Unique Geography Notes हिंदी में

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GEOGRAPHICAL THOUGHT(भौगोलिक चिंतन)

21. भूगोल के विकास में विडाल डी-ला ब्लाश के योगदान

21. भूगोल के विकास में विडाल डी-ला ब्लाश के योगदान


भूगोल के विकास में विडाल डी-ला ब्लाश के योगदान

भूगोल के विकास में विडाल ड

            20वीं सदी के भूगोलवेत्ताओं में ब्लाश का नाम सर्वप्रथम आता है। इस महान विचारक ने सन् 1877 में इस महान कार्यक्षेत्र में कदम रखा था। भूगोल विषय पर पेरिस में अपने भाषण देना प्रारम्भ किया और यह कार्य अन्तिम समय तक चलता रहा। सन् 1898 में ब्लाश की नियुक्ति पेरिस के सार्वोनी विश्वविद्यालय में भूगोल के प्रोफेसर के रूप में हुआ था।

    उन्होंने अपने प्रादेशिक अध्ययन पर अधिक जोर दिया जिसके अंदर किसी क्षेत्र के भौतिक, राजनीतिक, आर्थिक तथा ऐतिहासिक कारणों के प्रभावों का स्पष्टीकरण किया जाना आवश्यक था। ब्लाश ने सारे विश्व के प्रादेशिक भूगोल का वर्णन प्रस्तुत करने वाली ग्रन्थ माला ‘विश्व भूगोल’ की योजना बनाई थी। उसने पेरिस के निवास काल में भूगोल की महान सेवा करते हुए निम्नांकित कार्य किये-

1. सन् 1889 में यूरोप के राज्य और राष्ट्र नामक प्रथम पुस्तक प्रकाशित हुई।

2. सन् 1894 में यूरोप का एटलस प्रकाशित हुआ।

3. सन् 1891 में विभिन्न प्रदेशों में किए गये शोध कार्यों के प्रकाशन हेतु उसने औपनिवेशिक भूगोल के विज्ञान ‘दुबोइस’ के सहयोग से वार्षिक ग्रंथमाला, नामक भौगोलिक पत्रिका प्रकाशित की थी जिसमें अनेक लेख प्रकाशित हुए।

4. ब्लाश ने बिब्लियोग्राफी के प्रकाशन की भी व्यवस्था की थी।

5. सन् 1903 में ‘फ्रांस का भूगोल’ नामक ग्रन्थ प्रकाशित किया था। यह भूगोल के अलावा साहित्य का उत्कृष्ट ग्रंथ माना गया।

6. सन् 1917 में उसके प्रारम्भिक अध्ययन तथा शोध कार्यों पर आधारित पूर्वी फ्रांस का भूगोल प्रकाशित हुआ।

7. ब्लाश ने मानव के भूगोल सिद्धांतों पर सामग्री की मार्लोनी के महान प्रयासों में से एकत्र कर लिया था। सन् 1921 में ब्लाश की मृत्यु के पश्चात उसकी पुस्तक मानव भूगोल के सिद्धान्त प्रकाशित करायी गयी।

8. ब्लाश साम्यवादी विचारधारा का प्रवर्तक था।

9. प्रादेशिक अध्ययन के अन्तर्गत किसी प्रदेश के भौतिक, आर्थिक, राजनैतिक और ऐतिहासिक तथ्यों के प्रभावों को स्पष्ट करना ब्लाश ने आवश्यक माना था।

10. ब्लाश ने प्राकृतिक वातावरण तथा मानव के पारस्परिक सम्बन्धों के अध्ययन पर विशेष बल दिया।

भूगोल  में योगदान:-

          विडाल डी लॉ ब्लाश फ्रांसीसी भूगोल के संस्थापक माने जाते हैं। उनके प्रमुख योगदान इस प्रकार हैं:-

        ब्लाश ने Annals में 1913 में भूगोल के विशिष्ट लक्षण पर एक विस्तृत लेख प्रकाशित किया। इसमें उन्होंने स्पष्टतः कहा कि भूगोलवेत्ता का स्थान प्राकृतिक एवं मानवीय दोनों विज्ञानों में होना चाहिए। उसने भूगोल के निम्न छः लक्षण बताये-

(i) भूगोल में पार्थिव घटनाओं की एकता महत्वपूर्ण है। अतः इसमें विश्व की पार्थिव घटनाओं एवं उनकी प्रकृति की सकारण व्याख्या की जाती है। दूसरे अर्थों में, भौतिक कारक तत्व एक-दूसरे से सम्बन्धित होकर पार्थिव घटक का निर्माण करते हैं।

