16. विश्व के सांस्कृतिक प्रदेश / परिमण्डल (World: Cultural Region/Realm)
16. विश्व के सांस्कृतिक प्रदेश / परिमण्डल
(World: Cultural Region/Realm)
विश्व के सांस्कृतिक प्रदेश / परिमण्डल⇒
प्रश्न प्रारूप
Q.1. विश्व के वृहत सांस्कृतिक परिमंडल
Q.2. संसार के सांस्कृतिक प्रदेश
Q.3. सांस्कृतिक प्रदेश से आप क्या समझतें है? विश्व को सांस्कृतिक प्रदेशों में वर्गीकृत करने वाले आधार को स्पष्ट करें तथा सर्वमान्य वर्गीकरण की योजना प्रस्तुत करते हुए प्रत्येक के विशेषता लिखें।
(नोट : संस्कृति– रीति-रीवाज, परम्परा, सभ्यता, धर्म, विश्वास, पोशाक, खान-पान, रहन-सहन, संगीत कला, वास्तुकला, चित्रकला, साहित्य, रंगमंच के समुच्च को संस्कृति कहते हैं।)
विश्व के सांस्कृतिक प्रदेश / परिमण्डल
मानव भूगोल में संस्कृति का अध्ययन एक अनिवार्य घटक है क्योंकि संस्कृति की उत्पत्ति, विकास और निर्धारण में पर्यावरण की भूमिका महत्वपूर्ण है। अलग-2 पर्यावरण में अलग-2 संस्कृतियों का विकास हुआ है। संस्कृति के आधार पर भौगोलिक प्रदेशों का निर्धारण करना सांस्कृतिक प्रदेश कहलाता है। ब्लाश महोदय ने कहा कि “सांस्कृतिक प्रदेश वह भौगोलिक क्षेत्र है जिसकी सांस्कृतिक दृश्यावली आस-पास के क्षेत्रों से भिन्न होती है।
संस्कृति मानव की जीवनशैली को कहते हैं। मानव के जीवनशैली में रीति-रिवाज, परम्परा, सभ्यता, धर्म, विश्वास, पोशाक, खान-पान, संगीतकला, वास्तुकला, चित्रकला, साहित्य, नृत्यकला, इत्यादि को शामिल करते हैं। मानव के जीवन शैली में शामिल उपरोक्त तत्वों के समुच्च को संस्कृति कहते हैं। अलग-2 भौतिक पर्यावरण में अलग-2 प्रकार के सांस्कृतिक प्रदेश का विकास हुआ है। इन्हीं विविधताओं को ध्यान में रखकर कई इतिहासकार, मानवशास्त्री एवं भूगोलवेता विश्व के सांस्कृतिक प्रदेश का निर्धारण करने का प्रयास किया है।
भूगोल में सर्वाधिक मान्यता प्राप्त सांस्कृतिक प्रदेश का वर्गीकरण ब्रोक एवं बेल महोदय के द्वारा प्रस्तुत किया गया है। इन दोनों की प्रसिद्ध पुस्तक का नाम “A Geography of Mankind” है। इस पुस्तक में ब्रोक ने 8 संस्कृति के तत्वों को आधार मानकर सांस्कृतिक प्रदेश का निर्धारण करने का प्रयास किया है। जैसे- (1) धर्म (2) भाषा (3) लोककार्य (4) प्रजातीय संरचना (5) आर्थिक क्रिया (6) खान-पान (7) लोक संगीत और (8) सामाजिक विश्वास एवं मान्यताएँ।
ब्रोक के अनुसार सभी चरों/घटकों के आधार पर स्वतंत्र रूप से अनेक सांस्कृतिक प्रदेश विकसित किये जा सकते हैं। लेकिन, सभी को मिलाकर के सांस्कृतिक प्रदेश का निर्धारण किया जा सकता है। ब्रोक महोदय ने संश्लिष्ट विधि (सभी को मिलाकर) का प्रयोग करते हुए विश्व को चार प्रमुख और दो लघु सांस्कृतिक प्रदेश में वर्गीकृत किया है:-
विश्व के वृहत / प्रमुख सांस्कृतिक प्रदेश
(1) ईसाई सांस्कृतिक प्रदेश
(2) इस्लामिक सांस्कृतिक प्रदेश
(3) इंडिक सांस्कृतिक प्रदेश
(4) पूर्वी एशियाई या बौद्ध सांस्कृतिक प्रदेश
