23. भूगोल में अल्फ्रेड हेटनर के योगदान
23. भूगोल में अल्फ्रेड हेटनर के योगदान
भूगोल में अल्फ्रेड हेटनर के योगदान
अल्फ्रेड हेटनर (1859-1941) बीसवीं शताब्दी के सर्वश्रेष्ठ जर्मन भूगोलवेत्ता था। उसने अपने समकालीन किसी भी अन्य भूगोलवेत्ता से अधिक मात्रा में भूगोल को दार्शनिक तथा वैज्ञानिक आधार पर स्थापित किया था। उसने भूगोल की एक प्रमुख अनुसंधान पत्रिका का प्रकाशन की, कई ग्रन्थ लिखें जिनमें मुख्य ग्रन्थ भूगोल के विधि-तंत्र और प्रादेशिक भूगोल पर थे। इसके अतिरिक्त हैटनर ने लगभग 30 व्यक्तियों को डॉक्ट्रेट की उपाधि के लिये अनुसंधान कराये थे।
अलफ्रेड हेटनर की शिक्षा भूगोल में हुई थी। वह रेटजेल और रिचथोफेन का शिष्य था। वह हाईडिलबर्ग यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर था। ये मुख्यतः भौतिक भूगोलवेत्ता और प्रादेशिक भूगोलवेत्ता था। उसने बहुत-सी भौगोलिक यात्रायें की थीं। भौतिक भूगोल पर उसके बहुत से शोधपत्र प्रकाशित हुए थे, जो चार खण्डों में 1919 से आगे के वर्षों में छपे थे। उसकी यूरोप के भूगोल की पुस्तक 1907 में प्रकाशित हुई थी, इस पुस्तक का संशोधित संस्करण संसार के भूगोल के साथ 1923 में प्रकाशित हुआ था।
हेटनर की विशेष ख्याति उसके भौगोलिक विधि तंत्र पर लिखे गये ग्रन्थ से हुई थी, जो 1927 में प्रकाशित हुआ था।
हेटनर ने अपने लेखों में काण्ट द्वारा बतलाई गई भूगोल की परिभाषा का पुनरावर्तन किया था, और उस ढाँचे के अन्दर हम्बोल्ट, पेशेल, रेटजेल के द्वारा लिखे गये क्रमबद्ध अध्ययन को तथा रिटर, मार्थे, रिचथोफेन के द्वारा लिखे गये प्रादेशिक अध्ययनों को परस्पर सम्मिलित करके उसने भूगोल को एक सम्बद्ध पूर्ण विषय बना दिया था।
हेटनर ने अपनी भौगोलिक पत्रिका 1895 में आरम्भ की थी। उस पत्रिका की प्रस्तावना में तथा उसके बाद 1898 में भूगोल का प्रोफेसर होने के आरम्भिक भाषण में, और उसके पश्चात् उसके द्वारा प्रकाशित की गई भौगोलिक विधि-तंत्र की पुस्तक में हेटनर की विचारधारा का प्रकाशन हुआ है।
हेटनर के भौगोलिक विधि पर लिखे गये शोध-प्रबन्ध, जिनको वह विधि-विहार कहता था तथा जलवायु और उच्चावचन पर उसके विवेचन, आज भी भौगोलिक ज्ञान और प्रस्तुतिकरण के क्षेत्र में बड़े उच्चस्तरीय माने जाते हैं। उसने अपनी भौगोलिक पत्रिका का लेखन-सम्पादन लग नियमित रूप से किया था। उसने सोवियत रूस के भूगोल पर 1905 में एक श्रेष्ठ पुस्तक प्रकाशित की थी। इसके अतिरिक्त हैटनर ने 1907 में यूरोप का भूगोल तथा 1915 में ब्रिटेन का मूल्यांकन छपवाया था।
हेटनर ने अपनी भौगोलिक पत्रिका में पुस्तक के रूप में, अपने भूआकृतिक अध्ययन महाद्वीपों की स्थलाकृति और विश्व के सांस्कृतिक भूल की पुस्तकें प्रकाशित की थी।
संकल्पनाएँ:-
1. सामान्य भूगोल- भूगोल का प्रमुख उद्देश्य है। विशिष्ट भूगोल गौण है।