(ii) पार्थिव घटनाएँ विविधता रूपी योग एवं समायोजन में स्थित हैं। विभिन्न घटनाक्रमों में विकास एवं परिवर्तन इसी कारण होता है।

(iii) ऐसी यौगिक एवं सह-विविधताओं की स्थिति, उनका वर्णन एवं व्याख्या भूगोल में होती है।

(iv) भूगोल में परिवेश या वातावरण के विभिन्न तत्वों का मानव पर प्रभाव का अध्ययन होता है। इसमें विशेषतः जलवायु, धरातल, वनस्पति, आदि का प्रभाव महत्वपूर्ण है। इन सबसे मानव के सामंजस्य का अध्ययन भी भूगोल में समान रूप से महत्वपूर्ण है।

(v) भूगोल में ऐसी वैज्ञानिक विधियों की खोज करना है, जिसके द्वारा पार्थिव घटनाओं को परिभाषित कर उन्हें वर्गीकृत किया जा सके। यहाँ ब्लाश ने ऐसे नियमों एवं गणितीय आधार की कल्पना की जो कि भूतल की विभिन्न घटनाओं की प्रवृत्ति को तथ्यात्मक आधार प्रदान कर सके। ब्रूंस पर भी ब्लाश के इस लक्षण का प्रभाव पड़ा एवं उसने पार्थिव घटनाओं को वर्गीकृत एवं नियमबद्ध करने का प्रयास किया।

(vi) भूगोल में मानव द्वारा भूतल पर लाये गये परिवर्तन एवं उसके महत्वपूर्ण कार्यों का सही-सही मूल्यांकन कर उनकी तर्कसंगत स्थिति निश्चित की जानी चाहिए।

        भूगोल के उपरोक्त लक्षणों की ऐसी व्यावहारिक व्याख्या वह सन् 1889 से लेकर जीवन पर्यन्त अपनी रचनाओं द्वारा करता रहा। ब्लाश के विचार प्रारंभ से ही परिपक्व एवं स्पष्ट रहे। उसने कांट की भांति दर्शन पर भी अधिक जोर दिया। उसने भौतिक, प्रादेशिक एवं मानव में से किसी एक पक्ष को भूगोल में कभी भी विशेष प्रबल नहीं माना। वह तीनों के समन्वित विकास का समर्थक रहा। अतः उसने पृथ्वी के विभिन्न प्रदेशों, उसकी घटनाओं एवं उन घटनाओं में मानव के योग की सम्यक व्याख्या को महत्वपूर्ण माना। भूगोल के वैज्ञानिक विकास के लिए उसने Annals में, स्वेस, स्टीन एवं अन्य कई भूगोल से संबंधित विज्ञानों के जर्मन एवं अंग्रेजी विद्वानों के लेखों और खोजों का फ्रांसीसी भाषा में अनुवाद कराकर उन्हें प्रकाशित किया।

वातावरण मानव एवं सम्भावनाएँ:-

        ब्लाश ने भूगोल के अन्तर्गत भौतिक विश्व या प्रकृति जिसे उसने भौगोलिक वातावरण कहा, का अध्ययन एवं मानव का अध्ययन दोनों को अनिवार्य माना। भूतल पर पार्थिव अन्तः सम्बन्ध के रूप में पाये जाने वाले भौतिक एवं मानवीय तत्वों को स्वतंत्र रखकर उनकी सही-सही व्याख्या नहीं की जा सकती। जहाँ प्राकृतिक परिवेश विविध स्तरीय सम्भावनाओं की ओर मानव आकर्षित करता है वहीं मानव स्वेच्छा से अपनी क्षमता एवं आवश्यकता के अनुसार इनको चुनता है। इस प्रकार ब्लाश ने अपने समय के नियतिवादी चिन्तन की पकड़ से अपने को मुक्त ही नहीं रखा वरन एक साहसी और निर्भीक अग्रणी की भाँति वह स्पष्टतः सम्भववाद की ओर भी आगे बढ़ता गया। इस प्रकार उसने ल्यूसिन फेब्रे का समर्थन किया। मानव प्राकृतिक क्रियाओं से सामंजस्य एवं सम्बन्धों में अपने को एकाकी नहीं पाता। ब्लाश ने स्पष्ट किया कि वह भूमि पर आवास के द्वारा अपने से राज्य, इकाई क्षेत्र या प्रदेश को स्वरूपित करता है। ऐसे स्वरूपों के विकास को समझने के लिए ऐतिहासिक पृष्ठभूमि एवं तत्कालिक परिस्थितियों को भी समझना आवश्यक है। इसके द्वारा ही पूर्व की प्रवृत्ति की व्याख्या एवं भविष्य का पूर्वानुमान सम्भव है। संक्षेप में वह व्यावहारिक भूगोलवेत्ता रहा।

