25. हम्बोल्ट एवं रिटर के भौगोलिक विचारों का तुलनात्मक अध्ययन
25. हम्बोल्ट एवं रिटर के भौगोलिक विचारों का तुलनात्मक अध्ययन
हम्बोल्ट एवं रिटर के भौगोलिक विचारों का तुलनात्मक अध्ययन
यद्यपि हम्बोल्ट तथा रिटर के विचारों में आधारभूत समानता (Similarity) थी, फिर भी दोनों के प्राकृतिक दर्शन (Philosophy of nature) में भिन्नता थी।
(1) हम्बोल्ट प्रकृति की एकता (Unity) में विश्वास करता था तथा वह कार्य-कारण के सम्बन्ध (Inherent causality) में भी विश्वास करता था।
हम्बोल्ट ने स्वयं लिखा है कि मैंने पृथ्वी पर प्राकृतिक भू-दृश्यों को क्रमबद्ध करके प्रदेशों की सीमायें निर्धारित करने में ऐसा प्रयत्न किया है कि उन प्रदेशों के द्वारा कारण सम्बन्धों (Causal connecions) का स्पष्टीकरण हो जाता है। रिटर ने भी कारण-सम्बन्धों को तुलनात्मक विधि से निश्चित किया था। हम्बोल्ट के मतानुसार, प्रकृति के विभिन्न भू-दृश्यों के वर्गों (Groups of phenomena) में हमको आनुभविक नियमों (Empirical laws) को समझना चाहिये। परन्तु समस्त प्राकृतिक अध्ययन का सबसे ऊंचा लक्ष्य कारण-सम्बन्धों को खोजना होता है।
(2) परन्तु हम्बोल्ट के एकता तथ कारणत्व (causality) के विचार रिटर के विचारों से इस प्रकार भिन्न हैं कि रिटर के अध्ययन में मानव को केन्द्रीय स्थान (Anthropocentric attitude) देकर प्रकृति का अध्ययन किया जाता है। इसके अतिरिक्त रिटर में ईश्वरीय उद्देश्यवाद के विचारों (Teleological views) की प्रधानता थी। इस प्रकार हम्बोल्ट और रिटर में दार्शनिकता का भेद था। रिटर का दर्शन आदर्शवादी दार्शनिकों (Idealist philosophers) से मेल खाता था। परन्तु हम्बोल्ट की दार्शनिकता नितान्त आदर्शवादी नहीं थी।
(3) हम्बोल्ट तथा रिटर के कार्य-क्षेत्रों में भिन्नता थी। उनके अध्ययन के दृष्टिकोण अलग-अलग थे। हम्बोल्ट क्रमबद्ध अध्ययन को प्रधानता देता था, जबकि रिटर प्रादेशिक अध्ययन (Landerkunde) को प्रधानता देता था।
(4) समानता-
रिटर ने अपने भाषणों में बतलाया था, कि प्रादेशिक अध्ययन (Landerkunde) में क्रमबद्ध अध्ययन का महत्व था, और उसने भूगोल की जो ग्रन्थमाला अर्डकुण्डे के नाम से प्रकाशित की थी उसका अन्तिम ग्रन्थ क्रमबद्ध भूगोल (Systematic Geography) था।
हम्बोल्ट ने भी प्रादेशिक अध्ययन पर कुछ लेख प्रकाशित किये थे। परन्तु हम्बोल्ट ने प्रादेशिक भूगोल के विषय को अधिक विकसित नहीं किया, क्योंकि उसका लक्ष्य प्रादेशिक भूगोल नहीं था और उसने भौगोलिक ग्रन्थों में उसको कोई महत्वपूर्ण स्थान नहीं दिया था।
(5) पूरकता-
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि रिटर और हम्बोल्ट दोनों का कार्य एक-दूसरे का पूरक (Complementary) था। हम्बोल्ट ने क्रमबद्ध भूगोल के अध्ययन की विधि बतलाई और उसका स्वरूप भी निश्चित किया था। उदाहरण के लिए, उसने जलवायु विज्ञान (Climatology) तथा वनस्पति भूगोल (Plant geography) पर ग्रन्थ लिखे थे। रिटर ने प्रादेशिक व्यक्तित्व (Regional individuality) के अध्ययन को अपने ग्रन्थ अर्डकुण्डे का आधार बनाया हुआ था, जिसके द्वारा प्रत्येक क्षेत्र के समस्त भौगोलिक तत्वों के विवेचन से उस क्षेत्र की पूर्णता (Totality) का वर्णन किया जाता था, अर्थात् प्रत्येक क्षेत्र को एक सम्पूर्ण इकाई (Individual whole) के रूप में अध्ययन और वर्णित किया गया था। अतः उन दोनों ने मिलकर वर्तमान भूगोल (Modern geography) के कार्य को पूरा किया था।
रिटर ने यूनिवर्सिटी में अध्यापन का कार्य किया था और विधितन्त्र (Methodology) पर बहुत से पत्र प्रकाशित किये थे। इसलिए आगे आने वाली पीढ़ियों पर हम्बोल्ट की अपेक्षा रिटर का अधिक प्रभाव पड़ा, क्योंकि हम्बोल्ट के लेख बहुत सी पत्रिकाओं में इधर-उधर बिखरे हुए थे और भूगोलवेत्ताओं को उनकी जानकारी अपेक्षाकृत कम थी।
हम्बोल्ट और रिटर दोनों की मृत्यु 1859 में हुई थी। उसी वर्ष डार्विन (Darwin) का विकासवाद का सिद्धान्त, उसके द्वारा लिखी हुई पुस्तक ‘जीवधारियों के जातिवर्गों की उत्पत्ति’ (Origin of Species) में प्रकाशित हुआ था। इस प्रकार उनकी मृत्यु से भौगोलिक विकास के एक युग का अन्त हो गया था, और वैज्ञानिक तथा दार्शनिक विचारधारा में एक नये आन्दोलन का आरम्भ हो गया था।
19वीं शताब्दी के आरम्भ से लेकर मध्य तक की अर्द्धशताब्दी में आदर्शवाद ( Idealism) का बोलबाला रहा था। विज्ञान में ‘पदार्थवाद’ ने प्राकृतिक नियम (Natural law) और कारणत्व (Causality) पर विशेष बल दिया था। लगभग 10 वर्षों बाद पदार्थवाद का प्रभाव भौगोलिक विचारधारा पर भी होने लगा।
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