विश्व के लघु सांस्कृतिक प्रदेश
(i) मिजो अफ्रिकन एवं जनजातीय सांस्कृतिक पदेश
(ii) दक्षिण-पूर्वी एशियाई संक्रमण सांस्कृतिक प्रदेश
इन सांस्कृतिक प्रदेश के नामाकरण से स्पष्ट होता है कि सांस्कृतिक प्रदेश के निर्धारण में धर्म की भूमिका सर्वाधिक है। धर्म के आधार पर ही ईसाई प्रधान और इस्लामिक प्रधान संस्कृति का नामाकरण किया गया है। जबकि अन्य सांस्कृतिक प्रदेश का नामकरण स्थानीय भौगोलिक परिस्थितियों को ध्यान में रखकर किया गया है।
विश्व के सांस्कृतिक प्रदेशों की विशेषता
(1) ईसाई सांस्कृतिक प्रदेश
ईसाई प्रधान संस्कृति का विकास विश्व के वृहत भौगोलिक क्षेत्रों में हुआ है। ईसाई सांस्कृतिक प्रदेश का विकास उत्तरी अमेरिका, दक्षिण अमेरिका, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया और साइबेरियाई क्षेत्रों में हुआ है। इन सभी क्षेत्रों में ईसाई धर्म का बोलवाला है। लेकिन इनमें भी कई आन्तरिक विविधताएँ पायी जाती हैं। इन विविधताओं को आधार मानते हुए पुन: इसे 7 उप सांस्कृतिक प्रदेश में बाँटते हैं।
जैसे:-
(i) पश्चिमी यूरोपीय सांस्कृतिक प्रदेश
(ii) पूर्वी यूरोपीय सांस्कृतिक प्रदेश
(iii) दक्षिणी यूरोपीय सांस्कृतिक प्रदेश
(iv) आंग्ल अमेरिकी सांस्कृतिक प्रदेश
(v) लैटिन अमेरिकी सांस्कृतिक प्रदेश
(vi) अस्ट्रेलिया-न्यूजीलैण्ड सांस्कृतिक प्रदेश
(vii) अफ्रीकन सांस्कृतिक प्रदेश
(i) पश्चिमी यूरोपीय सांस्कृतिक प्रदेश
पश्चिमी यूरोपीय सांस्कृतिक प्रदेश में प्रोटेस्टेंट समुदाय के लोग निवास करते हैं जो प्रत्येक धार्मिक मान्यता को वैज्ञानिक तर्क और महत्त्व के दृष्टिकोण से देखते हैं। ये लोग अंधविश्वासी नहीं होते हैं। यूरोप में पुनर्जागरण का श्रेय इन्हीं को जाता है। विश्व में पहली बार औद्योगिक क्रांति का जन्म इसी प्रदेश में हुआ। जीवन शैली पर नगरीकरण एवं वाणिज्यिककरण का व्यापक प्रभाव देखने को मिलता है। इनके प्रभाव के कारण ही सामाजिक एवं धार्मिक मूल्यों क पतन हुआ है। परिवार एवं विवाह जैसी संस्थाएँ कमजोड़ हुई है। व्यक्तिवाद का विकास अधिक हुआ है। मानव के जीवन पर धर्म का प्रभाव कम और आर्थिक कार्यों का प्रभाव अधिक दिखाई देता है। अपने साहस एवं तर्क के आधार पर विश्व के कई क्षेत्रों में स्थानान्तरित होकर बड़े-2 उपनिवेशों की स्थापना किया है।
(ii) पूर्वी यूरोपीय सांस्कृतिक प्रदेश
पूर्वी यूरोपीय सांस्कृतिक प्रदेश में वर्तमान CIS (Common-wealth of Indipendent state) में शामिल प्रदेशों को रखा जाता है। इस सांस्कृतिक प्रदेश को समय के आधार पर तीन भागों में बाँटते हैं-
(a) अक्टूबर क्रांति के पूर्व का सांस्कृतिक भूदृश्य- उस वक्त यहाँ कैथोलिक धार्मिक मान्यताओं का प्रभाव था। अधिकतर बस्तियाँ चर्च के इर्द-गिर्द बसी थी। कृषि आधारित अर्थव्यवस्था था। भूमिपतियों के द्वारा कृषकों का शोषण किया जाता था।
