6. समशीतोष्ण घास के मैदानों में मानवीय क्रिया-कलाप
6. समशीतोष्ण घास के मैदानों में मानवीय क्रिया-कलाप
समशीतोष्ण घास के मैदानों में मानवीय क्रिया-कलाप
प्रकृति के विस्तृत आँगन पर अनेकों प्रकार की वनस्पतियाँ सृष्टि के आरम्भ से ही उगती बढ़ती आई हैं। इन वनस्पतियों का समय विशेष पर विनाश हो जाता है और उसके स्थान पर पुनः उसी तरह की वनस्पति उग आती है। संसार के ग्लोव पर नजर डालने पर हमें ज्ञात होता है कि वनस्पति चारों ओर एक सी नहीं है। कहीं पर विस्तृत सघन वन है तो कहीं पर घास के मैदान, कहीं कांटेदार झाड़ियाँ हैं, तो कहीं फूलदार वनें।
अतः स्थान-स्थान पर तरह-तरह की वनस्पतियाँ दिखाई देती हैं। इन विभिन्नता के कारण तापमान की दशा, वर्षा की मात्रा, मिट्टी की प्रकृति, प्रकाश प्राप्ति, पवन आदि की प्राप्ति की विभिन्नता है। संसार में घास के मैदानों को प्राकृतिक दशाओं के अनुसार दो भागों में विभक्त कर सकते हैं।:-
1. उष्ण घास के मैदान तथा
2. समशीतोष्ण/शीतोष्ण घास के मैदान।
1. ऊष्ण घास के मैदान:-
भूमध्य रेखा के उत्तर व दक्षिण में 10° से 20° अक्षांशों के बीच भूमध्य रेखीय वनों को घेरे हुए विस्तृत घास के मैदान फैले हुए हैं। ये घास के मैदान उष्ण मरुस्थलों और मानसूनी प्रदेशों के बीच फैले हैं। इस प्रकार की जलवायु अफ्रीका के सूडान राज्य में अधिक होने से इन प्रदेशों को सूडान तुल्य जलवायु वाले प्रदेश कहते हैं। वेनेजुएला में इन घास के मैदानों में ‘लानोज’, ब्राजील में कम्पास तथा इन्हीं अक्षांशों के बीच मध्य आस्ट्रेलिया के भाग शामिल हैं।
अफ्रीका के सवाना प्रदेश:
अफ्रीका में भूमध्य रेखा के उत्तर और दक्षिण में ये घास के मैदान फैले हैं। इन घास के मैदानों की घास 3 मीटर तक लम्बी है। यहाँ प्रमुख धंधा पशुपालन है। सूडान का सबसे प्रसिद्ध नगर तुम है। अधिक वर्षा वाले भागों में गाय, बैल और शुष्क भागों में भेड़, बकरियां और ऊँट पाले जाते हैं।
नील और श्वेत नील के दोआब कपास के लिये प्रसिद्ध है। खजूर, मूंगफली और बाजरा तथा बबूल के पेड़ों से अरबी गोंद प्राप्त होता है। पश्चिमी सूडान का प्रसिद्ध नगर टिम्बकटू है।
दक्षिणी अफ्रीका के सवाना प्रदेश में न्यासालैंड, उत्तर रोडेशिया और अंगोला सम्मिलित हैं। इन घास के मैदानों में अन्य जानवर बहुत रहते हैं। अतः यहाँ के लोग अपने निवास के चारों ओर ऊँचे-ऊँचे बाड़े बनाकर उनके बीच में अपनी भेड़, बकरियाँ और अन्य पशुओं को रात के समय रखते हैं।
यहाँ टिसीटिसी मक्खी, जो जहरीली होती है पाई जाती है, जो घोड़ों और पशुओं को हानि पहुँचाती है। यहाँ की घास लम्बी और सघन होने के कारण यहाँ तापमान और वर्षा की अधिकता है। यहाँ घास नदियों के पास तो बहुत ही सघन और लम्बी-लम्बी होती है।
दक्षिणी अमरीका के सवाना प्रदेश
