9. हिमालय के स्थलाकृतिक प्रदेश
9. हिमालय के स्थलाकृतिक प्रदेश
हिमालय के स्थलाकृतिक प्रदेश
हिमालय एक नवीन मोड़दार पर्वत है जो भारत के उत्तर में एक चाप के रूप में अवस्थित है। इसका विस्तार सिन्धु गॉर्ज/दर्रा से लेकर ब्रह्मपुत्र गॉर्ज(नामचा बरबा) के मध्य हुआ है। इसकी लम्बाई लगभग 2500Km है। कश्मीर में इसकी चौड़ाई सबसे अधिक (450Km) और अरुणाचल प्रदेश में इसकी चौड़ाई सबसे कम (150 Km ) है। इस पर्वत में विश्व की कई ऊँची-2 चोटियाँ पायी जाती हैं। ये चोटियाँ सालोंभर हिम से आच्छादित रहती है। इसलिए इसे हिमालय कहते हैं।
हिमालय का निर्माण अल्पाइन भूसंचलन से तृतीयक काल में हुआ है। उत्तर से दक्षिण की ओर जाने पर इसमें तीन प्रमुख श्रृंखलाएँ मिलती हैं। लेकिन पश्चिम से पूर्व की ओर जाने पर स्थलाकृतिक विशेषता के आधार पर इसे चार भागों में वर्गीकृत करते हैं। जैसे-
(1) पंजाब हिमालय / कश्मीर हिमालय / हिमाचल हिमालय
(2) कुमायूँ हिमालय
(3) नेपाल हिमालय
(4) असम हिमालय
(1) पंजाब हिमालय:-
इसे “कश्मीर हिमालय” हिमालय भी कहते हैं। इसका विस्तार सिन्धु गॉर्ज से लेकर सतलज गॉर्ज (शिपकिला दर्रा) के मध्य हुआ है। इसकी कुल लम्बाई 560 Km है। यह हिमालय का सबसे चौ० भाग है। चौड़ा होने का प्रमुख कारण हिमालय के साथ-2 ट्रांस हिमालय का पाया जाना है। उत्तर से दक्षिण की ओर जाने पर क्रमश: काराकोरम, जास्कर श्रेणी, महान हिमालय, लघु हिमालय और शिवालिक हिमालय पायी जाती है।
लघु हिमालय को कश्मीर में पीरपंजाल के नाम से जानते हैं। कश्मीर हिमालय अपनी प्राकृतिक सुन्दरता के लिए विश्व प्रसिद्ध है। इस हिमालय में कई क्षेत्रीय विशेषताएं भी पायी जाती हैं। जैसे- ट्रांस हिमालय का निर्माण मुख्य हिमालय के निर्माण से पहले हुआ है। ट्राँस हिमालय पर सालोभर बर्फ, जमी रहती है। हिमानी के अपरदन से सीढ़ीनुमा स्थलाकृति का विकास हुआ है। यह पूर्णत शीतोष्ण अर्द्धमरुस्थल का भूदृश्य प्रस्तुत करता है।
कश्मीर हिमालय में अवस्थित सभी श्रृंखलाओं का उत्तरी ढाल मंद और दक्षिणी ढाल तीव्र है। महान हिमालय और लघु हिमालय के बीच में कश्मीर की घाटी अवस्थित है जिसमें डल वुलर झील से होकर झेलम नदी प्रवाहित होती है। महान हिमालय के दक्षिणी ढाल पर मुलायम घास के क्षेत्र मिलते हैं जिसे सोनमर्ग और गुलमर्ग कहते हैं। पीरपंजाल हिमालय पूर्णतिः वनस्पतियों, जंगलों से ढका हुआ है। इसी पर्वत में पीरपंजाल दर्रा पायी जाती है जिस दर्रे से होकर कुलगाँव से कोठी पहुंचा जाता है।
बनिहाल दर्रे जम्मू को श्री नगर से जोड़ता है। इसी दर्रा में जवाहर सुरंग का निर्माण किया गया है। महान हिमालय में बुर्जिला और जोजिला जैसे प्रमुख दर्रे मिलते हैं। ट्रांस हिमालय और महान हिमालय में कई हिमानी का प्रमाण मिलता है। जैसे- काराकोरम श्रेणी का सियाचीन हिमानी सबसे प्रमुख हैं।
(2) कुमायूँ हिमालय:-
इसका विस्तार सतलज गॉर्ज से लेकर काली नदी के बीच हुआ है। इसका विस्तार हिमाचल प्रदेश और उतराखण्ड में देखा जा सकता है। इसकी लम्बाई मात्र 320Km है। यह हिमालय का सबसे कम लम्बाई वाला हिस्सा है। यहाँ पर महान हिमालय, लघु हिमालय और शिवालिक हिमालय तीनों स्पष्ट रूप से पायी जाती है। महान हिमालय में माना और नीति दो प्रसिद्ध कॉल पाये जाते हैं। इसके अलावे नदियों के द्वारा निर्मित कई दर्रे पाये जाते हैं। जैसे थागला दर्रा, लिपुलेख, पिथौरागढ़ दर्रा सबसे प्रमुख है। महान हिमालय में यमुनोत्री, गंगोत्री, मिलाम, पिण्डारी जैसे प्रसिद्ध हिमानी पाले जाते हैं।