2. भूगोल पृथ्वी की सतह का अध्ययन है। यह पृथ्वी के सतह के तथ्यों के क्षेत्रीय साहचर्य का अध्ययन करता है। क्षेत्रीय साहचर्य का अध्ययन भूगोल में प्रमुख है तथा प्रादेशिक भूगोल गौण है।
3. भूगोल “कोरोलाजिकल“ विज्ञान है। यह विभिन्न क्षेत्रों के तथ्यों का समाकलित अध्ययन करता है जिसके बिना क्रमबद्ध विज्ञानों का अध्ययन अपूर्ण रहता है। इस दृष्टिकोण से ये कार्ल रिटर के विचारों से अधिक सामंजस्य रखते हैं।
क्रमबद्ध विज्ञान एवं भूगोल में अन्तर:-
हेटनर ने क्रमबद्ध विज्ञानों तथा भूगोल में अन्तर को स्पष्ट करने का प्रयास किया। इन्होंने यह स्वीकार किया कि भूगोल पृथ्वी की सतह पर पाये जाने वाले तथ्यों के वितरण का अध्ययन करने वाला विज्ञान है। लेकिन क्रमबद्ध विज्ञान भी तथ्यों के वितरण से सम्बन्धित है। वनस्पति शास्त्र अन्य बातों के साथ वनस्पति के प्रकारों का पृथ्वी की सतह पर वितरण भी देखता है। इसी तरह प्राणी विज्ञान पृथ्वी की सतह पर विभिन्न प्रजातियों के पशुओं के साहचर्य का अध्ययन करता है। भौगोलिक प्राणी-विज्ञान लेकिन पशुओं के किसी स्थान या क्षेत्र में उस क्षेत्र के अन्य सभी तथ्यों के साथ क्षेत्रीय साहचर्य का अध्ययन प्राणी भूगोल है।
भूगोल पृथ्वी की सतह के क्षेत्रीय साहचर्य को देखता है। वह पृथ्वी की सतह के अन्य तथ्यों के साथ वनस्पति एवं पशुओं के साहचर्य का समकालीन दृष्टिकोण से अध्ययन करता है। इसके लिए वनस्पति अपने में अलग तथा पशु अपने में अलग विषय नहीं हैं, वरन् वे पृथ्वी की सतह की समष्टि के अंग हैं।
इस तरह वनस्पतिशास्त्र एवं प्राणीशास्त्र जैसे क्रमबद्ध विज्ञानों से भूगोल अलग है। यह अन्तर भौगोलिक अन्तर्दृष्टि एवं भूगोल में समष्टि के समावेश के कारण होता है।
हेटनर इसे और भी आगे ले जाते हैं। उनके अनुसार अर्थशास्त्र, मांग पूर्ति, आवश्यकता, उपभोग जैसे तथ्यों के किसी विशिष्ट तथ्य का वितरण भी देखता है। यह भौगोलिक अर्थशास्त्र हुआ। लेकिन किसी स्थान या क्षेत्र के अन्य तथ्यों के साहचर्य में स्थित हैं तथा जो उस स्थान या क्षेत्र को उसका वैशिष्ट्य प्रदान करते हैं वे आर्थिक भूगोल के अन्तर्गत आते हैं। अत: मात्र किसी तथ्य विशेष के वितरण के अध्ययन से या उसे मानचित्र पर प्रदर्शित करने से सम्बन्धित विषय भूगोल को अपने में समाहित करने का दावा नहीं कर सकता। वस्तुतः वह विषय स्वयं वितरण के अध्ययन से भूगोल की विधि का अनुसरण कर अपने दृष्टिकोण को विस्तृत करता है।
भूगोल क्रमबद्ध विज्ञानों की जननी है:-
हेटनर ने भूगोल की जर्मन विचारधारा का निचोड़ प्रस्तुत करते हुए सिद्ध किया कि कैसे भूगोल ने शुद्ध विज्ञानों को जन्म दिया। हेटनर के अनुसार भूगोल (अर्डकुंडे) पृथ्वी का विज्ञान नहीं है जैसा कि रिटर ने कहा था। भू-विज्ञान का अध्ययन अनेक विषयों के क्षेत्र में आता है जैसे भू-भौतिकी, भू-रसायन, खगोलशास्त्र, वनस्पति, पशु जगत आदि। ये सब विज्ञान आज स्वतंत्र शाखाओं के रूप में स्थापित हैं किन्तु इनका जन्म भूगोल से हुआ है। भूगोल पृथ्वी की सतह के तथ्यों का पृथ्वी की ब्रह्माण्ड में स्थिति का अध्ययन करता है। मनुष्य की जानकारी बढ़ने पर विभिन्न तथ्यों का स्वतंत्र रूप से अध्ययन होने लगा। इस अध्ययन की भूमिका भूगोल की देन है।
