:-
(1) उष्ण कटिबंधीय मानसून- इसका विस्तार भारत उप महाद्वीप, उ०-पू० ऑस्ट्रेलिया, द०-पू० ब्राजील, पूर्वी अफ्रीका इत्यादि में हुआ है।
(2) शीतोष्ण प्रदेश की मानसून – इसका विस्तार जापान, कोरिया, पूर्वी चीन इत्यादि में हुआ है।
स्पष्ट है कि भारत का मानसून उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र की मानसून है। इसे पुन: दो भागों में बाँटा गया है:-
(1) दक्षिण-पश्चिम मानसून
(2) उत्तरी-पूर्वी मानसून
दक्षिण-पश्चिम मानसून और उत्तर-पूर्वी मानसून में अन्तर
(i) द०-पश्चिम मानसून को ‘ग्रीष्मकालीन मानसून’ तथा उ०-पूर्वी मानसून को ‘शीतकालीन मानसून’ कहा जाता है।
(ii) द०-प० मानसून ही भारत का प्रमुख मानसून है जबकि उ०-पूर्वी मानसून को गौण मानसून कहते हैं।
(iii) द०-प० मानसून अरब सागर से भारतीय उपमहाद्वीप पर जलवाष्प लाकर वर्षा करती है जबकि उ०-पूर्वी मानसून बंगाल की खाड़ी से जलवाष्प लाकर वर्षा करती है।
(iv) द०-प० मानसून के कारण भारत में लगभग 80% वर्षा होती है जबकि शेष वर्षा उ०-पूर्वी० मानसून और पछुआ विक्षोभ के कारण होती है।
(v) द०-प० मानसून भारत के अधिकांश क्षेत्रों की सामाजिक-आर्थिक गतिविधियों को प्रभावित करती है जबकि उत्तरी-पूर्वी मानसून पूर्वी तटीय क्षेत्र एवं तमिलनाडु के सामाजिक-आर्थिक गतिविधियों को प्रभावित करती है।
(vi) द०-प० मानसून की तुलना समुद्री समीर से की जा सकती है जबकि उ०-पूर्वी मानसून की तुलना स्थलीय समीर से की जा सकती है।
(vii) द०-प० मानसून की उत्पत्ति में उष्ण-पूर्वा जेट हवा का जबकि उ०-पू० मानसून की उत्पति में उपोष्ण पछुवा जेट हवा का योगदान है।
मानसून की विशेषताएँ
(i) भारतीय मानसून अपने अनिश्चिताओं के लिए विश्व विख्यात है, तभी तो इसे औपनिवेशिक काल में यह कहा जाता था कि भारतीय किसान मानसून के साथ जुआ खेलता है क्योंकि भारत में दक्षिण-पश्चिम मानसून का प्रवेश 15 मई से मानी जाती है और 15 नवम्बर तक वह लौट जाती है। अगर किसी कारणवश इसके आने और जाने की तिथि में गड़बड़ी होती है या इस काल में लगातार 15 दिन वर्षा नहीं होती है तो भारतीय किसानों के फसल बर्बाद हो जाते हैं।
पुनः इस काल में कहीं अतिवृष्टि की समस्या उत्पन्न होती है तो बाढ़ के कारण फसलें बर्बाद हो जाती हैं। अगर मानसून सामान्य रहा तो भारतीय किसानों के घर अन्न से भर जाते है। यही कारण है कि यह कहा जाता है कि “भारतीय किसान मानसून के साथ जुआ खेलता है”
औपनिवेशिक काल में यह भी कहा जाता था कि “भारतीय मानसून भारत का वास्तविक बजट का निर्माता है।” क्योंकि जिस वर्ष मानसून सामान्य रहती है उस वर्ष केन्द्र सरकार के द्वारा भारतीय लोगों को अनेक प्रकार की रियायतें दी जाती है।
दूसरी ओर जिस वर्ष मानसून असफल रहता है उस वर्ष भारत की जनता रियायतों से वंचित रह जाती है। वस्तुओं की कीमतें आसमान छूने लगती है।
(ii) मौसम विशेष की हवा- मानसून मौसम विशेष की हवा है, क्योंकि द०-प० मानसून ग्रीष्म ऋतु में समुद्र से स्थल की ओर चलती है जबकि उ०-पू० मानसून शीत ऋतु में स्थल से समुद्र की ओर चलती है। ऐसा सूर्य के उत्तरायण एवं दक्षिणायण होने के कारण होता है।