कुमायूँ हिमालय में नंदादेवी (7817m) और कामेट (7756m) जैसे ऊँची-2 चोटियाँ पायी जाती हैं। महान हिमालय के दक्षिणी ढाल पर मिलने वाले वनस्पति को बुग्याल और पैय्यार कहते हैं। लघु हिमालय को इस क्षेत्र में धौलाधर, मसूरी पहाड़ी और कुमायूँ पहाड़ी के नाम से भी जानते हैं। लघु हिमालय पर नैनीताल, मसूरी, अल्मोड़ा जैसे प्रसिद्ध पर्यटक स्थल पायी जाती है। लघु हिमालय के दक्षिण से शिवालिक हिमालय अवस्थित है जिसकी ऊँचाई बहुत कम है।
लघु हिमालय और शिवालिक हिमालय के बीच में मिलने वाले घाटी को दून के नाम से पुकारते हैं जिसमें ‘देहरादून की घाटी’ सबसे प्रसिद्ध है। यह अनुदैर्ध्य घाटी का अच्छा उदाहरण है। पीरपंजाल और धौलाधर पर्वत एक ही क्रम में स्थित है। इन दोनों के बीच में कुल्लू और मनाली की घाटी अवस्थित है जो अनुप्रस्थ घाटी का उदहारण है।
नोट: नन्दादेवी (7817m) कुमायूँ हिमालय की सर्वोच्च चोटी है। गंगा और यमुना नदी कुमायूँ हिमालय से ही निकलती है।
(3) नेपाल हिमालय:-
इसका विस्तार नेपाल और सिक्कीम में काली नदी से तिस्ता नदी के बीच में हुआ है। यह हिमालय का सबसे लम्बा भाग है जिसकी लम्बाई 800km है। इसमें भी हिमालय की तीनों श्रृंखलाएँ स्पष्ट रूप से पायी जाती हैं। महान हिमालय के दक्षिण में तिब्बत का पठार स्थित है। महान हिमालय के दक्षिण में लघु हिमालय स्थित है। जिसे महाभारत श्रेणी के नाम से जानते हैं।
महान हिमालय और महाभारत श्रेणी के बीच में काठमाण्डु की घाटी अवस्थित है। जो अनुद्धैर्य घाटी का एक उदा० प्रस्तुत करता है। इन क्षेत्र में महान हिमालय पर कई ऊँची-2 चोटियाँ पायी जाती हैं। जैसे- माउण्ट एवरेस्ट (8850m), कंचनजंघा (8598m) इत्यादि। ये क्रमश: हिमालय के प्रथम एवं द्वितीय सबसे ऊँची चोटियाँ हैं। इसके अलावे धौलागिरी, अन्नापूर्णा, मनसालू, गौरीशंकर और मकालू जैसे भी ऊँची-2 चोटियाँ पायी जाती है।
मध्य हिमालय के दक्षिण में शिवालिक हिमालय स्थित है। अपरदन क्रिया के कारण इसकी ऊँचाई बहुत कम हो चुकी है। यह एक विखण्डित श्रृंखला है। नेपाल और बिहार के सीमा पर शिवालिक पर्वत को ही ‘सोमेश्वर की पहाड़ी’ (874- मी0) कहते हैं।
(4) असम हिमालय:-
इसका विस्तार असम, अरुणाचल प्रदेश और भूटान में हुआ है। इसका सीमांकन तिस्ता नदी से नामचा बरबा गॉर्ज के बीच किया जाता है। इसकी इसकी लम्बाई 750 km है। यहाँ महान हिमालय लगभग 9 महीने तक बर्फ से शिवालिक ढका रहता है और मध्य हिमालय ही पायी जाती है। यहाँ शिवालिक हिमालय की श्रृंखला विलुप्त हो चुकी है। लघु हिमालय को मिश्मी और डाफला नाम से जानते हैं। लघु हिमालय यहाँ पर कई भागों में विभक्त हो चुकी है। लघु हिमालय के दक्षिण में धँसान क्रिया के फलस्वरूप ब्रह्मपुत्र रेम्प घाटी का विकास हुआ है।
निष्कर्ष
इस तरह ऊपर के तथ्यों से स्पष्ट है कि हिमालय की प्रत्येक स्थलाकृतिक प्रदेश अपने-2 विशिष्ट लक्षणों के लिए विश्व प्रसिद्ध है। इस प्रदेश में मानवीय हस्तक्षेप के कारण भू-दृश्य में तेजी से परिवर्तन हो रहा है। अतः आवश्यकता है कि इस प्रदेश के भूदृश्य को विश्व धरोहर में शामिल कर इसे अक्षुण्ण बनाये रखा जाए।
प्रश्न प्रारूप
1. हिमालय को स्थलाकृतिक प्रदेशों में विभक्त कीजिए और प्रत्येक प्रदेश के विशिष्ट लक्षणों का वर्णन कीजिए।