हेटनर ने रियोफेन की तरह भूगोल की “अर्डीबर लेशन कुण्डे’ कहने से भी असहमति व्यक्त की। उनके अनुसार भूगोल पृथ्वी की सतह का अध्ययन महाद्वीपीय स्तर पर, क्षेत्रीय स्तर पर या स्थानीय स्तर पर करता है। वह पृथ्वी की सतह के तथ्यों को स्थानिक विन्यास क्रम के रूप में देखता है। भूगोल न तो क्रमबद्ध विज्ञानों की तरह वर्गीकृत तथ्यों का अलग-अलग अध्ययन करता है, न मानवीय घटनाओं को इतिहास की तरह कालक्रम में देखता है। यह तो पृथ्वी की सतह के तथ्यों के साहचर्य के वैभिन्य का अध्ययन करता है।
भौतिक जगत के छः परिमण्डल:-
हेटनर ने भी अपने पूर्ववर्ती जर्मन विद्वानों की तरह पृथ्वी को छः परिमण्डलों में विभाजित मानते हैं, यथा-
1. भूमि,
2 जल,
3. वायुमण्डल,
4. वनस्पति,
5. पशु
6. मनुष्य
इन छः परिमण्डलों के किसी क्षेत्र में पाये जाने वाले साहचर्य का इन परिमण्डलों के स्थानिक अन्तर्सम्बन्ध एवं कारण-कार्य सम्बन्ध के सन्दर्भ में देखा जाता है।
भूगोल प्राकृतिक एवं मानव विज्ञान के रूप में :-
हेटनर भूगोल को मात्र प्राकृतिक विज्ञान के रूप में भी देखते हैं। उनके अनुसार ‘कोरोलाजिकल’ अध्ययन में मनुष्य का स्थान नहीं है। इसमें मात्र पृथ्वी सतह के प्राकृतिक तथ्य आते हैं। मनुष्य इसके अध्ययन का फोकस नहीं है। यहाँ उन्होंने जीन ब्रून्स (फ्रान्स) की भू-दृश्य की संकल्पना की आलोचना की।
इनके अनुसार ‘कोरोलाजी’ में अध्ययन को दो भागों में बाँट सकते हैं-
(अ) तंत्र के रूप में- इसके अन्तर्गत भौगोलिक संश्लिष्टों एवं तन्त्रों का अध्ययन होता है जैसे नदी बेसिन, वायुमण्डल, व्यापार, प्रभाव प्रदेश आदि।
(ब) कारण-कार्य अन्तर्सम्बन्ध- इसके अन्तर्गत स्थानिक रूप से व्यवस्थित विभिन्न तथ्य समुच्चयों के बीच कार्य-कारण सम्बन्ध को देखा जाता है।
इसका अर्थ यह नहीं है कि हेटनर भूगोल में मनुष्य के महत्व को नकारते थे। ‘उन्होंने मनुष्य का भूगोल’ शीर्षक से तीन खण्डों की एक पुस्तक भी लिखी है जिसमें मनुष्य के आर्थिक क्रिया-कलापों एवं परिवहन की भी चर्चा है। उनके कहने का तात्पर्य यह था कि हम पृथ्वी की सतह का अध्ययन बिना मनुष्य को सम्मिलित किये उसके स्थूल रूप में भी कर सकते हैं। हेटनर यह भी मानते थे कि पृथ्वी की सतह का अध्ययन क्रमबद्ध विज्ञान अलग-अलग मिलकर करें तब भी नहीं कर सकते। बिना भौगोलिक अध्ययन के जिसमें क्षेत्रीय साहचर्य को समझाने का गुण है, पृथ्वी की सतह का पूरा ज्ञान प्राप्त नहीं किया जा सकता।
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