सम्भववादी नियम:-

        ब्लाश का चिन्तन प्रारम्भ से ही यही रहा कि मानव स्वयं एक क्रियाशील प्राणी है। वह अपने परिवेश का उपयोग स्वयं के अनुभव के आधार पर करता है। जैसा कि पूर्व में लिखा गया है, प्रकृति सम्भावनाएँ व्यक्त करती है और मानव अपनी क्षमता एवं आवश्यकतानुसार उनका उपयोग कर सकता है। मानव का प्रवाहित जल, कटावयुक्त मिट्टी, वृक्ष आदि परिवेश के कुछ तत्वों पर नियंत्रण नहीं है परंतु कुछ अन्यों पर उसका नियंत्रण है। उदाहरणार्थ, प्रत्येक सभ्यता काल में विशेष फसलों का प्रादुर्भाव होता रहा है, आज मानव ने इन फसलों के उपज क्षेत्र का इतना विस्तार कर दिया है जिसकी कल्पना भी नहीं थी। इस प्रकार आज यह पूर्व के प्रतिकूल प्रदेशों में भी इनकी कृषि कर रहा है। ब्लाश ने उदाहरण देकर इन्हें स्पष्ट किया है।

         ब्लाश लिखते हैं, “समस्त भौगोलिक प्रगति में प्रबल विचारधारा यदि है तो वह है सार्वभौमिक एकता” मानव भूगोल के गोचर पदार्थ अर्थात् मानव रचित दृश्य भूमि सार्वभौमिक एकता से सम्बन्धित है, जिसकी रचना स्वयं पृथ्वी के प्रत्येक भाग में भौतिक दशाओं के योग से हुई है। ब्लाश ने रेटजेल की भांति प्रकृति के आधिपत्य या नियंत्रणकारी प्रभाव को कहीं भी स्वीकार नहीं किया।

प्रदेशों की संकल्पना:-

         ब्लाश ने कभी भी प्रदेश का चहारदीवारी की भाँति सीमांकित नहीं माना। उसने उन विद्वानों की आलोचना की जो कि प्रदेश को Water tight compartment मानते हैं। उसने अन्ततः प्रदशों के सीमावर्ती क्षेत्रों में संक्रमण अथवा परस्परव्यापी क्षेत्र से भी इन्कार नहीं किया। ऐसे प्रदेशों का अध्ययन ही उसने व्यावहारिक माना। एक प्रदेश में पार्थिव घटनाओं एवं कारकों की अन्त: निर्भरता की खोज करके उनकी अन्य प्रदेशों की ऐसी घटनाओं एवं कारकों से समता एवं विषमता के आधार पर अन्यों से तुलना की जानी चाहिए। एक प्रदेश के कारकों के प्राकृतिक परिवेश के साथ-साथ वहाँ के निवासियों की परम्पराएँ, तकनीकी कुशलता, अन्य आर्थिक और सामाजिक एवं सांस्कृतिक मूल्यों के प्रभाव को भी सम्मिलित किया जाना चाहिए। ऐसे सहयोग से ही प्रदेश में स्वरूपित लक्षणों को उत्कृष्ट विधि से समझा जा सकता है। हम्बोल्ट ने भी इसे प्रकृति एवं मानव के अन्तः सम्बन्धों के रूप में स्वीकार किया।

प्रादेशिक अध्ययन:-

       ब्लाश ने किसी भी राजनैतिक इकाई में प्राकृतिक परिवेश की अनुकूलता एवं प्रतिकूलता के अनुसार विकसित लघु इकाइयों या प्रदेशों का बहुत ही सुन्दर ढंग से या सजीव वर्णन प्रस्तुत कया है। उसने सर्वप्रथम 1889 में अपनी रचना में भूतल पर निर्मित एवं लघु स्वरूपीय क्षेत्रों में मानव एवं प्राकृतिक परिवेश की क्रियाओं के घनिष्ठ सम्बन्धों के अध्ययन एवं उनके विश्लेषण पर विशेष बल दिया। उसने ऐसे अध्ययन की आवश्यकता क्षेत्र के भौतिक, ऐतिहासिक एवं आर्थिक तथ्यों के विकास, उनके सम्बन्ध और अन्तः निर्भरता का स्वरूप एवं उसमें आने वाले परिवर्तन (गतिशीलता) को समझने के लिए आवश्यक माना। उसने स्वीकार किया कि प्रकृति एवं मानव निर्मित तथ्य एक-दूसरे से अविभाज्य हैं। भूतल पर इन दोनों का सम्बन्ध इतना गहरा है कि उन्हें अलग नहीं किया जा सकता। यूरोप के राज्य एवं राष्ट्र ग्रन्थ में उसने बताया कि एक प्रदेश में रहने वाला समाज स्थानीय होता है। वह ग्रामीण होता है।