(b) अक्टूबर क्रांति के बाद पूर्वी यूरोप की सांस्कृतिक भूदृश्य- अक्टूबर क्रांति के बाद इस क्षेत्र में गत्यात्मक परिवर्तन देखा गया। अक्टूबर क्रांति के पूर्व सोवियत संघ का उदय हुआ जिसके कारण इन क्षेत्र में साम्यवादी दर्शन का विकास हुआ जिसमें धर्म को ‘विष’ से तुलना किया गया। आर्थिक एकीकरण को बढ़ाना दिया गया। 65 वर्षों तक साम्यवाद का दर्शन यहाँ कायम रहा।
(c) ग्लास्नोस्ट पेरिस्तोत्रिक के बाद का पूर्वी यूरोप- इन दोनों संकल्पना के जन्मदाता गोर्बाचेव है जिसका तात्पर्य खुलापन एवं उदारीकरण है। इसके कारण वहाँ से साम्यवादी दर्शन का प्रभाव समाप्त हो गया। चुले एवं उदार अर्थव्यवस्था के आगमन से नवीन सांस्कृतिक भूदृश्य का विकास हो रहा है। यह अनुमान लगाया जा रहा है कि आने वाले समय में यह सांस्कृतिक प्रदेश पश्चमी यूरोपीय सांस्कृतिक प्रदेश का हिस्सा बन जायेगा ।
(iii) दक्षिण यूरोपीय सांस्कृतिक प्रदेश
यहाँ के जीवन शैली पर कैथोलिक धर्म और बेटिकन सिटी का प्रभाव अधिक रहा है। इटली, स्पेन, पुर्तगाल, यूनान इसके प्रतिनिधि राष्ट्र है। यहाँ लैटिन भाषा बोली जाती है। अर्थव्यवस्था में कृषि एवं पशुपालन का योगदान अधिक है। यहाँ कभी अंधविश्वास का इतना अधिक बोलवाला था कि चर्चों से स्वर्ग के टिकट दिये जाते थे। इस प्रदेश के लोगों ने दक्षिण अमेरिका में जाकर अपने उपनिवेश का स्थापना किया।
(iv) आंग्ल अमेरिकी सांस्कृतिक प्रदेश
आंग्ल अमेरिकी सांस्कृतिक प्रदेश की तुलना पश्चिमी यूरोपीय सांस्कृतिक प्रदेश से की जा सकती है, क्योंकि यहाँ के लोग भी प्रोटेस्टेंट समुदाय के लोग है। यहाँ काकेसाइड प्रजाति के लोग बसे हैं। भाषा एवं संस्कृति के अन्य घटक पश्चिम यूरोप से आंग्ल अमेरिका में आयात किये गये हैं। लेकिन आंग्ल अमेरिकी सांस्कृतिक प्रदेश यूरोपीय सांस्कृतिक प्रदेश से इस माइने में भिन्न है कि पश्चिम यूरोप में उद्योग एवं खनन जैसे आर्थिक गतिविधियों का वर्चस्व है जबकि आंग्ल अमेरिका में उद्योग, खनन एवं कृषि कार्यों का महत्त्व अधिक है।
(v) लैटिन अमेरिकी सांस्कृतिक प्रदेश
ईसाई सांस्कृतिक प्रदेश में यह विकासशील सांस्कृतिक प्रदेश का उदाहरण है। यहाँ नीग्रोइड प्रजाति के लोग निवास करते हैं। गरीबी एवं पिछड़ेपन की समस्या अधिक है। यहाँ कैथोलिक धर्म और लैटिन का आयात दक्षिण यूरोप से किया गया है। पुर्तगाल, स्पेन के लोग सोना ही खोज में अपने क्रोस (#) लेकर पहुँच गये। समाज में आज भी जनाजातिय संस्कृति का बोलबाला है।
(vi) आस्ट्रेलियाई – न्यूजीलैण्ड सांस्कृतिक प्रदेश
इस सांस्कृतिक प्रदेश का विकास अब यूरोपीय लोगों के द्वारा किया गया है जो औपनिवेशिक देशों के आजाद होने के बाद बेघर हो गये थे। यहाँ प्रोटेस्टेंट समुदाय के लोग रहते हैं। यहाँ की भाषा अंग्रेजी और प्रजाति काकेसाइड है। आर्थिक दृष्टिकोण से पश्चिम यूरोप और आंग्ल अमेरिका के सदृश्य है। ऑस्ट्रेलिया की अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि एवं उद्योग पर आधारित है। जबकि न्यूजीलैण्ड की अर्थव्यवस्था वाणिज्यिक पशुपालन पर आधारित है।