ओरिनिको बेसिन के लानोज:
ओरिनिको के बेसिन में विस्तृत घास के मैदान मिलते हैं। इन्हें बेनेजुएला के ‘लानोज’ कहा जाता है। पशुपालन भी यहाँ अधिक होता है। गायें यहाँ खूब पाली जाती हैं। यहाँ मच्छरों की भरमार है और जलवायु गर्म है अतः यहाँ पशुओं की दशा अच्छी नहीं हैं। यहाँ मांस का व्यापार घरेलू खपत के लिये हैं।
ब्राजील के कैम्पास:
इस क्षेत्र में भी पशु पाले जाते हैं, परन्तु गर्म जलवायु परिवहन की कठिनाई और मांस के जल्दी खराब होने के कारण यहाँ पशुपालन महत्वपूर्ण नहीं हैं। कहबे की कृषि के कारण इस भाग की बहुत उन्नति हुई है। साओपाली और रियोडिजेनेरी कहवा की उपज के मुख्य क्षेत्र हैं। इस प्रदेश का पूर्वी भाग लोहा, ताँबा, हीरे, सोना, मैगनीज आदि खनिज पदार्थों से सम्पन्न है।
आस्ट्रेलिया का सवाना प्रदेश:
आस्ट्रेलिया का सवाना प्रदेश उत्तरी प्रान्त और क्वीसलैंड के मध्य में फैला हुआ है। इस प्रदेश के उत्तर में मानसूनी खण्ड, दक्षिण में शुष्क मरुस्थल और पूर्व में ग्रेट डिवाइडिंग रेंज पर्वत है। इस प्रदेश का प्रमुख धन्धा पशुपालन है। पानी की कमी के कारण यहाँ भेड़ें अधिक पाली जाती है।
जहाँ कहीं पानी की सुविधा है, वहीं गेहूँ की कृषि की जाती है। सवाना घास के मैदानों में वार्षिक मध्यमान 30° सेन्टीग्रेड और वार्षिक ताप परिसर 120° सेन्टीग्रेड है। ये घास के मैदान ध्रुवों की ओर तो मरुस्थलों में बदलकर झाड़ियाँ मात्र रह जाते हैं और भूमध्य रेखा की ओर वनों में परिणत हो जाते हैं। इन प्रदेशों में ग्रीष्म ऋतु में वर्षा होती है।
2. समशीतोष्ण/शीतोष्ण घास के मैदान:-
ये घास के मैदान 30° से 45° अक्षांशों के बीच महाद्वीपों के मध्य भागों में पाये जाते हैं। इस प्रदेश के भाग विभिन्न देशों में अलग-अलग नामों से पुकारे जाते हैं। ये भाग पूर्णतया घास के मैदान हैं।
समशीतोष्ण घास के मैदान में छोटी-छोटी झकड़ेदार घासों की हरीतिमा सर्वव्याप्त होती है। कम तापमान और साधारण नमी से इस क्षेत्र में घास के विकास के लिए आदर्श परिस्थिति उपलब्ध होती है। यहाँ की अधिकांश वर्षा ग्रीष्म काल में होती है तथा शीतकाल ठण्डा और कम आर्द्र होता है। घासों के साथ झाड़ियाँ और बौने वृक्ष भी उगते हैं। ऐसे परिवेश में शाकाहारी और मांसाहारी जीव-जन्तुओं का साम्राज्य पाया जाता है। मानव के लिए ये आदर्श पशुपालन की स्थिति है। यही कारण है कि युगों से यहाँ पशुपालन मुख्य पेशा रहा है।
मध्य एशिया के किरगीज न जाने कब से इस पेशे से अपना जीवन-यापन करते चले आ रहे हैं। इनकी अधिकांश आवश्यकताएँ पशु उत्पादों से पूरी हो जाती हैं। पर्वतों के ऊँचे भागों पर भी इस प्रकार की घास पाई जाती है, जहाँ पशुपालन प्रचलित पेशा है।
