Unique Geography Notes हिंदी में

Unique Geography Notes in Hindi (भूगोल नोट्स) वेबसाइट के माध्यम से दुनिया भर के उन छात्रों और अध्ययन प्रेमियों को काफी मदद मिलेगी, जिन्हें भूगोल के बारे में जानकारी और ज्ञान इकट्ठा करने में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इस वेबसाइट पर नियमित रूप से सभी प्रकार के नोट्स लगातार विषय विशेषज्ञों द्वारा प्रकाशित करने का काम जारी है।

Remote Sensing and GIS

3. भूगोल में सुदूर संवेदन के महत्व एवं उपयोगिता / The Significance and Utility of Remote Sensing in Geography

3. भूगोल में सुदूर संवेदन के महत्व एवं उपयोगिता

(The Significance and Utility of Remote Sensing in Geography)


भूगोल में सुदूर संवेदन के महत्व एवं उपयोगिता⇒

                 भू-धरातलीय आंकड़ा अर्जित करना भू-अवलोकन का केन्द्रीय पहलू है। भू-अवलोकन का अभिप्राय है हमारे ग्रह (पृथ्वी) के भौतिक (Physical) रासायनिक (Chemical), जैविक (Biological) तथा ज्यामितिय (Geometrical) विशेषताओं के बारे में सूचनाओं को एकत्र करना। ये हमें प्राकृतिक (Natrual) तथा सांस्कृतिक पर्यावरण के परिवर्तनों के स्तर एवं प्रबोधन (Monitor) या रिकार्ड करने में सहायता प्रदान करता है। इस प्रकार पृथ्वी अवलोकन के निम्नलिखित तीन उपयोग प्रमुख है:-

(i) मानचित्रण ( Mapping),

(ii) प्रबोधन (Monitoring) तथा

(iii) भविष्यवाणी (Forecasting)

           भू-अवलोकन हमें भू-धरातलीय आंकड़े प्रदान करता है। भूधरातलीय आंकड़े अर्जित करने को विकास चक्र का प्रथम बिन्दु के रूप में माना जा सकता है, जिसके अंतर्गत अवलोकन (Observing), विश्लेषण (Analysis), रूपरेखा (Designing) या योजना निर्माण (Planning), निर्माण (Contruction), विकास (Developing) इत्यादि को प्रमुखता से लिया जाता है। भू-धरातलीय आँकड़े सबसे अधिक महत्वपूर्ण होते हैं। भूगोल में सुदूर संवेदन के महत्व को निम्न रूप में देख सकते हैं-

(1) भू-सम्पत्ति सीमांकन (Land Record Demarcation):-

            एक भूमि प्रशासक जैसे की पटवारी, तहसीलदार, अमीन इत्यादि को राजस्व भूमि के अभिलेखों का रख-रखाव, भूमि सीमांकन भू-सम्पत्ति का निर्धारण इत्यादि की समय-समय पर सर्वेक्षण एवं अवलोकन की आवश्यकता होती है। भू-सम्पत्ति की सीमायें धरातलीय आकृतियों पर निर्भर करती हैं जिनको सर्वेक्षण एवं अवलोकन करके शुद्ध व दुरुस्त किया जाता है।

(2) सिविल इंजीनियरिंग कार्य (Civil Engineering Works):-

              सिविल इन्जीनियरिंग के क्षेत्र में सड़क, नहर, रेल लाइन, टेलीग्राफ लाइन, पावर लाइन, पावर हाउस, भवन निर्माण इत्यादि कई सिविल कार्यों के डिजाइन, दिगविन्यास तथा निर्धारण व समतलीकरण के लिये धरातलीय आकृति से संबंधित आंकड़ों की आवश्यकता होती है। इसके लिये निर्माण व्यय, मार्ग व्यय, इत्यादि खर्चों का आकलन धरातलीय उच्चावचन सर्वेक्षण व पुनः सर्वेक्षण के आधार पर किया जाता है। ऐसी स्थिति में धरातलीय सूचनाओं की अति शीघ्र आवश्यकता होती है।