(vii) अफ्रीकी सांस्कृतिक प्रदेश
अफ्रीका महाद्वीप में ईसाई संस्कृति यो क्षेत्रों में देखी जाती है- (a) दक्षिण अफ्रीका के केप प्रान्त और (b) पूर्वी अफ्रीका के उच्च भूमि पर। इन दोनों क्षेत्रों में पश्चिमी यूरोप के काकेसाइड प्रजाति के प्रोटेस्टेंट समुदाय के लोग आकर बसे हैं। केपप्रान्त के लोगों ने कृषि उद्योग और व्यापार का विकास किया है जबकि पूर्वी अफ्रीका में बगानी कृषि एवं खनन कार्यों के आधार पर निर्माण किया है सांस्कृतिक भूदृश्य का निर्माण किया है।
अतः उपर्युक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि ईसाई संस्कृति का व्यापक क्षेत्र में विकास हुआ है। कई लघु सांस्कृतिक प्रदेश मिलकर एक एकीकृत ईसाई सांस्कृतिक प्रदेश का निर्माण करते हैं।
(2) इस्लामिक सांस्कृतिक प्रदेश
इस्लामिक सांस्कृतिक प्रदेश का विकास मरुस्थलीय एवं अर्द्ध मरुस्थलीय क्षेत्रों में हुआ है। इसका विस्तार दक्षिण में सहारा मरुस्थल, उत्तर में मध्य एशिया, पूर्व में ब्लूचिस्तान से लेकर पश्चिम में तुर्की तक हुआ है। इसी प्रदेश में मक्का एवं मदीना अवस्थित है जहाँ इस्लाम धर्म का उदय हुआ। इस संस्कृति पर पर्यावरण का प्रभाव अध्याधिक पड़ा है। पर्यावरण के ही कारण यहाँ भूगोल, गणित, खगोल विज्ञान, मानचित्रकला इत्यादि का विकास हुआ है। जल की कमी के कारण जल का मितव्ययी उपयोग, खाद्य पदार्थो की कमी के कारण खान-पान में माँस का प्रयोग एवं लम्बे समय तक उपवास रखने की परंपरा प्रारंभ हुई है। मक्का की ओर मुँह करके नवाज पढ़ते हैं। धूल से बचने हेतु बुर्का और साफा का प्रयोग करते हैं। परम्परागत रूप से यह घुमक्कड़ जनजातियों का क्षेत्र है। वनस्पति का अभाव होता है। बाहर का जीवन अल्याधिक कठोर एवं प्रतिस्पर्द्धा से युक्त होते है। इसलिए महिलाओं को चार दीवारी में रखा जाता है। यह सांस्कृतिक प्रदेश के धर्म शिया और सुन्नी में विभक्त हैं। सुन्नी परम्परावादी होते हैं जबकि शिया आधुनिक एवं तर्क में विश्वास करते हैं। इनके जीवन शैली पर कुरान का प्रभाव अधिक देखा जाता है। हाल के वर्षो में इन क्षेत्रों में पेट्रोलियम खनिज मिलने के कारण श्रमिक, तकनीक, बहुराष्ट्रीय कंपनियों का आगमन हुआ है। पेट्रो-डॉलर जैजी संकल्पना का विकास हुआ है। OPEC जैसे संगठन तेल के मूल्यों पर नियंत्रण स्थापित कर विश्व के सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रहे हैं।
(3) इण्डिक सांस्कृतिक प्रदेश
इण्डिक सांस्कृतिक प्रदेश का विकास मुख्यत दक्षिण एशिया में हुआ है। यहाँ हिन्दू धर्मावलम्बी है के अलावे अनेक धर्म के लोग निवास करते हैं। विश्व में सर्वाधिकक हिन्दू, मुसलमान, सिख और जैन समुदाय के लोग यहाँ रहते हैं। यह अभूतपूर्व सहिष्णुता का प्रदेश है। यहाँ धान की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है, इसलिए इस प्रदेश को धान प्रधान संस्कृति (Paddy Cultures) कहते हैं। यहाँ की सम्पूर्ण जीवनशैली मानासून