जिन भागों में कृषि का विस्तार हुआ है, वहाँ समशीतोष्ण घास के मैदान लुप्त हो गये हैं, जैसे यूरोप और उत्तरी अमेरिका के पूर्वी और मध्यवर्ती भागों में ऐसे घास के मैदानों पर अब व्यापारिक पशुपालन का विकास भी किया गया है, जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका के पश्चिमी भाग, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैण्ड, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका और साइबेरिया में। यहाँ सिंचाई और उर्वरक का प्रयोग कर घास के मैदानों को अधिक उपजाऊ बनाया गया है।
ये क्षेत्र आज पशु उत्पादों के प्रधान क्षेत्र हैं। आल्पस और रॉकी क्षेत्रों में अल्पाइन घास के मैदान आदर्श पशुपालन के क्षेत्र हैं। हिमालय में कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखण्ड की पहाड़ियों में अल्पाइन घास के मैदान आदर्श पशुपालन के आधार हैं।
समशीतोष्ण घास के मैदानों में आदिवासी जातियों का अर्थतंत्र पशुपालन पर आधारित होता है। पशुओं से प्राप्त दूध, मांस उनका भोजन, ऊन, चमड़ा, हड्डी उनका वस्त्र, तम्बू और हथियार और कुछ पशु उत्पाद व्यापार के आधार होते हैं, जिन्हें बेचकर वे अपनी आवश्यकता की अन्य वस्तुएँ खरीदते हैं।
पशुओं के साथ घूमते रहने के कारण तम्बू इनके गृह का काम करता है। कभी-कभी ये अपनी बस्ती भी बनाते हैं, जहाँ बहुधा जाड़े के मौसम में निवास करते हैं। अब विकसित चारागाहों पर स्थायी निवास भी बनाये गये हैं और अतिरिक्त पेशा के रूप में कृषि करने का रिवाज भी बढ़ता जा रहा है। रूसी सरकार द्वारा किरगीज चरवाहों के लिए इस प्रकार की व्यवस्था की गई है।
व्यावसायिक पशुपालन वाले घास के मैदानों में विशेषकर आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड, संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, जर्मनी, फ्रांस, आस्ट्रिया, स्विट्जरलैण्ड, अर्जेण्टाइना आदि में विकसित नस्ल के पशु और रोपित घास का प्राधानता पाया जाता है। रूस के साइबेरिया क्षेत्र में भी ऐसे घास फार्मों का विकास किया गया है। स्पष्ट है कि जीवन-पद्धति के निर्धारण में घास की भूमिका प्रधान है। ऐसे क्षेत्रों में आदिवासी, जीवन-पद्धति का आदर्श रूप साइबेरिया के किरगीज में पाया जाता है।
जनवरी का मध्यमान 10° सेन्टीग्रेट और जुलाई का 20° सेन्टीग्रेड है। उन भागों में बर्फ पिघलने से घास और फूलों के उगने के लिए पर्याप्त आर्द्रता मिल जाती है। यहाँ बौछार के रूप में थोड़ी वर्षा भी हो जाती है जो घास के लिये पर्याप्त है। संसार में इन घास के मैदानों का वितरण निम्नलिखित प्रकार है-
यूरेशिया के स्टेपीज:
अजरबेजान, जोर्जिया और जार्मिनिया तीन एशियायी राज्य जो कैस्पियन, अरब सागर तटीय भाग सम्मिलित है। यहाँ शीत ऋतु में तापमान गिर जाता है और वर्षा नहीं होती है। ग्रीष्म ऋतु में पठार के गर्म हो जाने पर दोनों सागरों पर अपेक्षाकृत अधिक दबाव होता है, जिससे वर्षा होती है। काकेशस पर्वत उत्तर की ओर से आने वाली बर्फीली पवनों को रोक लेते हैं। वर्षा पश्चिम से पूर्व की ओर घटती जाती है। यह भाग रूस के लिये बड़े महत्त्व का है।
क्यूबान के स्टैपी प्रदेश में मुख्यतः गेहूँ उगाया जाता है, जलवायु मृदु होने के कारण काले सागर के सामने वाली पर्वत श्रेणियों के निचले ढलानों पर अंगूरों और चाय के वृक्ष लगे हैं। ग्रीष्म ऋतु गर्म होती है। पूर्वी भाग में पशुचारण का काम होता है। सम्पूर्ण रूस का 90 प्रतिशत तेल यूरेशिया के इन्हीं भागों से प्राप्त होता है।
उत्तरी अमेरिका के प्रेरीज:
उत्तरी अमेरिका में प्रेरीज प्रदेश का विस्तार मिसीसिपी नदी और उसकी सहायक नदियों के बेसिन में फैला है। यदि ओहियो और मिसीसिपी नदियों के संगम स्थान को दक्षिण आकोटा राज्य की ब्लैक पर्वत श्रेणियाँ और मेक्सिको देश के सियरा मोद्र पर्वत के पूर्वी भाग की तली पर स्थित मोन्टेरे नगर से मिला दिया जाये तो इस प्रदेश की सीमा बन जायेगी।
यहां वर्षा थोड़ी बहुत वर्ष के हर माह में हो जाती है। अधिकतम वर्षा 70 सेन्टीमीटर और न्यूनतम 5 सेन्टीमीटर होती है। मुख्य उपज घास है, पश्चिम की ओर से ग्रेट प्लेन में घास भी कम पाई जाती है। आजकल इन प्रदेश का मुख्य धन्धा कृषि हो चला है। गेहूँ की प्रधानता है। यहाँ संसार का सबसे अधिक तेल निकाला जाता है।
दक्षिणी अमेरिका के पैम्पाज:
अर्जेन्टाइना में घास के समतल मैदानों को पैम्पाज कहते हैं। आरम्भ में चमड़ा और चर्बी बिक्रय धन्धा बहुत उन्नति कर गया था वहाँ से आज भी संसार का सबसे अधिक गोमांस निर्यात होता है। यहाँ गेहूँ की कृषि पर्याप्त होती है। पश्चिम के शुष्क भाग में भेड़ें पाली जाती हैं, जिनसे ऊन और चमड़ा प्राप्त हो जाता है।
आस्ट्रेलिया के डार्लिंग डाउन्स:
डार्लिंग नदी के पूर्वी पर्वतों तक के चरागाहों को आस्ट्रेलिया में डाउन्स कहते हैं। इस मैदान के पूर्वी भाग में वर्षा की मात्रा पर्याप्त होती है, जिससे गेहूँ की कृषि पर्याप्त होती है। पश्चिम की ओर का भाग शुष्क होने से भेड़ों के चराने योग्य है।
अफ्रीका के वेड:
अफ्रीका में इन घास के मैदानों को ‘बेल्ड’ कहा जाता है। यहाँ भी पशुचारण का महत्व अधिक है। अब कृषि का भी पर्याप्त विस्तार हो चला है। इन घास के मैदानों में घास की कम सघनता और कृषि के उपयुक्त जलवायु होने से घास के मैदानों को साफ करके कृषि की जाने लगी है।
प्रश्न प्रारूप
1. उष्ण घास एवं शीतोष्ण घास प्रदेश में आर्थिक विकास की सम्भावनाओं का परीक्षण कीजिए।
अथवा, समशीतोष्ण घास के मैदानों में मानवीय क्रिया-कलापों की विवेचना करें।
अथवा, शीतोष्ण घास के मैदान में मानवीय कार्यकलापों का परीक्षण कीजिए।