(3) नगरीयकरण कार्य (Urbanization Works):-

               वर्तमान समय में नगरीकरण की प्रवृत्ति हमारे देश में तेजी से बढ़ रही है। नगरीय क्षेत्रों का अनियंत्रित विकास हो रहा है। एक नगर योजनाकार को नगरीय योजना (Planning) में अधिवास प्रतिरूपों, कार्यों, प्रकारों इत्यादि की पहचान की अति आवश्यकता होती है। विभिन्न कार्यों का निर्धारण करके नगर पालिकाओं व नगर निगमों का निर्धारण किया जाता है। आधारभूत सुविधाओं को उपलब्ध कराने के लिए क्षेत्रों का चिन्हित कर योजनाओं की आवश्यकता होती है। इसी प्रकार नगर योजनाकार पूर्ण योजना तैयार करने से पूर्व अतीत में घटित प्रभावों का प्रबोधन (Monitoring) करके नई योजना को मूर्त रूप देता है। इन सभी कार्यों में धरातलीय आंकड़ों की नितान्त आवश्यकता होती है।

(4) कृषि उत्पादन कार्य (Agricultural Production Works):-

            एक कृषि विज्ञानी (Agronomist) की कृषि फसलों के वितरण, क्षेत्र एवं उत्पादन में रुचि होती है जिससे वह भविष्यवाणी करता है। इसके लिये भूमि उपयोग के विभिन्न स्वरूपों का सर्वेक्षण एवं अवलोकन हेतु धरातलीय सूचनाओं की आवश्यकता है। इसी प्रकार मिट्टी के प्रकारों एवं वितरण को दर्शाने के लिये भी धरातलीय सर्वेक्षण की आवश्यकता होती है। मिट्टी के प्रकारों के अनुरूप फसलों के उत्पादन एवं वितरण के लिये कृषि वैज्ञानिकों को भू-आधारित अंकड़ों का प्रबोधन करना पड़ता है।

(5) वन संसाधनों का वितरण (Distribution of Forest Resourse):-

             किसी भी वनाधिकारी (Forester) को प्राकृतिक वनस्पति के वितरण एवं प्रकारों के उचित आकलन के लिये भू-धरातलीय आंकड़ों की नितान्त आवश्यकता महसूस की जाती है, जिससे वह प्रजाति क्रम से वन संसाधनों के आंकड़ों को प्रस्तुत कर वनीकरण एवं वन कटान की योजना तैयार करता है। इसी प्रकार वन विनाश, वनों में अग्नि, भूमि कटाव इत्यादि समस्याओं का भी आंकलन करने में भू-धरातल की सूचनाओं का उपयोग किया जाता है। भू आधारित सूचनाओं से सम्पूर्ण बायोमास का भी आकलन वन वैज्ञानिकों के द्वारा सरलता पूर्वक किया जाता है।

सुदूर संवेदन के महत्व

(6) पर्यावरणीय विश्लेषण (Enviromnental Analysis):-

             वर्तमान समय में कहीं भी पर्यावरण के नाम पर शोर मचाया जाता है। पर्यावरण विकास, संरक्षण एवं विनाश में  भू-धरातलीय सूचनायें अपना विशेष स्थान रखती हैं। इनका तीव्रगति से प्रबोधन की आवश्यकता महसूस की जाती है। ये आंकड़े हमें कहां से सरलता पूर्वक प्राप्त किये जा सकते हैं। यह हमारी आवश्यकता है। इन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मनुष्य नये-नये आविष्कार कर विभिन्न माध्यमों से इनकी पूर्ति करता है।

        पर्यावरणविद हमेशा पर्यावरण प्रदूषण के प्रति चिन्तित रहते हैं। नगरों में नगरों के कूड़े डम्प करने के उपयुक्त स्थान का चयन, डम्प पदार्थों का आकार व प्रकारों के निर्धारण के लिए वायु, धूल, एवं अन्य प्रदूषणों का विचार करने के पश्चात् ही निर्धारण किया जाता है।

सुदूर संवेदन के महत्व

(7) जलवायु एवं मौसम की पूर्वानुमान (Climate and Weather Forecast):-

               जलवायु वैज्ञानिकों को जलवायु एवं मौसम संबंधी जानकारियों के लिये धरातलीय एवं वायुमण्डलीय सूचनाओं की अति आवश्यकता होती है। इसके लिए समुद्री तल के तापमान प्रतिरूप, समुद्रीय धाराओं का प्रतिरूप, हवा की दशा व गति तथा स्थलमण्डल एवं जलमण्डल के अंतर्क्रिया के प्रक्रियाओं के बारे में सूचनायें इत्यादि की आवश्यकता होती है। इसी प्रकार बादलों की स्थिति, वर्षा, चक्रवात, तूफान, बादल फटना, बाढ़ इत्यादि की जानकार के लिए तथा मौसम संबंधी घटनाओं पर तुरन्त कार्यवाही करने के लिए आंकड़ों के प्रबोधन की आवश्यकता होती है, जिससे समस्याओं का अति शीघ्र निवारण किया जा सके। भू-धरातलीय आंकड़ों की उपलब्धता से उपरोक्त अध्ययनों का व्यावहारिक भी बनाया जाता है।