(iii) मानसून के कारण भारत में मुख्यतः दो प्रकार की वर्षा होती हैं।-
(a) पर्वतीय वर्षा और
(b) चक्रवातीय वर्षा
भारत में पर्वतीय वर्षा मुख्यतः हिमालय के दक्षिणी भाग, उ०-पूर्वी भारत, तराई क्षेत्र, प० घाट के पश्चिमी ढाल के सहारे होती है जबकि शेष भारत में उष्ण कटिबंधीय चक्रवात के कारण वर्षण का कार्य होती है।
भारत में उष्णकटिबंधीय चक्रवात का आगमन तीन बार होती है।
प्रथम- मानसून आगमन के पूर्व (अप्रैल-मई) में पहली बार चक्रवात का आगमन होता है। इस चक्रवात को प० बंगाल में कालवैशाखी, असम में नार्वेस्टर, बिहार में अंधड़, पंजाब-हरियाणा में तूफान कहा जाता है। दक्षिण भारत में इस चक्रवात के कारण हल्की वर्षा रिकॉर्ड की जाती है जिसे ‘आम्रवृष्टि’ या ‘फूलों की वर्षा’ कहते हैं।
दूसरा- चक्रवात का आगमन मानसून के दौरान होता है। यही चक्रवात मानसूनी हवा को समुद्रतटीय क्षेत्र से खींचकर आन्तरिक भागों में ले जाती है।
तीसरा- चक्रवात का आगमन मानसून के समापन के दौरान होता है, इसके कारण पूर्वी तटीय क्षेत्र एवं तमिलनाडु में वर्षण का कार्य होती है।
(iv) मानसूनी वर्षा का वितरण अत्यंत ही अनियमित है। मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार भारत में औसतन 85 cm वर्षा होती है। जबकि वर्षा के वितरण का अगर अध्ययन किया जाय तो पाते हैं कि मासिनराम में लगभग 1100 cm वर्षा होती है जबकि जम्मू और कश्मीर के लेह एवं लदाख क्षेत्र तथा राजस्थान के रामगढ़ नामक क्षेत्र पर 25 cm जल से भी कम वर्षा होती है।
(v) मानसून के आने और जाने की तिथि अनिश्चित है। जैसे 15 मई के बाद ही मानसून को सक्रिय हो जाना चाहिए। पुन: 1 जून को पहली बारिश केरल के तट पर करते हुए 12-13 जुलाई के बीच भारतीय सीमा को लांघकर पाकिस्तान में प्रवेश कर जाना चाहिए लेकिन इस निर्धारित तिथि के अनुसार शायद ही मानसून का आगमन होता है।
इसी तरह 15 अक्टूबर के बाद से इसमें लौटने की प्रवृति विकसित होनी चाहिए। लेकिन कभी-2 बहुत पहले ही या निर्धारित तिथि के बाद पीछे की ओर हटती है।
(vi) मानसूनी वर्षा की मात्रा काफी अनिश्चित है। जैसे- कभी-2 एक ही महीना में अत्याधिक वर्षा दर्ज की जाती है जिससे बाढ़ की समस्या उत्पन्न होती है। पुन: कई महीनों तक शुष्कता की स्थिति बनी रहती है जिससे सुखाड़ की समस्या उत्पन्न होती है।
(vii) मानसून की विश्वसनीयता काफी संदिग्ध है क्योंकि जिन क्षेत्रों में वर्षा 200 cm से अधिक होती है। उन क्षेत्रों में प्रतिवर्ष 90% मानसून की सक्रिय होने की संभावना होती है। जबकि जिन क्षेत्रों में 50 cm से कम वर्षा होती है उन क्षेत्रों में 80% मानसून न आने की संभावना होती है।
निष्कर्ष
इस तरह ऊपर के तथ्यों से स्पष्ट है कि भारतीय मानसून कई विशेषताओं से युक्त है। यही विशेषतायें भारतीय उपमहाद्वीप की सामाजिक-आर्थिक गतिविधियों को व्यापक तौर पर (रूप में) प्रभावित करती है।
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