             ब्लाश के समय फ्रांस एवं अधिकांश यूरोप की व्यवस्था भिन्न थी। तब विशिष्ट नगर, औद्योगिक इकाइयाँ एवं गगनचुम्बी अट्टालिकाओं का अभाव था। अधिकांश प्रदेशों की आबादी ग्रामीण थी। उसने समझाया कि यहाँ के निवासियों का भूमि से गहरा संबंध होता है। युद्ध, महामारी, अकाल, बाढ़, विद्रोह आदि के समय ही ऐसे प्रदेश में व्याप्त सामान्य लक्षण कुछ समय के लिए अदृश्य होते हैं जैसे कि स्वच्छ जल के तालाब में एकाएक तेज हिलोरों से थोड़े समय के लिए तली के लक्षण दीखने बन्द हो जाते हैं परन्तु प्रतिकूलता समाप्त होते ही पूर्व की सामाजिक व्यवस्था पुनः स्थापित होने लगती है। आगे चलकर उसने औद्योगिकरण के कारण सामाजिक व्यवस्था एवं ग्रामीण आत्मनिर्भरता व्यवस्था में आने वाले स्थाई परिवर्तनों का भी पूर्वानुमान लगाया। उसके अनुसार 1896 के बाद से ही फ्रांस की सामाजिक व्यवस्था तेजी से शहरी बनने लगी है, इसके लिए सहायक तत्व मशीनें विकसित यातायात, कोयला एवं नवीन उद्योग रहे नवीन समाज में आत्मनिर्भरता, अन्तः निर्भरता में बदल गयी। ब्लाश के ऐसे सुन्दर निष्कर्ष तथ्यात्मक एवं सही-सही विश्लेषण एवं उसकी विलक्षण क्षमता के कारण ही सम्भव हो सके। क्षेत्रीय अध्ययन को ब्लाश ने ‘Annals ‘ के माध्यम से विशेष लेखों द्वारा उद्देश्यपूर्ण बनाने का प्रयास किया।

भौतिक वातावरण:-

          यद्यपि ब्लाश ने हम्बोल्ट, रिचथोफन एवं पेश्चल की भाँति भूतल के प्राकृतिक तत्वों का अलग से व्यवस्थित अध्ययन नहीं किया फिर भी उसने इनके अध्ययन को भूगोल के विकास के हित में महत्वपूर्ण माना। अतः जब भी भौतिक भूगोल सम्बन्धी कोई मुख्य अथवा रचना उपलब्ध हुई उसने ‘Annals’ में विशेष स्थान दिया। इस प्रकार उसका दर्शन बहुमुखी एवं विस्तृत आधार वाला रहा। उसने कभी भी भूगोल को संकुचित क्षेत्र या उद्देश्य हेतु निर्धारित अथवा व्यवस्थित विज्ञान या सामाजिक विज्ञान का ही अंग वाला विज्ञान नहीं माना।

        उसने स्पष्टतः समझाया कि भौतिक वातावरण जिसका कि निर्माण भूतल के भौतिक तत्वों से होता है, के लक्षणों को समझे बिना उनके प्रभाव के स्त को स्पष्ट नहीं किया जा सकता। किसी भी प्रदेश के अध्ययन में ऐसे भौतिक तत्वों के सम्मिलित प्रभाव को मानवीय तत्वों के साथ स्थान मिलना आवश्यक है। ऐसे सम्बन्धों के योग से एक मानव संस्कृति एवं सभ्यता के विकास के साथ-साथ उनकी गतिशीलता से अन्तःसम्बन्ध भी समझा जाना चाहिए।

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I ‘Dr. Amar Kumar’ am working as an Assistant Professor in The Department Of Geography in PPU, Patna (Bihar) India. I want to help the students and study lovers across the world who face difficulties to gather the information and knowledge about Geography. I think my latest UNIQUE GEOGRAPHY NOTES are more useful for them and I publish all types of notes regularly.

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