             उपरोक्त कुछ उदाहरण यह दर्शाते हैं कि हमारा भू-अवलोकन किसी लक्ष्य (Object), दृश्य (Scene) तथा घटना (Phenomena) में रुचि रखता है जो अलग-अलग घरातलीय विस्तार लिये होते हैं। इतना ही नहीं हम किसी लक्ष्य के अलग-अलग पहलुओं, विभिन्न स्तरों के विवरणों, विभिन्न अन्तरालों तथा विभिन्न पुनर्रावृतिक दरों में भी अपनी रुचि रखता हैं। इन्हीं आवश्यकताओं के अनुरूप हम भू-अवलोकन की विभिन्न विधियों एवं तकनीकियों का विस्तृत रूप से उपयोग करते हैं। उच्च-स्तरीय समस्याओं का समाधान भू-अवलोकन से प्राप्त आंकड़ों के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। किसी क्षेत्र के सतत आर्थिक विकास में भू-आधारित आंकड़े अपना विशेष स्थान रखते हैं।

         भू-अवलोकन में सुदूर संवेदन तकनीकि का विशेष महत्व है। जैसे कोई भूमि एवं जल प्रबन्धक अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए साक्षात्कार द्वारा या प्रतिचयन प्रयोगशाला में विश्लेषण द्वारा सूचनाओं को एकत्र करते हैं, उसी प्रकार भू-अवलोकन के अन्तर्गत किसी भू-सर्वेक्षण के लिये कैमरा एवं स्कैनर की सहायता से वायु सर्वेक्षण किया जाता है। इसी प्रकार विस्तृत दृश्य अवलोकन के लिये भू-संसाधन उपग्रह या किसी अन्य उपग्रह पथ आधारित अन्तरिक्ष प्लेटफार्म का उपयोग किया जाता है। मौसम पूर्वानुमान के लिये मिटियोरालाजिक उपग्रह का उपयोग किया जाता है क्योंकि उपग्रह अन्तरिक्ष में लगभग 36000 किमी० की दूरी से धरातलीय सूचनाओं को प्रदान करते हैं।

जी. आई. एस. के उपयोग (Application of GIS)

              भौगोलिक सूचना प्रणाली को कई क्षेत्रों में उपयोग किया जाता है जिसमें निम्नलिखित प्रमुख है:-

(i) कृषि विकास के क्षेत्र में (In the field of Agricultural Development)

(ii) धरातलीय मूल्यांकन के विश्लेषण के लिये (Land Evaluation Analysis)

(iii) वनस्पति क्षेत्रों के परिवर्तन पहचान के लिये (Change Detection of Vegetation Areas)

(iv) वन कटाव का विश्लेषण तथा उससे संबंधित पर्यावरणीय आपदा विश्लेषण (Analysis of Deforstation and Associated Environmental Hazards)

(v) प्राकृतिक वनस्पति के प्रबोधन के लिये (Monitoring Vegetation Health)

(vi) भूमि ह्रास के प्रबन्धन के लिये वनस्पति आवरण का मानचित्रण करना (Mapping Percentage Vegetation Cover for the Management of Land Degradation)

(vii) बेकार मृदा का मानचित्रण करना (Waste Land Mapping)

(viii) मृदा संसाधन का मानचित्रण कना (Soil Resource Mapping)

(ix) भूमिगत जल के संभावित मानचित्रण के लिये (Ground Water Potential Mapping)

(x) भूगर्भिक एवं खनिज विदोहन के लिए (Geological and Mineral Exploration)

(xi) पिघलते बर्फ के निस्तारण की भविष्यवाणी (Snow-melt runoff forecasting)

(xii) वनों की आग प्रबोधन (Forest fire Minitoring)

(xiii) समुद्रीय उत्पादकता इत्यादि का प्रबोधन (Monitoring of Ocean Productivity)

प्रश्न प्रारूप

प्रश्न  भूगोल में सुदूर संवेदन के महत्व एवं उपयोगिता का वर्णन करें।

(Describe the significance and utility of remote sensing in Geography.)



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I ‘Dr. Amar Kumar’ am working as an Assistant Professor in The Department Of Geography in PPU, Patna (Bihar) India. I want to help the students and study lovers across the world who face difficulties to gather the information and knowledge about Geography. I think my latest UNIQUE GEOGRAPHY NOTES are more useful for them and I publish all types of notes regularly.

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