के इर्द-गिर्द घूमती है। इसलिए इसे मानसूनी सांस्कृतिक प्रदेश भी कहते हैं। यहाँ ग्रामीण जीवनशैली, बैलगाड़ी, परम्परागत हल, धान की कृषि, मानसूनी जलवायु इत्यादि मिलकर इंण्डिक संस्कृति को जन्म देते हैं। इस प्रदेश में कई क्षेत्रीय भाषाएँ जैसे, बंगाली, तमिल, तेलगू, कन्नड इत्यादि बोली जाती है। यहाँ कई प्रकार के लिखित प्रजातियों का विकास हुआ है। इसलिए इस प्रदेश को “मेल्टिंग पॉट ऑफ रेस” (Melting Pot of Race) का क्षेत्र भी कहते हैं। यहाँ के लोग धोती, कुर्ता, गमछा, साड़ी, लहंगा आदि जैसे वस्त्र धारण करते हैं। लोक संस्कृति में प्राकृतिक तत्व की प्रचुरता अधिक मिलती हैं।
इस तरह इण्डिक संस्कृति पूरे विश्व में अलग पहचान रखती है।
(4) बौद्ध या पूर्वी एशियाई सांस्कृतिक प्रदेश⇒
इस सांस्कृतिक प्रदेश का विकास जापान, चीन, ताइवान, मंगोलिया वियतनाम जैसे देशों में हुआ है। इस प्रदेश को पुनः दो भागों में बाँटते हैं:- (i) चीनी सांस्कृतिक प्रदेश (ii) जापानी सांस्कृतिक प्रदेश
चीनी सांस्कृतिक प्रदेश में साम्यवाद प्रभाव से धार्मिक प्रभाव कम हुआ है, लेकिन सर्वत्र सांस्कृतिक एकरूपता में वृद्धि हुई है। हाल के वर्षों में खुलेपन एवं उदारीकरण के कारण चीन में भी श्रम, तकनीक, बहुराष्ट्रीय कंपनियों का आगमन हुआ है। इससे जबड़दस्त औद्योगिकीकरण, नगरीकरण इत्यादि को बढ़ावा मिला है।
बौद्ध संस्कृति में जापान का सांस्कृतिक प्रदेश औद्योगिकीकरण, नगरीकरण, वाणिज्यिकरण और प्रजातांत्रिक मूल्यों पर आधारित है। जापान एकमात्र ऐसा देश है जिसके पास प्राकृतिक संसाधन नगण्य है फिर भी विश्व का विकसित राष्ट्र है। यहाँ की लोक संस्कृति मे राष्ट्रीयता का प्रभाव अधिक देखा जाता है।
अप्रत्यक्ष रूप से चीनी और जापानी सांस्कृतिक प्रदेश पर मानसूनी संस्कृति या इण्डिक इस्लामिक सांस्कृतिक प्रदेश का प्रभाव देखा जा सकता है क्योंकि यहाँ भारत से ही बौद्ध धर्म आयात होकर आया है और द्वितीय इण्डिक संस्कृति के सामन ही मानसूनी जलवायु का प्रभाव है।
विश्व के लघु सांस्कृतिक प्रदेश
(i) दक्षिणी-पूर्वी एशियाई सांस्कृतिक प्रदेश
इस संस्कृति का विकास इण्डोनेशिया, वियतनाम, थाइलैण्ड, म्यांमार, लाओसा, कंबोडिया जैसे देशों में हुआ है। यह प्रदेश प्रजातीय दृष्टिषेण से बौद्ध सांस्कृतिक प्रदेश नहीं हैं जबकि संस्कृति है दृष्टिकोण से इण्डिक संस्कृति से नजदीक है।
(ii) मिजो अफ्रीकन सांस्कृतिक प्रदेश
इस संस्कृति का विकास मध्य अफ्रीका एवं विश्व के अनेक जनजातीय प्रदेशों में हुआ है। यहाँ के लोग प्रकृतिवादी, टोटेमवादी, अंधविश्वासी ज्यादा होते हैं। प्राथमिक-आर्थिक क्रिया कलाप में दक्ष होते हैं। प्राय: घुमक्कड जीवन शैली को जीते हैं। गरीबी, बेरोजगारी जैसे समस्याओं का बोलावाला है।
निष्कर्ष: इस तरह उपर्युक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि विश्व के सांस्कृतिक प्रदेश विशिष्ट भौगोलिक पर्यावरण के कारण ही अपनी विशिष्ट पहचान रखते हैं।